Shadow

रोहित तिवारी के कत्ल की असली वजह क्या

भारत सरकार के विदेश मंत्री और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अनेकों बार मुख्यमंत्री रह चुके दिवंगत दिग्गज नेता एनडी तिवारी के बेटे रोहित की हत्या के सनसनीखेज मामले में दिल्ली पुलिस ने उनकी पत्नी अपूर्वा को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस का कहना है कि पूछताछ में अपूर्वा ने रोहित को मारने की बात भी कबूल ली है । रोहित की मौत से कम दुखद नहीं है, इस हत्याकांड में रोहित की पत्नी अपूर्वा का खुद संलिप्त होना। हालांकि अभी कोर्ट में अपूर्वा के जुर्म को पुलिस को साबित करना बाकी है, पर पहली नजर में यह बात शीशे की तरह से साफ नजर आ रही है कि रोहित की हत्या संपत्ति विवाद के कारण ही हुई। आरोपित अपूर्वा को संदेह था कि उसकी सास, उसे अपनी चल-अचल संपत्ति से बेदखल कर सकती है। तो जल्दी से पैसा कमाने के फेर में रोहित की पत्नी ने उसका कत्ल ही कर दिया।

सच में हमारे आसपास कुछ नरपिशाच घूम रहे  हैं। ये खून के प्यासे हैं। इन्हें किसी की भी जान लेने में रत्ती भर भी देरी नहीं लगती। इनके लिए अपने पुत्र,पुत्री, पति या पत्नी का कत्ल करना जैसे मामूली सी बात हो गई है। ये पैसे के लिए किसी भी निचले स्तर तक जा सकते हैं। आख़िर, इस सुदृढ़ भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत समाज का नैतिक पतन इस हद तक कैसे हो गया? कारण कुछ भी हो, इसपर समाज को अब गंभीरता से चिंतन मनन करके कारगर कदम तो उठाने ही होंगें नहीं तो सदियों से चल रहे रिश्ते बिखरने में ज्यादा देर नहीं लगेगी ।बेशक,इस तरह की खबरें पढ़कर किसी का भी मनअवसाद से भर जाता है। यदि रोहित को उसकी पत्नी ने मारा तो हाल ही में राजधानी से गाज़ियाबाद के पाश इलाके सटे इंदिरापुरम में एक इंजीनियर ने  अपनी पत्नी और तीन बच्चों की हत्या कर दी। उसने इस कृत्य को अंजाम देने के बादविडियो भी शेयर किया था, जिसमें वो कह रहा था कि मैंने अपने परिवार की हत्या कर दी है, जाओ शव उठा लो। सुमित नाम के इस राक्षस को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उसका कहना था कि चूंकि वो पिछले चार महीने से बेरोजगार था अत: उसके लिए अपने परिवार को चलाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए उसने अपनेबीवी-बच्चो को मार डाला। कहीं संपत्ति के रूप में पैसा पाने  की चाह तो कहीं घर चलाने के लिए पैसे का संकट। अगर पैसे का संकट है तो वो दूर हो सकता है। जीवन में हर इंसान के ऊपर संकट आते हैं,चले जाते हैं। आर्थिक संकट का यह मतलब तो कतई नहीं है कि आप किसी की हत्या ही कर दें। इंदिरापुरम में यही हुआ।

आप गौर से देखें कि अब हम सब आभासी दुनिया यानी सोशल मीडिया पर सुबह से शाम तक अपने को अनावश्यक रूप से बिजी रखते हैं ।उस दुनिया में हमारे मित्र बनते रहते हैं जिससे हम दूर हैं ।पर हमारे आसपास सन्नाटा सा पसरने लगता है। हम घर के भीतर भी अकेले हो रहे हैं। अब परिवारों के भीतर भी हम में आपसी संवाद नहीं हो रहा है। पिता-पुत्र घर में एक-दूसरे को देखते हैं, पर बात करने का किसी के पास वक्त नहीं है। परिवार एक साथ बैठकर भोजन तक नहीं करता ।हमारे समाज कीएक-डेढ़ दशक पहले तक यह स्थिति तो नहीं थी। तब रोज सुबह-शाम  परिवार एक साथ भोजन करता था, बैठता था। बातें करता था ।सभी घरों में मित्र और रिश्तेदार आते-जाते रहते थे। सब एक-दूसरे के सुख दुख के साथी होते थे। अब वो दौर सपना सा लगता है। किसी घर में चले जाइए Iपरिवार के चार सदस्य बैठे मिलेंगे ।लेकिन, आपस में बात करते हुए नहीं बल्कि, अपने-अपने मोबाइलों पर बात करते या सिनेमा देखते हुए ।

इस बीच, अब पेशेवर स्तर पर स्थितियां बद से बदत्तर हो रही हैं। नौकरियों का कोई भरोसा नहीं रहा। अब नौकरीपेशा इंसान के सिर पर छंटाई की तलवार सदैव लटकी रहती है। पहले लोग पुश्त-दर-पुश्त एक ही संस्था या व्यक्ति की सेवा करते थे ।कोई तनाव नहीं रहता था कि बाप के रिटायर होने या बेटा के जवान होने पर क्या होगा ? अब इंसान दो-चार साल भी किसी एक संस्थान  में नौकरी कर ले तो बहुत बड़ी बात होती है। एक तरफ नौकरी जाने का डर, उसे बचाने की मशक्कत के बीच घर या कार के लिए लोन की किस्तें उतारने की टेंशन। इन विषम हालातों का आप अकेले मुकाबला कर रहे होते हैं। आपके साथ कोई नहींहै। हां, सोशल मीडिया पर आपके दोस्तों की संख्या बढ़ती जा रही है। फेसबुक पर जिस पोस्ट को आप डालते हैं, उसे लाइक और कमेंट भरपूर मिलते हैं। उससे आपको क्षणिक प्रसन्नता भी प्राप्त होती है ।उस आभासी दुनिया में आपके दोस्तों की भीड़ है,पर वास्तविक जीवन में आप अकेले होते चले जा रहे हैं। समाज में भी अकेले और परिवार में भी ।कहते ही हैं जिसके बहुत दोस्त हैं, उसका सच्चा दोस्त कोई भी नहीं है। एक बार किसी ने चाणक्य से पूछा कि सच्चे दोस्त की परिभाषा क्या है? चाणक्य ने उत्तर दिया, राजद्वारेश्मशानेच:तिष्ठतिबान्धव: Iयानिजबआपको राजद्वार (आजकीपरिभाषामेंकोतवालीयाकोर्ट) मेंबुलायाजायेऔरआपश्मशानमेंअपनेकिसीप्रियकेदाहसंस्कारमेंगएहों,तबआपदेखलीजिएकिआपकेसाथखड़ाकौनहै ? वहीतोहैआपकाबन्धुयादोस्त

आपने अपने पिता या माता के साथ घर में कैरम, लूडो या शतरंज अवशय खेला होगा, पर क्या आप अपने बच्चों के साथ भी इन खेलों को खेलते है? नहीं ना। संबंधों में पहले वाली गर्मजोशी दिखाई नहीं दे रही है। संबंधों पर निजी स्वार्थ हावी हो चुका है। सिर्फ पैसा कमाने की भूख नजर आ रही है। पैसा कमाना भी कोई गलत नहीं है। पर पैसा कमाने के लिए ईमानदारी और नैतिकता को ताक पर रख देना कहां तक सही माना जाए? हो तो यही रहा है।

न तो फेसबुक पर आपको चाणक्य की परिभाषा वाले मित्र मिल सकते हैं और न परिवार के सदस्य मोबाइल छोड़कर आपस में बात करने का वक्त निकाल सकने को राजी हैं ।क्या यह सच नहीं है कि बहुत से बड़े कारोबारी सोचते हैं कि वे बैंकों से लोन लेकर उसे वापस ही न करें, पैसे लूटकर विदेश भाग जायें ।तो छोटे कारोबारियों का लक्ष्य होता है कि वे टैक्स में जहाँ तक हो सके चोरी करें तो वहीं सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों में काम करने वाले कर्मी कामचोरी और करप्शन के चक्कर में रात-दिन में फँसे रहते हैं। यानी नियमों को ताक पर रखकर खूद कमाओ। एक आंकड़ा देख लीजिए। सरकारी  बैंकों के रोज तीन मुलाजिमों की नौकरी जा रही करप्शन के घोटालों में लिप्त होने के कारण। ये आंकड़ें मेरे नहीं, सेंट्रल विजिलेंस कमीशन के हैं।

इनमें उन भ्रष्ट बैंक कर्मियों को तो हम शामिल ही नहीं कर रहे जिन्होंने देश में कालेधन को समाप्त करने के लिए शुरू की गई नोटबंदी के अभियान को पलीता लगाने की जीतोड़ कोशिश की। आप अपने शहर, कस्बे,महानगर के किसी भी सरकार विभाग में जाकर देख लीजिए। वहां पर कामकाज पहले की तरह से हो रहा है। हां, दफ्तर बेहतर हो गए हैं। वहां पर एसी और कंप्यूटर आ गए हैं। और, मोदी जी की धमकी के दर से घूस का रेट दुगना-तिगुना जरूर हो गया दिखता है।

हमने अपनी बात आरंभ की थी कि ऱिश्तों के तार-तार होने पर। इसका कारण मोटे तौर पर पैसा ही सामने आ रहा था। उसी पैसे को पाने या हड़पने की लालसा में समाज का एक वर्ग नैतिकताओं को ताक पर रख चुका है। इसी के कारण रोहित तिवारी का कत्ल होता हिया या फिर भ्रष्टाचार पनपता है। इस पर चोट करनी ही होगी।

स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी जी से मेरे दशकों के मधुर सम्बन्ध रहे ।अत्यंत ही शालीन,शिष्ट और मधुर राजनेता थे ।लखनऊ और देहरादून के मुख्य मंत्री निवास पर और कुछ विदेश यात्राओं में मुलाकातें तो होती हो रहीं ।वे मेरे देहरादून विद्यालय और आवास पर भी अनेकों बार आये पर रोहित और उनकी माँ से एक ही बार भेंट हुई जब मैं दो वर्ष पूर्व तिवारी जी के लखनऊ आवास पर उनसे मिले गया था जब वे अस्वस्थ थे।उस समय रोहित और उनकी माता जी भी उपस्थित थे ।तिवारी जी के आदेश पर उन दोनों ने आवभगत में कोई कमी नहीं छोड़ी ।दोनों सभ्य, सुसंस्कृत और संस्कारी लगे ।जब प्रथम सूचना आई की रोहित ने आत्महत्या कर ली है तो मुझे विश्वास नहीं हुआ और शक सही साबित हुआ ।

आर.के.सिन्हा

(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *