आर.के.सिन्हा
इंग्लैंड के ओवल में भारत-पाकिस्तान के बीच खेले गए आईसीसी चैपियंस ट्रॉफी के खिताबी मुकाबले में पाकिस्तान ने भारत को मात दी। ठीक है, जब दो टीमें भिड़ेगी तो एक के हिस्से में विजय और दूसरे को मिलेगी पराजय। पर पाकिस्तान की जीत का जश्न भारत में मनाया जाए, यह बात गले नीचे नहीं उतरती। पर यही हुआ।
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में पुलिस ने 15 लोगों को गिरफ्तार किया है। ये लोग पाकिस्तान के नारे लगाकर, पटाखे छोड़कर पाकिस्तान के फाइनल में जीतने का जश्न मना रहे थे। इससे मिलता –जुलता मामला रुड़की में भी सामने आया है। पाकिस्तान की जीत पर रुड़की में एक मोहल्ले में कुछ लोगों ने आतिशबाजी कर लोगों की भावनाएं भड़काने एवं माहौल खराब करने का प्रयास किया। कश्मीर के विभिन्न इलाक़ों में जो कुछ भी हुआ वह तो सारा देश जान गया है। इन शर्मनाक देशद्रोही घटनाओं को दुहराने की ज़रूरत तक नहीं है। ये सारे मामले बेहद गंभीर है। जो भी पाक की विजय पर जश्न मना रहे थे उन पर कठोरतम कार्रवाई होनी ही चाहिए। इनके साथ किसी भी तरह का नरम व्यवहार करने के बारे में सोचा भी नहीं जाना चाहिए।
आस्तीन के सांप
क्या इस घोर देश विरोधी हरकत को जायज माना जा सकता है? खेल के नाम पर जिस तरह की हरकतें भारत में होने लगी हैं, वो शर्मनाक और असहनीय हैं। यह ठीक है कि देश में आस्तीन के सांप हैं, पर पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने की घटना तो सीधे देशद्रोह की परिधि में आती है। इन राष्ट्र विरोधी तत्वों से पूछा जाना चाहिए कि आखिर ये क्यों भारत का नमक खाकर देश के साथ गद्दारी कर रहे हैं?
पाकिस्तान शत्रु देश है। उसकी जीत पर आतिशबाजी करने का कोई औचित्य ही नहीं है। कुछ समय पहले सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने भी कहा था कि पाकिस्तान के झंडे दिखाकर आतंकवाद की मदद करने वालों को देश विरोधी माना जाएगा और बख्शा नहीं जाएगा।
उतरे बचाव में
जैसी कि आशंका थी कुछ मानवाधिकार संगठनों ने पाकिस्तान के हक में नारेबाजी करने वालों को रिहा करने की मांग भी शुरू कर दी है। इनका तर्क है कि खेलों में कोई इंसान किसी का भी पक्ष ले सकता है। ये सब बकवास भारत में ही हो सकता है। जो पाकिस्तान हर तरह से भारत को आतंकवाद के जरिए हानि पहुंचाता है, उसके चाहने वाले भारत में मौजूद हैं। उनके हक में खड़े होने वाले भी हैं।इन्हें भी सख़्ती से कुचलने की ज़रूरत है।
और जरा पाकिस्तान का हाल भी सुन ही लीजिए। पिछले साल पाकिस्तान में विराट कोहली के एक फैन को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसका अपराध मात्र यह था कि वो टीम इंडिया के आस्ट्रेलिया में बेहतर प्रदर्शन की खुशियां मना रहा था।
उसने पाकिस्तान में अपने घर की छत पर भारतीय तिरंगा फहराया था।आरोपी फैन उमर द्राज लाहौर से 200 किलोमीटर दूर पंजाब प्रॉंत के ओाकड़ा शहरमें रहता है। उमर ने पत्रकारों से कहा था कि मैं विराट कोहली का बड़ा प्रशंसक हूं। मैं कोहली के कारण भारतीय टीम का समर्थन करता हूं। द्राज ने कहा कि उनका कोई अपराध करने का इरादा नहीं था और उन्होंने अधिकारियों से उन्हें माफ करने की अपील की है। उनके घर की दीवारों पर भी कोहली की पोस्टर के आकार की तस्वीरें लगी हुई थी। जरा सोचिए कि अगर उसने अपने देश के भारत से मैच के दौरान तिरंगा फहराया होता तो उसे फांसी हो जाती। कहॉं था हमारे देश में नफ़रत फैलाने वाली देशद्रोही तथा कथित मानवाधिकारों ब्रिगेड जो आज अपने देश में पाकिस्तानी झंडे फहराने का समर्थन कर रहा है?
अपने देश के हालातों को देखते हुए,भारत-पाकिस्तान के बीच चैपियंस ट्रॉफी के पहले से ही माहौल में तनाव को महसूस किया जाने लगा था। वैसे तो तनावपूर्ण हालात में पाकिस्तान के साथ मैच आयोजित करना ही ग़लत निर्णय था। मुझे लगता है कि
कश्मीर या देश के किसी भी भाग में पाकिस्तान का झंडा फहराने वालों के विरूद्ध फतवा जारी किया जाना चाहिए।
फ़तवा का शाब्दिक अर्थ असल में सुझाव है। पर जिन मुद्धों पर जिस तरह के फतवे आते हैं, उनसे साफ है कि इन्हें जारी करने वाले अपने समाज को घोर अंधकार के युग में ही रखना चाहते हैं। ये उन्हें सूट करता है। इसलिए उनसे भारत में रहने वाले पाक परस्त तत्वों के खिलाफ फतव जारी करने की उम्मीद मत करें।निश्चित रूप से जो पाकिस्तानी झंडा फहराने का दुस्साहस करते हैं, उन पर कठोर कानूनी कार्रवाई हो।
क्या भारत में रहकर शत्रु राष्ट्र के गुणगाम करना इस्लाम के अनुरूप है? क्या यही इस्लाम सिखाता है। क्या रमजान के मुकद्दस महीने में पाकिस्तानी झंडा फहराने वाले और सुरक्षा बलों पर पथराव करने वाले किसी भी पैमाने से सच्चे मुसलमान ऑंके जा सकते हैं?
निराशा क्यों
बहरहाल,टीम इंडिया की चैपियंस ट्रॉफी के फाइनल में पाकिस्तान के हाथों अप्रत्याशित हार से सारा देश सहम सा गया है। हार के बाद समूचे देश में निराशा-हताशा फैली हुई है।पर कायदे से इस परिणाम को सेलिब्रेट किया जाना चाहिए। इस पर स्यापा करने की जरूरत नहीं है। याद रखिए कि खेलों की दुनिया में अप्सेट या उलटफेर नहीं होंगे तो खेलों का रोमांच कहां रहेगा? अगर आपको किसी प्रतियोगिता या मैच से पहले ही उसके नतीजे मालूम चल जाएं तो फिऱ उसकी बात करना भी बेकार है।
दरअसल हमेशा बेहतर टीम या खिलाड़ी नहीं जीतता। कई बार जुझारूपन और जीतने की अदम्य इच्छा शक्ति भी विजय की वजह बनती है। अगर मैच से पहले ही उसका नतीजा दर्शकों को मालूम हो तो फिर उस मैच का रस ही खत्म हो जाएगा। तब खेलों की दुनिया कितनी नीरस और बोरिंग हो जाएगी,इसे कल्पना करने से भी डर लगता है। खेलों की दुनिया में ज्यान्ट किलर बिरादरी के फलने-फूलने की कामना करते रहिए। क्रिकेट की ताऱीख तो भरी पड़ी है अप्रत्याशित नतीजों से। आस्ट्रेलिया टेस्ट टीम साल 1999 से लेकर 2001 तक अजेय थी। उसने लगातार 16 टेस्ट जीते। पर उनके विजय रथ को कोलकता के ईडन गार्डन में टीम इंडिया ने रोका। एक बेहद रोचक टेस्ट में स्टीव वॉ की कप्तानी में बार-बार जीत का स्वाद ले रही उनकी टीम पिट गई। उस टेस्ट में वीवीएस लक्ष्मण ने 281 रनों की लाजवाब पारी खेली थी।
भारत ने 1983 विश्व कप क्रिकेट का खिताब जीता। कपिल देव की कप्तानी मेंउस चैंपियनशिप में भाग लेने के गई टीम ने भी नहीं सोचा था कि वह स्वदेश चैंपियन बनकर लौटेगी। उस चैंपियनशिप में भारतीय टीम चैंपियन की तरह खेली और आखिर में चैंपियन बनी। उसने 25 जून, 1983 को फाइनल मैच में वेस्ट इंडीज की सर्वकालिक महान टीम को हराया।
पहनी काली पट्टी
और जिस दिन चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल था, उसी ही दिन भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ मुकाबले में भारतीय सेना पर हो रहे हमलों के विरोध और शहीदों की याद में काली पट्टी पहनकर मैच खेला था। वास्तव में हॉकी महासंघ और टीम ने एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया। इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय सेना ने अनेक महान हॉकी खिलाड़ी दिए हैं। दादा ध्यानचंद भी सेना में थे। इससे पहले वर्ष 2016 एशियन चैंपियंस ट्रॉफी की जीत को भी भारतीय टीम ने सेना को समर्पित किया था।
बहरहाल, अब आगे बढ़िए। भारत आखिर फाइनल तक पहुंचा। उसका कुल प्रदर्शन खराब नहीं माना जा सकता। पर भारत की हार के कारण हुए घाव पर नमक छिड़कने का काम उन शरारती तत्वों ने किया जो पाकिस्तान की जीत का जश्म मना रहे थे।
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)