अनुज अग्रवाल
सम्पादक
देश में बड़े बदलाव का नया दौर शुरू ही हो गया जुलाई से, वस्तु और सेवा कर के लागू हो जाने के रूप में। कर व्यवस्था को सरल बनाने का यह क्रांतिकारी बदलाव कुछ लोगों को दुरूह लग रहा है। बड़े व्यापारी ओर उद्योगपति कुछ ज्यादा ही परेशान हैं ञ्चयोंकि उनका सैकड़ो सालो से चलता आ रहा खेल अब सरकारी दूरबीनो के साये में आ गया है। बैंक खाते, पैन नम्बर और आधार कार्ड को एक दूसरे से जोडऩे की मोदी सरकार की घोषणा से तहलका सा मचा है। राजनीतिक हथियार के रूप में ही सही मगर बेनामी संपत्ति अधिनियम अब कार्यरूप में आ गया है। लग रहा है मानो कालाधन अब कल की बात हो जाएगी। दावा यह भी है कि अब अगले वित्त बर्ष तक देश की 50 प्रतिशत अर्थव्यवस्था सफेद हो जाएगी और फिर अगले दो तीन बर्षो में 80 प्रतिशत तक। मगर इससे ज्यादा नहीं। यानि देश मे 20 से 30प्रतिशत तक काली अर्थव्यवस्था के खेल तमाम सुधारों ओर दावों के बाद भी बने रहेंगे। निश्चित रूप से हमारे राजनेताओ ओर नौकरशाही का गठजोड़ इसके लिए जिम्मेदार है। जी एस टी लागू हो जाने के बाद भी पेट्रोलियम उत्पाद, शराब ओर बिजली उत्पादनआदि पर यह कर सुधार लागू नहीं होंगे। यानि इन वस्तुओं के व्यापार पर काबिज नौकरशाहो और राजनेताओं की काली कमाई उसी प्रकार चलती रहेगी। देश मे ड्रग्स, पोर्न आदि का व्यपार भी उसी प्रकार चलते रहना है और विदेशी सर्वरों पर टिकी सोशल नेटवर्किंग की दुनिया भी। ऐसे में कही जी एस टी धोखा तो साबित नहीं होगा। हाल ही में उत्तर प्रदेश के पेट्रोल पंपों पर घटतौली के पूरे खेल का पर्दाफाश हुआ था और उसके बाद उच्च न्यायालय ने पूरे खेल की जांच करने और दोषियों पर कार्यवाही करने के आदेश भी दिए थे किंतु सुशासन के लंबे लंबे दावे करने वाली योगी सरकार की हिचकिचाहट बहुत कुछ बयान कर रही है।
देश के नए राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया भी चल रही है और एक कडवी सच्चाई के बीच हम एक जातिवादी राष्ट्रपति के चयन के साक्षी बनने जा रहे हैं। उस पर तुर्रा यह कि एन डी ए का प्रत्याशी मोदी की कठपुतली ओर यूपीए का सोनिया की। ऐसे में देश को परिपक्व लोकतंत्र के विकास के लिए लबे सफर तय करने हैं।
आरोप है कि देश में विपक्षी दल किसानों, जवानों ओर नोजवानो को भड़का रहे हैं किंतु आश्चयर्जनक रूप से मोदी सरकार उनके दबाब में भी आती दिखने लगती है। मजबूरी में किसानों के कर्जे माफ करने के अलावा कृषि क्षेत्र में कुछ भी बड़ा या क्रांतिकारी बदलाव मोदी सरकार नहीं कर पायी,ऐसा क्यों? क्योंकि मोदी सरकार की नीतिगत रूप से अच्छी पहल भी जमीनी क्रियान्वयन के मामले में दम दौड़ती दिखती हैं और स्वच्छ भारत अभियान इसका ज्वलन्त उदाहरण है। लाख कोशिशों ओर नोटबन्दी के बाद भी हम आयात बिल कम नही कर पाय। मोदी सरकार अब राह भटक रही है। आधा दर्जन मंत्रियों के अलावा बाकी बोझ बन चुके हैं और मन्त्रिमण्डल में एक बड़े बदलाव की आवश्यकता है। चूंकि विपक्ष बहुत कमजोर होता जा रहा है , इस कारण मोदी जी मस्त हैं कितुं विकल्प पैदा होते देर नहीं लगती, ऐसे में बेहतर होगा कि मोदी जी अपनी योजनाओं को समग्रता से जमीन पर उतारे ओर कालजयी बनें।
आश्चर्यजनक रूप से संघ परिवार के एजेंडे में सबसे प्रमुख स्थान पायी शिक्षा प्रणाली बड़े और क्रांतिकारी बदलावो की प्रतीक्षा में दम तोड़ती जा रही है। सरकारी हो या निजी , देश में शिक्षा का क्षेत्र एक सोची समझी लूट और अराजकता का शिकार है और सरकार का मौन इस अराजकता ओर लूट को स्वीकृति देता दिख रहा है। डायलॉग इंडिया पिछले कुछ महीनों से देश की शिक्षा व्यवस्था का गहराई से अध्ययन, सर्वेक्षण ओर चिंतन – मंथन कर रही है। लखनऊ, चंडीगढ़ ओर दिल्ली में आयोजित हमारे कॉन्क्लेव ओर अन्य गतिविधियां ओर इनमे देश के प्रतिष्टित संस्थानों की भागीदारी हमारी विश्वसनीयता ओर शिक्षा में सुधार के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता भी है। अपने इस अंक में हमने पिछले मास में आयोजित बिभिन्न मंथन ओर चिंतन का सार भी दिया है और सरकार को एक दृष्टि भी। क्या सरकार इस दिशा में कुछ प्रभावी करेगी?
अमेरिका में ट्रम्प सरकार अपनी चाल चल रही है और भारत हाशिये पर है। पाकिस्तान और कश्मीर के मामले में सरकार की नीतियां पिट चुकी हैं। आंतरिक सुरक्षा को संभालने का मसला चाहे राज्य सरकारों का ही क्यों न हो मगर देश की दो तिहाई जनता एन डी ए शासित दलो के अधीन है और मोदी सरकार इस मसले पर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ सकते। देश में अनेक उद्योग और व्यापार मंदी की मार झेल रहे हैं और बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने है। हम तो यही कह सकते हैं मोदी जी कि राजनीतिक रूप से आप सबसे सुरक्षित समय मे हैं और सन 2019 में पुन: आपकी सरकार आने की पूरी संभावना भी है मगर उसके बाद क्या..
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