एक समय था जब भाजपा से जनता कश्मीर, 370, राम मंदिर जैसे विषयों पर सवाल पूछती थी। 370 के हटने के बाद अब जनता का ध्यान विभिन्न राज्यों की गतिविधियों पर आकर टिक गया है। कर्नाटक में भाजपा सरकार बनने के बाद मध्य प्रदेश की उठापटक कुछ ऐसा संकेत दे रही है कि वहां भी भाजपा सरकार में आ सकती है। बिहार में नितीश कुमार हालांकि भाजपा के साथ गठबंधन में तो हैं किन्तु उनकी भाजपा के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। केन्द्रीय मंत्रीमंडल में भी उनको उतना प्रतिनिधित्व नहीं मिला जितने कि वह अपेक्षा कर रहे थे। अब बिहार के राजनीतिक हालात कुछ ऐसे बन गए हैं कि नितीश कुमार न अकेले चुनाव लड़ कर सत्ता में आ सकते हैं और न ही भाजपा के विरोध में जाकर आरजेडी से हाथ मिला सकते हैं। पूरे देश में जिस तरह से भाजपा ने विपक्ष को साफ किया है उसी तजऱ् पर अपने सहयोगियों को भी विपक्ष बनने से रोकने में भाजपा कामयाब दिख रही है। इन सबके बीच उच्चतम न्यायालय में राम मंदिर विषय की नियमित सुनवाई चल रही है। दोनों पक्ष अपनी अपनी दलीलें रख रहे हैं। एक तरफ 370, 35ए का हटना और दूसरी तरफ राम मंदिर जैसे संवेदनशील विषय का प्रचार में रहना हिन्दुत्व को उफान पर ला रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि इसमें राजनीतिक तड़का लगा रही है। योगी आदित्यनाथ अब जकडऩ से बाहर आते दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में हुये मंत्रीमंडल विस्तार में वह कई कद्दावरों के पर कतरने में कामयाब होते दिख रहे हैं। अयोध्या में पिछली बार दीपों की यादगार दीपावली मनाने के बाद इस बार भाजपा खेमा राम मंदिर निर्माण की दिवाली मनाने की आस लगाए बैठा है।
अमित त्यागी
उत्तर प्रदेश एक बार फिर से राजनीतिक परिदृश्य में उभरने लगा है। एक ओर राम मंदिर पर उच्चतम न्यायालय नियमित सुनवाई कर रहा है तो दूसरी तरफ भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलने से भाजपा खेमें में नयी सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। नए प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह संघ की विचारधारा से आते हैं एवं भाजपा के पुराने कार्यकर्ता हैं। इस बीच उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मंत्रीमंडल में कुछ नए मंत्री भर्ती हुये तो कुछ पुरानों के पर कतरे गए। योगी मंत्रीमंडल के इस विस्तार का राजनीतिक महत्व भले ही कम हो किन्तु इसका प्रारूप आगामी भाजपा के संगठन की रूपरेखा दे रहा है। मंत्रीमंडल विस्तार में योगी आदित्यनाथ खुलकर खेलते नजऱ आए हैं। सदस्यता अभियान के बाद भाजपा में आयातित नेताओं की अपेक्षा पुराने और संगठन से जुड़े नेताओं को तरजीह मिलने जा रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत का सबसे ज़्यादा असर राज्य सरकारों पर दिखाई दे रहा है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ अब खुल कर खेल रहे हैं। लोकसभा चुनावों के पहले उनके हाथ बंधे हुये थे और वह लाचार दिखते थे। लोग कयास लगा रहे थे कि योगी आदित्यनाथ को चुनाव परिणामों के बाद हटा दिया जाएगा। पर उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा। गठबंधन के बावजूद सपा-बसपा बिखर गयी। योगी आदित्यनाथ एक बड़े व्यक्तित्व के रूप में निखर कर आए। इसके बाद जैसे ही केंद्र की भाजपा सरकार ने संघ के अजेंडे का रुख किया, तीन तलाक, 370 जैसे विषयों पर काम किया वैसे ही हिंदुत्ववादी नेता योगी आदित्यनाथ का कद अचानक बढ़ता दिखने लगा। इसके बाद जब उत्तर प्रदेश में मंत्रीमण्डल का विस्तार हुआ और योगी आदित्यनाथ के खेमे के लोगों को प्रमोशन और विरोधियों के पर कतरे गए तब यह बात साफ हो गयी कि योगी आदित्यनाथ 2022 की तैयारी में लग चुके हैं।
उत्तर प्रदेश के मंत्रीमण्डल विस्तार में वित्तमंत्री राजेश अग्रवाल, अर्चना पांडे, अनुपमा जाइसवाल जैसे लोगों की ताकत समाप्त कर दी गयी। नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना की शक्ति सीमित की गयी। ओमप्रकाश राजभर पहले ही बर्खास्त किए जा चुके हैं। इस बार युवाओं और संगठन से जुड़े लोगों को तरजीह दी गयी। योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के बीच चलने वाले शीत युद्ध में इस बार योगी आदित्यनाथ भारी दिखे। चूंकि, दिल्ली में राम मंदिर की सुनवाई नियमित तौर पर चल रही है इसलिए ऐसी सुगबुगाहट है कि इस बार दिवाली तक राम मंदिर पर कुछ फैसला आ सकता है। योगी आदित्यनाथ ने पहले ही फ़ैज़ाबाद का नाम अयोध्या करके एवं दिवाली पर सरयूघाट पर दिवाली मनाकर हिन्दुत्व का संकेत दे चुके हैं। इसके बाद कुम्भ में जिस तरह से भीड़ उमड़ी उसके बाद योगी आदित्यनाथ का क़द बढ़ गया। दक्षिण और पूर्वोत्तर के राज्यों में योगी की मांग बढ़ गयी थी। 2014 में शुरू हुआ हिन्दुत्व कार्ड 2019 आते आते अपने चरम पर पहुंच गया था। यदि थोड़ा पीछे जाकर देखते हैं तो हम पाते हैं कि जो तीन तलाक और राम मंदिर आज भाजपा के फ़ायर ब्रांड मुद्दे हैं उसकी शुरुआत कांग्रेस के शासन काल में राजीव गांधी ने की थी। धर्म आधारित राजनीति की शुरुआत तब उत्तर प्रदेश से ही हुयी थी।
उस समय राम मंदिर के ताले खुलवाए गए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के द्वारा मुस्लिम और हिन्दू वोटों पर एकछत्र राज करने का दांव पूरी तरह उल्टा पड़ा और तबसे ही कांग्रेस की पतन की कहानी शुरू हो गयी। राम मंदिर और तीन तलाक का पुराना रिश्ता रहा है। पूर्व में जब राजीव गांधी की सरकार में एक अधेड़ उम्र की महिला शाहबानों को उसके पति ने तलाक दे दिया, पांच बच्चों की मां शाहबानों ने गुज़ारे भत्ते की मांग की। मामला निचली अदालतों से होते हुये जब उच्चतम न्यायालय में पहुंचा तब न्यायालय ने 125 सीआरपीसी के अंतर्गत शाहबानों को गुज़ारा भत्ता दे दिया। उस समय यह निर्णय मुस्लिम समाज में सुधार का प्रतीक माना गया। उस समय कठमुल्लाओं ने इस निर्णय का विरोध किया और राजीव गांधी पर दबाव बनाया कि वह अदालत के निर्णय के खिलाफ संसद में कानून बनाएं। मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए राजीव गांधी ने आरिफ़ मोहम्म्द खान जैसे तरक्की पसंद मुस्लिमों की सलाह को भी दरकिनार कर दिया और मुल्लाओं के दबाव में आकर कानून बना दिया। मुस्लिम समाज सुधार से वंचित रह गया। इसके बाद राजीव गांधी के सलाहकारों ने उन्हे सलाह दी कि अगर राम मंदिर के ताले खुलवा दिये जाते हैं तो हिन्दू समाज भी उनके साथ आ जाएगा। मुस्लिमों के बाद हिंदुओं के साथ आने से कांग्रेस को कोई हटा नहीं पाएगा। इस तरह से रामजन्मभूमि परिसर के ताले खोले गए और सुप्त अवस्था में पड़ा यह विवाद जागृत हो गया।
उस समय लाल कृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकालकर भाजपा को स्थापित कर दिया। तीन तलाक के संदर्भ में एक बात जानना जरूरी है कि मुस्लिमों के दोनों फिरकों शिया और सुन्नी में तीन तलाक का तरीका अलग है। शिया समुदाय की परंपरा के अनुसार निकाह के समय किसी गवाह की आवश्यकता नहीं है किन्तु तलाक के समय दो गवाह आवश्यक होते हैं। इसके विपरीत सुन्नी समुदाय की परंपरा में निकाह के समय दो गवाह आवश्यक हैं। तलाक के समय किसी गवाह की आवश्यकता नहीं है। तीन तलाक की जिस परंपरा को उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक माना है और उस पर संसद ने कानून बनाया है, वह सुन्नी समुदाय को प्रभवित कर रहा है। शिया समुदाय इस निर्णय से खुश है। शिया समुदाय का झुकाव तीन तलाक के शुरुआती दौर से ही भाजपा की तरफ होने लगा था। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में यह दिखाई भी दिया था। इसके बाद लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को बढ़ा मुस्लिम मत प्रतिशत इस बात का स्पष्ट संकेत है कि मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने में भाजपा कामयाब हो रही है। भाजपा और शिया समुदाय की करीबी राम मंदिर विषय पर शिया बोर्ड के हलफनामें के रूप में सामने आई थी।
विपक्षी खेमें में जाते बागी, विपक्ष अब भी लाचार
विपक्ष का काम समय समय पर सरकार को आईना दिखाना होता है। वर्तमान में देश में सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष लाचार नहीं है बल्कि राज्य स्तर पर भी यही हाल है। सपा बसपा ने उत्तर प्रदेश में गठबंधन तो किया किन्तु भाजपा को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। 2014 में ज़ीरो पर रहने वाली बसपा ने 10 सीटे जीत लीं किन्तु सपा ने सिर्फ पांच सीटे ही जीतीं। स्वयं अखिलेश यादव के परिवार के तीन सदस्य चुनाव हार गए। यदि इस परिणाम के बाद सपा बसपा एक रहते तो शायद आगे चलकर यह गठबंधन भाजपा के लिए कोई बड़ा खतरा बन भी जाता किन्तु ऐसा नहीं हुआ। मायावती ने सपा पर वोट ट्रान्सफर न होने का आरोप लगाकर गठबंधन तोड़ लिया। सपा और बसपा के अलग होते ही दोनों खेमे के लोग एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे। विपक्ष के जिन दलों की जि़म्मेदारी सत्ता पक्ष को घेरने की थी वह आपस में उलझ गए। आज जब उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के चरमराने, रोजगार न मिलने या अन्य कोई आरोप सत्ता पक्ष पर लगाने का अवसर आता है तब विपक्ष नदारद दिखता है। इसके उलट अगर भाजपा विपक्ष में होती तो सत्ता पक्ष की बैंड बजा देती। रेल रोको, सड़क जाम एवं धरना प्रदर्शन के महारथी भाजपाई विपक्षी की भूमिका शानदार ढंग से निभाते हैं।
मायावती ने 370 के विषय पर भाजपा का समर्थन करके स्वयं को विपक्ष के खेमे से अलग करके एक उदासीन दल बना लिया है। वह अब भाजपा का स्वाभाविक विपक्ष नहीं है। अखिलेश यादव ने 370 पर सरकार का विरोध किया था। इस वजह से उनकी किरकिरी भी हुयी थी। इसके साथ साथ उनके सिपहसालार आज़म खान द्वारा लोकसभा अध्यक्ष पर टिप्पणी का मामला भी उनके लिए गले की हड्डी बन गया था। भाजपा समेत पूरे सत्ता पक्ष ने इस मामले में आज़म खान को लपेट लिया था। इसके पहले आज़म खान रामपुर में अपनी जौहर यूनिवर्सिटी के विवाद में कानूनी शिकंजे में फंसे हुये हैं। उनके लिए कुछ भी आसान नहीं है। अब अखिलेश यादव की आस ओमप्रकाश राजभर जैसे बागी नेताओं पर आकर टिक गयी है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा को एक भी सीट नहीं दी थी। इसके बाद परिणाम आने के बाद योगी सरकार से ओमप्रकाश राजभर को बर्खास्त कर दिया गया। जो राजभर मंत्री रहते भाजपा सरकार को कोसते रहते थे और उन्हें लगता था कि वोटबैंक के दबाव में भाजपा उनके साथ सौदेबाजी करेगी, उसमें राजभर पूरी तरह विफल रहे। वह घर के रहे न घाट के। अब वह राजभर अखिलेश यादव के साथ पींगे बढ़ा रहे हैं। दोनों की निगाह 11 सीटों पर होने वाले उपचुनावों पर हैं। बसपा के हाथों चोट खाये अखिलेश यादव अब राजभर की पार्टी से उम्मीद लगाए बैठे हैं। 2017 में कांग्रेस और 2019 में बसपा के साथ गठबंधन करके अपनी सल्तनत गंवा चुके, अखिलेश यादव अभी भी चाटुकारों से घिरे हैं। वह स्वयं ज़मीन पर उतर कर सपा को मजबूत करने के स्थान पर गठबंधन और अन्य बैसाखियों के सहारे आगे बढऩा चाहते हैं। वह अब भी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति अब जातिगत समीकरण से बाहर निकल गयी है। अब जनता में मोदी और भाजपा का क्रेज़ इसलिए दिखाई देता है क्योंकि ये लोग भारत का एक बड़ा परिदृश्य जनता के सामने रखते हैं। 370 के विषय पर विरोध के कारण अखिलेश यादव का हिन्दू वोट बैंक भी उनसे छिटक गया है। इसका आभास उन्हें अपने आगामी चुनावों में होगा।
उपचुनावों पर दिखेगा राममंदिर एवं 370 का प्रभाव
उत्तर प्रदेश में खाली हुयी विधानसभा की सीटों पर उपचुनावों पर भाजपा की दावेदारी पुख्ता दिख रही है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि उपचुनाव भाजपा के लिए खतरे की घंटी होते हैं और उसमें वह अक्सर हार जाती है। नूरपुर, कैराना, फूलपुर और गोरखपुर के पूर्व में हुये उपचुनाव भाजपा के लिए हार लाये थे। किन्तु इस बार ऐसा कुछ नहीं दिखता है। तब भाजपा का हिन्दुत्व अपने बालपन में था और अब वह अपने तीव्र स्वरूप में है। 370 के बाद लोगों का भरोसा मोदी और संघ के अजेंडे पर बढ़ गया है। भाजपा में अब समर्पित कार्यकर्ताओं को संगठन और सरकार में वापस तरजीह मिलने लगी है। आयातित नेता पीछे जाने लगे हैं। भाजपा के आलाकमान को समझ आ चुका है कि अब वोट भाजपा के कार्यकर्ता दिलवाते हैं और वोट पड़ता मोदी के नाम पर है। बस यही एक भावना उनका आत्मविश्वास बढ़ा रही है और इसकी वजह से ही योगी आदित्यनाथ के बंधे हाथ खोल दिये गए हैं। योगी आदित्यनाथ भी इस जकडऩ को खुले दिल से भुना रहे हैं और पहले उपचुनाव और फिर 2022 के लिए तैयार दिखते हैं। इन सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह है कि मुस्लिमों के मन से भाजपा का डर खत्म होता जा रहा है। अब तक भाजपा का डर दिखाकर उनका वोट लेने वाले दल और मंसूबे दोनों हाशिये पर हैं। सरकार की योजनाओं का लाभ चूंकि मुसलमानों को भी मिला है इसलिए आने वाले समय में मुसलमान भी भाजपा से और ज़्यादा जुड़ेगा। 2014 और 2019 की तुलना में भाजपा को 6 प्रतिशत ज़्यादा मुस्लिम वोट वैसे भी मिला है। भाजपा धीरे धीरे सात के दशक वाली कांग्रेस की तरह एकछत्र राज वाली पार्टी बनती चली जा रही है।
उत्तर प्रदेश में मना वृक्षारोपण का महाकुंभ
पर्यावरण संरक्षण के क्रम में वृक्षारोपण सरकारी अभियान बनकर कौतुहल का विषय बन रहा है। इस क्रम में भारत छोड़ो आंदोलन की 77वीं वर्षगांठ के अवसर पर पूरे उत्तर प्रदेश में 22 करोड़ पौधे रोपित किए गए। विश्व रिकॉर्ड बने इस अभियान में गिनीज़ बुक के अधिकारियों ने इसकी मानीटरिंग की। उत्तर प्रदेश वन विभाग के नाम कई वल्र्ड रिकॉर्ड दर्ज हैं। यूपी वन विभाग ने 2007 में एक दिन में एक करोड़ पेड़ लगाने का वल्र्ड रिकॉर्ड बनाया था जबकि, 2015 में 10 स्थानों पर दस लाख मुफ्त पौधों के वितरण की उपलब्धि भी वन विभाग के नाम दर्ज है। 2016 में पांच करोड़ पौधरोपण का कीर्तिमान भी प्रदेश के वन विभाग के नाम गिनेस बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। प्रयागराज में आयोजित वृक्षारोपण महाकुंभ में 33 हजार से ज्यादा मुफ्त पौधों का वितरण आठ घंटे में होने के बाद गिनीज़ बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में नई उपलब्धि दर्ज हो जाएगी। इससे पहले इसी वर्ष (2019) में यह उपलब्धि महाराष्ट्र के नाम पर दर्ज हुई थी। जहां पर एक दिन में तीस हजार से ज्यादा पौधों का मुफ्त वितरण किया गया था। वृक्षारोपण महाकुंभ की शुरुआत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में हरिशंकरी का पौधारोपण कर की। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘पूरे प्रदेश में 22 करोड़ पौधे लगाए जा रहे हैं। यह प्रकृति का वरदान साबित होंगे। उन्होंने वन विभाग को निर्देशित करते हुए कहा कि हर जिले में 100 वर्ष से अधिक आयु के वृक्ष चिन्हित करें। उन्हें हेरिटेज का दर्जा देकर संरक्षित किया जाएगा। एक बुकलेट भी बनाई जाएगी।’ मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि अगले वर्ष वन महोत्सव में 25 करोड़ पौधे लगाए जाएंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पांच ग्रामीण महिलाओं को सहजन के पौधे भी भेंट किए। इन सब पौधों की देखभाल का जिम्मा प्रशासन का रहेगा जो जियो टेगिंग के जरिये इन पर नजऱ रखेगी।
राम मंदिर विषय का क्रमवार विश्लेषण
राम मंदिर विवाद डेढ़ सौ साल पुराना है। सबसे पहले 1853 में हिंदुओं द्वारा आरोप लगाया गया कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर यहां मस्जिद का निर्माण किया गया है। इसके बाद 1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवादित भूमि की बैरिकेटिंग करवा दी। मसले का अस्थायी हल निकालते हुये तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार ने विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिन्दुओं को अलग अलग प्रार्थना करने की इजाजत दे दी। इसके बाद 1885 का वर्ष वह वर्ष था जब पहली बार यह मामला न्यायालय के समक्ष पेश किया गया। यह वाद महंत रघुवर दास द्वारा दायर किया गया था। 1944 में शिया बोर्ड द्वारा इसका हस्तांतरण सुन्नी बोर्ड को कर दिया गया। 1944 का यह हस्तांतरण अब इस वाद का प्रमुख बिन्दु होने जा रहा है। 23 दिसम्बर 1949 को करीब 50 हिन्दुओं ने केन्द्रीय स्थल में रामलला की प्रतिमा स्थापित कर दी। 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फ़ैज़ाबाद अदालत में रामलला की पूजा अर्चना करने की विशेष इजाजत मांगते हुये मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की मांग की। 5 दिसम्बर 1950 को महंत परमहंस रामचन्द्र दास ने हिन्दू प्रार्थनाएं जारी रखने और विवादित परिसर में मूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर कर दिया। इस तरह से कई चरणों से गुजरते हुये प्रारम्भिक सौ सालों में यह विवाद आगे बढ़ता चला गया। वर्तमान विवाद के एक बड़े एवं अहम मोड़ के रूप में एक फरवरी 1986 का दिन माना जाता है जिस दिन फ़ैज़ाबाद जि़ला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिन्दुओं को पूजा की इजाजत देते हुये ताले खोलने का आदेश दिया।
इस फैसले का राजनैतिक प्रभाव हुआ। नाराज़ मुस्लिम समाज ने विरोध स्वरूप बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी का गठन किया। ताले खोले गए तो जून 1989 में भाजपा ने मंदिर आंदोलन को गति प्रदान की तो उसी साल नवंबर में राजीव गांधी ने विवादित स्थल के पास शिलान्यास की इजाजत भी दे दी। इसके बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक भूचाल आया और दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचा ढहा दिया गया। इस एक घटना के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति चरमरा गयी और हिन्दू मुस्लिम के बीच बढ़ी खाई को राजनैतिक दलों ने खूब भुनाया। एक भाजपा ने हिन्दू समाज को अपना वोट बैंक बना लिया तो दूसरी तरफ मुलायम सिंह ने मुस्लिमों के रहनुमा के रूप में खुद को स्थापित कर लिया। कई घटनाक्रमों से गुजरते हुये 30 सितंबर 2010 को उच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया एवं इसके बाद 21 मार्च 2017 को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इसमें मध्यस्थता की पेशकश की। इसके बाद शिया बोर्ड के हलफनामें ने इस मुद्दे में एक नया आयाम पैदा किया। वर्तमान में 5 दिसंबर से होने जा रही नियमित सुनवाई हिन्दुओं की जनभावना को बलवती कर रही है। वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में चल रही नियमित सुनवाई से यह आस जगी है कि इस पर फैसला शीघ्र ही आएगा।
राम जन्म मंदिर जहं, लसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहं, मीर बाकी खाल नीच॥
तुलसीदास के इस दोहे से इतना तो साफ है कि वहां राम मंदिर था जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोड़कर मस्जिद में तब्दील कर दिया था। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस हालांकि कानूनी साक्ष्य के रूप में तो ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं है किन्तु उस दौर के लोगों की सोच, मानसिकता एवं वास्तविकता का परिचायक अवश्य है। मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाने वाले मीर बाकी शिया समुदाय के थे, इसलिए मस्जिद पर शिया वक्फ बोर्ड अपना अधिकार जता रहा है। एक संत योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति का रंग भगवामय हो चुका है। मुख्यमंत्री स्वयं अयोध्या में जाकर कह चुके हैं कि सकारात्मक राजनीति से ही अयोध्या में मंदिर राजनीति का हल निकलेगा। अयोध्या ने देश को एक पहचान दी है। इन्डोनेशिया दुनिया का एक ऐसा देश है जहां की ज़्यादा आबादी मुस्लिम है किन्तु रामलीला उनका उनका राष्ट्रीय त्यौहार है। योगी आदित्यनाथ का यह भी कहना है कि थाईलैंड के राजा भगवान राम के वंशजों में से एक हैं और दूसरे देश भी भगवान राम को मानते हैं। भारत का हर बच्चा रामलीला के बारे में जानता है। हर धर्म का व्यक्ति भगवान राम के प्रति अपने प्यार को दर्शाता है।