अलकायदा ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कर जब तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों को मारा तो उसकी विचारधारा से हमदर्दी रखने वालों ने पूरी दुनिया मे इसका जश्न मनाया था। उन्हें लगा कि पहली बार किसी ने अमेरिका को मज़ा चखाया है। उसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से लेकर इराक में जो तबाही मचाई वो सबके सामने है। उसने पूरी दुनिया में ढूंढ-ढूंढकर जिस तरह अलकायदा के आतंकियों का सफाया किया वो सबने देखा। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की घटना ने अमेरिका ज़ुल्म करने का लाइसेंस दे दिया। उसने रासायनिक हथियारों की झूठी बात बोलकर इराक पर भी हमला कर दिया। जो लोग ट्रेड सेंटर की घटना पर जश्न मना रहे थे वही बाद में अमेरिका की इन ज़्यादतियों पर छाती कूटने लगे।
गुजरात में फरवरी 2002 के आखिर में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने 50 से अधिक कारसेवकों को ज़िंदा जला दिया। एक तरीके से उनका जो मिशन था उसमें वो कामयाब हुए। उसके बाद अगले कुछ दिनों में गुजरात में जो हुआ वो पूरी दुनिया ने देखा। जो लोग आज तक गुजरात दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को माफ नहीं कर पा रहे, वही लोग भूलकर भी अपनी ज़ुबान पर गोधरा की उस घटना का नाम नहीं लाते। उलटा यूपीए सरकार के वक्त तो लालू यादव ने ये तक साबित करने की कोशिश की कि गोधरा में ट्रेन का जलना एक हादसा था और किसी ने उसे बाहर से आग नहीं लगाई थी।
अब थोड़ा और पास आ जाते हैं। ट्रम्प के दौरे के वक्त जिस तरह पूरे दिल्ली में दंगे करने की तैयारी थी वो सबने देखा। कई दिन पहले ही घरों की छतों पर पत्थर इकट्ठा कर लिए गए, बड़ी-बड़ी गुलेलें बनाई गईं, पेट्रोल बम बनाए गए, हथियार इकट्ठे किए। सिर्फ इसलिए कि ट्रम्प के दौरे पर दिल्ली में ऐसी तबाही मचाई जाए कि पूरी दुनिया का ध्यान इस पर जाए और भारत की बदनामी हो। मगर उसके बाद फिर अगले 2-3 दिनों में जो हुआ वो भी सबने देखा। जो लोग एंटी सीएए प्रदर्शन के दौरान तोड़फोड़ की घटनाओं पर ये कह रहे थे कि शुरू तो मजबूरी मेें किया था अब मज़ा आने लगा है, वो सब दिल्ली दंगों के बाद सुन्न पड़ गए। उन्हें अपना शुरू किया मज़ा अब सज़ा लगने लगा।
और आज कोराना के आतंक के बीच पूरे देश में एक वर्ग जो कर रहा है वो भी पूरा देश देख रहा है। हिंदुस्तान शायद इकलौता देश है जहां उसके ही लोग अपने ही देश में कोरोना फैलने की दुआ मांग रहे हैं। जहां उसके ही लोग अपनी जान खतरे में डालकर जांच करने जा रहे स्वास्थकर्मियों को पीट रहे हैं, उन पर पत्थर बरसा रहे हैं। जहां मरीज़ों को ढूंढने जा रही पुलिस टीमों पर गोलियां चलाई जा रही है, उस पर पत्थर मारे जा रहे हैं। जहां कोरोना के मरीज़ डॉक्टरों पर थूक रहे हैं। बीमारी को फैलने से रोकने में मदद करने के बजाए वो ऐसा हर वो काम कर रहे हैं जिससे ये बीमारी और फैले। देश को बर्बाद करने की धुन पर ऐसी सवार है इसमें वो खुद अपनी तबाही नहीं देख पा रहे।
तो बात ये है कि ट्रेड टावर पर हमला करने से लेकर गोधरा में ट्रेन जलाने तक और आज कोरोना को जिहाद के टूल के तौर पर इस्तेमाल करने तक कट्टरपंथियों को हमेशा ये लगता है कि उनकी तरफ से पहुंचाया गया नुकसान ही उनकी विजय है।
ट्रेड टावर पर हमला अलकायदा की विजय नहीं थी न ही वो अमेरिका की हार। उस हमले के बाद अगर दुनिया में सबसे ज़्यादा किसी को नुकसान हुआ तो वो इस्लामिक जगत था। गोधरा की घटना के बाद सबसे ज़्यादा तबाही किसी ने झेली तो वो गुजरात के मुसलमान थे। CAA के नाम पर फर्ज़ी डर और माहौल बनाने का अगर सबसे ज़्यादा किसी का नुकसान हुआ तो वो मुसलमान थे जो बाद में इन दंगों में मारे गए।
मगर कट्टरपंथी नफरत की आग में इस कदर अंधे होते हैं, वो सामने वाले को नुकसान पहुंचाने को इतना उतावले होते हैं कि वो उसके नतीजे नहीं देख पाते। वो ऐसा मासूम और ज़हर से भरा दुश्मन है जो पहले हमला करने को अपनी जीत तो मानता है लेकिन उसके बाद होने वाली ज़लालत को नहीं देख पाता। कोरोना के नाम पर आज के खास वर्ग जो कर रहा है वो बहुत अफसोसनाक है। पूरा देश टूटने से बचने की कोशिश कर रहा है और एक खास वर्ग उसे तोड़ने की कोशिश कर रहा है। ये तो तय है कि देश नहीं टूटेगा। वो बच निकलेगा। मगर आज जो सब हो रहा है वो भुलाया नहीं जाएगा…कोई भी ज़िंदा मुल्क उसे भुला नहीं सकता…हम भी नहीं भुलाएँगे…सब याद रखा जाएगा…सब याद रखा जाएगा।