अनुज अग्रवाल
संपादक
यह कोई आसान काम नहीँ है कि जब देश लम्पट और दलाल राजनेताओं से भरा पड़ा हो , उस माहौल में सेकडों आकर्षणों, षड्यंत्रों और साजिशों के बीच नरेंद्र दामोदर मोदी की पकड़ और छवि देश की जनता, सरकार, संसदीय राजनीति, संघ परिवार और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर उत्तरोत्तर मजबूत होती जा रही है। अपने कार्यकाल के पहले तीन सालों में मोदी को विपक्ष के जितने घटिया, भद्दे और एक तरफा विरोध का सामना करना पड़ा, ऐसा अमूमन कम ही होता है। विमुद्रिकरण, जी एस टी लागू करने और पाक पर लगातार सर्जिकल स्ट्राइक के बीच मोदी नेता से राजनेता और राजनेता से महानायक बनते गए, पता ही नहीँ चला। स्थानीय निकायों, विधानसभाओ विशेषकर उत्तर प्रदेश में विस्मयकारी जीत के बाद तो वे अजेय स्थिति में आ चुके हैं। अगर पार्टी, सरकार और जनता को लेकर मोदी के पिछले तीन वर्षों के कामकाज का आंकलन किया जाए तो हम मोदी को एक बड़े खतरे उठाने वाले, जीवट व्यक्तित्व का ऐसा राजनेता मान सकते हैं जो क्रांतिकारी और राष्ट्रहित के बदलावों के लिए स्वयं की कुर्सी तक दांव पर लगा सकता है।
अगर पार्टी और संघ परिवार के दृष्टिकोण से मोदी का आंकलन करे तो पाएंगे संगठन पर उनका कब्जा हो चुका है और पार्टी का शेष नेतृत्व तेजहीन हो चुका है। पूरा संघ परिवार मोदी की धुन पर नृत्य कर रहा है और जो नहीँ कर रहा वो हाशिये पर है। मोदी ने आंशिक रूप से संघ के दर्शन और चिंतन को धीमे धीमे ही सही सरकार के एजेंडे में घोल दिया है। मोदी की शैली दूरगामी उद्देश्यों के लिए काम करने की है और इस कार्यप्रणाली में व्यक्ति गौड़ है। इसी कारण दस करोड़ सदस्यो के होते हुए भी संगठन का प्रभाव और पकड़ दोनों कमजोर हुई है क्योंकि जनता मोदी से सीधे जुडी है। ऐसे में अब जबकि मोदी का पूर्ण नियंत्रण पार्टी, जनता और सरकार पर हो चुका है, विरोधी पस्त हैं और शीघ्र ही राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद पर उनकी पसंद के व्यक्ति चुने जाने वाले हो, राज्यसभा में उनका बहुमत अगले कुछ महीने में आने जा रहा हो और कुछ और प्रदेशो में भाजपा की सरकार बनने वाली हो तो संघ के एजेंडे पर और पार्टी के घोषणापत्र पर तेजी से काम करना मोदी से अपेक्षित भी है और मोदी की मजबूरी भी। अभी तक विपक्ष की नकारात्मक राजनीति और घोटालॉ व लूट के खुलासों और कार्यवाही के कारण जनता मोदी के साथ खड़ी है किंतु अब योजनाओं को अधिक तेजी से जमीन पर उतारने का समय है और राष्ट्रवाद के साथ ही स्वदेशी के एजेंडे पर अधिक गहराई से काम करना होगा।
मोदी ने जनता से सीधे संवाद और अमीरों से छीन कर गरीबो को देने की रॉबिनहुड वाली छवि बनायी हुई है। उनकी सरकार के अनेक क़दमो से जनता की लूट बंद हुई है, आम उपयोग की वस्तुएं सस्ती हुई हैं और सरकार की योजनाओं का लाभ जनता तक कई गुना अधिक पहुँचने लगा है जिस कारण अधिक कमाई नही बढ़ने के बाद भी लोगो का जीवन सरल हुआ है। किंतु रोजगार बढ़ाने के मुद्दे पर काफी कुछ किया जाना बाकी है। नई शिक्षा नीति लागू न कर पाना मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता है। सच्चाई तो यही है कि कमोबेश आर्थिक नीतियों में नीतिगत रूप से मोदी सरकार यूपीए सरकार के आस पास ही हे, हां उसने सुशासन, पारदर्शिता और क्रोनी केपिटालिस्म से आर्थिक क्षेत्र को मुक्त करने का जो प्रयास किया उससे देश में बाज़ार और उदारवाद के प्रति नयी आस्था जगी है। संघ के मूल दर्शन से मोदी सरकार अभी भी खासी दूर है और अक्सर आंतरिक रूप से संघ के अनुषांगिक संगठनों का विरोध भी मोदी झेलते हैं।अगर मोदी को लंबी पारी खेलनी है तो उन्हें संघ की नीतियों के साथ समन्वय बैठाना ही होगा। देश में निश्चित रूप से ढांचागत क्षेत्र में सुधार आये हैं और उद्योग, व्यापार के साथ ही कृषि के क्षेत्र में सकारात्मक सुधारो का आगाज हुआ है, किंतु आम जनता के दिलो दिमाग पर जिस प्रकार अंग्रेजी और पाश्चात्यता हावी है, वह एक बड़ी चुनौती है। भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ भी जितनी कार्यवाही होनी चाहिए उसका दशांश ही हो रहा है और उसमें भी राजनीतिक फायदे के अनुरूप कार्यवाही की जा रही है। चुनाव सुधार एक बड़ी चुनौती हें और बढ़ता आयात भी। अब जनता को अजेय मोदी से अपेक्षा है कि जब उन्होंने पुराने कचरे और अवरोधों को साफ़ करने का काम कर् ही लिया है तो अब खुलकर भारत परक नीतियों पर द्रुतगामी रूप से कार्य करें।