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रेल के विकास बिना राष्ट्र का विकास कैसा?

आर.के. सिन्हा

आगामी आम बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली रेलवे को क्या देने जा रहे हैं, यह तो 1 फरवरी को ही सही रूप से मालूम पड़ेगा। लेकिन, यह तो तय है कि उनका रेलवे पर विशेष फोकस रहने वाला है इस बार की बजट में। केन्द्रीय वित्तमंत्री श्री जेटली ने 2017-18 का आम बजट स्वतंत्र भारत का प्रथम संयुक्त बजट पेश किया था, जिसमें रेलवे भी एक मंत्रालय के रूप में ही शामिल था। इसलिहाज से दूसरी बार संयुक्त आम बजट में रेलवे भी अन्य क्षेत्रों की तरह से समाहित किया जायेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी, क्योंकि भारत अब रेलवे के साथ-साथ रक्षा, कृषि, सड़क, जलमार्ग और नागरिक उड्डयन में होने वाले निवेश भी रेल बजट का बराबरी करने की स्थिति में आ गये है।

अरुण जेटली अपने बजट में रेलवे के चार प्रमुख क्षेत्रों अर्थात यात्री सुरक्षा, पूंजीगत एवं विकास कार्यों, स्वच्छता और वित्त एवं लेखांकन संबंधी सुधारों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं। यह भीलग रहा है कि बजट में बड़ी लाइनों पर अवस्थित मानवरहित रेलवे क्रॉसिंगों को वर्ष 2020 तक समाप्त करने के सरकार के लक्ष्य पर बड़ी मात्रा में धन आवंटित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक याचिका की सुनवाई के दौरान रेलवे को कहा था कि भले ही आपको बजट की दिक्कत हो, लेकिन आपको मानवरहित क्रासिंग पर हो रही मौतों को रोकने लिए ठोस कदम उठाने ही होंगे। कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हर क्रासिंग पर हादसे होते हैं, कुछ क्रासिंग ऐसी हैं, जहां ऐसे हादसे हो रहे हैं, जो खतरनाक हैं। जनहित याचिका में कहा गया है कि देशभर में करीब 13,500 मानवरहित क्रॉसिंग हैं, जिनकी वजह से आए दिन ट्रेन दुर्घटनाएं हो रही हैं।पिछले 25 सालों में करीब पांच हजार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इस पृष्ठभूमि में बजट में मानवरहित क्रॉसिंग पर होने वाले हादसों को रोकने के उपायों को करने के लिएज्यादा धन आवंटित होने की संभावना बढ़ जाती है।

करो रेल नेटवर्क का विस्तार

यह तो एक अच्छी बात है कि मौजूदा सरकार रेल पटरियों का तेजी से विस्तार कर रही है। मोटे तौर पर इस लिहाज से दो स्तरों पर काम होना चाहिए। पहला, उन जगहों में रेल लाइनें बिछाई जाएं जहां पर रेलवे ने अब तक दस्तक ही नहीं दी है। दूसरा, अब देश के रेल नेटवर्क को आपको दो की बजाय तीन-चार पटरियों पर दौड़ाना होगा। तब ही देश का रेल यातायात सुगम होगा और हादसे कम हो सकेंगे।देश के सभी मुख्य रेल मार्गों पर कम से कम चार-पांचरेल ट्रैक तो हर जगह बनने ही चाहिए। तभी रेल यात्रियों और मॉल परिवहन की भारी बोझ को सहने में सक्षम होगा। दो ट्रैक यात्री सवारी गाड़ियों के आबगमन के लिए, एक अप और एक डाउन ट्रैक। इसी प्रकार दो मालगाड़ियों के वास्ते, पांचवा इमरजेंसी ट्रैक सेना, पुलिस बल, राहत कार्य के लिए विशेष ट्रेनों आदि के लिए। क्या यह सब हम आज करने की स्थिति में हैं? अगर नहीं हैं तो भारतीय रेलवे को यह सब करने के लिए संसाधन जुटाने ही होंगे। क्योंकि, सिर्फ दो ट्रैकों पर रोज करोड़ों मुसाफिरों को उनके गंतव्य स्थल पर सुरक्षित पहुंचाने से लेकर लाखों टन सामान से लदे मालगाडियों की आवाजाही करना संभव ही नहीं सख्त रूप से खतरनाक भी है। अफसोस होता है कि हमारे इधर रेल ट्रैकों को विछाने के काम को कई दशकों तक गंभीरता से लिया ही नहीं जाता था।वर्ष 2014 तक रोज 4-5 किलोमीटर ही ट्रैक बिछाए जाते थे। अपने पिछले साल के बजट को पेश करते हुए श्री जेटली ने बताया था कि वर्ष 2017-18 में 3,500 किलोमीटर लंबी रेल लाइनों को चालू किया जाएगा, जबकि वर्ष 2016-17 में 2800 किलोमीटर लंबी रेल लाइनों को चालू किया गया था। माना जा सकता है कि इस बार के बजट में जेटली रेल लाइनों के विस्तार के लिए मोटी रकम रखेंगे। अगर यह नहीं होगा तो अंग्रेजों के द्वारा खनिज और कच्चा मॉल, धन और वन संपदा लूटकर बंदरगाहों तक ले जाने के लिए मालगाडियों के आवागमन के लिए बनाये गए रेलमार्ग आज के दिन प्रतिदिन करोड़ों यात्रियों को कैसे ढो सकेंगेंI

अभाव काम की संस्कृति का

रेलवे के साथ सबसे बड़ी समस्या यही है कि यहां पर कामकाज आराम से होता है। जबकि प्रधानमंत्री और उनकी मौजूदा सरकार चाहती है कि जल्द से जल्द काम हों और नई परियोजनाओं पर समय से अमल किया जाए। अगर बजट से इतर बात करें तो यहां कामकाज की चाल में तेजी तो लानी ही होगी। रेलवे के हर विभाग को तेजी से काम करने के लिए तैयार करना होगा ताकि परियोजनाओं पर तेजी से अमल किया जा सके। निकम्मे कर्मियों को दंड मिले और बेहतर कर्मी पुरस्कृत भी हों। रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास के विकास पर वित्त मंत्री का फिर से फोकस रहने वाला है। इसके साथ ही उन्हें देशभर के रेलवे स्टेशनों पर लिफ्ट एवं एस्केलेटर लगाकर उन्हें दिव्यांगजनों और बुजुर्गों के अनुकूल बनाने का भी ख्याल होगा। अगर आप रेलवे से सफर करते हैं तो आपने महसूस किया होगा कि रेलवे में स्वच्छता अभियान चलाने की बड़ी जरूरत है। वैसे रेलवे में एसएमएस आधारित ‘क्लीन माई कोच सर्विस’चालू हो चुकी है।वर्ष 2019 तक भारतीय रेलवे के सभी डिब्बों में जैव शौचालय लगाने का भी प्रस्ताव है।

अपना खर्चा खुद उठाए

लगभग हरेक भारतीय के जीवन से जुड़ी है रेलवे। हमारी रेल दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी रेल नेटवर्क है। निश्चित रूप से रेलवे की मोटे तौर पर दो प्राथमिकताएं हैं। पहली, मुसाफिरों की सुरक्षा, दूसरा, करीब 13 लाख कर्मियों वाली रेलवे वित्तीय दृष्टि से आत्मनिर्भर बने। ये लाभ भी कमाएं और स्तरीय सेवा भी दे। रेलवे के कामकाज में सुधार तो हुआ है, पर अब भी अनेक स्तरों पर सुधार करना शेष है।अब रेलवे को अपने अनावश्यक खर्चे तो घटाने ही होंगे। यह भी समझ नहीं आता कि रेल किराए साल दर साल क्यों न बढायें जाएं? निश्चित रूप से किराए अनावश्यक रूप से तो नहीं बढ़ने चाहिए पर जितने जरूरी हों, उतने तो बढ़ने ही चाहिए। किराए न बढ़ाने का औचित्य समझ से परे है। अहम प्रश्न यह है कि जब रेलवे का परिचालन का खर्चा बढ़ता ही जा रहा है, तब रेलवे किसलिए अपने किराए क्यों नहींबढ़ाता। रेलवे में खाने-पीने की गुणवत्ता भी सुधरनी चाहिए। जलपान सेवा में विविधता कतई नहीं है। रेलवे में फूड मेन्यू में बदलाव नहीं होता। ऊंचे किराये के मुताबिक भी सुविधाएं नहीं हैं। इन मुद्दों पर वित्त मंत्री को ध्यान देना चाहिए।

चूंकि देश में कार्यशील महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, इसलिए उनका रेलों में सफर करना बढ़ता ही जा रहा है। इनकी ट्रेनों में सुरक्षा बढ़े। महिलाओं के लिए अलग से डिब्बे होने चाहिए और महिला सुरक्षाकर्मियों की तादाद भी बढ़नी चाहिए। वहीं बुजुर्गों को भी बेहतर सुविधाएं मिलनी चाहिए। ट्रेनों में हेल्थकेयर सुविधा भी होनी चाहिए।

सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद रेलवे के वित्त पर तगड़ा असर पड़ा है। उसे अपने 13 लाख कर्मियों और लाखों सेवानिवृत कर्मियों को बढ़ी हुई पगार और पेंशन देनी पड़ रही है। 7वें वेतन आयोग ने रेलवे पर 28,000 करोड़ रुपये का और बोझ डाल दिया है। खर्चे तो रेलवे के बढ़ते ही जा रहे है, पर उस अनुपात में रेलवे की कमाई नहीं हो रही है। रेल यात्रियों का कहना है कि वित्त मंत्री जी किराया बढ़ाएं, लेकिन सुविधाएं भी दें। यह जायज भी हैI

(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)

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