आईपीएल के दसवें संस्करण से ठीक पहले बीसीसीआई के आला पदाधिकारियों के रहने की जरूरत का न तो अहसास हो रहा है न ये लग रहा है कि अगर वो होते कुछ अनूठा कर बैठते। हां, ये जरूर है कि 20 फरवरी को जब आईपीएल के लिए खिलाडिय़ों की नीलामी हुई तो न ज्यादा ग्लैमर था और न ही क्रिकेट बोर्ड अधिकारियों की फोटो खिंचवाती हुई पलटन। लेकिन ये सबकुछ बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से हो गया। बीसीसीआई के वो सूरमा, जो लगातार खबरों में रहते थे, अपने पॉवर पर इतराते थे। वो सभी अपने घरों में बैठे हुए हैं। वो पदाधिकारी, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दावे किए थे कि लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें बीसीसीआई के लिए अहितकारक होंगी, अब खुद देख रहे होंगे कि बीसीसीआई को उनके नहीं रहने से कोई झटका नहीं लगा है और न ही उसका काम उनके नहीं होने से प्रभावित हुआ है। ज्यों ज्यों सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासक क्रिकेट बोर्ड की प्रणाली और संरचना को ज्यादा सहज करते जाएंगे, वैसे ये लगने लगेगा कि बीसीसीआई के लिए सबसे जरूरी कम से कम वो पदाधिकारी तो कतई नहीं थे, जो करीब दो तीन दशकों से सियासत या कारोबारी जगत से आकर इस संस्था के आका बन गए थे। इनके चलते ये खेल संस्था कुछ लोगों के हाथों की कठपुतली बन गई थी। कुछ समय बाद ये भी समझ में आने लगेगा कि जिन चंद हाथों में क्रिकेट का ये साम्राज्य था, उन्होंने क्रिकेट से ज्यादा अपने हितों के लिए काम किया है।
दो जनवरी के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों को हटाकर उनकी जगह एक कमेटी तय की, जिसने सुुप्रीम कोर्ट की सहमति से बीसीसीआई के नए प्रशासकों का चयन किया। अध्यक्ष अनुराग ठाकुर, सचिव अजय शिर्के को हटा दिया गया। कमेटी की पहली प्राथमिकता लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अनुकूल राज्य इकाइयों में चुनाव कराना होगा। प्रशासकों की नई कमेटी बीसीसीआई की संरचना में जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लागू कर आमूलचूल बदलावों का काम करेगी। इसके बाद बीसीसीआई में नए चुनाव कराए जाएंगे। लोढ़ा सिफारिशों के लागू होते ही ये सुनिश्चित हो जाएगा कि कोई भी शख्स एक तय समय तक ही बीसीसीआई में अपनी भूमिका निभा पाएगा, इसके बाद उसे ये जगह खाली करनी होगी। पारदर्शिता के मायने ये होंगे कि सभी इकाइयों को जो भी फंड मिलेगा, उसमें एकरूपता और निष्पक्षता होगी। केवल कुछ ही लोग और राज्य इकाइयां मलाई नहीं खाएंगी। खिलाडिय़ों को भी बीसीसीआई की नई गर्वनिंग काउंसिल में जगह मिलेगी।
जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू श्रंखला का सफल आयोजन हो चुका है। उसके बाद आस्ट्रेलिया टीम अब भारत के दौरे पर आई है। इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज के लिए बीसीसीआई की नई कमेटी ने अपने कामों को पुख्ता तरीके से निभाया। कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि इस सीरीज में बीसीसीआई में हुए व्यापक और जबरदस्त बदलावों का कोई असर पड़ा है। न भ्रमणकारी टीम ने किसी भी तरह की कोई कमी महसूस की और न ही कोई शिकायत सामने आई। उसी तरह भारतीय टीम जैसे हमेशा मैदान में विरोधी टीमों के सामने मुकाबले में उतरती थी और खेलती थी, उसी तरह खेल रही है और जीत के परचम लहरा रही है। यानि खेल पर कोई असर नहीं है, दर्शक उसी तरह मैदान पर आ रहे हैं, टीवी पर क्रिकेट का प्रसारण पहले की तरह टीआरपी और रेवेन्यू खींच रहा है। यानि खेल पर कोई असर नहीं। हां, यही तो चाहिए था कि क्रिकेट बगैर किसी दबाव के शुद्ध खेल और मनोरंजक के तरीके से खेला जाता रहे। उस मकसद में सुप्रीम कोर्ट भी कामयाब हुआ है और नए प्रशासकों की टीम भी। बीसीसीआई के सीईओ भी कहीं ज्यादा पेशेवर तरीके से बोर्ड की रोज की तमाम गतिविधियों को निपटा रहे हैं। हां, प्रशासकों की टीम के सामने ये इम्तिहान जरूर होगा कि जब भी आईपीएल हो तो उसमें तनिक भी भ्रष्ट तौर तरीकों को जगह नहीं मिलनी चाहिए, किसी भी तरह की फिक्सिंग और सट्टेबाजी न हो पाए। ये खेल साफसुथरा खेल ही बना रहे, लोगों को ये महसूस होना चाहिए कि जो मैच उन्होंने देखा, उसमें खेल जीता है न कि कुछ और। आईपीएल के दौरान फ्रेंचाइजी के कार्यकलापों पर भी बखूबी पूरी नजर होनी चाहिए।
आईपीएल को जब शुरू किया गया था, तब ललित मोदी इसके सर्वे सर्वा थे और ये लीग उनका ब्रेन चाइल्ड थी। शरद पवार बीसीसीआई के अध्यक्ष हुआ करते थे। तब यकीनन आईपीएल को लेकर रोमांच तो था लेकिन उतना ही कौतुहल भी कि ये लीग किस तरह होगी, क्या फ्रेंचाइजी और शहर आधारित टीमें दर्शकों को अपने साथ जोड़ पाएंगीं, क्या आईपीएल को जिस तरह क्रिकेट के बिजनेस मॉडल के रूप में पेश किया गया, उस तरह ये सफल हो पाएगा। अब नौ सालों बाद अगर आईपीएल को लेकर बहुत सी तस्वीर साफ हो चुकी है तो ये भी सही आईपीएल के चलते ही। पिछले कुछ सालों से बीसीसीआई में केवल भूचाल आया हुआ है। आरोप तो ये भी हैं कि ये आईपीएल ही है, जिसके चलते भारतीय क्रिकेट में गंदगी का प्रवेश हुआ। जिसने सट्टेबाजों और फिक्सर्स के गठजोड़ को फिर से जन्म दिया, जिसने क्रिकेटरों को भ्रष्ट करने का एक रास्ता तैयार किया, जिसने आईपीएल की आड़ में फ्रेंचाइजी उन संदिग्ध लोगों के हाथों में सौंप दी, जिन्होंने इसके जरिए पैसा कमाने का अनैतिक जरिया अपनाने में भी कोई संकोच नहीं किया। हम ढेर सारे सवालों से दसवीं आईपीएल से ठीक पहले भी इसलिए जूझ रहे हैं, क्योंकि आईपीएल के छठे संस्करण में फिक्सिंग और सट्टेबाजी के आरोपों ने अगर इस लीग की चूलें हिलाईं तो इसे लीपने-पोतने और छिपाने का काम बीसीसीआई में बैठे इसके शीर्ष पदाधिकारियों ने किया। केवल इसे छिपाने का काम ही नहीं किया बल्कि उन सभी लोगों को बचाने का काम भी किया, जो कहीं न कहीं संदिग्ध थे। इससे ठीक पहले ललित मोदी पर आईपीएल में पैसों के संदिग्ध लेनदेन से लेकर हवाला, फेरा उल्लंघन और वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लग ही चुका था। ये आरोप इतने गंभीर थे कि पूरी आशंका थी कि भारत सरकार उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल देगी। ललित आज भी भारत के गुनाहगारों की सूची में हैं और बार बार कहने के बाद भी वह लंदन में बैठे हैं, कभी भारत आने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। ये बातें केवल इसलिए बताई जा रही हैं कि आईपीएल किस तरह क्रिकेट में वित्तीय अनियमितता के साथ अनैतिक गठजोड़ का धंधा बन गया। जब बीसीसीआई के लोग इसे कमोवेश दबाने में कामयाब हो ही गए थे, तभी सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएल की अनियमितताओं की जांच के लिए रिटायर्ड हाईकोर्ट जज मुकुल मुदगल की अध्यक्षता में एक पैनल बना दिया। मुदगल ने जो रिपोर्ट दी, उससे ये तय हो गया कि बीसीसीआई की संरचना में व्यापक फेरबदल की जरूरत है साथ ही जरूरत है पारदर्शिता की भी। हालांकि ये हैरानी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने उन क्रिकेटरों के नामों की सूची वाले लिफाफे को अब तक क्यों नहीं खोला है लेकिन मुदगल कमेटी की सिफारिशों के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने एक और कमेटी बनाई, जिसकी अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा कर रहे थे, उन्हें ये देखना था कि बीसीसीआई का ढांचा कैसे बेहतर हो पाए और पारदर्शी होने के साथ जवाबदेह भी हो पाए।
लोढ़ा कमेटी ने जब अपनी सिफारिशें दीं तो बीसीसीआई में बैठे चंद लोगों के हाथों के तोते उड़ गए, क्योंकि ये सिफारिशें उनकी मठाधीशी और क्रिकेट पर कब्जे पर खत्म करने का संकेत दे रही थीं। जैसा कि जाहिर था कि क्रिकेट बोर्ड में बैठे लोगों ने हर संभव प्रयास किया कि लोढ़ा समिति की सिफारिशों को खारिज कर दें या उन्हें कानूनी तौर पर इस तरह उलझाने का काम करें कि ये लागू ही नहीं हो सके। आखिरकार दो जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला करते हुए इसके सारे पदाधिकारियों को पद से हटा दिया। अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को संभाल रहे हैं। पहली बार आईपीएल का दसवां संस्करण इन्हीं प्रशासकों की देखरेख में होने जा रहा है। आईपीएल को साफसुथरे और बेहतर तरीके से कराने के लिए प्रशासक लगातार मीटिंग कर रहे हैं। प्रशासकों की इस कमेटी को कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन यानि सीओए के रूप में जाना जा रहा है। इस कमेटी के प्रमुख पूर्व सीएजी प्रमुख विनोद राय हैं तो अन्य सदस्यों में विक्रम लिमये, रामचंद्र गुहा और डायना एदुलजी शामिल हैं। इसके अलावा बीसीसीआई के रोजाना के कामकाज को बीसीसीआई सीईओ राहुल जौहरी और जस्टिस आरएम लोढ़ा कमेटी के सचिव गोपाल शंकरनारायण देखते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आईपीएल का आयोजन न केवल महत्वपूर्ण बल्कि एक बड़ी चुनौती भी है। आईपीएल 05 अप्रैल से आयोजित होना है। सबसे बड़ी चुनौती ये भी है कि दर्शक लगातार आईपीएल से जुड़े रहें। इस नई गवर्निंग काउंसिल के सामने कुछ और चुनौतियां भी हैं, मसलन बीसीसीआई के हितों को आईसीसी के सामने कैसे सुरक्षित रखा जाए। दरअसल वर्ष 2014 में बीसीसीआई की अगुवाई में आईसीसी ने एक रेवेन्यू मॉडल बनाया था, जिसमें बड़े लाभकारक वो देश होने वाले थे, जिनके जरिए आईसीसी के पास ज्यादा राजस्व आता है। लेकिन आईसीसी ने इस मॉडल को बदलने का प्रस्ताव रखा है, अगर नया प्रस्ताव लागू हो जाता है तो बीसीसीआई को अरबों डॉलर का नुकसान होगा।
निश्चित तौर पर नए प्रशासकों को ये देखना होगा कि वो किस तरह से बीसीसीआई के आर्थिक हितों को बरकरार रख पाते हैं। हालांकि आप खुद सोचें कि प्रशासकों की जिस सूची में अगर विनोद राय जैसा शख्स हो तो वह बखूबी किसी भी राजस्व मॉडल को न केवल बेहतर तरीके से समझ ही सकता है बल्कि अपने पक्ष को लेकर ज्यादा तार्किक तौर पर बीसीसीआई की बात रख सकता है। यकीन मानिए कि आईसीसी में ये नई टीम जिस तरह भारत के पक्ष को रख सकती है, वैसा शायद ही कोई और कर पाए।
नए प्रशासकों को लगातार शिकायतें बीसीसीआई द्वारा राज्य इकाइयों को आवंटित किए जाने वाले फंड को लेकर मिल रही हैं। दरअसल अब तक बीसीसीआई के पूर्णकालिक सदस्यों ने मनमाने तरीकों से इस फंड को न केवल हासिल किया है बल्कि इसे खर्चा भी है। जिस तरह आईपीएल नीलामी से बीसीसीआई के पूर्व पदाधिकारियों को दूर रखा गया, उससे साफ लगता है कि प्रशासकों की कमेटी ने बीसीसीआई के कामकाज पर अपनी पकड़ बना ली है। ऐसा नहीं है कि आईपीएल की गर्वनिंग काउंसिल में बीसीसीआई के लोग नहीं हैं लेकिन वही, जिन्होंने लोढ़ा समिति की सिफारिशें मानकर वैसा ही व्यवहार किया है। आईपीएल की गर्वनिंग काउंसिल में राजीव शुक्ला, ज्योतिरादित्य सिंधिया, एमपी पांडोव और सौरव गांगुली हैं। गांगुली को छोड़कर इन सभी ने राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों और बीसीसीआई में अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। गांगुली को लेकर जरूर फैसला होना है, क्योंकि आईएसएल में कोलकाता टीम में हिस्सेदारी को लेकर वह हितों की टकराहट के मामले में फंसे हुए हैं।
विनोद राय कहते हैं कि बीसीसीआई को संचालित करने में कोई समस्या नहीं है, क्योंकि इस देश में लोग क्रिकेट को खासा पसंद करते हैं, हम क्रिकेट को विशुद्ध तौर पर हर किसी के पास पहुंचाना चाहते हैं। बीसीसीआई को बेहतर प्रशासन की जरूरत है, हम ये करके दिखाएंगे और चाहते हैं कि बीसीसीआई में लोकतांत्रिक तौरतरीके लागू हों।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की कमेटी ने कुछ अहम फैसले भी इस बीच लिए हैं, उन्होंने बीसीसीआई केे कानूनी सलाहकार राधा रंगास्वामी को हटा दिया है। माना जा रहा है कि क्रिकेट बोर्ड के लिए नए वकीलों की नियुक्ति की जाएगी। डेलायट नाम की फर्म सभी राज्य संघों के खातों की जांच करके देख रही है कि इसमें कितनी अनियमितताएं हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने हलफनामा दाखिल किया। हलफनामे में अनुराग ठाकुर ने कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि उन्होंने कोर्ट के आदेशों में बाधा पहुंचाने की कोशिश की तो वे बिना शर्त और साफ तौर पर मांगी मांगते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को क्षीण करने का कभी उनका उद्देश्य नहीं रहा।
अनुराग ठाकुर ने हलफनामे में कहा है कि वे कम उम्र में ही पब्लिक लाइफ में आ गए थे और तीन बार से लोकसभा के सदस्य रहे हैं। उनके मन में सुप्रीम कोर्ट के प्रति उच्च सम्मान है। उन्होंने न तो कोई झूठा हलफनामा दाखिल किया और न ही वे किसी तरह से कोर्ट के आदेशों में दखल देना चाहते थे। उन्होंने सिर्फ आईसीसी के चेयरमैन शशांक मनोहर से दुबई में इस मुद्दे पर सिर्फ उनका पक्ष पूछा था क्योंकि बीसीसीआई का चेयरमैन रहते वक्त उनकी यही राय थी। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने से पहले 2015 में केपटाउन में शशांक मनोहर ने खुद जवाब का ड्राफ्ट तैयार कराया था और कहा था कि इस जवाब में कोई दिक्कत नहीं है।
संजय श्रीवास्तव