आज राजनीति सेवा का पर्याय नहीं, एक व्यवसाय बन गयी है। राजनीति ने पूरी तरह से व्यवसायीकरण का रूप ले लिया है। आज राजनीति जगत में अपराधी भ्रष्टाचारी शिरोमणि ही आसन जमाये दिखते हैं। कहीं कोई भुला भटका साफ सुथरी छवि का व्यक्ति नजर भी आता है तो गहराई में जाने पर हम पाते हैं कि वह भी इनकी गिरफ्त में है। लेकिन व्यक्ति सत्य के मार्ग से क्यों भटक जाता है, यदि हम इसके मूल को खोजने का प्रयास करें तो निष्कर्ष निकलेगा कि जीवन में सबसे घातक अहम को पालना और उसका पोषण करना है। उच्य से उच्य पदों पर आसीन व्यक्ति जब अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरी करना चाहता है तो अपने सिद्धांतों और आदर्शों को एक किनारे रख देता है। धर्म, राजनीति, साहित्य सभी क्षेत्रों के शिखर पुरुष यश की भूख की चपेट में है। आज के नेता हो या धर्मात्मा सबका हाल एक ही है। मौका मिले तो वे अपनी आगे आने वाली छह पीढिय़ों के लिए भी सम्पत्ति इक_ी कर ले। इस मानसिकता के कारण ही देश को आज के नेताओं ने कंगालों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। आज की राजनीति में धर्म को एक अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाने लगा है। जैसे यदि कोई नेता धर्म की दुहाई देकर आम आदमी को दिग्भर्मित करने या सम्प्रदायिकता भड़काने का प्रयास करता है। आज का नेता बोलता है कि तुम्हारा धर्म खतरे में है तो लोगों के कान खड़े हो जाते हैं और बिना सच्चाई की परख किये अपने धर्म की रक्षा के लिए हिंसक रूप धारण कर लेते हैं। इसलिए आज के राजनेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए धर्म का उपयोग करते हैं और धर्म के आड़ में गरीबी व बेरोजगारी की बात जनता के दिमाग से हटाना चाहते हैं। यदि हमारे देश का छिपा हुआ काला धन सामने आ जाये तो भारत अमेरिका जैसे देश को विकास में पीछे छोड़ सकता है, लेकिन सवाल पैदा हाता है कि धन छिपाना क्यों पड़ता है? इसका कारण शायद देश की कुव्यवस्था है, जिसके कारण भ्रष्टाचार करने को बाध्य होना पड़ता है। साथ ही चुनावों पर होने वाला अंधाधुंध खर्च भी महंगाई, भ्रष्टाचार, कालाधन का प्रमुख कारण बनता है। अगर किसी भी प्रत्याशी का कार्य सिर्फ अपना नामांकन दाखिल करना हो, प्रचार विज्ञापन का उत्तरदायित्व चुनाव आयोग का हो तो इससे राजनीति को भ्रष्टाचारियों के चंगुल से बचाया जा सकेगा। राजनीति में भ्रष्टाचारियों पर नियंत्रण हो सकेगा, इससे कालाबजारी मुनाफाखोरी को रोका जा सकेगा। वहीं दूसरी ओर राजनीति में ईमानदारी भी प्रवेश पा सकेगी, योग्य एवं ईमानदार व्यक्ति भी राजनीति में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित हो सकेंगे।
हमारे देश में भ्रष्टाचार की प्रमुख कड़ी चुनाव प्रक्रिया है। भारतीय शासकों का राज्याभिषेक ही भ्रष्टाचार के तिलक से होता है। अंधाधुंध पैसे का खर्च पूंजीपतियों की आर्थिक मदद से ही हो पाता है और बदलें में पूंजीपतियों को मिलता है राजनैतिक सरक्षंण और यहीं से शुरू होता है भ्रष्टाचार का बीजारोपण। इसलिए एक ईमानदार योग्य प्रत्याशी तो चुनाव में भाग ही नहीं लेता।
– नंद शर्मा