जब हमारे दादा अथवा पिता का जन्म हुआ था, उस समय के विश्व से वर्तमान विश्व का स्वरूप अत्यधिक भिन्न है । संभवतः सभी परिवर्तनों में से सर्वाधिक मुख्य परिवर्तन है पूरे विश्व में बढता प्रदूषण, जिसके परिणामस्वरूप हरितगृह गैसों (ग्रीन हाऊस गैस) के उत्सर्जन में तथा अन्य हानिकारक प्रभावों में वृद्धि हो गई है । जब भी हम प्रदूषण की बात करते हैं, तो सामान्यतः हम वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भोजन प्रदूषण और भूमि प्रदूषण के विषय में विचार करते हैं । मौसम के अस्वाभाविक स्वरूप का कारण, मानवजाति का प्रकृति पर प्रभाव है । तथापि यह मानव द्वारा की गई भौतिक स्तर की उपेक्षा तक ही सीमित नहीं है; अपितु उनके द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित मानसिक तथा आध्यात्मिक प्रदूषण भी इसका कारण है । मानसिक प्रदूषण लोगों के नकारात्मक विचार जैसे – लालच, धोखा, घृणा, विनाश हेतु योजना बनाना, इत्यादि के कारण होता है । यह मानसिक प्रदूषण वातावरण में प्रसारित होता है, इसलिए यह हमारे मन के नकारात्मक विचारों को बढानेवाला वातावरण बना देता है । इससे नकारात्मकता का चक्र चल पडता है जिसके मूल में मानवजाति में बढा रज–तम का आध्यात्मिक प्रदूषण होता है । तकनीकों के नवीनतम विकास से सामूहिक विनाश करनेवाले जैविक तथा नाभिकीय शस्त्रों और साथ में मानवजाति तथा मानसिक प्रदूषण में बढे रज–तम की चुनौती हमारी ओर खडी है । जैविक तथा नाभिकीय आक्रमण का परिणाम मानव जीवन तथा विश्व की स्थिरता के लिए विध्वंसकारी होगा ।
अग्निहोत्र क्या है ?
वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व इस प्रकार के भौतिक प्रदूषण पर शीघ्र ही रोक लगाने हेतु उपाय ढूंढने हेतु प्रयत्नशील है । पवित्र अथर्ववेद (11:7:9) में एक सरल धार्मिक विधि का उल्लेख है । जिसका विस्तृत वर्णन यजुर्वेद संहिता और शतपथ ब्राह्मण (12:4:1) में है । इससे प्रदूषण में कमी आएगी तथा वातावरण भी आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होगा । जो व्यक्ति यह पवित्र अग्निहोत्र विधि करते हैं, वे बताते हैं कि इससे तनाव कम होता है, शक्ति बढती है, तथा मानव को अधिक स्नेही बनाती है । ऐसा माना जाता है कि अग्निहोत्र पौधों में जीवन शक्ति का पोषण करता है तथा हानिकारक विकिरण और रोगजनक जीवाणुओं को उदासीन बनाता है । जल संसाधनों की शुद्धि हेतु भी इसका उपयोग किया जा सकता है । ऐसा माना जाता है कि यह नाभिकीय विकिरण के दुष्प्रभावों को भी न्यून कर सकता है ।
कैसे होता है अग्निहोत्र यज्ञ ?
अग्निहोत्र यज्ञ का मुख्य भाग है जौ। इस यज्ञ को सूर्योदय और सूर्यास्त के समय किया जाता है और दोनों ही समय अग्नि को जौ अर्पित करने होते हैं। इस यज्ञ से बनाई गई विभूति (भस्म) इंसान और वातावरण, दोनों को ही रोग मुक्त बनाती है।
वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर सिद्ध हो गया है कि अग्निहोत्र द्वारा वायु प्रदूषण ही नहीं, अपितु जलप्रदूषण भी न्यून करना संभव है।
‘इंटरनैशनल जर्नल ऑफ एग्रिकल्चर साइन्स एंड रिसर्च’ ने भी (आइ.जे.ए.एस.आर.) इस संशोधन पर ध्यान केंद्रित किया है। श्री. प्रणय अभंग एवं श्रीमती मानसी पाटिल ने राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला के (एन.सी.एल्) निवृत्त शास्त्रज्ञ डॉ. प्रमोद मोघे के मार्गदर्शन में यह संशोधन किया है।
श्री. प्रणय अभंग ने कहा कि अग्निहोत्र की ताजी राख एक ‘कॉलम’ में ली गई। इसमें नदी का 500 मिलीलिटर प्रदूषित जल छोडा गया। तदुपरांत इस जल का अभ्यास करने पर पता चला कि उस की क्षारीयता (खारापन) 80 प्रतिशत न्यून हो गया । फसल बढना तथा बीजों के अंकुरित होने की प्रकिया के संदर्भ में अग्निहोत्र का प्रयोग करने पर उसके अच्छे परिणाम मिले। एक ही प्रकार की, समान उंचाई की, समान पत्ते वाले दो पौधे रोपे। दो अलग अलग कक्षों में रखे गए। दोनों पौधों को समान अनुपात में सूर्यप्रकाश एवं जल उपलब्ध होने की व्यवस्था की गई। इसमें एक कक्ष में अग्निहोत्र किया गया। परिणामस्वरूप, जिस कक्ष में अग्निहोत्र किया गया, उस कक्ष में पौधों की वृद्धि भली–भांति हुई है। मंत्रोच्चार के साथ किया गया अग्निहोत्र एवं बिना मंत्रोच्चार किए हुए अग्निहोत्र का भी पौधों के बढने पर होनेवाले तुलनात्मक परिणाम का अभ्यास किया गया। इस समय ये पाया गया कि मंत्रोच्चार के साथ किए गए अग्निहोत्र के कारण पौधे की वृद्धि भली भांति हो गई। अग्निहोत्र के कारण सल्फर डायऑक्साईड तथा नायट्रोजन डायऑक्साईड इन प्रदूषकों का प्रमाण भी 90 प्रतिशत अल्प हो गया तथा वातावरण के रोगजंतुओं का प्रमाण भी न्यून हो गया।
उपर्युक्त बातों से हिन्दू धर्म की महानता व वैज्ञानिकता तथा आज के समय में हिन्दू धर्म द्वारा बताये गए अग्निहोत्र का महत्व ज्ञात होता है.
अग्निहोत्र के लाभ का दूसरा अत्यंत महत्त्वपूर्ण उदाहरण है, भोपाल में दिसंबर, 1984 में हुई गैस ट्रेजडी । इसमें लगभग 15,000 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, तबाही की इस काली रात में हजारों परिवारों के बीच भोपाल में कुशवाहा परिवार भी था । कुशवाहा परिवार में रोज सुबह और शाम ‘अग्निहोत्र यज्ञ‘ होता था । इसलिए उस काली रात में भी कुशवाहा परिवार ने अग्निहोत्र यज्ञ करना जारी रखा । इसके बाद लगभग 20 मिनट के अंदर ही उनका घर और उसके आस–पास का वातावरण ‘मिथाइल आइसो साइनाइड गैस‘ से मुक्त हो गया।
विज्ञान के माध्यम से अग्निहोत्र का वातावरणपर क्या परिणाम होता है ?, इसके अध्ययन हेतु महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण हेतु यू.ए.एस्. (युनिवर्सल ऑरा स्कैनर) उपकरण का उपयोग किया गया ।
परीक्षण का स्वरूप
इस परीक्षण में अग्निहोत्र करने से पहले तथा अग्निहोत्र के पश्चात यू.ए.एस्. उपकरण द्वारा किए गए मापनों की प्रविष्टियां की गईं । उसके पश्चात इन प्रविष्टियों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया ।
किए गए मापन की प्रविष्टियां
नकारात्मक ऊर्जा का न होना – अग्निहोत्र–पात्र में नकारात्मक ऊर्जा दिखाई नहीं दी ।
सभी व्यक्ति, वास्तु अथवा वस्तुओं में सकारात्मक ऊर्जा होगी ही, ऐसा नहीं होता । अग्निहोत्र–पात्र में आरंभ में अल्प मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा थी; किंतु वह इतनी नहीं थी कि उसका प्रभामंडल नापा जा सके । (इस संदर्भ में यू.ए. स्कैनर की भुजाओं ने 90 अंश का कोन किया । स्कैनर की भुजाओं द्वारा 180 अंश का कोन करने से ही प्रभामंडल की गणना की जा सकती है ।) अग्निहोत्र के पश्चात अग्निहोत्र–पात्र की सकारात्मक ऊर्जा में बढोतरी हुई । उसका प्रभामंडल 1.70 मीटर था ।
अग्निहोत्र के पश्चात अग्निहोत्र–पात्र के कुल प्रभामंडल में (टिप्पणी१) बहुत बढोतरी होना
साधारण व्यक्ति अथवा वस्तु का कुल प्रभामंडल लगभग 1 मीटर होता है । अग्निहोत्र आरंभ करने से पहले अग्निहोत्र–पात्र का कुल प्रभामंडल 1.19 मीटर तथा अग्निहोत्र के पश्चात उसमें 3.05 मीटर की बढोतरी होकर वह 4.24 हुआ ।
टिप्पणी 1: कुल प्रभामंडल : व्यक्ति के संदर्भ में उसकी लार, वस्तु के संदर्भ में उस पर जमी धूल अथवा उसका थोडा सा अंश – इसे प्रारूप के रूप में उपयोग कर उस व्यक्ति अथवा वस्तु के प्रभामंडल की गणना की जाती है ।
यू.ए.एस. नामक उपकरण द्वारा प्रभामंडल मापन के संदर्भ में जानकारी
परीक्षण के घटकों की अध्यात्मस्तरीय विशेषताएं वैज्ञानिक उपकरण द्वारा अध्ययन करने का उद्देश्य
किसी घटक (वस्तु, वास्तु, प्राणी और मनुष्य) में कितने प्रतिशत सकारात्मक स्पंदन हैं ? वह सात्त्विक है अथवा नहीं ? आध्यात्मिक दृष्टि से लाभदायक है अथवा नहीं ? यह समझने के लिए व्यक्ति में बुद्धि से परे की सूक्ष्म बातें समझने की योग्यता होनी आवश्यक है । यह योग्यता उच्च आध्यात्मिक स्तर के संतों में होती है । इसलिए वे प्रत्येक घटक के स्पंदन अचूक निदान कर सकते हैं । श्रद्धालु और साधक संतों के वचनों पर विश्वास करते हैं; परंतु बुद्धिवादी लोगों के विषय में ऐसा नहीं है; वे प्रत्यक्ष प्रमाण मांगते हैं । प्रत्येक बात वैज्ञानिक परीक्षणों से सिद्ध कर दिखानी पडती है, तभी वे उसे सत्य मानते हैं।
यू.ए.एस् उपकरण की जानकारी
इस उपकरण को ऑरा स्कैनर भी कहते हैं । इससे घटकों (वस्तु, भवन, प्राणी और मनुष्य) की ऊर्जा और उनका प्रभामंडल मापा जा सकता है । इस यंत्र का विकास भाग्यनगर, तेलंगाना के भूतपूर्व परमाणु वैज्ञानिक डॉ.मन्नम मूर्ति ने 2003 में किया था । वे बताते हैं कि इस यंत्र का प्रयोग भवन, चिकित्साशास्त्र, पशु चिकित्साशास्त्र तथा वैदिक शास्त्र में आनेवाली बाधाआें का पता लगाने के लिए किया जा सकता है । (यू.ए.एस् उपकरण के विषय में अधिक जानकारी हेतु देखें :http://www.vedicauraenergy.
इस आध्यात्मिक और वैज्ञानिक शोध से अग्निहोत्र का हमारे शरीर, मन, वास्तु, वातावरण, इन सब पर होने वाला परिणाम सहज ही पता चलता है। हम सभी धर्माभिमानी हिन्दू प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अपने अपने घरों में परिवार सहित अग्निहोत्र करें और अपने घर में, साथ ही हमारे आस–पास के वातावरण में भी सात्विकता बढाएं, यही भगवान के श्रीचरणों में प्रार्थना है!
– कृतिका खत्री, प्रवक्ता, सनातन संस्था, दिल्ली, 9990227769