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सदियों लग जायेंगी, तुमको मुझे भुलाने में

अटल युग का अवसान इस शताब्दी की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटनाओं में एक मानी जाएगी। अटल जी से 1965 से लेकर अभी तक लगातार 53 वर्षों का साथ रहा, तबीयत बिगडऩे के पहले तक तो, शायद ही कोई ऐसा महीना गुजरता हो जब उनके साथ कुछ घंटे न बिताये हों। उम्र में मुझसे काफी बड़े थे। लेकिन, व्यवहार मित्रवत था। पूरा सम्मान देते थे और हल्के फुल्के मजाक भी कर लेते थे। मात्र एक घटना का जिक्र करूंगा। 1996 में जब अटल जी की 13 दिनों कि सरकार बनी और मायावती की बेवफाई से एक वोट की कमी पड़ गई तो अटल जी ने अपने संसद में भाषण का अंत ‘न दैन्यम न पलायनम_’ कह कर किया और सीधे राष्ट्रपति भवन जा कर इस्तीफा सौंप दिया। उस समय अटल जी की लोकप्रियता चरम पर थी। जिसकी जुबान पर सुनो अटल जी का नाम रहता था। विरोधियों में भी उनके प्रशंस भरे पड़े थे।

बिहार के मुजफ्फरपुर में प्रदेश कार्यकारणी की बैठक थी। उन दिनों भाजापा के प्रदेश अध्यक्ष स्वर्गीय अश्वनी कुमार जी हुआ करते थे किन्तु उन्होंने अपने जिम्मे संगठन को मजबूत बनाने का ही कार्य ले रखा था और दिन प्रतिदिन के तमाम प्रशासनिक कार्य प्रदेश उपाध्यक्ष होने के नाते मेरे ऊपर छोड़ दिया था। अटल जी को कार्यकारणी में समापन भाषण देना था। दिल्ली से अटल जी का प्रोग्राम आया। प्रोग्राम के मुताबिक अटल जी राजधानी एक्सप्रेस से सुबह 5:30 बजे पहुंचने वाले थे और राजकीय अतिथिशाला में उनके ठहरने की व्यवस्था की गई थी। मैं तत्काल राजकीय अतिथिशाला गया और वहां के व्यवस्थापकों से मिल कर सारे इंतजाम देख आया। खानपान आदि के बारे में आवश्यक हिदायतें भी दे दी। वापस आकर पार्टी ऑफिस में अपने कमरे में बैठा ही था कि दिल्ली से फ़ोन आया। शिवकुमार जी (अटल जी के साथ पिछले 60 वर्षों से अधिक से दिन-रात बिताने वाले) लाइन पर थे। मुझसे पूछा ‘क्या हो गया? अटल जी नाराज़ हो रहे हैं, लो बात करेंगे।’ अटल जी जब स्वाभाविक मूड में होते थे तो मुझे ‘रवीन जी’ कहते और कुछ अनमने से होते तो ‘सिन्हा जी’ कहते। अटल जी ने फ़ोन पर आते ही कहा, ‘सिन्हा जी’ यह हो गया? क्या तुम्हारे घर में कमरों का अकाल पड़ गया है? मैं अब तक तुम्हारे यहां ही रुकता आया हूं। 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री क्या बन गया कि तुम मुझे घर से निकाल दोगे? मैंने कहा, ‘जी ऐसी कोई बात नहीं है।’ मैंने सोचा शायद एसपीजी वालों के प्रोटोकॉल में ऐसी ही व्यवस्था होगी। अटल जी ने कहा, ‘एसपीजी की ऐसी की तैसी। उन्हें क्या पता है कि मेरे तो हर शहर में घर हैं जहां मैं पूरी तरह सुरक्षति भी हूं और सहज रूप में रह भी सकता हूं। मैं तुम्हारे घर पर ही ठहरूंगा। हां, यह ज़रूर है कि इस बार 3 कमरे चाहिए। मेरे साथ एसपीजी का असिस्टेंट डायरेक्टर रहता है, मेरे कमरे के बगल में ही ठहरेगा और रंजन (अटल जी की दत्तक पुत्री नमिता के पति रंजन भट्टाचार्य) भी आ रहा है, अत: उसके लिए भी एक कमरा चाहिए। मैंने कहा, ‘बाप जी, दोनों बच्चे तो बोर्डिंग में हैं। छुट्टियों में ही आते हैं। कमरों की कोई कमी नहीं होगी।’ अटल जी को उनके परिवार के लोग और कुछ निकस्थ मुहंलगे कार्यकर्ता उनको ‘बाप जी’ ही कहते थे और वे अपनी मंद-मंद मुस्कराहट के साथ सर हिला कर उसे स्वीकार भी करते थे। उन्होंने फ़ोन रखा और मैं घर भागा। एक डेढ़ घंटे के बाद ही एसपीजी के डीआईजी कौल साहब (शायद दीपक कौल) मेरे घर पर पहुंच गए और सारे घर का मुआयना शुरू कर दिया। उनको सबसे बड़ी आपत्ति इस बात की थी कि घर के गेट से ऊपर ड्राइंग रूम तक जाने के लिए एक रैम्प बना हुआ था, जिसके नीचे मैंने गायें पाल रखी थीं और ऊपर बेड रूम में जाने के लिए लिफ्ट नहीं थी, इन बातों को लेकर बड़ी खिच-खिच हुई। कौल साहब ने दिल्ली से अटल जी की बुलेटप्रूफ गाड़ी स्पेशल प्लेन से मंगवाकर कर रैंप के ऊपर कई बार चढ़ायी और उतारी। तब कहीं जाकर आश्वस्त हुए कि रैंप मज़बूत है और बुलेटप्रूफ गाड़ी आराम से चढ़ और उतर सकती है। अगले दिन सुबह 5 बजे से हम सभी पटना जं. स्टेशन पर थे। अटल जी आये। सुबह 5 बजे भी कई हज़ार कार्यकर्ता मौजूद थे। सारे आने-जाने वाले यात्री हतप्रभ होकर अटल जी का दर्शन कर रहे थे। प्रोटोकॉल के मुताबिक अटल जी बुलेट प्रूफ गाड़ी में पिछली सीट पर बायीं ओर बैठे और मुझे होस्ट होने के नाते दाहिनी ओर बैठाया गया। सामने की सीट पर ड्राईवर की बगल में आईपीएस अधिकारी प्रमोद अस्थाना बैठे, जो उन दिनों एसपीजी में अटल जी की अंगरक्षक टीम (क्लोज बॉडी प्रोटोकॉल टीम) के प्रमुख थे। अभी वे त्रिपुरा में डीजी पुलिस हैं। अटल जी के आने की सूचना मात्र से पूरे पटना से लेकर मुजफ्फरपुर तक में हलचल ही मच गई थी और सुबह के साढ़े पांच बजे भी लोग सड़कों पर उतर आये थे। अटल जी गाड़ी में बैठे ऊंघ रहे थे। जिस चौराहे पर कुछ ज्यादा भीड़ इक_ी होती मैं उनसे आग्रह करता ‘बाप जी जऱा अभीवादन स्वीकार कर लें।’ अटल जी सीधा बैठकर हाथ जोड़ कर अभिवादन स्वीकार करते और फिर ऊंघने लगते। जब एक-दो बार ऐसा हो गया तो अटल जी बिगड़े और एसपीजी के एक असिस्टेंट डायरेक्टर से पूछा ‘प्रमोद इतने लोग सड़क पर कैसे आ गए?’, प्रमोद अस्थाना ने कहा, ‘जी सर, आपके स्वागत के लिए खड़े हैं।’ अटल जी ने कहा, ‘बेवकूफ बनाते हो? सुबह 5 बजे से स्वागत के लिए खड़े हैं? पूरे शहर की सारी ट्रैफिक रोक रखी है। ये बेचारे सुबह सैर करने निकले हैं और इन्हें तकलीफ दे रहे हो? इनको काम पर जाने में देर हो जाएगी।’ प्रमोद जी ने कहा, ‘सर आज तो रविवार का दिन है।’ अटल जी ने कहा कि ‘रविवार का दिन है तो क्या हुआ इनके समय का कोई महत्व नहीं है क्या? एक ही दिन तो होता है परिवार के साथ बिताने का।’

घर पहुंचते ही सबसे पहले पिता जी ने तिलक चन्दन लगा कर उनका स्वागत किया। अटल जी बराबर मेरे पिता जी से संस्कृत में ही बातें करते थे। कुशलक्षेम पूछने के बाद बेडरूम की सीढिय़ां चढ़ते हुए अटल जी ने कहा कि ‘सीढिय़ां तो तुमने बहुत खुबसूरत बनाई है। लेकिन, अब घुटनों में कमजोरी सी आने लगी है। कष्ट होता है।’ मैंने कहा, ‘मैं आपका इशारा समझ गया। जब आप अगली बार आयेंगे उससे पहले लिफ्ट लगवा दूंगा।’ आज मेरे पटना निवास में रैम्प तोड़ कर नीचे एक बड़ा सा संसदीय कार्यालय बना हुआ है, वह एसपीजी की देन है और जो लिफ्ट लगा हुआ है वह अटल जी की सलाह पर ही लगाया गया है। अटल जी ने कमरे में घुसते ही अपनी सदरी (बंडी) खोल कर फेंकी। कुर्ता खोला, धोती भी खोल दी और घुटने तक के अंडरवियर और बनियान में बाथरूम के अन्दर घुसे और मैं किचन में चाय लेने के लिए भागा। जैसे ही मैं कमरे में वापस पहुंचा अटल जी भी मुहं हाथ धो कर बाथरूम से निकले और बेड के ऊपर पालथी मार कर बैठ गये। मैंने कहा, ‘अटल जी चाय?’ तो उन्होंने कहा, ‘पहले मेरी सदरी लाओ।’ मैंने सदरी जो उन्होंने सोफे पर डाल रखी थी, दे दी। उन्होंने सदरी के सामने वाली जेब से एक पुर्जा निकल कर दिया जो उन्होंने बड़े सहेज कर रखा था। पुर्जे को खोल कर उन्होंने मेरे हाथ में पुर्जा देते हुए कहा, ‘खबरदार ऊपर कोई नहीं आएगा, मैं आज दिन भर आराम करूंगा। जलपान के बाद फिल्में देखूंगा। ये पांच फिल्मों के नाम मैंने लिख रखे हैं उनके कैसेटों का जुगाड़ करो। पहले फि़ल्में देखेंगे। कार्यसमिति की बैठक मुजफ्फरपुर में शाम में है न? तो 5 बजे निकलेंगे। एसपीजी वालों को बताया है कि डेढ़ घंटे का रास्ता है।’ मैंने कहा, ‘डेढ़ नहीं 2 घंटे।’ तो उन्होंने कहा, ‘हाँ-हाँ वहां आधे घंटे में समापन करेंगे और फिर रात में 9:30 बजे राजधानी पकड़ेंगे। खबरदार आज दिन भर कोई ऊपर आया।’ मैंने कहा, ‘बाप जी, आप निश्चिन्त रहिये, कोई ऊपर नहीं आएगा।’ जलपान के बाद अटल जी ने कहा कि दोपहर में मैं फिश फ्राई और चाइनीज सूप लूंगा। बहुत ज्याद हो तो एकाध सैंडविच बनवा देना।’ पांचों फिल्मों के कैसेट आये और जलपान के बाद अटल जी बिछावन पर पालथी मार कर फि़ल्में देखने लगे। कोई-कोई गाना पसंद आता तो रिवाइंड करके वह गाना सुनते, फिर आगे बढ़ते। नीचे भारी भीड़ जमा हो रही थी। लगातार नारे लग रहे थे। फिर से मैंने कहा, ‘बाप जी एक बार बालकनी में जा कर अभिवादन स्वीकार कर लीजिये। वे कहते, ‘अरे यह गाना तो ख़त्म होने दो। फिर चलते हैं।’ गाना समाप्त होने के बाद अटल जी जल्दी से बनियान के ऊपर कुर्ता डालते और कहते चलो। मैंने कहा, ‘बाप जी, धोती?’ तो अटल जी कहते, ‘नीचे से देखने में लोगों को धोती कहां नजऱ आएगी।’ यह सिलसिला शाम तक चलता रहा। दिन की फिश फ्राई और सूप इतनी पसंद आई कि उन्होंने कहा कि रात में भी घर का ही भोजन करूंगा। फिश फ्राई, सैंडविच और परांठे भुजिया बनाकर मुझे राजधानी एक्सप्रेस में चाहिए। थोड़ा ज्यादा रखवा देना, प्रमोद भी हैं और रंजन भी हैं। राजधानी का खाना तो अब खाने लायक नहीं रह गया है। हाँ, जब दिल्ली आना तो टिफिऩ कैरियर ले जाना, नहीं तो बहुरानी मुझसे नाराज हो जाएगी।’

ऐसे सरल, सहज, आत्मीय और सह्रदय व्यक्तित्व था हमारे अटल जी का। गीत सम्राट गोपाल दास ‘नीरज’ के भी अभिन्न मित्र थे। दोनों मात्र 9 दिन छोटे-बड़े थे। गोपाल दास नीरज एक महान ज्योतिषी भी थे। अटल जी के साथ गुजारे फक्कडिय़ों के दिनों की तमाम घटनाओं को सविस्तार बताया करते थे। वे कहते थे, ‘हमारी और अटल जी की कुंडली एक तरह की है। हम दोनों को ही शनि देव ने ही आगे बढ़ाया है। अटल जी देश के युवक ह्रदय सम्राट हैं तो मैं भी तो गीतों का राजकुमार हूं। और हम दोनों मरेंगे भी तो शनि की कोप से ही, हमारे प्रस्थान में 1 महीने से ज्यादा का अंतर नहीं होगा।’ और सचमुच नीरज के महाप्रयाण के 28 वें दिन अटल जी का भी स्वर्गारोहण हो गया। नीरज के ही शब्दों में।

यह जन्म क्या? यह मृत्यु क्या? बस इतनी सी तो बात है, किसी की आंख खुल गई, किसी को नींद आ गई।

कोटिश: नमन युगपुरुष!

R K Sinha

(लेखक राज्य सभा सांसद हैं)

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