लंबे समय तक पिंजरे में बंद रहने के बाद सारे पंछियों का मन उड़ने को करता है, लेकिन उड़ने का ख्वाब देखने से पहले आप लोगों को कुछ तथ्य अवश्य मालूम होने चाहिए।
1. कांग्रेस में वंशवाद का आगाज़ 1929 में ही हो गया था, जब मोतीलाल नेहरू (1928) से अध्यक्ष का पद जवाहर लाल नेहरू (1929, 1930) को ट्रांसफर किया गया था।
2. जवाहर लाल नेहरू तीन बार (1936, 1937, 1946) फिर से अध्यक्ष बने।
3. फिर प्रधानमंत्री रहते हुए नेहरू जी स्वयं तो चार साल (1951-54) कांग्रेस अध्यक्ष रहे ही, 1959 में एक साल के लिए अपनी बेटी इंदिरा गांधी को भी अध्यक्ष बनवाया।
4. फिर इंदिरा गांधी 1978 में जो कांग्रेस अध्यक्ष बनीं तो तबसे अब तक 42 साल की अवधि में 35 साल तक इंदिरा, राजीव, सोनिया और राहुल गांधी अध्यक्ष रहे हैं।
5. 1978 के बाद से आज तक केवल दो मौकों पर ही कांग्रेस अध्यक्ष का पद गांधी परिवार से बाहर जा सका, वह भी केवल 7 साल के लिए। 1991-96 और 1996-98 में क्रमशः तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष रहे। ये दोनों अध्यक्ष इसलिए बन पाए, क्योंकि राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी डरी हुई थीं और गांधी परिवार में अन्य कोई विकल्प मौजूद नहीं था। इनमें से नरसिंह राव को मरने के बाद भी न तो कांग्रेस दफ्तर लाया गया और न ही दिल्ली में समाधि नसीब हुई। और सीताराम केसरी को तो 1998 में बाकायदा धक्के मारकर कांग्रेस दफ्तर से निकाला गया।
6. 1998 से अब तक पिछले 22 साल में 20 साल सोनिया गांधी और दो साल राहुल गांधी अध्यक्ष रहे हैं। सोनिया गांधी अभी भी अध्यक्ष बनी हुई हैं। जवाहर लाल नेहरू ने अपने पिता से पद लिया था, राजीव गांधी ने अपनी माता से पद लिया था। सोनिया गांधी भारत में किसी भी पार्टी की संभवतः ऐसी पहली राजनेता हैं, जिन्होंने अपने बेटे से पद लिया है। यह “रिवर्स वंशवाद” है, जिसमें केवल बेटे बेटियां ही माँ बाप के उत्तराधिकारी नहीं बनते, बल्कि मां-बाप भी अपने बेटे-बेटियों के उत्तराधिकारी बन जाते हैं।
7. ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं को राजनीति की एबीसी नहीं मालूम। ये लोग भी केवल पिता के दम पर यहाँ तक पहुंच पाए हैं। इन्हें तो कांग्रेस का सामान्य इतिहास भी नहीं मालूम, न ही अपने पिता की कहानियां याद हैं। इसीलिए पिंजरे के भीतर ही महत्वाकांक्षा की पुलकित उड़ान उड़ना चालू कर देते हैं और अपने पंख तोड़ लेते हैं।
8. कांग्रेस में अगले कई दशक तक अब अध्यक्ष पद की वेकेंसी नहीं है। सोनिया के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दो विकल्प पहले से तैयार हैं। इनमें से पहले में राजीव गांधी की और दूसरे में इंदिरा गांधी की छवि दिखाई देती है। और जिसमें न दिखे छवि, उससे तो बढ़िया कोई वियोगी कवि!
9. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों 50 साल के आसपास हैं, इसलिए अगले तीस साल तो यही दोनों भाई-बहन कांग्रेस की गाड़ी खींच सकते हैं। फिर भी यदि बीच में ज़रूरत हुई तो 6-7 साल में ही दो और विकल्प तैयार हो जाएंगे- रेहान वाड्रा (19 साल) और मिराया वाड्रा (18 साल)। किसी विशेष इमरजेंसी के लिए इन बच्चों के सौभाग्यशाली पिता श्री रॉबर्ट प्रियंका वाड्रा भी उपलब्ध हैं।
10. इस प्रकार अगले 50-60 साल तक तो कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए विकल्प ढूंढने की आवश्यकता ही नहीं है। फिर यदि ईश्वर ने चाहा तो रेहान और मियारा भी तो दूधो नहाएंगे और पूतो फलेंगे!
तो मेरे प्यारे कांग्रेसी मित्रो,
ज़्यादा उड़िये मत, वरना कनक तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे!
धन्यवाद
आपका
अभिरंजन कुमार