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राम मंदिर को लेकर असमंजस में कांग्रेस

राममंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन कार्यक्रम को लेकर देशभर के रामभक्तों का जो उत्साह उमड़ा उसे देखकर कांग्रेस पार्टी को भी अपनी धर्मनिरपेक्ष की दुशाला छोड़कर बाहर आना पड़ा। कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बयान की दो धाराएं थी, एक तो भूमिपूजन की तिथि, कॉरॉना काल में इसके आयोजन, प्रधानमंत्री का शामिल होना जैसे विषयों को उठाकर भ्रम पैदा करने की कोशिश में थे। वहीं दूसरी ओर जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक के नेताओं को रामभक्त बताते हुए यह प्रचार करने में लग गए कि बाबरी मस्जिद परिसर में रामलाल की मूर्ति रखने और पूजा शुरू करने से लेकर, परिसर का ताला खुलवाने, शीला पूजन करने और बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटनाएं कांग्रेसी प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुई इसलिए राममंदिर निर्माण का श्रेय लेते दिखे। यह असमंजस दरअसल आखिरी के दो दिनों में देश का माहौल देखकर पैदा हुआ, जिसका प्रकटीकरण प्रियंका वाड्रा के राममंदिर भूमिपूजन को समर्थन करने वाला पत्र और राहुल गांधी के प्रभु राम के विषय में ट्वीट के रूप में हुआ। यह असमंजस कांग्रेस में अब बरकरार है क्योंकि पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को प्रियंका और पार्टी के दूसरे नेताओं का राममंदिर प्रेम नहीं सुहाया है।
      लोकतंत्र में पार्टी की सफलता चुनाव में वोटों की संख्या है, ऐसी स्थिति में किसी देश के बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाकर चुनाव में सफलता पना मुश्किल ही है। यहीं भावना 2014 में लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद ए के एंटनी ने अपनी रिपोर्ट में व्यक्त की थी। 2004 से 2014 के बीच  रामसेतु या राममंदिर को लेकर कांग्रेस पार्टी ने न्यायालय में और उसके बाहर प्रभु राम को लेकर जो वक्तव्य दिए उससे कांग्रेस पार्टी की जनता के बीच हिन्दू विरोधी छवि बनती चली गई। यहीं कारण था कि 2014 के बाद राहुल गांधी को जनेऊ और मंदिरों की शरण में जाना पड़ा। अब जब राममंदिर निर्माण का विवाद हाल हो गया और कार्य प्रारंभ हो गया है ऐसे में कांग्रेस पार्टी के नेताओं को भी अपने राजनैतिक भविष्य का भय सता रहा है। इस भय ने उलुल-जलूल बयान देने के लिए मजबूर कर दिया।
     छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी के एक विद्वान प्रवक्ता ने समाचार पत्रों में प्रकाशित अपने बयान में 1949 में विवादित स्थल में रामलला की मूर्ति गर्भगृह में रखवाने का श्रेय पं जवाहरलाल नेहरू और उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्दवल्लभ पंत को दे दिया है। जबकि वास्तविकता यह है कि इस घटना की जांच करने के आदेश प्रधानमंत्री ने दिए थे और मूर्ति को हटाने और वहां पूजा करने पर रोक लगाने कहा था। जनभावनाओं को देखते जिला कलेक्टर के के नायर ने कार्रवाई करने से इंकार किया तो उन्हें निलंबित कर दिया गया था। कुछ नेताओं ने अपने बयान में सोमनाथ मंदिर निर्माण का उल्लेख किया है, कुछ बयान राजीव गांधी के मंदिर परिसर में ताला खोलने और शीला पूजन का जिक्र है। देश भर में कांग्रेसी भूमिपूजन कार्यक्रम को उत्साहित होकर पटाखे चलाते, दीप जलाकर खुशियां मनाते दिखे। वैसे तो उनकी खुशी मनाने को लेकर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि भगवान राम के भक्त जाति, धर्म, देश और राजनीति में बंधे नहीं है। किन्तु राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा तो अलग-अलग हो सकती हैं और इस दृष्टि से पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के व्यवहार पर सवाल उठाए जा सकते हैं। ऐसा ही कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने अंग्रेजी समाचार पत्र द हिन्दू में एक लेख लिखकर किया है।
     मणिशंकर अय्यर ने राममंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन को कांग्रेस नेताओं के बयानों को पार्टी की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के विपरीत करार दिया है। साथ ही उन्होंने जवाहरलाल नेहरु और राजीव गांधी को राममंदिर के हिमायती बताए जाने को भी नकारा है। उन्होंने लिखा है, “अब हमारे कांग्रेसी नेता यह दावा कर रहे हैं कि राजीव गांधी ने अयोध्या में मस्जिद के ताले खोले। जबकि ऐसा नहीं था। यह स्थानीय न्यायपालिका के एक आदेश पारित करने के आधे घंटे के भीतर राजीव गांधी की जानकारी के बिना अनुचित जल्दबाजी के साथ लागू किया गया था। प्रधानमंत्री को केवल तभी सूचित किया गया था जब यह पहले से कार्रवाई की जा चुकी थी। इसके बाद भी  उनकी मुख्य चिंता यह थी कि यथास्थिति बनाई जाए।“
       प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के द्वारा शिलान्यास करने की अनुमति के संबंध में मणिशंकर अय्यर ने स्पष्ट किया है कि शिलान्यास की अनुमति इस शर्त पर दी गई थी कि विवादित स्थल में यह न हो।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पी वी नरसिंह राव के बयान पर उन्होंने लिखा है, “ इसके अलावा, हम यह भूल गए हैं कि एक कांग्रेस प्रधानमंत्री ने विध्वंस पर दुख जताते हुए, ध्वस्त स्थल पर एक मस्जिद को पुनः बनाने का वादा किया था।“
       अय्यर ने इस तथ्य को अपने लेख में दोहराया है कि धर्मनिरपेक्ष मर्यादाओं के चलते जवाहरलाल नेहरु ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का विरोध किया था, लिखा है, “जवाहरलाल नेहरू, एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के प्रधान मंत्री के रूप में, सरदार वल्लभाई पटेल द्वारा सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में अपनी सरकार को शामिल करने से इनकार कर दिया। उन्होंने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के प्रमुख के रूप में पुनर्निर्माण मंदिर के उद्घाटन में भाग लेने की अनुमति से भी इनकार कर दिया।”
     कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी का राममंदिर को लेकर क्या किया जाए, यह समझ में नहीं आ रहा, पहले कई बार प्रभु राम के अस्तित्व या राममंदिर विवाद में विरोध कर एक नकारात्मक छवि बना चुकी है। इस छवि से बाहर आने ी अब आवश्यकता महसूस हो रही है लेकिन रास्ता नहीं मिल रहा। राममंदिर का समर्थन करना रामभक्तों को रास नहीं आया वहीं मुसलमान भी कांग्रेस का सॉफ़्ट हिंदुत्व करार देकर अपने को ठगने की बात सोशल मीडिया पर कर रहे हैं। कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता छवि अब समस्या बन गई है, देखने वाली बात है कि इस असमंजस से बाहर निकलने का क्या रास्ता ढुंढा जाता है।

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