जितने लोग सुबह-शाम भाजपा पर हिंदुत्व से हटकर विकास की ओर भटक जाने का इल्ज़ाम लगाते रहते हैं, उनमें से कितनों ने वाकई पिछले कुछ चुनावों के भाजपा के घोषणा पत्र पढ़े हैं? अगर पढ़े हैं, तो बताएं कि उसमें राम मंदिर या हिंदुत्व पर कितने प्रतिशत फोकस था और विकास पर कितने प्रतिशत था?
भाजपा का एजेंडा क्या है, उससे ज्यादा बड़ी समस्या आजकल ये है कि सोशल मीडिया के ज्ञानियों का निजी एजेंडा क्या है। कुछ लोग बिना पढ़े कुछ भी ऊलजलूल लिखकर बाकियों को बहका रहे हैं और कुछ लोग अपने निजी कारणों से जानबूझकर दूसरों को भटका रहे हैं। कुछ और लोग भी हैं, जो केवल भावनाओं में बहते रहते हैं और तर्क से उन्हें एलर्जी है। ऐसे सब तरह के लोगों का जमघट मिलकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने में पूरी तन्मयता से लगा हुआ है।
और कन्फ्यूजन तो अधिकांश राष्ट्रवादियों की शाश्वत समस्या है। जो पहले नोटा-नोटा चिल्लाते थे, भाजपा को सबक सिखाने का शोर मचाते थे, भ्रामक बातें लिख-लिखकर भाजपा को हराने की व्यवस्था कर रहे थे, वही आज खुद को भाजपा की हार पर हतप्रभ बता रहे हैं! भाजपा के पुराने घोषणा पत्र पढ़े बिना ही जिन्होंने यह तय कर दिया था कि उसे हिंदुत्व के मुद्दे पर ही काम करना पड़ेगा, उन्होंने अब कांग्रेस का घोषणापत्र रट लिया है और दस दिन में कर्ज माफी करवाने, मेड इन लोकल मोबाइल फोन की फैक्ट्रियां लगवाने, सबको पकड़-पकड़कर रोजगार दिलवाने आदि कामों पर नजऱ रखने वाले हैं। अब पता नहीं कि हिंदुत्व की उनकी चिंता कहां गई। जो भाजपा विकास की बात करती है, उससे हिंदुत्व के मुद्दे पर सवाल पूछते हैं और जो कांग्रेस सांप्रदायिकता और जातिवाद का भय दिखाकर वोट मांगती है, उससे विकास के मुद्दों पर सवाल करते हैं। यह भयंकर आत्मघाती कन्फ्यूजन है, जिसका शायद किसी को अहसास ही नहीं है।
कन्फ्यूज्ड राष्ट्रवादियों का यही हाल मोदी जी और आडवाणी जी के मामले में भी है। वर्तमान काल में कट्टर हिंदुत्व की राजनीति 3 दशक पहले आडवाणी जी ने शुरू की थी, तब राजनीति के मंच पर मोदीजी कहीं भी नहीं थे। जब अयोध्या का आंदोलन हुआ, तब भी वो सामने कहीं नहीं थे। सारा आंदोलन आडवाणी जी के नेतृत्व में चला और जब 1998-99 वाली एनडीए की सरकार बनी, और राम मंदिर का मुद्दा भी पीछे कर दिया गया, उस समय भी मोदीजी कहीं नहीं थे। बाद में आडवाणी जी ने अयोध्या की घटना के लिए माफ़ी मांगी, जिन्ना की मजार पर फूल चढ़ाए, तब आज के धुरंधर राष्ट्रवादी कहां थे, ये तो मुझे पता नहीं, लेकिन ये पता है कि तब भी मोदीजी राष्ट्रीय राजनीति में कहीं नहीं थे। लेकिन सोशल मीडिया पर राष्ट्रवाद के स्वघोषित ध्वजवाहकों के अनुसार वे आडवाणी जी आज भी सही हैं और हर बात के लिए गलत मोदी ही हैं, यहां तक कि उनके अनुसार तो आडवाणी जी को मार्गदर्शक मंडल में भेज देना या राष्ट्रपति न बनाना भी गलत ही था। मतलब अयोध्या मामले में आडवाणी जी की भाजपा ने जो किया, वह भी गलत था और इसके बावजूद आडवाणी जी का सम्मान नहीं किया गया, वह भी गलत था! ये दोनों एक साथ कैसे हो सकता है?
अयोध्या की घटना 1992 में हुई और मोदीजी का नाम अधिकतर लोगों ने उसके दस सालों बाद 2002 में सुना। जहां तक मुझे याद है, मोदीजी ने न उस समय और न उसके बाद भी कभी राजनीति में हिंदुत्व की बात की थी। गुजरात के सारे विधानसभा चुनावों में उनके भाषणों में हमेशा 6 करोड़ गुजरातियों की अस्मिता और सबके विकास की ही बात होती थी। यहां तक कि उस समय भी गुजरात में विहिप के लोग मोदी को गालियां ही देते रहते थे कि हिंदुत्व के मुद्दे पर कुछ नहीं हो रहा है, उल्टा सड़कें चौड़ी करने के लिए विकास के नाम पर मंदिर तोड़े जा रहे हैं। आज के मठाधीशों और लकड़बग्घों को ये सब बातें पता भी है या नहीं, ये मुझे मालूम नहीं।
राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद भी मोदीजी की भाषा नहीं बदली है और न उनका काम बदला है। पहले 6 करोड़ गुजरातियों की बात करते थे, अब सवा सौ करोड़ भारतीयों की करते हैं। ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा पहले गुजराती में लगाते थे, अब हिंदी में लगाते हैं। ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ पहले गुजराती में बोलते थे, अब हिंदी में बोलते हैं। आज भी भ्रष्टाचार के खि़लाफ़ लड़ाई उसी तरह चला रहे हैं। जब गुजरात में थे, तो पहले शौचालय फिर देवालय की बात कहते थे, आज भी स्वच्छ भारत अभियान के द्वारा वही कर रहे हैं। देश की सीमाओं को सुरक्षित करने की बात तब भी करते थे, अब भी कर रहे हैं। मोदी जी ने राजनैतिक हिंदुत्व की बात न पहले कभी की थी और न अब कर रहे हैं। इसलिए यह कहना सरासर बेईमानी और मूर्खता है कि मोदी ने हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगा और सरकार में आते ही उस मुद्दे को भूलकर विकास की शहनाई बजाने लगे। 2014 के चुनाव अभियान का कोई भी भाषण उठा लीजिए, आपको यही मिलेगा कि 99 प्रतिशत बातें केवल भ्रष्टाचार, विकास, घुसपैठ, राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद आदि के बारे में थी। फिर हिंदुत्व से भटकने का सवाल ही कहां से आया?
मोदी की हिन्दू हृदय सम्राट वाली गलत छवि 2002 के बाद वाले दौर में मीडिया ने बनाई और बहुत अधिक संभावना है कि मोदी का राजनैतिक करियर उसी समय खत्म कर देने के इरादे से भाजपा के ही कुछ नेताओं के इशारे पर ऐसा अभियान चलाया गया। आप अगर मीडिया के एजेंडा का शिकार हो गए, तो उसका दोष मोदी को मत दीजिए। मोदी जी ने अगर विकास के लिए वोट मांगे थे, लेकिन आपने खुद ही तय कर लिया कि आप हिंदुत्व के लिए ही वोट दे रहे हैं, तो अब उसका ठीकरा आप मोदी पर मत फोडिय़े। आप मुंबई जाने वाली ट्रेन में खुद सवार हुए और अब ड्राइवर को दोष दे रहे हैं कि वह गाड़ी को अयोध्या की तरफ क्यों नहीं ले जाता!
आप किस पार्टी से क्या सवाल पूछना चाहते हैं, ये आपकी इच्छा है। आप अपना वोट किसको देना चाहते हैं या नोटा में लुटाना चाहते हैं, ये आपकी इच्छा है। मेरा सुझाव सिर्फ इतना है कि अपनी बुद्धि पर लगे जाले साफ कीजिए। किससे क्या सवाल पूछ रहे हैं और क्यों पूछ रहे हैं, ये सोच समझकर पूछिये। किसी की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं, तो तर्कों के आधार पर उठाइये, भावनाओं के आधार पर नहीं। दो नेताओं, दो पार्टियों, दो पक्षों के बीच तुलना करनी है, तो एक पैमाने पर करिए। एक पार्टी से हिंदुत्व के सवाल और दूसरी से विकास के सवाल करने की गड़बड़ी करके अपने कन्फ्यूजन का परिचय मत दीजिए। आप कन्फ्यूज हैं, बाकी दुनिया नहीं, इसलिए अपनी आंखें खोलकर अपना कन्फ्यूजन दूर कीजिए, रोज इधर से उधर और उधर से इधर लुढ़कने वाली बातें लिखकर बाकी लोगों को कन्फ्यूज करने की कोशिश मत कीजिए।
आपके कितने फॉलोअर्स हैं या आपको कितना ज्ञान है, उसका अहंकार कृपया अपने घर में रखिये। आप इस देश से बड़े नहीं हैं, मोदीजी भी नहीं हैं। अयोध्या वाले श्रीराम भी इस देश से बड़े नहीं हैं। वे खुद कहकर गए हैं कि उनके लिए जननी और जन्मभूमि सबसे बड़ी है, न कि वे इस जन्मभूमि से बड़े हैं। इसलिए कृपया आप उनको बड़ा बनाने का ठेका मत लीजिए। मोदी को क्या करना चाहिए, इसका ज्ञान आप बाद में दीजिए, पहले ये ज्ञान दे पाने का अपना अहंकार छोडिय़े, ताकि आप यह समझने लायक बन पाएं कि आपको खुद को क्या करना चाहिए। बाकी बातों का प्रवचन उसके बाद सुनाइये।
और हां, ये पोस्ट थोड़ी लंबी है। इसलिए अगर तुरन्त समझ न आए, तो दो-चार बार पढिय़े, उसके बाद ही कोई टिप्पणी कीजिए। हमेशा की तरह बिना पढ़े, बिना समझे निरर्थक टिप्पणियां लिखेंगे, तो मैं भी हमेशा की तरह उन्हें अनदेखा करके छोड़ दूंगा। सादर!
सुमंत
हिंदुओं की यह पहली हार नहीं
भाजपा की हार को हिंदुओं की हार बताने वालों जरा मेरी भी सुनते जाना।
ये 2014 के बाद हिंदुओं की पहली हार नहीं थी।
- पहली हार तब हुई जब गौ-सेवकों और रक्षकों को गुंडा बोला और उन पर कार्रवाई की गई सरकार की ओर से।
- दूसरी हार तब जब राम मंदिर का तिरपाल बदलवाने की जगह अजमेर शरीफ में चादर चढ़ाई गई।
- तीसरी हार तब जब देश का सच्चा आदर्श मुहम्मद को बताया गया।
- चौथी हार तब जब किसानों को गालियां और गोलियां दी गयी।
- पांचवी हार तब जब रामलला को गाली देने वाले को पार्टी में शामिल करवाया गया।
- छठी हार तब जब आपने महबूबा के साथ मिलकर सरकार बनाई कश्मीर में और 10 हज़ार पत्थरबाजों के केस वापस ले लिए, सेना को पीटा गया।
- सातवीं हार तब जब आसिफा कांड में हिंदुओं को फसाया गया और आप चुप रहे।
- आठवीं हार तब जब गोवा में गौमांस की बिक्री पर छूट दी आपने।
- नौवीं हार तब जब आप सारे मस्जिद और दरगाह घूमते रहे, मगर 4 साल में एक बार भी राम मंदिर नहीं गए दर्शन के लिए भी।
- दसवीं हार तब हुई जब बोहरा समुदाय से अपना पुराना रिश्ता बताया।
- ग्यारहवीं हार तब हुई जब आपने रमजान में सीजफायर का आदेश दिया।
- बारहवीं हार तब मिली जब आपको उज्ज्वला योजना की प्रेरणा किसी हामिद से मिली न कि किसी हरिराम से।
- तेरहवीं हार तब मिली जब आपने अपनी हार का ठीकरा हमेशा हिंदुओं के सर फोड़ा।
- चौदहवीं हार धारा 370 के न हटने पर हुई।
- पंद्रहवीं हार कॉमन सिविल कोड के न आने पर हुई।
- सोलहवीं हार जब राजस्थान, मध्यप्रदेश, बनारस, महाराष्ट्र में मंदिर तोड़े गए।
- सत्रहवीं हार जब इस देश मे भीम आर्मी ने सवर्णों को मारा और आप चुप्पी साधे रहे।
- अठारहवीं हार सवर्णों के आंदोलन को आपने बल पूर्वक दबाया।
- उन्नीसवीं हार जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद आपने एससी-एसटी कानून को बदलने से मना कर दिया।
- बीसवीं हार तब मिली जब आपने इफ्तारी देनी शुरू की, हज के नियम बदल दिए।
हार और भी हैं परंतु अब लिखने में उंगलियां दर्द हो रही हैं। आपने हिंदुओं को इतने घाव दिए और जब हिंदुओं ने सवाल पूछ लिया तो आप तिलमिला उठे।
-हिंदू रक्षा दल