डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने चीनी राजदूत से भेंट की, यह कोई असाधारण घटना नहीं थी लेकिन यह इतनी खबरीली इसलिए बन गई कि इसे छिपाने की कोशिश पहले राहुल ने की और फिर चीनी दूतावास ने की। जब टीवी चैनलों पर हंगामा होने लगा तो कांग्रेस के प्रवक्ता और राहुल भी चारों खाने चित्त हो गए। उन्होंने स्वीकार किया कि राहुल और चीनी राजदूत की बात हुई है लेकिन उन्हें यह बताते अभी भी डर लग रहा है कि बात क्या हुई ?
इसमें डरने की बात क्या है ? छिपाने की बात क्या है ? तीन साल पहले जब हाफिज सईद से पाकिस्तान में मेरी बात हुई थी तो कितना बड़ा हंगामा हो गया था, संसद बंद हो गई थी, कुछ टीवी एंकर पगला गए थे लेकिन सबका मैंने मुंहतोड़ जवाब दिया था। मैंने कुछ छिपाया नहीं। हाफिज से हुई तीखी बातचीत को शब्दशः छपा दिया था। साॅंच को आॅंच क्या ? हां, राहुल का यह इरादा रहा हो सकता है कि चीनी राजदूत की बात में से कुछ बिंदु ऐसे निकाल लिये जाएं, जिनसे मोदी पर हमला हो सके। वैसे राहुल ने भूटान के राजदूत और अपने पूर्व राजनयिक शिवशंकर मेनन से भी बात की है। यह अच्छा लक्षण है। विपक्ष का नेता यदि कुछ सीखने की कोशिश कर रहा है तो यह प्रशंसनीय है। यों भी अक्सर राहुल की मजाक उड़ती रही है। देश के बौद्धिकों के बीच वे ‘भौंदू बाबा’ के नाम से विख्यात हो चुके हैं। लेकिन राहुल हमारे प्रधानमंत्रीजी की तरह सर्वज्ञ नहीं है। दोकलाम में चल रही तनातनी के बारे में ‘सर्वज्ञजी’ अभी तक चुप हैं। सबसे शर्मनाक बात तो यह हुई कि हमारे विदेश मंत्रालय ने सर्वज्ञजी और चीनी नेता की हेम्बर्ग में बातचीत हुई, ऐसा जमकर प्रचार कर दिया और चीनी प्रवक्ता कह रहा है कि दोनों की कोई बैठक ही नहीं हुई। खड़े-खड़े सलाम-दुआ हुई और फोटो खिंच गए। पता नहीं, हमारी सरकार डर क्यों रही है ? बात क्यों नहीं कर रही है ? विरोध-पत्र क्यों नहीं भेज रही है ? चीनी राजदूत को बुलाकर उससे पूछताछ क्यों नहीं कर रही है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि दोकलाम में तनातनी का फैसला स्थानीय स्तर पर ले लिया गया हो और केंद्रीय नेताओं का उसका पता ही न हो। सारे मामले को केंद्र सरकार बहुत तूल नहीं दे रही है, यह ठीक कर रही है। लेकिन आश्चर्य है कि इतने लंबे-चौड़े सलाह-मश्विरे के बावजूद राहुल गांधी अभी तक कुछ बोले क्यों नहीं ? बंधी मुट्ठी लाख की ! खुल गई तो खाक की !