डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कल से मैं कोलकाता में हूं। यहां के अखबार और टीवी चैनल बस एक ही खबर से भरे दिखाई पड़ रहे हैं। वह है- राज्यपाल और मुख्यमंत्री की मुठभेड़। राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच खुले-आम जो दंगल चल पड़ा है, वह कई राज्यों में पहले चले दंगलों की याद दिला रहा है। ममता ने एक भाषण में आरोप लगाया है कि त्रिपाठी ने फोन करके उन्हें डांटा और उन्हें धमकी दी। उन्होंने इतने बुरे ढंग से बात की कि ममता का मन इस्तीफा देने का होने लगा। त्रिपाठी का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैंने तो उनसे सिर्फ यह कहा था कि 24 परगने के बदूरिया गांव में वे सांप्रदायिक तनाव को काबू करें। वहां से बहुत शिकायतें आ रही हैं। वे जाति, धर्म, संप्रदाय का ख्याल किए बिना दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करें। राज्यपाल की प्रतिक्रिया से नाराज होकर तृणमूल कांग्रेस के नेता उन पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने राजभवन को भाजपा और संघ का दफ्तर बना दिया है। किसी नामजद राज्यपाल को किसी जनता के द्वारा चुने हुए मुख्यमंत्री को हड़काने का क्या अधिकार है ? कांग्रेस का कहना है कि इस राज्यपाल को बर्खास्त करो। वह पुडुचेरी की उप-राज्यपाल किरण बेदी को भी बर्खास्त करने की मांग कर रही है, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री को बताए बिना ही भाजपा के तीन लोगों को नामजद करके विधायक की शपथ दिला दी। मार्क्सवादी पार्टी प. बंगाल के राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन की मांग कर रही है। ये सब मांगें हमारे लोकतंत्र को कमजोर करनेवाली हैं। यहां इस मामले में सबसे अच्छी भूमिका गृहमंत्री राजनाथसिंह निभा रहे हैं। उन्होंने राज्यपाल और मुख्यमंत्री, दोनों को संयम बरतने की सलाह दी है। बिहार में रामनाथ कोविंद और नीतिश के जैसे मधुर संबंध रहे हैं, वैसे सभी प्रदेशों में क्यों नहीं रह सकते ? यदि त्रिपाठीजी ने कुछ कठोर शब्दों का प्रयोग कर दिया हो तो भी ममताजी को उन्हें सार्वजनिक करने की क्या जरुरत थी ? ऐसा करके उन्होंने अपना नुकसान खुद किया है। वोटों का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण अब तेजी से होगा। पूरे प्रांत में हिंदू ज्यादा हैं या मुसलमान ? अकेले 24 परगना में हिंदू एक करोड़ हैं और मुसलमान सिर्फ 25 लाख ! इसमें शक नहीं कि स्थिति को काबू करने में ममताजी पूरी मुस्तैदी दिखा रही हैं लेकिन इस विवाद का फायदा अनचाहे ही वे भाजपा को दे रही हैं।