बहुत से लोग राजनाथ के राफेल पर ॐ लिखने और नारियल चढ़ाने को अंधविश्वास बता रहे हैं। पहियों के बीच नींबू रखने का मज़ाक बनाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि आज के आधुनिक समय में ये सब अंधविश्वास और पिछड़ापन है। ये सब देख सुनकर हैरानी होती है। हैरानी इसलिए अगर सरकार अंधविश्वासी होती और आधुनिकता नहीं समझती तो दुनिया के सबसे आधुनिक विमान राफेल को लाने में एड़ी-चोटी का ज़ोर नहीं लगाती। फिर चाहे वो यूपीए की सरकार हो या एनडीए की। राफेल का हर कीमत पर भारत आना ये बताता है कि आधुनिकता की ज़रूरत को समझा गया है। अंधविश्वासी होने की बात तो तब आती जब हम आधुनिकता की इस ज़रूरत को नकराते और पुराने मिग विमानों पर नींबू चढ़ाकर आश्वत हो जाते कि अब हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
नींबू चढ़ाना, नारियल चढ़ाना Harmless परम्पराएँ हैं। अंधविश्वास भी मान लो, तो भी उससे किसी का कुछ बिगड़ता नहीं है। ठीक वैसे ही, जैसे पेपर देने जाने से पहले मां आपको दही खिलाती है। आप दही खाने से पास नहीं होंगे। पास तो आप पढ़कर ही होंगे। आप कितने भी तार्किक क्यों न हो लेकिन मां जब दही खिलाती है तो ये सोचकर खा लेते हैं क्योंकि ऐसा करने से किसी का कुछ नहीं बिगड़ता। अपने तर्क से या उस परम्परा की वैज्ञानिकता पर सवाल पूछकर आप मां की भावनाओं को आहत नहीं करते। आप चुपचाप दही खा लते हैं क्योंकि मां इस परम्परा को निभाना चाहती है और उसके निभाने से किसी का कोई नुकसान नहीं।
ये परम्परा ही है कि बॉलीवुड में किसी भी फिल्म का मुहूर्त नारियल फोड़कर किया जाता है। फिल्म का प्रोड्यूसर अगर मुस्लिम है तब भी नारियल फोड़ा जाता है। ‘मिशन मंगल’ जैसी वैज्ञानिक उपलब्धि पर कोई फिल्म बनती है तब भी नारियल फोड़ा जाता है। फिल्म का चलना या न चलना उसकी कहानी और मेकिंग पर निर्भर करता है। मगर एक परम्परा बनी है, तो सभी बहुत ज़्यादा सोचे समझे बिना उसे निभाते हैं। वो भी पूरी आस्था के साथ। वहां ऐसी बातें करके खुद को परेशान नहीं किया जाता कि क्या नारियल फोड़ने से फिल्म घटिया होने के बावजूद चल पाएगी? न ही सवाल पूछा जाता है कि दुनिया की सबसे बेहतरीन Technology से फिल्म बनाने वाले लोग नारियल फोड़कर खुद को अंधविश्वासी तो साबित नहीं कर रहे!
परम्पराओं को निभाने पर आपत्ति तब की जानी चाहिए जब हम अपनी परम्परा की खातिर किसी को कष्ट पहुंचाएं। जब हम कहें कि औरत को देखकर आदमी की नीयत बिगड़ जाती है इसलिए वो बुर्क या पर्दे में रहे। लेकिन कोई निजी आस्था से व्रत रखता है या रोज़ा रखता है तो आप उस पर तर्क करके उसे दकियानूसी साबित करने पर क्यों तुले हैं। ये उसकी निजी आस्था है। वो जो कर रहा है उससे किसी को कष्ट नहीं पहुंचा रहा। बिना किसी के दबाव के कर रहा है। ऐसा है, तो उसे निभाने दीजिए अपनी परम्परा। अगर वो अपनी उस परम्परा को पूरी आस्था से निभाता हुआ जीवन में कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित होता है, तो किसी को ये हक नहीं कि उस आस्था पर सवाल करके वो प्रेरणा छीनी जाए।
राजनाथ सिंह हिंदू हैं। वो विजयदशमी के दिन वहां गए। उन्होंने शस्त्र पूजन के तहत वहां पूजा की, तो क्या आपत्ति है? धर्मनिरपेक्ष देश होने का मतलब ये नहीं कि हम हर वक्त उस धर्मनिरपेक्षा को साबित करने पर तुले रहें। भारत में जब भी कोई नया विमान या हैलीकॉप्टर सेना में शामिल किया जाता है तो उस मौके पर सभी धर्मों के धर्मगुरु वहां मौजूद होते हैं। कांग्रेस से लेकर बीजेपी सभी सरकारों में ऐसा होता आया है।
बेशक राजनाथ सिंह धर्मनिरपेक्ष देश के रक्षा मंत्री हैं, लेकिन ये कतई ज़रूरी नहीं है कि उस धर्मनिरपेक्षता को साबित करने के लिए वो अपने साथ सभी धर्मगुरुओं को फ्रांस लेकर जाते। ऐसा करने की कोई बाध्यता मुझे समझ नहीं आती। लेकिन हैरानी इस बात की है कि नारियल चढ़ाने वाले लोग आधुनिकता की बात तो करते हैं मगर वो खुद इतने आधुनिक या लिबरल नहीं है कि ‘प्रतिकात्मक धर्मनिरपेक्षा’ न निभा पाने पर किसी को एक पल की भी छूट दे दें।
वो नारियल और नींबू में अधविश्वास तो देखते हैं मगर राफेल की ताकत में आधुनिकता नहीं ढूंढ पाते। वो कट्टरता का कथित विरोध करते हैं मगर मामूली बातों पर गुस्सा दिखाकर खुद को उन लोगों से कहीं ज़्यादा कट्टर साबित कर देतें जिनके खिलाफ वो ये लड़ाई लड़ रहे हैं।