उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के खैर के गांव सूरजमल निवासी अमित को किडनी खराब होने का पता उस वक्त चला जब फौज की भर्ती में दौड़ के दौरान अचानक उसका बीपी बढ़ गया। जांच कराने पर पता चला कि उसकी दोनों किडनी खराब हो गई है। आर्थिक रूप से कमजोर अमित हो आॅपरेशन के लिए साढ़े आठ लाख रूपये की जरूरत थी। अमर उजाला-फाउंडेशन की पहल पर अमित को आर्थिक मदद की गयी। ये अभियान था किडनी ट्रांसप्लांट करा कर 20 वर्षीय युवा अमित की जिंदगी बचाने का। जिसमें अमर उजाला फाउंडेशन की अपील पर लोगों से सवा सात लाख रूपये की बड़ी मदद उसको मिली है। अमित का किडनी ट्रांसप्लांट 11 मार्च 2017 को दिल्ली के प्रतिष्ठित सर गंगाराम हास्पिटल में सफलतापूर्वक हुआ। अमित और उसे किडनी देने वाली उसकी मां अब पूरी तरह स्वस्थ हैं।
वैज्ञानिक श्री वैभव तिड़के ने बताया कि मेरा जन्म महाराष्ट्र के ऐसे गांव में हुआ था, जहां विकास की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। मेरे पिता किसान थे, इसलिए बचपन से ही मैंने खेती और उससे जुड़ी समस्याओं को बहुत नजदीक से देखा था। मेरे घर के पास ही एक साप्ताहिक बाजार लगता था। मैं देखता था कि उस बाजार में अंधेरा घिरते ही सब्जियों के दाम आधे और कई बार उससे भी कम जाते थे। दरअसल कोई भी किसान अपनी बची हुई सब्जियां वापिस घर ले जाना नहीं चाहता था, जिनके पैसे नहीं मिलने थे। इसलिए अनेक किसान लौटते वक्त रास्ते में बची सब्जियां फेक देना अधिक पसंद करते थे।
श्री वैभव तिड़के आगे बताते है कि मैंने यह सब देखकर महसूस किया कि हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी किसान अपने उत्पादों को फेकने के लिए किस तरह विवश हैं। मुंबई में इंस्टीटयूट आॅफ केमिकल इंजीनियरिंग में पढ़ाई करते हुए मैंने किसानों की इस समस्या का समाधान निकाल लिया। वर्ष 2008 में मैंने किसानों की बेहतरी के लिए एक संस्था एस4एस (साइन्स फाॅर सोसाइटी टेक्नोलाॅजीज) का गठन किया। हमारी संस्था ने सोलर कंडक्टर ड्रायर तैयार किया, जो कृषि उत्पादों को बगैर किसी रसायन के लंबे समय तक ताजा रखता है और उसे नष्ट होने से बचाता है। इस आविष्कार से आने वाले वर्षों में भूख की समस्या भी कम होने की उम्मीद है।
‘कार्य ही पूजा है’ एक वाक्य है, लेकिन कुछ महिलाएं अपनी सेवा के जरिए आसमान के पार जाने की चाहत को पूरा कर रही हैं। हम बात कर रहे हैं इंडियन स्पेस रिसर्च आॅर्गनाइजेशन (इसरो) से जुड़ी महिला साइंटिस्टों की। इसरो ने हाल में एक साथ 104 सैटलाइट छोड़कर वल्र्ड रेकाॅर्ड अपने नाम कर लिया। इससे पहले उसका मार्स आॅर्बिटर मिशन भी काफी कामयाब रहा। इन दोनों मिशनों में इंडियन स्पेस रिसर्च आॅर्गनाइजेशन (इसरो) की महिला साइंटिस्टों का खास रोल रहा है। चुनींदा साइंटिस्टों में मीनल संपत, अनुराधा टी.के., एन. वलारमथी, ऋतु करडाल तथा नंदिनी हरिनाथ के नाम इसरो की राॅकेट विमिन के रूप में अन्तरिक्ष जगत में उभरे हैं। राॅकेट विमिन की सर्वोच्च सफलतायें यह सन्देश देती है कि अपनी नौकरी या व्यवसाय ही मानव सेवा का सबसे सरल तथा एकमात्र साधन है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री रूद्रदत्त तिवारी का निधन 19 मार्च 2017 को सुबह साढ़े नौ बजे हो गया। वह आईपीएस के पद से रिटायर हुए थे। बक्शी का तालाब स्थित विपशयना ध्यान केंद्र धंम लखनऊ में उन्होंने आखिरी सांस ली। मृत्यु के बाद उनकी इच्छा के अनुसार लखनऊ के केजीएमयू में उनका देहदान हुआ। उनकी बेटी कनाडा में है। उनके बेटे श्री अनिल दत्त तिवारी ने देहदान की प्रक्रिया पूरी की। जिला प्रशासन ने पूरे राजकीय सम्मान से शव को केजीएमयू तक पहुंचाया। देहांत के बाद नेत्रदान कर वह दो लोगों की जिन्दगी में उजाला भी भर गये।
पंाच साल की नन्ही-सी बच्ची एना की जिंदगी आम बच्चों से बिल्कुल अलग है। ऐसा लगता है, जैसे जन्म के साथ ही यह बच्ची बड़ी हो गई। अपनी दादी और परदादी के साथ रहने वाली नन्ही एना इतनी छोटी-सी उम्र में ही घर का सारा काम संभालती है, क्योंकि वह अकेली ही अपनी दादी और परदादी का एकमात्र सहारा है। पिता को जेल हो जाने के बाद एना की मां ने दूसरी शादी कर ली और एना को उसकी दादी-परदादी के हवाले छोड़ दिया। यह परिवार चीन के काफी सुदूरवर्ती पहाड़ी इलाके में रहता है। इना स्कूल जाती है। साथ ही यह छोटी सी बच्ची घर तथा दादी-परदादी की देखभाल के सारे काम पूरे मनोयोग तथा सेवाभाव से करती है।
नारी शक्ति अवाॅर्ड विजेता रूपा का कहना है कि मेरी सौतेली मां ने सोते समय मेरे चेहरे का तेजाब डाल दिया। उस एसिड हमले ने मेरा चेहरा पूरी तरह से खराब कर दिया। पांच साल तक मैं घर से बाहर नहीं निकली। मैं नहीं चाहती थी कि लोग मेरा तेजाब से बिगड़ा चेहरा देखें। वर्ष 2013 में मैं स्टाॅप एसिड अटैक संगठन के संपर्क में आई। अब मैं नई उम्मीदों के साथ जीने लगी हूं। उनका कहना है कि दुनिया में ऐसा कोई गम नहीं है, जिसे हराया न जा सके। हर दुख का एक दिन अंत होता है। आज रूपा तेजाब हमले से पीड़ित तमाम महिलाओं को न केवल प्रेरित करती हैं, बल्कि न्याय पाने की लड़ाई में भी उनकी मदद करती हैं। रूपा जैसी साहसी महिलायें हर क्षेत्र में बदलाव की मिसाल कायम कर रही हैं।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री लिखते है कि संभवतः यह 1910-1911 की या इससे कुछ पहले की बात है, उन दिनों मैं जयपुर संस्कृति काॅलेज में पढ़ता था। तभी जयपुर के राजा माधोसिंह का देहांत हो गया। तभी मैंने देखा कि सिपाहियों के झुंड के साथ नाइयों की टोली बाजार-बाजार, गली-गली घूम रही थी। वे राह चलते लोगों को जबरदस्ती पकड़कर सड़क पर बैठा अत्यन्त अपमानपूर्वक उनकी पगड़ी एक और फेंक सिर मूंड़ते थे, दाढ़ी मूंछ साफ कर डालते थे। यह सब देखकर आचार्य चतुरसेन के अंदर विद्रोह की भावना पैदा हुई। उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया। उनका कहना है कि जीवित जातियां वही हैं, जो आधुनिकता का प्रतिनिधित्व करती हैं, वे वर्तमान समय के अनुसार स्वयं जीवन जीती हैं तथा औरों को सत्याचार पर आधारित जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रदान करती है। जीवन सुकड़कर नहीं वरन् खिलकर तथा खुलकर जीने के लिए है।
राजस्थान के जोधपुर में मृत्यु भोज न करने पर गांव के पंचों ने भील व मेघवाल समाज के तीन घरों का हुक्का-पानी बंद कर दिया। यही नहीं भारी जुर्माना लगाकर गांव से बाहर जाने का तुगलकी फरमान भी जारी कर दिया। ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर दंड भुगतने की चेतावनी भी दी गई। ये मामले राजस्थान के जोधपुर जिले के लूनी तहसील के हैं। आधुनिक समाज के अनुसार हमें अपनी रीति-रिवाजों को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार मृतक व्यक्ति के नाम से मृत्यु भोज में शामिल होना गिद्ध भोज में शामिल होने के समान है। अपने प्रिय मृतक व्यक्ति के नाम से हम जरूरतमंद तथा स्वयं सेवी संस्थाआंे को दान देकर उनके प्रति श्रद्धा प्रकट कर सकते हैं। गांव के पंचों को अपनी सड़ी-गली सोच को बदलना चाहिए। यही आज के युग की समझदारी है। जीवन सहज, सरल और सुन्दर है।
हर घर में शौचालय हो, गांव-गांव सफाई हो, सभी को स्वच्छ-सुरक्षित पीने का पानी मिले, हर शहर में ठोस-द्रव अपशिष्ट निपटान की व्यवस्था हो, इन्ही, उद्देश्यों को लेकर दो अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की गई थी। सिक्किम की राजधानी गंगटोक को सबसे स्वच्छ स्टेशन का रूतबा हासिल है। स्वच्छता के संस्कार की गंगटोक से भी बेहतर मिसाल मेघालय का गांव मावलिन्नांग है। मावलिन्नांग को एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का दर्जा प्राप्त है। मावलिन्नांग की हवा में ही नहीं, लोगों के दिलों में भी स्वच्छता है। मेघालय की राजधानी शिलांग से दो घंटे के ड्राइव पर बसा है यह गांव। इस गांव से पूरे विश्व को प्रेरणा लेनी चाहिए तभी हम विश्व गांव अर्थात ग्लोबल विलेज की परिकल्पना को सही मायने में साकार रूप दे पायेंगे। धरती के हर कोने को आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए रहने लायक बनाये। यह धरती हमें अपने बुजुर्गों से विरासत में नहीं मिली है वरन् हम इसे अपनी भावी पीढ़ियों से उधार में लेते हैं। धरती से जाने के पूर्व ही हमें आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के इस ऋण से मुक्त होकर जाना है।
– प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक