पूरी दुनिया के लिए योग की शिक्षा, पूरी दुनिया को शान्ति और अहिंसा का पाठ, पूरी दुनिया को पर्यावरण संकट से उबारने के लिए पहल, जहाँ अमेरिका पीछे हैट रहा है – वहां भारत आगे आ रहा है, चागोस द्वीप मामले पर सकारात्मक भूमिका, श्रीलंका का मत्तला राजपक्ष एयरपोर्ट, सेशल्स का अज़म्पशन द्वीप, मारीशस का एक द्वीप, अफ़्रीकी देश को गौ-दान, पूर्वी एशिया देशों के साथ दोस्ती, गल्फ देशों के साथ दोस्ती, पूरी दुनिया का सोर ऊर्जा के क्षेत्र में नेतृत्व, अनेक देशों के साथ सामरिक युद्धाभ्यास, अनेक देशों के साथ सामरिक गठबंधन – आदि आदि – आज भारत वो नहीं रहा – आज भारत कुछ अलग हो रहा है – पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श बन कर उभर रहा है.
दक्षिण कोरिया उन देशों में से हैं – जो भारत की तरह अपने बदमाश पडोसी से बहुत ज्यादा परेशान है. वहां के लोग अमन और शांति के लिए दुआएं कर रहे हैं. लेकिन वो देश समझ गया है की अमन पाने के लिए शांति के लिए हुंकार भरनी पड़ती है. इसी लिए उस देश ने सियोल शांति पुरस्कारों की शुरुआत की. इस पुरस्कार को पाने वाले अनेक लोग बाद में नोबेल पुरस्कार भी जीत गए. अतः ये कहा जा सकता है की जो ये पुरस्कार जीतता है वो भविष्य में नोबेल शांति पुरस्कार की दौड़ में होता है. हाल ही में भारत के प्रधान मंत्री को सियोल शान्ति पुरस्कार मिला है. ये एक बहुत ही बड़ी उपलभ्दी है. भारत हमेशा से शान्ति और अहिंसा का पुजारी रहा है – लेकिन आज तक कोई सम्मान नहीं मिला है. कारण साफ़ है – शान्ति और अहिंसा स्थापित करने के लिए भी पुरजोर प्रयास करने पड़ते हैं. शान्ति स्थापित करने के लिए बगुले की तरह बैठ कर हम ये सोचें की हमने कुछ नहीं किया तो ये पर्यात्प नहीं है. शान्ति स्थापित करने के लिए अशांति फैलाने वाले लोगोंको रोकना भी पड़ता है. शान्ति स्थापित करने के लिए पूरी दुनिया में शान्ति चाहने वाले लोगों को साथ में लेना पड़ता है और सबके साथ अमन और भाईचारे के लिए प्रयास करने पड़ते हैं. भारत आज पूरी दुनिया में शान्ति और अहिंसा का आदर्श प्रस्तुत करने में सफल हुआ है. ये हम सबके लिए बधाई की बात है. भारत की नीतियों की पूरी दुनिया में तारीफ़ हो रही है.
आज भारत ही नहीं पूरी दुनिया आतंकवाद से प्रभावित है और इस समस्या से प्रभावी ढंग से निपटना बहुत जरूरी है. १९९० में जिस प्रकार से आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को लोम हर्षक तरीके से घर से निकाल कर मारा था – वो वाकई रोंगटे खड़े करने वाला था. लेकिन उस समय हम बगुले वाली नीति पर चल रहे थे – और बगुले की तरह चुप- चाप रहे. आतंकी आते रहे और हम चुप चाप तमाशा देखते रहे. कोई कठोर कदम नहीं उठाया – और समस्या को नासूर बना डाला. अगर उस समय हम कठोर कदम उठाते तो उसी समय हम शान्ति के पुरोधा बन जाते. हम लोग शांति और अहिंसा की नीतियों का मर्म नहीं समझ पाए थे शायद. उस समय हम गिने चुने देशों के साथ सम्बन्ध बनाते थे. आज हम अपनी अलग पहचान बना रहे हैं और अपनी नीतियों पर काम कर रहे हैं. हम ईरान से दोस्ती बढ़ाते हैं – अमेरिका हमको घुड़की देता है – क्यों? वो कौन होता है हमें किसी से बात करने से रोकने वाला. हमने अपनी पहल जारी रखी – आज अमेरिका को समझ में आ गया है की भारत की नीतियां अटल है – और शान्ति और अंतरास्ट्रीय सामंजस्य पर आधारित हैं. पहले हम चीन से डरकर दक्षिण कोरिया के साथ दोस्ती नहीं करते थे – क्यों? पहले हम चीन से डर कर जापान से दोस्ती नहीं करते थे – क्यों? ये सब कायराना था. आज हम खुल कर अपनी नीतियों के आधार पर पूरी दुनिया के साथ अपना तालमेल बढ़ा रहे हैं. हम पाकिस्तान से युद्ध नहीं कर रहे – हम आतंकवाद के खिलाफ खुल कर युद्ध लड़ रहे हैं. पाकिस्तान में जो भी बारूद गिराया गया है वो पकिस्तान के नागरिकों पर या पाकिस्तान की सरकार के भवनों पर नहीं – बल्कि आतंकी ठिकानों पर गिराया गया है. पाकिस्तान खुल कर आतंकवाद का समर्थन कर रहा है – हम आज भी संयम बनाये हुए हैं और चुन चुन कर आतंकवादियों को मार रहे हैं. एक वो जमाना था जब हम आतंक के आगे बेबस हो गए थे. आतंकवादियों की धमकियों पर उनके साथियों को छोड़ देते थे. आतंकवादियों के रहनुमाओं को पूरी सरकारी सुरक्षा प्रदान करते थे और उनको वार्ता के लिए आमंत्रित करते थे – आज हम समझ गए हैं – आतंकवादियों को उनकी ही भाषा में जवाब देना पड़ेगा. ये भारत की एक नई पहचान है.
दुनिया में कई ऐसे देश हैं जो अपनी नीतियों को ज़माने के अनुसार नहीं – भविष्य के लिए तैयार करते हैं. ऐसा ही एक देश है फ़्रांस. पूरी दुनिया से आगे चलने वाले इस देश ने अपनी अग्रगामी नीतियों से पूरी दुनिया को चौंका दिया है. आज फ़्रांस अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में अमेरिका से काफी ज्यादा आगे निकल गया है. वो अपने देश की ऊर्जा जरूरतों का काफी बड़ा भाग अक्षय ऊर्जा के स्रोतों से ले रहा है. एक तरह से आज अमेरिका को फ़्रांस से सीखना चाहिए. इसी कारण फ़्रांस के राष्ट्र पति इमेनुअल मेक्रोन को संयुक्त राष्ट्र चैंपियन ऑफ़ अर्थ अवार्ड दिया गया. आप गर्व करिये – भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी उनके साथ ये ही सम्मान मिला क्योंकि संयुक्त राष्ट्र का ये मानना है की आज भारत “क्लाइमेट चेंज” (पर्यावरण संकट) को ले कर बहुत सकारात्मक पहल कर रहा है. ये हर भारतवासी के लिए गर्व की बात है.
आज पूरी दुनिया के विकास-शील देशों के सामने भारत एक आदर्श देश के रूप में उपस्थित हुआ है. भारत की नीतियां कई मामले में विकासशील देशों के लिए आदर्श नीतियां हैं. विकास-शील देश अमेरिका के पूंजी वादी ढाँचे पर चलने में दिक्कतों का समना कर रहे हैं और चीन की साम्यवादी नीतियों के दुष्परिणाम पूरा विश्व देख रहा है. आज भारत ही वो देश है जो विकास – शील देशों के लिए एक आदर्श स्वरुप है. आज भारत अनेक अफ़्रीकी देशों के लिए आदर्श देश है – वे अपने देश में सुधार स्थापित करने के लिए भारत से सीखने की कोशिश कर रहे हैं. हर दिन कोई न कोई अफ़्रीकी प्रतिनिधि मंडल भारत आ रहा है और भारत से सीखने की कोशिश कर रहा है. अफ्रिका से आने वाले विद्यार्थियों की संख्या में भी अपूर्व बढ़ोतरी हुई है. आज पूरी दुनिया एक ऐसी व्यवस्था चाह रही है जो न तो पूंजीवाद की बीमारियां लिए हो न साम्यवाद की तरह कठोर और अलोकतांत्रिक हो. उन सबके सामने एक ही विकल्प है – भारत.
देश तो लोगों का समूह मात्र है. आज भारत का नाम हो रहा है – तो ये हम सबका नाम है. आज भारत को एक पिछड़े देश के रूप में नहीं बल्कि अग्रणी देश के रूप में देखा जा रहा है तो ये हम सबके लिए गर्व की बात है. लेकिन एक प्रश्न भी है- क्या हम सभी लोग अपने अपने क्षेत्र में नवाचार करने और उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के लिए उतने ही कटिबद्ध हैं जितने हमारे देश के प्रधान-मंत्री? क्या हम सभी लोग अपने अपने क्षेत्र में नवाचार और सृजनशीलता को बढ़ावा देने के लिए उतने ही जतन कर रहे हैं जो हमें करने चाहिए? भारत दुनिया में अनेक मानदंडों और अनेक इंडेक्सों में छलांग लगा कर पिछड़े हुए देश से अग्रणी देश के रूप में उभर रहा है – लेकिन उसकी ये तरक्की हमारी ही पसीने की कमाई है – रुकिए मत – अपने से उम्मीदें और बढ़ाइए – आप और भी ज्यादा कर सकते हैं – अभी शिखर और मंजिल बहुत दूर है और सफर अभी बाकी है.
Dr. Trilok Kumar Jain