अंग्रेजी में एक कहावत है “नो योरसेल्फ एंड बी योरसेल्फ” यानी खुद को जानो और फिर वैसा ही आचरण करो। शायद इसी वाक्य से प्रेरित होकर, लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी खुद को जानने की एक अनंत यात्रा पर निकले हैं। वे अपनी स्वयं की ही खोज में निकले हैं। चूंकि यह कोई छोटा विषय तो है नहीं, इसलिए हर महत्वपूर्ण कार्य की ही तरह इस कार्य को भी वो केवल विशेष मुहूर्तों में ही करते हैं। जी हाँ “मुहूर्त”, अर्थात किसी कार्य की सिद्धि या फिर उसमें सफलता प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय। अगर कार्य का उद्देश्य आध्यत्मिक फल की प्राप्ती होता है तो यह मुहूर्त सनातन धर्म के पंडित से निकलवाया जाता है। लेकिन अगर कार्य का उद्देश्य राजनैतिक फल की प्राप्ति होता है तो इसका मुहूर्त राजनैतिक पंडित निकलते हैं। जिस प्रकार हिन्दू धर्म के पंडित पंचांग से तिथियाँ देखकर सर्वश्रेष्ठ तारीख बताते हैं, उसी प्रकार राजनीति के विशेषज्ञ चुनावी कैलेंडर देखकर कार्यसिद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ तारीख बताते हैं। इसलिए राहुल गांधी की खुद की ही खोज की इस प्रकार की यात्राएं ज्यादातर चुनावों के दिनों में ही शुरू होती हैं और उत्तर मिले या ना मिले चुनावों के साथ ही खत्म भी हो जाती हैं। आगे की खोज के लिए उन्हें अगले चुनावों की तारीख का इंतजार करना पड़ता है।
दरअसल 2014 से पहले उनका जीवन बहुत आराम से बीत रहा था। कहीं कोई दिक्कत नहीं थी। उन्हें अपनी पहचान की कोई दिक्कत नहीं थी, वो खुद को “सेक्युलर” कहते थे और अपनी “सेक्युलर छवि” से पूरी तरह से संतुष्ट थे। उन्हें मीडिया में अपनी मंदिर में माथा टेकते फ़ोटो या फिर जनेऊ दिखाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती थी।
लेकिन 2014 के बाद समय ने करवट ली। जो सेक्युलर छवि कल तक सत्ता की चाबी का पासवर्ड थी आज उसी सत्ता के लिए सबसे बड़ा वायरस बन गई। जब आनन फानन मेंखोज की गई, तो पता चला की इस वायरस को मारने वाला एंटीवायरस केवल एक ही है जिसका नाम है “हिंदुत्व” लेकिन उसकी एक ही कॉपी थी जो पहले से ही किसी और ने अपने नाम कर ली है। अब तुरत फुरत में उस एंटीवायरस का डुप्लीकेट तैयार किया गया, “सॉफ्ट हिंदुत्व”। लेकिन चूंकि यह ओरिजनल न होकर डुप्लिकेट था, इसकी एक समस्या थी। यह केवल साइट पर ही एक्टिवेट होता था। जी हाँ ठीक समझे। इसे प्रभावकारी बनाने के लिए बार बार हिंदुत्व के भाव जगाने वाले मूल स्थान यानी मंदिरों में जाना पड़ता है।
अब शुरू होती है राहुल की वो यात्रा जिसमें वो अपनी एक नई पहचान ढूंढने निकले हैं। जी हाँ यह एक पहचान को गढ़ने से ज्यादा ढूंढना है। क्योंकि कोई भी व्यक्तित्व गढ़ा तब जाता है जब हमारे मन में उसकी स्पष्ट छवि हो। लेकिन राहुल तो अपनी इस यात्रा में रोज रोज नई चीजें सीख कर नए नए रहस्योद्घाटन ही नहीं कर रहे बल्कि अपनी ही नई परम्परायें भी बना रहे हैं।
अभी कुछ ही दिन पहले जब वे एक मंदिर में गए थे और वहाँ के पुजारी ने उनसे उनका गोत्र पूछा था तो वे बता नहीं पाए थे लेकिन अब हाल ही में राजस्थान के पुष्कर मंदिर में जब उनसे उनका गोत्र पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि वे दत्तात्रेय कौल ब्राह्मण हैं। इससे पहले वे खुद को एक जनेऊधारी ब्राह्मण भी बता चुके हैं लेकिन जब गुजरात के सोमनाथ मंदिर में जाते हैं तो अपना नाम गैर हिंदुओं के रजिस्टर में लिखकर आते हैं। खैर, अभी यहां हम केवल उनके गोत्र के विषय पर आते हैं।
दरअसल जब कांग्रेस पार्टी की तरफ से इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्य किये जाते हैं और वो भी छाती ठोक के, तो बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि वे इस देश की जनता को मूर्ख समझ कर उस का अपमान करते हैं। ऐसा लगता है कि ऐसी बातें करके वे देश की जनता को ललकार कर कह रहे हों कि तुम केवल मूर्ख ही नहीं अंधे भी हो क्योंकि तुम वो ही देख पाते हो जो दिखाया जाता है। क्योंकि, तुम यह भी नहीं देख पा रहे कि जो कांग्रेस पार्टी कल तक सोनिया गांधी के नाम की माला जपती थी आज सत्ता के लालच में उन्हीं का अपमान करने से भी नहीं चूक रही। आइए देखते हैं कैसे,
1, गोत्र का चलन केवल भारत में है और वो भी केवल हिंदुओं में
2, गोत्र एक प्रकार की पहचान होती है जो आपके कुल परम्परा, वंश को बताती है
3, वंश परंपरा केवल भारत ही नहीं विश्व के अधिकांश देशों में पिता के नाम से चलती है
4 खुद राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी का असली नाम एंटोनियो “मायनो” है, और उनके पिता का नाम स्टेफेनो “मायनो”
5 राहुल के पिता राजीव की बात करें तो उनके पिता का नाम फिरोज़ जहांगीर गांधी था। कहा जाता है कि वो एक पारसी थे, लेकिन उनकी कब्र प्रयागराज में है इस प्रकार उन्होंने केवल गांधी जी का नाम अपनाया था धर्म नहीं।
6 अब कांग्रेस का कहना है कि राहुल के पिता राजीव गांधी ने अपने पिता का केवल नाम अपनाया था धर्म नहीं, धर्म उन्होंने अपनी माँ इंदिरा का अपनाया था जो उन्हें अपने पिता जवाहरलाल नेहरु से मिला था जो खुद को एक कश्मीरी पंडित कहते थे। यह अलग विषय है कि नेहरु यह भी कहते थे की शिक्षा से मैं एक अंग्रेज हूँ, विचारों से मैं इनटरनेशनलिस्ट हूँ, संस्कारों से एक मुस्लिम हूँ और एक्सीडेंटली एक हिन्दू हूँ।
7, तो अब प्रश्न यह उठता है कि जब राजीव ने अपने पिता का नाम अपनाया था तो अधूरा क्यों अपनाया राजीव गाँधी ,राजीव फिरोज़ जहांगीर गांधी नहीं, क्यों?
8 राजीव ने अपने पिता का अधूरा ही सही गाँधी नाम तो अपना लिया लेकिन उन्होंने अपने पिता का धर्म क्यों नहीं अपनाया? अपनी माँ का धर्म क्यों अपनाया?
9 अब अगर वह गांधी नाम को अपना रहे हैं तो गोत्र से गांधी हट कर नेहरू जी का कश्मीरी ब्राह्मण और दत्तात्रेय कैसे आ गया?
10 वैसे तो गोत्र पिता से आता है माँ से नहीं फिर भी चलों इस परिवार को विशेष परिस्थितियों में माता की ही तरफ से गोत्र बताने दिया जाय, तो भी यह गोत्र तो केवल राजीव गांधी का है राहुल का नहीं क्योंकि राजीव की माँ इंदिरा हैं जो कि नेहरू की बेटी हैं जो कि कश्मीरी पंडित हैं जबकि राहुल की माँ सोनिया है ।
11राहुल अगर माता की तरफ का गोत्र लेंगे तो उनका कोई भी गोत्र कैसे हो सकता है क्योंकि उनकी माँ सोनिया हैं एक ईसाई हैं?
12, अब राहुल जब अपने दत्तात्रेय गोत्र का नाम लेते हैं और उसे ये कांग्रेस माँ की तरफ का कहती है जब कि वो उनकी दादी है, तो क्या ये एक माँ का अपमान नहीं है जिसका आस्तित्व ही ये अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए नकार रहे हैं?
13, लेकिन इन सब से परे एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी है जिसका उत्तर यह देश इस गाँधी परिवार से आज जानना चाहेगा।
आज जो परिवार खुद के एक कश्मीरी पंडित होने की दुहाई दे रहा है उन्होंने 1990 में घाटी के कश्मीरी पंडितों को अकेला क्यों छोड़ दिया था? अगर उस समय इस परिवार ने अपने कर्म से यह जता दिया होता कि वो वाकई में एक जनेयुधारी हिन्दू ब्राह्मण हैं तो आज उस परिवार को अपने जन्म से हिन्दू होने के प्रमाण नहीं देने पढ़ते क्योंकि भारत वो देश है जिसमे जन्म से ज्यादा महत्व कर्म को दिया जाता है
इसलिए अब वक्त आ गया है कि राहुल इस बात की गंभीरता को समझें कि जितनी कांग्रेस को सत्ता की जरूरत है उससे अधिक इस देश के लोकतंत्र को एक समझदार और दमदार विपक्ष की जरूरत है।
इस देश के लोगों को इंतज़ार है एक ऐसे विपक्ष का जो उन्हें देश के भविष्य को संवारने की अपनी स्पष्ट नीतियाँ दिखाए अपना जनेऊ नहीं।
यह देश बेताब है ऐसे विपक्ष को सर आँखों पर बैठाने के लिए जो लोगों के दिलों में अपने काम से उतरने में यकीन रखता हो अपने गोत्र या परदादा या फिर अपनी दादी के नाम के सहारे नहीं।
डॉ नीलम महेंद्र