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मिलावट, औषधि और संतत्व के लेबल

भारत का आयुर्वेद भारत के धर्मगुरु कभी विश्व में भारत की साख हुआ करते थे | आज यह सब वैश्विक प्रश्न चिन्ह की जद में हैं | दुःख की बात यह है की संतत्व के नाम पर बाज़ार खड़ा हो गया है और संतत्व व्यापार बन गया है | आपको भी इस खबर ने विचलित किया होगा है देश की नामी कंपनियों का जीवन रक्षक माने जाने वाला शहद मिलावटी है। इससे ज्यादा विचलित करने वाली बात यह है कि इनमे से कई कम्पनी के कर्ता-धर्ता अपने को व्यापारी की जगह संत कहते हैं | अन्य उत्पादों की बात छोड़ भी दें, यह बात ज्यादा परेशान करने वाली  है कि प्राकृतिक रूप से बनने वाली  शहद के ७७  प्रतिशत नमूनों में मिलावट पायी गई है।
कितनी बड़ी यह है कि कोरोना महामारी के दौर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये शहद का उपयोग किया जाता रहा है। विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं और घरेलू उपचार में भी शहद का खूब उपयोग होता रहा है। सदियों से लोग घरेलू इलाज के लिये शहद के उपयोग में विश्वास करते रहे हैं। हाल ही में देश की प्रतिष्ठित निजी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने मिलावट के इस खतरनाक खेल का खुलासा किया। कहा जा रहा है कि शहद में चीन से आयातित शुगर सिरप की इतनी शातिराना तरीके से मिलावट की जाती रही है कि जांच के भारतीय मानकों से उसे पकड़ना मुश्किल होता था। गैर-सरकारी संस्था सीएसई ने बड़ी मेहनत से इस खतरनाक खेल को पकड़ा। संस्था ने शहद के नमूने जर्मनी की उन्नत प्रयोगशाला में भेजकर मिलावट की जांच करवायी। यह शुगर सिरप बड़ी मात्रा में चीन से आयात किया जाता है, जिसको लेकर चीनी कंपनियां खरीदारों को बताती रही हैं कि भारतीय तंत्र इस मिलावट को नहीं पकड़ सकता। यही वजह है कि सीएसई ने जांच जर्मनी में उन्नत तरीके से करवायी।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है, क्यों भारतीय जांच एजेंसियां इस तरह की मिलावट को नहीं पकड़ पा रही है? जबकि उनके पास पर्याप्त संसाधन, श्रमशक्ति और कानूनी अधिकार भी हैं। क्यों देश के लोगों के जीवन से खिलवाड़ करती मिलावट के प्रति आंखें मूंदी जाती हैं। क्यों संत इनसे अपना नाम नहीं हटा रहे हैं ? यह विडंबना ही है कि हम अब तक खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने का कारगर तंत्र नहीं बना पाये। जो बना भी है, वह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा है। कुछ संतों ने इस बेईमानी को अपने फोटो का सहारा भी दे रखा है | सर्व ज्ञात है कि इससे पहले भी सीएसई ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शीतल पेय पदार्थों में घातक पदार्थों की मिलावट का खुलासा किया था। तब भी सत्ताधीशों ने जांच को तार्किक परिणति तक पहुंचाने के बजाय लीपापोती का ही प्रयास किया था। इन पेय द्रव्यों मे भी एक बड़े संत का व्यापार तंत्र शामिल था |

यह भी किसी बड़ी विडंबना है कि  एक तो कारोबारी मूल्यों का पतन और उस पर संतत्व का लेबल | ये लोग जो मुनाफे के लिये किसी के जीवन से खिलवाड़ करने तक से भी नहीं चूक रहे इन्हें क्या उपमा दी जाये ? कोरोना संकट के दौर में लोग शहद का उपयोग इम्यूनिटी बढ़ाने के उपायों के लिये बहुतायत में करते रहे हैं। क्या ऐसी मिलावट से किसी की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकती है? यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि तमाम आयुर्वेदिक उपचारों में शहद का बड़े विश्वास से उपयोग किया जाता रहा है। ऐसे में दवा जहर का काम करने लगे तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।
कल्पना कीजिये कि कोई मधुमेह का रोगी इस शुगर सिरप से बने शहद का उपयोग करेगा तो उसका क्या हाल होगा? कहने को देश की नामी कंपनियां इन आरोपों से इनकार कर रही हैं। उनका दावा है कि शहद पूरी तरह से शुद्ध है। प्रतिष्ठित सीएसई के तथ्यपूर्ण दावों को खारिज करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। एक सच का तो खुलासा हुआ ही है कि देश में मधुमक्खी पालन कम होने के बावजूद शहद की बहार कैसे आई हुई है। यहां सवाल शहद का ही नहीं है, तमाम अन्य खाद्य पदार्थों में घातक रसायनों की मिलावट की खबरें गाहे-बगाहे सामने आती रहती हैं। दूध को लेकर भी जहरीली मिलावट की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं। यही स्थिति सब्जियों और फलों को लेकर भी है। उन्हें जल्दी तैयार करने और फलों को पकाने के लिये जिन रसायनों का उपयोग किया जाता है, वे लोगों के स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डालते हैं। किसी मामले का खुलासा होने पर शोर जरूर मचता है, मगर फिर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। सरकारों की आपराधिक लापरवाही और तंत्र की काहिली समस्या को यथावत बनाये रखती है और जब उसके साथ किसी संत का नाम जुड़ जाता है तो सब उसे पवित्र मान लेते है ।  कुछ कीजिये, वरन जानलेवा मिलावट का खतरनाक खेल यूं ही जारी रहने वाला है।

-राकेश दुबे

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