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शुरू होने जा रहा है वायुसेना का स्वर्णिम युग

 

भारतीय वायुसेना की सबसे बड़ी ताकत उसके विदेशी लड़ाकू विमान, जेट व उनपर लगी मिसाइलें और युद्ध सामग्री नहीं है बल्कि उसके जांबाज अधिकारी, पायलट व सैनिक हैं। इस वर्ष के 87 वें वायुसेना दिवस के मौके पर हिंडन एयरबेस पर आयोजित समारोह में एयर वाइस मार्शल संजय भटनागर के विशेष अतिथि के रूप में मुझे बहुत करीब से वायुसेना की मौजूदा स्थिति, क्षमता व गतिविधियों को देखने का मौका मिला। अपने मित्र कर्नल राहुल सिन्हा व उनके पुत्र यश व मेरे छोटे पुत्र सहज के साथ मैंने बहुत गहराई से हमारी वायुसेना की ताकत व विशेषताओं का आंकलन किया।

यह आश्चर्यजनक व अफसोसजनक था कि पिछले तीन दशकों में भारत की वायुसेना को आधुनिक हथियारों, प्रशिक्षण व लड़ाकू विमानों से वंचित रखा गया और पुराने होते मिग व मिराज विमानों से जूझते हमारे वायुसेना अधिकारियों व पायलटों की एक पीढ़ी ही बूढ़ी हो गयी। मगर अब दिन बदल रहे हैं। मोदी सरकार के आने के बाद से देश की रक्षा नीतियों में युगांतरकारी बदलाव आया है और एक आक्रामक राजनय व रक्षानीति भारत सरकार के विजन का हिस्सा बन चुकी है। हम अब बहुत तेजी से अपनी तीनों सेनाओं का  आधुनिकीकरण कर रहे हैं व उन्नत व समसामयिक और अगली पीढ़ी के हथियारों, रक्षा सामग्री व लड़ाकू विमानों से खुद को सजा रहे हैं। निश्चित रूप से भारत आज भी अमेरिकी, रूसी व फ्रांस के लड़ाकू विमानों के भरोसे अपनी रक्षानीति बना रहा है मगर जिस तेजी से तीनों सेनाओं विशेषकर वायुसेना का देसीकरण किया जा रहा है वह सराहनीय है। इस बार के वायुसेना दिवस का मुख्य आकर्षण वायुसेना के हमारे जाबांज पायलटों की हैरतअंगेज उड़ानें रहीं जो बी 17 हेलिकॉप्टर, चिनूक एयरक्राफ्ट, अपाचे लीथल हेलिकॉप्टर, सुखोई-30, एवेंजर फॉर्मेशन एयरक्राफ्ट, मिग विमानों, मिग-29, मिराज- 2000, सिंगल सुपर-30 एमकेआई के साथ प्रदर्शित हुई थी, मगर हमारे देसी विमानों विशेषकर लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस, सूर्यकिरण फाइटर जेट, विंटेज एयर, डकोटा एयरक्राफ्ट, हरक्यूलिस फाइटर जेट व सारंग  हेलीकॉप्टरों का शानदार प्रदर्शन रहा और यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। देसी विमानों के इस प्रदर्शन का श्रेय हमारे जांबाज व साहसी पायलटों को जाता है जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर अपनी योग्यता, बुद्धिचातुर्य व कुशलता से इन देसी विमानों से रोंगटे खड़े कर देने वाले करतब दिखाए। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि मशीन से ऊपर मानव ही होता है और सबसे बड़ी मां भारती से देशप्रेम की भावना है जो हर बड़े से बड़े खतरे से जूझने व हर मुश्किल में डटे रहने के साथ ही हारी हुई बाजी को भी जीतने का साहस भर देती है। इसी साहसिक भाव व प्रशिक्षण ने बालाकोट हमले के समय हमारे जांबाज पायलट अभिनंदन को अपने बहुत पुराने व तकनीकी रूप से पिछड़े मिग विमान से ही अत्याधुनिक व घातक एफ -16  विमान से लडऩे व उसे मार गिराने की हिम्मत दी। मनोवैज्ञानिक रूप से अत्यंत सक्षम होना हमारी सबसे बड़ी ताकत है जिसकी दुनिया के किसी भी देश के पास काट नहीं है।

अब कुछ ही समय मे भारत की वायुसेना का स्वर्णिम युग शुरू होने जा रहा है। हम तेजी से अपना स्वदेशीकरण कर रहे हैं और ‘तेजस’ के रूप में हम छोटे किंतु अत्याधुनिक व मारक लड़ाकू विमान का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने जा रहे हैं। अगले कुछ महीनों में 36 राफेल विमान हमारी सेना का हिस्सा बन जाएंगे व अगले 36 और विमानों के ऑर्डर भी दिए जाने की बातें मीडिया में आ रही हैं। दुनिया के सबसे घातक लड़ाकू विमानों की यह खेप हमारे दुश्मन देशों विशेषकर पाकिस्तान व चीन से निबटने में बहुत कारगर सिद्ध होगी। इसके बीच अत्याधुनिक व दुर्गम परिस्थितियों में प्रभावी अपाचे व चिनूक हेलीकॉप्टर अब हमारी सेना का हिस्सा है और सरकार अमेरिकन कम्पनियों से 114 कंबोट जेट ( मिग 35,एफ/ए-18, एफ-21, गरिपेन) सौदे को भी करने जा रही है ताकि भविष्य की ज़रूरतों को समय से पूरा किया जा सके। इसके बीच ही पुराने व आत्मघाती होते जा रहे मिग विमानों, चीता व चेतक हेलीकॉप्टर भी अब विदा होते जाएंगे व रूसी केए-226टी हेलीकॉप्टर जल्द वायुसेना के हिस्सा बन जाएंगे। यह परिवर्तन जहां हमारी सप्लाई व्यवस्था को तीव्र व प्रभावी करेंगे वहीं पुरानी तकनीक के कारण हो रही दुर्घटनाओं व मानव क्षति से भी बचा जा सकेगा। हमारे वायुसेना प्रमुख एयर चीफ राकेश कुमार सिंह भदौरिया के अनुसार अब वायुसेना नए व आक्रामक रूप में तैयार हो रही है व अपने देशीकरण पर पूरा जोर दे रही है ताकि हम अपनी रक्षा जरूरतों को स्वयं ही पूरा कर सकें, ऐसे में जहां हमारी विदेशी मुद्रा की बचत होगी वहीं हमारी निर्भरता दूसरे देशों पर घटेगी और यह हमारी आक्रामकता को बढ़ाएगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार हम लगातार नई योजनाओं, आधुनिकीकरण व उन्नतिकरण की ओर हैं। हमने दुश्मन के हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अपनी सेनाओं को पूरे अधिकार दे रखे हैं। वैश्विक परिदृश्य में उभरते भारत को अब बड़ी भूमिका निभानी है और बिना सशक्त वायुसेना के यह संभव नहीं।

आलोचकों को हमारी रक्षा तैयारियों पर होने वाला यह खर्च पैसे की बर्बादी लग सकता है किंतु दुश्मन देशों की गुरिल्ला युद्ध व देश में साम्प्रदायिक हिंसा, आतंकवाद, ड्रग्स व नकली मुद्रा के जाल को पोषित करने की स्थिति बनाए रखने से देश को जो नुकसान हुआ है उसे रोकने के लिए यह खर्च कोई खास मायने नहीं रखता। अब हमारी तीनों सेनाओं में जबरदस्त समन्वय बैठ गया है व नए परिवर्तनों ने हमारी आक्रामकता इस प्रकार बढ़ा दी है कि हम अपने एक भी जवान की जान जोखिम में डाले बिना दुश्मन का पूरी तरह सफाया कर सकते हैं।

अनुज अग्रवाल

विंग कमांडर अभिनंदन ने उड़ाया मिग-21, आसमान में दिखी भारत की ताकत

बालाकोट हवाई हमले में शामिल अन्य लड़ाकू पायलटों ने भी वायुसेना दिवस पर आयोजित फ्लाई पास्ट में भाग लिया

एक पाकिस्तानी विमान को मार गिराने के लिए वीर चक्र से सम्मानित विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान ने वायुसेना दिवस के अवसर पर आकाश में मिग-21 लड़ाकू विमानों के दल का नेतृत्व किया। बालाकोट हवाई हमले में शामिल अन्य लड़ाकू पायलटों ने भी वायुसेना दिवस पर आयोजित फ्लाई पास्ट में भाग लिया। वीरता सम्मान से पुरस्कृत पांच पायलटों ने मिराज-2000 और सुखोई-30 एम के आई विमानों वाले ‘एवेंजर’ दल का नेतृत्व किया।

बाईसन विमानों के दल का नेतृत्व करने वाले वर्धमान ने सर्वाधिक तालियां बटोरीं। बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने हिमाकत करते हुए भारतीय एयरस्पेस का उल्लंघन करने की कोशिश की थी। इसी दौरान विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान ने मिग-21 से पाकिस्तान के एक एफ-16 जेट को खदेड़ते हुए मार गिराया था। इसी बीच मिग-21 क्रैश हो गया।

वर्धमान वक्त रहते पैराशूट के जरिए इससे इजेक्ट हो गए, लेकिन गलती से वो पाकिस्तान पहुंच गए। यहां पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया। बाद में भारत के जबरदस्त दबाव के बाद पाक सरकार को अभिनंदन वर्धमान को सही-सलामत छोडऩा पड़ा। इस परम वीरता के लिए विंग कमांडर अभिनंदन को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

आईएएएफ चीफ ने कहा- जारी रहेगी आतंक के खिलाफ लड़ाई

इस दौरान एयरफोर्स चीफ मार्शल राकेश भदौरिया ने अपने संबोधन में शहीद जवानों को याद किया। उन्होंने एयरफोर्स द्वारा हासिल की गई विभिन्न उपलब्धियों के बारे में भी जानकारी दी। एयर मार्शल आरकेएस भदौरिया ने कहा, ‘हमारे जवानों ने इस साल सफलता से एयरस्ट्राइक को अंजाम दिया और अगर जरूरत पड़ी तो फिर किसी भी कदम को उठाने को तैयार हैं। आतंक के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी रहेगी।

वायुसेना प्रमुख ने कहा कि वायुसेना किसी भी तरह की मुसीबत का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहती है, बीते कुछ समय में राष्ट्र सुरक्षा के लिए कई तरह की चुनौती सामने आई हैं। भारतीय वायुसेना ने आतंक के खिलाफ कामयाब लड़ाई लड़ी है और आगे भी ये लड़ाई जारी रहेगी। बालाकोट में एयरस्ट्राइक करने वाले जवानों को हम एक बार फिर सलाम करते हैं।

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सबसे कट्टर हैं धर्मनिरपेक्षता का शोर मचाने वाले!

बहुत से लोग राजनाथ के राफेल पर लिखने और नारियल चढ़ाने को अंधविश्वास बता रहे हैं। पहियों के बीच नींबू रखने का मज़ाक बनाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि आज के आधुनिक समय में ये सब अंधविश्वास और पिछड़ापन है। ये सब देख सुनकर हैरानी होती है। हैरानी इसलिए कि अगर सरकार अंधविश्वासी होती और आधुनिकता नहीं समझती तो दुनिया के सबसे आधुनिक विमान राफेल को लाने में एड़ी-चोटी का ज़ोर नहीं लगाती। फिर चाहे वो यूपीए की सरकार हो या एनडीए की। राफेल का हर कीमत पर भारत आना ये बताता है कि आधुनिकता की ज़रूरत को समझा गया है। अंधविश्वासी होने की बात तो तब आती जब हम आधुनिकता की इस ज़रूरत को नकारते और पुराने मिग विमानों पर नींबू चढ़ाकर आश्वस्त हो जाते कि अब हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

नींबू चढ़ाना, नारियल चढ़ाना हानिरहित परम्पराएं हैं। अंधविश्वास भी मान लो, तो भी उससे किसी का कुछ बिगड़ता नहीं है। ठीक वैसे ही, जैसे पेपर देने जाने से पहले मां आपको दही खिलाती है। आप दही खाने से पास नहीं होंगे। पास तो आप पढ़कर ही होंगे। आप कितने भी तार्किक क्यों न हो लेकिन मां जब दही खिलाती है तो ये सोचकर खा लेते हैं क्योंकि ऐसा करने से किसी का कुछ नहीं बिगड़ता। अपने तर्क से या उस परम्परा की वैज्ञानिकता पर सवाल पूछकर आप मां की भावनाओं को आहत नहीं करते। आप चुपचाप दही खा लते हैं क्योंकि मां इस परम्परा को निभाना चाहती हैं और उसके निभाने से किसी का कोई नुकसान नहीं।

ये परम्परा ही है कि बॉलीवुड में किसी भी फिल्म का मुहूर्त नारियल फोड़कर किया जाता है। फिल्म का प्रोड्यूसर अगर मुस्लिम है तब भी नारियल फोड़ा जाता है। ‘मिशन मंगल’ जैसी वैज्ञानिक उपलब्धि पर कोई फिल्म बनती है तब भी नारियल फोड़ा जाता है। फिल्म का चलना या न चलना उसकी कहानी और मेकिंग पर निर्भर करता है। मगर एक परम्परा बनी है, तो सभी बहुत ज़्यादा सोचे समझे बिना उसे निभाते हैं। वो भी पूरी आस्था के साथ। वहां ऐसी बातें करके खुद को परेशान नहीं किया जाता कि क्या नारियल फोडऩे से फिल्म घटिया होने के बावजूद चल पाएगी? न ही सवाल पूछा जाता है कि दुनिया की सबसे बेहतरीन टेक्नॉलजी से फिल्म बनाने वाले लोग नारियल फोड़कर खुद को अंधविश्वासी तो साबित नहीं कर रहे!

परम्पराओं को निभाने पर आपत्ति तब की जानी चाहिए जब हम अपनी परम्परा की खातिर किसी को कष्ट पहुंचाएं। जब हम कहें कि औरत को देखकर आदमी की नीयत बिगड़ जाती है इसलिए वो बुर्क या पर्दे में रहे। लेकिन कोई निजी आस्था से व्रत रखता है या रोज़ा रखता है तो आप उस पर तर्क करके उसे दकियानूसी साबित करने पर क्यों तुले हैं? ये उसकी निजी आस्था है। वो जो कर रहा है उससे किसी को कष्ट नहीं पहुंचा रहा। बिना किसी के दबाव के कर रहा है। ऐसा है, तो उसे निभाने दीजिए अपनी परम्परा। अगर वो अपनी उस परम्परा को पूरी आस्था से निभाता हुआ जीवन में कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित होता है, तो किसी को ये हक नहीं कि उस आस्था पर सवाल करके वो प्रेरणा छीनी जाए।

राजनाथ सिंह हिंदू हैं। वो विजयदशमी के दिन वहां गए। उन्होंने शस्त्र पूजन के तहत वहां पूजा की, तो क्या आपत्ति है? धर्मनिरपेक्ष देश होने का मतलब ये नहीं कि हम हर वक्त उस धर्मनिरपेक्षा को साबित करने पर तुले रहें। भारत में जब भी कोई नया विमान या हैलीकॉप्टर सेना में शामिल किया जाता है तो उस मौके पर सभी धर्मों के धर्मगुरु वहां मौजूद होते हैं। कांग्रेस से लेकर बीजेपी सभी सरकारों में ऐसा होता आया है।

बेशक राजनाथ सिंह धर्मनिरपेक्ष देश के रक्षा मंत्री हैं, लेकिन ये कतई ज़रूरी नहीं है कि उस धर्मनिरपेक्षता को साबित करने के लिए वो अपने साथ सभी धर्मगुरुओं को फ्रांस लेकर जाते। ऐसा करने की कोई बाध्यता मुझे समझ नहीं आती। लेकिन हैरानी इस बात की है कि नारियल चढ़ाने वाले लोग आधुनिकता की बात तो करते हैं मगर वो खुद इतने आधुनिक या लिबरल नहीं है कि  ‘प्रतीकात्मक धर्मनिरपेक्षा’ न निभा पाने पर किसी को एक पल की भी छूट दे दें।

वो नारियल और नींबू में अंधविश्वास तो देखते हैं मगर राफेल की ताकत में आधुनिकता नहीं ढूंढ पाते। वो कट्टरता का कथित विरोध करते हैं मगर मामूली बातों पर गुस्सा दिखाकर खुद को उन लोगों से कहीं ज़्यादा कट्टर साबित कर देते हैं जिनके खिलाफ वो ये लड़ाई लड़ रहे हैं।

– नीरज बधवार

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