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सेवानिवृत्ति के बाद स्वैच्छिक समाजसेवा

कनाडा में आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रीय बैठक में भाग लेकर मैं भारत वापसी के लिए कनाडा के हवाई अड्डे पर प्रतीक्षा में बैठा था तो मैंने देखा कि लगभग 70-80 वर्ष की महिला यात्रियों को भिन्न-भिन्न प्रकार का मार्गदर्शन देने के लिए एक विनम्र सहायिका के रूप में व्यस्त थी। उनकी आयु का अनुमान लगाने के बाद मेरे मन में विचार आया कि ऐसी वृद्ध महिला किस प्रकार किसी सरकारी या निजी हवाई जहाज कम्पनी में सेवारत है। इस जिज्ञासावश मैंने उनसे वार्तालाप प्रारम्भ किया तो पता लगा कि उनकी आयु 75 वर्ष पार कर चुकी है और वह लगभग 15 वर्ष पूर्व हवाई अड्डे पर ही सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हुई थी। सेवानिवृत्ति के बाद जो लोग घर पर बैठ जाते हैं वे अपने आपको वृद्ध समझने लगते हैं। विश्राम से भरे जीवन में स्वाभाविक रूप से वृद्धावस्था के रोग भी जल्दी प्रवेश कर जाते हैं। शरीर को एक अनुशासित दिनचर्या में लगाये रखकर वृद्धावस्था के रोगों से बचा जा सकता है। केवल इस उद्देश्य से उन्होंने सरकार के सामने अपनी सेवा निवृत्ति के बाद भी स्वैच्छिक और बिना वेतन की आशा के लोगों की सेवा में रहने का प्रस्ताव रखा। सरकार ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जिसके परिणामस्वरूप वे प्रतिदिन हवाई अड्डे पर लोगों को मार्गदर्शन देने के लिए नियमित रूप से उपस्थित रहने लगीं। उन्हें देखकर कुछ और सेवानिवृत्त लोगों को भी ऐसी समाजसेवा की प्रेरणा हुई। परिणामस्वरूप उनकी सेवा की आवश्यकता प्रतिदिन से घटकर सप्ताह में एकबार हो गई। इस प्रकार हवाई अड्डे पर कुछ सेवानिवृत्त लोग केवल समाजसेवा के उद्देश्य से प्रतिदिन सहायता सेवा में उपलब्ध होने लगे। जापान और कोरिया जैसे देशों में भी इस प्रकार समाजसेवा में तत्परता कई स्थानों पर दिखाई देती है।
कनाडा हवाई अड्डे के इस दृश्य को देखकर मेरे मन में अपने देश भारत के अनेकों सरकारी विभागों के दृश्य आने लगे और मेरा सारा सफर इन्हीं दृश्यों में खोये हुए अनेकों प्रकार की सहायता सेवाओं की कल्पना में ही लगा रहा। भारत के पुलिस स्टेशनों में पुलिसकर्मियों की संख्या का सदैव अभाव ही रहता है। जिस पुलिस बल को समाज में सुरक्षा और शांति की व्यवस्था संभालनी चाहिए वही पुलिसकर्मी थाने में बैठकर क्लर्कों की तरह कार्य करने के लिए भी मजबूर होते हैं। जब कोई नागरिक पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने आता है तो उसके दुःख-दर्द को हमदर्दी से सुनकर उसे यह बताना कि शिकायत किस तरह से दर्ज करवानी है, इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि कोई जिम्मेदार और सेवाकाल वाला पुलिसकर्मी ही ऐसी चर्चाओं में समय व्यतीत करे। मजबूरी में पुलिस अधिकारी शिकायतकर्ता नागरिकों के साथ टाल-मटोल करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। कभी उसे कोई दस्जावेज़ लाने के लिए कहा जाता है तो कभी उसे शिकायत लिखित में लाने के लिए कहा जाता है। सरकारें यदि इस प्रकार के कार्यों के लिए सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों को सहायता सेवक की तरह आमंत्रित करें तो अनेकों ऐसे अधिकारी अपनी सेवाएँ स्वैच्छिक रूप से प्रस्तुत करने के लिए तैयार हो सकते हैं। सरकार चाहे तो केवल प्रोत्साहन के रूप में उन्हें कुछ राशि भी दे सकती है या उन्हें विशेष अवसरों पर सम्मानित किया जा सकता है। ऐसे सहायता सेवक अधिकारी नागरिकों को शिकायतें दर्ज करवाने में सहायता के साथ-साथ अपराधियों को नैतिकता और सुधारवाद का पाठ पढ़ाने से लेकर पुलिस स्टेशन के कई अन्य लिपिक स्तर के कार्यों को सम्पन्न कर सकते हैं। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी समाज की सुरक्षा, अपराधियों के सुधार और पुलिस कार्यों में आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से सम्बन्धित योजनाओं के निर्माण में भी शामिल किया जा सकता है।
हमारे देश के अस्पतालों में रोगियों की संख्या इतनी अधिक होती है कि डाॅक्टरों, नर्सों तथा अन्य तकनीकी अधिकारियों की सदैव कमी ही बनी रहती है। यदि इन श्रेणियों के सेवानिवृत्त अधिकारियों को भी स्वैच्छिक सहायता सेवा के लिए आमंत्रित किया जाये तो अवश्य ही अनेकों लोग सरकार की इस नई पहल में सहयोग करने के लिए तत्पर हो सकते हैं। इसी प्रकार सरकारी विद्यालयों में अध्यापकों का भी अभाव ही बना रहता है। सेवानिवृत्त अध्यापकों को भी स्वैच्छिक अध्यापन कार्यों के लिए आमंत्रित किया जा सकता है। न्यायालयों में लम्बित करोड़ों मुकदमों पर सुनवाई के लिए न्यायाधीशों की संख्या भी सदैव कम ही दिखाई देती है। प्रत्येक मुकदमें में प्रभावशाली अर्थात् न्यायिक सुनवाई प्रारम्भ होने से पूर्व एक वर्ष से अधिक का समय तो मुकदमें की दस्जावेज़ी कार्यवाही पर ही लग जाता है। जबकि यह सारे दस्जावेज़ी कार्य अर्थात् जवाब और प्रतिजवाब प्रस्तुत करना और सभी पक्षों से दस्तावेज़ प्राप्त करने के कार्य तो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों पर भी छोड़े जाते हैं जो स्वैच्छिक रूप से अपनी सेवाएँ देने के लिए तत्पर हों। इन सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की सेवाएँ तो लोक अदालतों, विरोधी पक्षों में समझौता प्रक्रिया को सम्पन्न करवाने से लेकर निःशुल्क कानूनी सहायता तक के कार्यों में प्राप्त की जा सकती है। इसी प्रकार वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को भी सेवानिवृत्ति के बाद सरकार भिन्न-भिन्न मंत्रालयों में नई-नई योजनाओं के निर्माण तथा सरकारी योजनाओं से जनता को अवगत कराने जैसे कार्यों में सम्मान पूर्वक शामिल किया जा सकता है।
ऐसे सभी सरकारी विभागों में सेवानिवृत्त अधिकारियों के द्वारा स्वैच्छिक सहायता प्रदान करने के अभियान का शुभारम्भ तो केवल सहानुभूति से परिपूर्ण केन्द्रीय नेतृत्व ही कर सकता है। जिस प्रकार हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने पूरी सहानुभूति के साथ भारत के सम्पन्न वर्ग को स्वेच्छा से गैस सब्सिडी त्याग करने का आह्वान किया तो उनकी एक अपील पर देश के एक करोड़ से अधिक सम्पन्न परिवारों ने स्वेच्छा से गैस सब्सिडी का त्याग कर दिखाया। इस एक अपील से एक तरफ सरकार को कई करोड़ों रुपये की बचत हुई तो दूसरी तरफ गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर गैस पहुँचाने का कार्य प्रगति के पथ पर चलता हुआ दिखाई दे रहा है।
सेवानिवृत्ति के बाद प्रत्येक सरकारी अधिकारी को भी मन में देश और देशवासियों के प्रति यह भाव बनाकर रखना चाहिए कि इसी देश के साधनों से मेरे परिवार को पूरे सेवाकाल के दौरान अपार सम्पन्नता प्राप्त हुई है। सेवानिवृत्ति के बाद भी सरकार उन्हें पेंशन के रूप में पारिवारिक सुरक्षा के पर्याप्त साधन उपलब्ध कराती है। दूसरी तरफ सेवानिवृत्ति के बाद जो लोग घर पर विश्राम करने को प्राथमिकता देते हैं उन्हें वृद्धावस्था के रोग भी जल्दी सताने लगते हैं। इसलिए अपने आपको देश और समाज के प्रति सहानुभूति से परिपूर्ण करके ऐसे सभी सेवानिवृत्त लोगों को अपनी-अपनी योग्यतानुसार समाजसेवा कार्यों के लिए तत्परता दिखानी चाहिए। उनका यह कार्य केवल समाजसेवा ही नहीं अपितु राष्ट्रभक्ति के वातावरण को भी स्थापित करने में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।

-अविनाश राय खन्ना, उपसभापति, भारतीय रेड क्रास सोसाईटी

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