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विवाह से पूर्व एच.आई.वी. टेस्ट अनिवार्य हो

मानव शरीर की जीवनीशक्ति हर प्रकार से एक दैविक शक्ति है। परन्तु अक्सर लोग उस दैविक शक्ति को समझने और उसके सहारे सदैव स्वस्थ रहने की परम्पराओं का अनुसरण नहीं कर पाते। स्वस्थ रहने के लिए आधुनिक मानव अप्राकृतिक तथा मानव निर्मित औषधियों आदि का सहारा लेने लग पड़ा है। हम जितना प्रकृति से दूर रहते हैं, हमारे शरीर में उस दिव्य जीवनीशक्ति के कमजोर होने की सम्भावना उतनी ही अधिक बढ़ जाती है। यह दिव्य शक्ति ही अपने आप समय-समय पर पैदा होने वाले शारीरिक और मानसिक रोगों से लड़ने का काम करती है जिसे इम्यूनिटी अर्थात् रोग प्रतिरोधक शक्ति कहा जाता है। हमारी अप्राकृतिक जीवन पद्धति और खान-पान तथा हर प्रकार के प्रदूषित वातावरण के कारण हमारी यह रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होती चली जाती है। एक परिस्थिति ऐसी आती है जब हमारे शरीर में इस रोग प्रतिरोधक शक्ति के अभाव को पैदा करने वाला एक ऐसा वायरस पैदा हो जाता है जो इस दिव्य शक्ति को लगातार समाप्त करता रहता है। इस वायरस का नाम है एच.आई.वी.। यह एक संक्रमणकारी रोग है। शरीर में एक बार एच.आई.वी. के लक्षण पैदा होने के बाद कई प्रकार के संक्रमण अलग-अलग रोगों के रूप में सामने आने लगते हैं जैसे – बुखार, दस्त, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में दर्द, गले की खराबी, त्वचा के रोग, मुँह तथा गुप्तांगों के रोग, थकान, वजन कम होना आदि। वास्तव में एच.आई.वी. की उपस्थिति शरीर के सभी तंत्रों के लिए खतरा बन जाती है।
जब कोई व्यक्ति रक्तदान करता है तो उसी वक्त चिकित्सा वैज्ञानिक उस रक्त में एच.आई.वी. के होने या न होने का परीक्षण सुनिश्चित कर लेते हैं जिससे किसी एच.आई.वी. ग्रस्त व्यक्ति का रक्त दान लेकर किसी अन्य रोगी को एच.आई.वी. से ग्रस्त होने की संभावना समाप्त की जा सके। बच्चा पैदा होने की प्रक्रिया में यदि माँ के शरीर में एच.आई.वी. की उपस्थिति पाई जाती है तो उसे बच्चे को दूध न पिलाने की निश्चित सलाह दी जाती है। इनके अतिरिक्त एच.आई.वी. के फैलने की सबसे बड़ी संभावना महिला और पुरुष के बीच सैक्स सम्बन्धों से ही बनती है। भारतीय ऋषि-मुनियों ने वैदिक ग्रन्थों के आधार पर मानव जीवन की चार आश्रम अवस्थाओं से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न जीवन कार्यों का निर्धारण किया है। प्रथम ब्रह्मचर्य आश्रम में व्यक्ति का मुख्य ध्येय ज्ञान अर्जन पर केन्द्रित रहता है, द्वितीय गृहस्थ आश्रम में यही ज्ञान का लक्ष्य विवाह से उत्पन्न सन्तान पर केन्द्रित हो जाता है, तृतीय वानप्रस्थ आश्रम में व्यक्ति से अपेक्षित होता है कि वह पति-पत्नी के बीच भी शारीरिक सम्बन्धों का त्याग करके समाजसेवा और ईश्वर भक्ति पर अपना ध्यान केन्द्रित करे और चतुर्थ संन्यास आश्रम के द्वारा वह अपने प्रत्येक कार्य को अहंकाररहित तथा निःस्वार्थभाव से समूचे समाज को अर्पित करे। यदि समाज का प्रत्येक मनुष्य इन चार आश्रमों की सीमाओं में रहकर अपना जीवन चलायें तो बड़े-बड़े संक्रामक रोगों की बात तो दूर वह छोटे-छोटे रोगों से भी मुक्त रह सकता है। जबकि आधुनिक युग में विवाह से पूर्व ही कामुक सम्बन्धों का प्रचलन बढ़ रहा है। ऐसे वातावरण में एच.आई.वी. के फैलाव की सम्भावनाएँ भी बढ़ती जा रही है। भारत की राष्ट्रीय एड्स नियंत्रक संस्था द्वारा एकत्रित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 में भारत में एच.आई.वी. ग्रस्त लोगों की संख्या लगभग 21 लाख थी। ऐसे रोगियों को मानसिक विकास तथा शिक्षा के क्षेत्र में भी लगातार पिछड़ते हुए देखा गया है। भारत की सरकारों ने एच.आई.वी. संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए कई उपाय किये हैं।
मैंने वर्ष 2010 में राज्यसभा सदस्य होने के नाते स्वास्थ्य मंत्रालय से देश में एच.आई.वी. फैलाव से सम्बन्धित कई तथ्यों की जानकारी मांगने के साथ-साथ यह प्रश्न किया था कि क्या सरकार भारतीय नागरिकों में विवाह से पूर्व एच.आई.वी. टेस्ट को अनिवार्य बनाने पर विचार कर रही है। मेरे इस प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार में कार्यरत स्वास्थ्य मंत्री ने इसका स्पष्ट नकारात्मक उत्तर दिया था। उस समय ऐसा न करने का मुख्य कारण यह बताया गया था कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रक संस्था का यह विचार है कि किसी भी व्यक्ति को एच.आई.वी. टेस्ट के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह टेस्ट व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। वैसे इस टेस्ट के साथ रोगी को उचित मार्गदर्शन देने के लिए हर सम्भव विचार उपलब्ध कराये जाते हैं जिससे वह एच.आई.वी. के फैलाव को रोकने में सहायक बन सके। इस सम्बन्ध में मैंने राज्यसभा में अपने संक्षिप्त उद्बोधन के दौरान कहा था कि हमारे देश का युवा वर्ग नशे के कारण अपनी युवावस्था को नष्ट कर रहा है। नशे के कारण ही अपराध बढ़ रहे हैं। इसे एक खतरनाक और गम्भीर समस्या समझा जाना चाहिए। काॅलेजों में दाखिले से पूर्व यदि युवाओं का मादक द्रव्यों के सेवन से जुड़ा टेस्ट अनिवार्य कर दिया जाये तो नशे से ग्रस्त छात्रों के मार्गदर्शन में सहायता प्राप्त होगी और नशे की आदतों को रोका जा सकेगा। दूसरी गम्भीर समस्या के रूप में मैंने एच.आई.वी. रोग की तरफ सरकार का ध्यान आकृष्ट किया। मेरा सुझाव था कि यदि सरकार विवाह से पूर्व प्रत्येक वर-वधु को एच.आई.वी. परीक्षण के लिए अनिवार्य रूप से बाध्य कर दे तो इससे एच.आई.वी. के फैलाव को रोकने में सहायता मिल सकती है।
हाल ही में गोवा के स्वास्थ्य मंत्री ने भी एक वक्तव्य में कहा है कि गोवा सरकार भावी पति-पत्नी के लिए विवाह के पंजीकरण से पूर्व एच.आई.वी. जाँच अनिवार्य करने पर विचार कर रही है। केन्द्र सरकार को अग्रणी भूमिका निभाते हुए सभी राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ इस विषय पर गम्भीर विचार-विमर्श की प्रक्रिया प्रारम्भ करके सारे देश के लिए एक निश्चित कानून की रूप रेखा तैयार करनी चाहिए जिसमें एच.आई.वी. जाँच में वर-वधु का सुरक्षित घोषित होना विवाह के पंजीकरण के लिए अनिवार्य नियम बने। देश के नागरिकों का स्वास्थ्य सर्वोपरि महत्त्वपूर्ण विषय है। एच.आई.वी. रोग तो एक ऐसा रोग है जो एक रोगी को नहीं अपितु उसके साथ-साथ अनेकों नागरिकों को भी रोगग्रस्त करने की क्षमता रखता है। यह रोग भी अपने आपमें शरीर के किसी एक अंग या तंत्र का रोग नहीं है, अपितु शरीर के सभी तंत्रों को रोगी करने की क्षमता रखता है। वास्तव में यह रोग मानव जीवन की सर्वोच्च और दिव्य जीवनीशक्ति को ही प्रभावित कर सकता है।

-अविनाश राय खन्ना, उपसभापति, भारतीय रेड क्रास सोसाईटी

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