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मर्दों का क्या है, ये तो ऐसे ही होते हैं!

अंकल परिवार के साथ अच्छी जगह डिनर करने आए हैं। बगल में बीवी है, दो बड़े बच्चे भी बैठे हैं.. सब बहुत खुश हैं, जोर जोर से हँस रहे हैं लेकिन अंकल के लिए इतना काफी नहीं है। अंकल को सामने वाली टेबल पर बैठी लड़की को घूरना है। कभी रँगे हुए बालों को ठीक करते हुए, कभी फोन पर बात करते हुए उनको बस सामने वाली लड़की को लीचड़ता की हद पार करते हुए निहारना है। उनने ठरक के साथ बहुत सारा धन भी संचय किया है तो उनको लगता है कि उनकी लीचड़ता किसी सड़क छाप लड़के की लीचड़ता से बेहतर है।
बीवी बगल में बैठी बच्चों का ध्यान रख रही है, उनको क्या खाना है, क्या नहीं सब फरमाइश सुन रही है, खुद को भी सँवार रही है लेकिन पति के कमीनेपन से अंजान है। उसका पति भगवान है उसे यही बताया गया है और भगवान को जिंदा रखने के लिए वो हर साल बस नियम से करवा चौथ करते आ रही है। वह पति की आंखें खुली रखना चाहती है और पति अपने पैंट की चैन।

ऐसे तो हर बीवी अंजान नहीं होती है पति की हरक़तों से। कुछ जानती हैं पति की नीयत लेकिन इग्नोर करती हैं क्योंकि उसे पता है कि पीछे लौटने को उसके पास कुछ नहीं है। कई औरतें पति के घिनौने सच के साथ जीती हैं। वह भाप लेती है अपने पति को जब वो साली से मजाक के नाम पर छेछड़पंती पर उतर आता है.. जब वो भाभियों, और पत्नी की सहेलियों पर बिना बात चढ़ता है..फनी जोक्स के नाम पर फूहड़ता उगलता है.. जब वो दफ्तर में काम करने वाली महिलाओं के स्तनों के आकार पर रोज टिपण्णी करता है..तब पत्नी अपने पति की नीचता की गहराई समझ जाती है लेकिन वह रहती है साथ क्योंकि उसे बार बार यह बताया गया है कि ‘मर्द तो ऐसे ही होते हैं’!
बचपन से जवानी तक में, जब एक-एक अधिकार औरत से छीना गया तब यही कहा गया कि ‘ मर्द तो ऐसे ही होते हैं, तुम ठीक से रहो’। काश तब किसी ने पूछ लिया होता कि ये वाले मर्द कैसे होते हैं..क्या वो यूँ बेवफा, बेगैरत, बेशर्म, बलात्कारी, मोलेस्टर, शोषक, खूनी, धूर्त और झूठे होते हैं??; और जवाब जानकर धर्म के हर पन्ने पर जहाँ औरत की मर्यादा खींची गयी, नियम बनाए गए..घर की हर दीवार पर जहाँ औरत पर उंगली उठाई गई..वहाँ पर मर्द कैसे होते हैं, ये बड़े बड़े शब्दों में लिख दिया होता।

लेकिन औरतों का ऐसे पति के साथ रह लेने का यह एक मात्र कारण नहीं है। उनको पता है कि जिसको वे मायका कहती हैं वह अब उसके तीन भाइयों के हिस्से में बंट गया है.. माँ बाप भी कभी किसी तो कभी किसी के घर रहते हैं। उनको पता है जब विदा होते हुए वो धान के लावे को पीछे उछाल कर पिता का घर भर रहीं थी तब दरअसल वह अपने घर में अपना अंतिम संस्कार कर रहीं थी।
जिन औरतों का मायका नहीं बिका, जो ब्याहता गयी अपने घर लौटकर, उन्हें बाप ने यह कहकर भेज दिया कि ‘ब्याहता बेटी मायके बैठेगी तो मुझे मौत आ जायेगी’। बाप न मर जाए इसलिए बेटी को ससुराल मरने के लिए भेज दिया गया। कायदे से देखा जाए तो ऐसे बाप को तब ही मर जाना था जब बाप बनने की इच्छा उसके मन में पनपी थी, खैर।

यह कोई एक मात्र घटना नहीं है। ऐसे अंकल और लड़के भरे पड़े हैं। लड़की क्या क्या कहें और क्या क्या इग्नोर करे। क्या क्या लिखे और क्या क्या लिख कर मिटा दे। ये दिक्कत बस उन रेस्टोरेंट वाले अंकल की नहीं है। हम ऐसे ही करते हैं। कही पर भी किसी लड़की को घूरना चालू कर देते हैं और घूरते ही रहते है जबतक वह उठ कर न चली जाए..कभी चिमटी काट देते हैं, कभी स्तन पर मार देते हैं..चलते चलते उनपर गिरने लगते हैं.. कभी जवाब न आने पर गाली दे देते हैं..लगातार कॉल करने लगते हैं, घटिया टेक्स्ट करते हैं..अश्लील वीडियो भेज देते हैं..पीछा करते हैं..सेक्सुअली हरास करते हैं..पॉवर पोजिशन इस्तेमाल करके बच भी जाते हैं..ये सब तुक्का है हमारा, पट गयी तो ठीक वरना माँ बाप तो बीवी दिलवा ही देंगे। इनकी प्रजाति घर, दफ्तर, स्कूल, कॉलेज, सड़क, रेस्टोरेंट से लेकर इनबॉक्स और कमेंट बॉक्स तक पहुँची हुई है।

उस दिन रेस्टोरेंट में तो शुक्र है मैंने ‘ढंग’ के कपड़े पहने थे। जो न पहने होते तो टोकने पर अंकल तपाक से कह देते कि ” बोल्ड कपड़े पहने हैं तो बोल्ड नजरें घूरेंगी ही ”

दरअसल ये सारी लड़कियां जो ‘ढंग’ के कपड़े पहन कर बाहर निकलती हैं..ये जो हर मौके पर ड्रेस अप होने से पहले समय, एरिया और वहाँ जुटने वाली भीड़ का पंचनामा कर लेती हैं.. ये जो फैमिली फंक्शन के लिए खरीदी गई नयी शिफॉन की ड्रेस बस इसलिए नहीं पहनती क्योंकि चाचा के दोस्त के पिताजी को शिफॉन नहीं पसंद है, अंदर का शरीर झलकता है.. ये जो हर चार महीने में नए डिजाइन के बाल कटवाने और बाजार  से लेकर परीक्षा हॉल में भी बाल खुल्ला कर के ही रहने वाली लड़कियां शादी होते ही हिजाब और बुर्के के बिना कदम बाहर नहीं निकालती हैं.. ये जो चालीस डिग्री में भी चूल्हे में मुंह घुसाए साढ़े पाँच मीटर का कपड़ा लपेटे रहती हैं..ये जो ‘ मैं ही क्यों’ के सवाल को बिलखते बच्चे के लिए बना रहे दूध में घोल कर नौकरी, तरक्की सब त्याग बैठती हैं..ये जो अनपढ़ से लेकर डिग्रीधारी औरतें सिले मुंह के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी खाली पेट मर्दों की आरती उतराती आई हैं..यकीन मानिए बस इन्होंने ही दुनिया बचाई हुई है वरना “मर्दों का क्या है, ये तो ऐसे ही होते हैं!”

Deepali Das

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