कभी-कभी मुझे लगता है कि टाटा नैनो के लिए जो प्यार रतन टाटा का है वही प्यार राहुल गांधी के लिए कांग्रेस का है। टाटा नैनो चलती नहीं, फिर भी रतन टाटा उसे बार-बार रीलांच करते रहते हैं उसी तरह कांग्रेस पार्टी भी राहुल गांधी को लेकर हिम्मत नहीं हार रही। उलटे हर हार के बाद राहुल गांधी को कांग्रेस में प्रमोशन मिल जाता है। इस बार भी जिस तरह कांग्रेस हारी है उम्मीद की जा रही है कि राहुल गांधी को जल्द ही उपाध्यक्ष से कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिए जाएगा। और उन्होंने अगर एक-आधा चुनाव और हरवा दिया तो पार्टी उन्हें संयुक्त राष्ट्र का महासचिव भी बनवा सकती है!
कांग्रेस पार्टी का राहुल गांधी से जो रिश्ता है वो शादी में पति को दिलाई जाने वाली कसमों की याद दिलाता है। जिसमें पंडित जी पति से कहते हैं कि तुम जो-जो पुण्य करोगे उसमें आधा हिस्सा तुम्हारी बीवी के खाते में जाएगा और वो जो-जो पाप करेगी उसका आधा तुम्हारे खाते में जाएगा!
मतलब एमसीडी के उपचुनावों में भी कांग्रेस जीत जाए तो उसका श्रेय अजय माकन राहुल गांधी को देते हैं और यूपी में कांग्रेस हार गई, तो उसका कसूरवार कौन है ये जानने के लिए नासा से मंगाई गई सैटेलाइट तस्वीरों का इंतज़ार किया जा रहा है। पंजाब में जो कांग्रेस को बहुमत मिला वो तो राहुल गांधी के पराक्रम की वजह से है मगर यूपी में जो उसका सूपड़ा साफ हुआ उसके लिए प्रशान्त महासाग के सक्रिय ज्वालामुखी जि़म्मेदार हैं!
इस सबके बावजूद मेरी असल चितां राहुल गांधी के लिए नहीं, कांग्रेसी प्रवक्ताओं के लिए है। मुझे लगता है कि पार्टी की हर हार के बाद वो ‘राहुल गांधी के अलावा’ अन्य कारण खोजने में जितनी कल्पना लगाते हैं, इतनी कल्पना से न जाने कितनी अच्छी हिंदी फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी जा सकती थी। जितनी ऊर्जा वो राहुल गांधी को बचाने में लगाते हैं इससे न जाने कितने पुलों और इमारतों का निर्माण किया जा सकता था। और हर हार में भी राहुल गांधी की तारीफ लायक बात खोज लाने में जितना अनुसंधान करते हैं इतने में किसी और ग्रह में जीवन खोजा जा सकता था!
मगर बात ये भी है कि जब आपने एक ही परिवार को ही अपना जीवन मान लिया हो, तो फिर कहीं और जीवन खोजकर आप क्या करेंगे?