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राहुल-प्रियंका खत्म करेंगे कांग्रेस का वजूद

राहुल-प्रियंका खत्म करेंगे कांग्रेस का वजूद

अथवा

कांग्रेसी कब करेंगे राहुल प्रियंका गांधी के खिलाफ विद्रोह

आर.के. सिन्हा

पांच राज्यों की विधान सभा चुनाव के नतीजों का गंभीरता से आकलन करने के बाद कांग्रेस का समाधि लेख लिखा जा सकता है। उत्तर प्रदेशपंजाबउत्तराखंडगोवा और मणिपुर में कांग्रेस को मतदाताओं ने सिरे से खारिज कर दिया। इन नतीजों के बाद किसी को शक नहीं रहना चाहिए कि यदि गांधी परिवार से कांग्रेस का पीछा नहीं छुड़ाया गया तो 2024 तक इसका कोई नामलेवा भी नहीं रहेगा। चुनाव आयोग ने 9 जनवरी को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की थीउसके बाद प्रियंका गांधी ने 42 जगह रोड शो और घर-घर सम्पर्क का अभियान किया। उन्होंने नुक्कड़  सभाओंवर्चुअल रैलियों आदि के जरिये 340 विधान सभा क्षेत्रों में सम्पर्क कियाइसमें उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब,  गोवा,  उत्तराखंड और  मणिपुर के  दौरे भी शामिल हैं। राहुल गांधी ने भी उत्तर प्रदेश में काफी वक्त बिताया पर अपनी बहन की तुलना में थोड़ा कम। छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेलसचिन पायलेटदीपेन्द्र हुड्डाशायर और कांग्रेस के मिनोरिटी सेल के चीफ इमरान प्रतापगढ़ी आदि जमीन पर दिखे। इमरान प्रतापगढ़ी ने अकेले छह दर्जन  सभाएं की। पर इन सभाओं और प्रयासों के नतीजे सिफर निकले। उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के सामने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीयोगी आदित्यनाथजे.पी. नड्डाराजनाथ सिंह जैसे शिखर नेता थे। जैसी उम्मीद थी वही हुआ। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में  फिर करारी शिकस्त मिली। अब आप समझ लें कि 1989 से कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है। वहां उसके अंतिम मुख्यमंत्री वीर बाहदुर सिंह थे। यह वही उत्तर प्रदेश है जो कि कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था और नेहरु परिवार का निवास भी I

अगर अब भी कांग्रेस के अनुभवी नेताओं ने नेहरू-गांधी परिवार की गुलामी नहीं छोड़ी तो उनकी पार्टी बहुत जल्दी इतिहास की किताबों में आ जाएगी। अब कांग्रेस को जिन्दा रखना है तो उसकी कमान ऐसे  नेता को देनी ही होगी जिसमें निर्णय लेने की क्षमता के साथ साथ दूरदृष्टि भी हो। कांग्रेस के लिए अभी उम्मीद की एक ही किरण है अशोक गहलोत। पर क्या वे मुख्यमंत्री की कुर्सी को त्याग कर पार्टी की कमान अपने हाथ में लेंगेइस बात की उम्मीद भी कम ही है। याद करें कि  इन पांच राज्यों के चुनावों से पहले राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनावों में जहां पर भी रैलियां की वहां पर कांग्रेस को मतदाताओं ने नकारा। कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में अपना खाता भी नहीं खोला। जिस पार्टी से पंडित नेहरुलाल बहादुर शास्त्रीसरदार पटेल और चितरंजन दास जैसे जन नेताओं का संबंध रहा है, वह पार्टी अंतिम सांसें ले रही है। यह दुखद स्थिति है। उसका  वजूद समाप्त हो रहा है। उसे बचाने की  कहीं कोशिश होती नजर तक नहीं आ रही। कांग्रेस की हार के लिए  गांधी परिवार के साथ-साथ पार्टी के कुछ दूसरे नेताओं को भी जिम्मेदारी लेनी होगी। कांग्रेस में कपिल सिब्बल, पी.चिदंबरमअभिषेक मनु सिंघवी समेत दर्जनों  तथाकथित नेता हैं जिनका जनता से कोई संबंध तक नहीं है। ये लुटियन दिल्ली के बड़े विशाल सरकारी बंगलों में रहकर कागजी राजनीति करते हैं। इनमें से अधिकतर बड़े मालदार कमाऊ वकील हैं। वकालत से थोड़ा बहुत वक्त मिल जाता हैतो ये टाइम पास करने के लिये और खबरों में बने रहने के लिये सियासत भी करने लगते हैं। ये मानते  हैं कि खबरिया चैनलों की डिबेट में आने मात्र से ही वे पार्टी की महान सेवा कर रहे हैं।

प्रियंका गांधी बार-बार कहती रहीं कि वो उत्तर प्रदेश में रहकर ही काम करेंगी। तो फिर उन्होंने चुनाव क्यों नहीं लड़ा। वो चुनाव लड़ने से क्यों भागती हैंवो नेता ही क्या, जिसे चुनाव लड़ने से डर लगता हो। याद करें जब हिजाब विवाद चल रहा थातो उन्होंने एक जगह कहा था- “ लड़कियों को हिजाब पहनने का अधिकार है। अगर कोई बिकिनी पहनना चाहे तो वह भी पहन सकता है।”  क्या राष्ट्रीय दल की नेता को इतना सड़क छाप बयान देना चाहिएप्रियंका गांधी किस आधार पर स्कूलों में हिजाब पहनने के हक में बोल रही थींउन्हें बताना चाहिए। क्या भारत में कोई बिकिनी पहनकर स्कूल में आएगाप्रियंका गांधी को समझ होनी चाहिए कि देश का मतदाता सब कुछ देखता है। पिछले साल सितंबर में राहुल और प्रियंका गांधी के आशीर्वाद से जेएनयू के टुकड़े –टुकड़े गैंग के नेता कन्हैया कुमार की  कांग्रेस में एंट्री हुई थी।  ये वही कन्हैया कुमार थे जो कहते थे कि भारतीय सेना के जवान कश्मीर में बलात्कार जैसे घिनौने कृत्य कर रहे हैं।क्या कांग्रेस भी कन्हैया कुमार के बेतुके और बेहूदगी भरे आरोपों के साथ खड़ी थीप्रियंका गांधी ने कभी बताया नहीं कि कन्हैया कुमार किसलिए और किस आधार पर सरहदों की रक्षा करने वाली भारतीय सेना पर आरोप लगाते रहे हैंआप अगर देश विरोधी तत्वों का साथ दोगे तो फिर आपको चुनावों में जनता जवाब तो देगी ही।

 दरअसल न तो राहुल जनता का मिजाज और राजनीति जानते हैं और न ही प्रियंका। इनकी किसी भी अहम सवाल पर कोई धीर-गंभीर राय नहीं होती। राहुल गांधी की चाहत है कि वे  नरेंद्र मोदी का स्थान ले लें I प्रियंका की भी इच्छा है कि वह दूसरी इंदिरा गांधी बने। लेकिन दोनों भारत को अभी तक समझ ही नहीं पाए हैं। यही वजह है कि आज कांग्रेस पार्टी की स्थिति बेहद शर्मनाक हो गई है। अगर ये दोनों पार्टी में बरकरार रहते हैं तो कांग्रेस के अंतिम संस्कार की राख भी ढूढंने से नहीं मिलेगी। लगता है कि दोनों ने कांग्रेस की कपाल क्रिया करने का पूरी तरह मन बना लिया है। दोनों अपने मकसद की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। पंजाब में भी सब ठीक ठाक ही चल रहा था। इन दोनों ने राजनीति के धाकड़ कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नानसीरियस मसखरे इंसान को पार्टी का मुखिया बन दिया। इनके फैसलों का नतीजा सबके सामने  है। पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव को जरा याद कर लेते हैं। तब ही केरल और पंजाब को छोड़कर कहीं भी कांग्रेस का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा था। पंजाब में  कांग्रेस पूर्व पटियाला नरेश कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व के कारण ही जीती थी। उसी कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ राहुल गांधी ने  नवजोत सिंह सिद्धू को खड़ा किया। सिद्धू राहुल गांधी का प्रिय है। कैप्टन के न चाहने के बाद भी सिद्धू को कांग्रेस में एंट्री मिली थी। राहुल गांधी ने सिद्धू को सारे देश में प्रचार के लिए भेजा था। सिद्धू ने सभी जगहों में जाकर भाजपा और मोदी जी के खिलाफ अपनी गटर छाप भाषा का इस्तेमाल किया। यह सब जनता देख रही थी। सिद्धू जहां भी गए वहां पर उनकी पार्टी परास्त ही हुई। वैसे लोकतंत्र में वाद-विवाद-संवाद तो होते ही रहना चाहिए। संसद में भी खूब सार्थक बहस होनी चाहिए। यह लोकतंत्र की मजबूती के लिए पहली शर्त है। पर लोकतंत्र का यह  कब से अर्थ हो गया कि आप अपने राजनीतिक विरोधी पर लगातार  टुच्चे किस्म के निराधार आरोप लगाते रहें।

 कांग्रेस में केन्द्रीय नेतृत्व लगातार कमजोर हो रहा है। वह पार्टी को कहीं विजय नहीं दिलवा पा रहा है। केन्द्रीय नेतृत्व तब ताकतवर होता है जब उसकी जनता के बीच में कोई साख होती है। लेकिन हैरानी होती है कि कांग्रेस में  केन्द्रीय नेतृत्व यानी सोनिया गांधी और उनके बच्चों के खिलाफ विद्रोह क्यों नहीं होता है।

(लेखक वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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