हाल की मीडिया रिपोर्टों में स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के संबंध में कुछ सवाल उठाये गये हैं। मीडिया रिपोर्टों में भ्रामक तथ्यों को सही साबित करने के लिए राष्ट्रीय सर्वेक्षण की बातों का हवाला दिया गया है और कहीं-कहीं गलत उद्धरण भी दिये गये हैं। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय तथ्यात्मक रुप से गलत और भ्रामक रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों पर सफाई दी है।
दावा: स्वच्छ भारत मिशन आवश्यक रूप से शौचालय के निर्माण तक सीमित कार्यक्रम है और इसके इस्तेमाल पर इसका कोई जोर नहीं है।
तथ्य: स्वच्छ भारत मिशन शुरू करने के तुरंत बाद 2015 में परिभाषित खुले में शौच से मुक्त पद का पैमाना आवश्यक रूप से शौचालय का इस्तेमाल है। जबतक एक गांव के सभी घरों के सभी सदस्य शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते तब तक उस गांव को खुले में शौच से मुक्त गांव घोषित नहीं किया जा सकता है। (ओडीएफ के नवीनतम आंकडें एसबीएम डैशबोर्ड-sbm.gov.in/sbmdashboard/ पर देखे जा सकते हैं)
स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत से अब तक ग्रामीण भारत में स्वच्छता की पहुंच 42 प्रतिशत से 64 प्रतिशत तक हो गयी है। एनएसएसओ द्वारा मई-जून 2015 में कराये गये स्वच्छता की स्थिति पर एक सर्वे में कहा गया है कि जिन लोगों के पास शौचालय है उनमें से 95.6 प्रतिशत लोग उसका इस्तेमाल करते हैं।
दावा: स्वच्छ भारत मिशन के स्वतंत्र निरीक्षण की व्यवस्था नहीं है, जिससे विश्व बैंक की कर्ज राशि का भुगतान नहीं हो पाता है और इस वजह से स्वच्छ भारत मिशन का क्रियान्वयन बुरी तरह प्रभावित है।
तथ्य: दरअसल, स्वच्छ भारत मिशन के निरीक्षण के लिए कई स्वतंत्र जांच व्यवस्था है। एनएसएसओ ने स्वच्छ भारत मिशन की स्थिति का पता लगाने के लिए मई-जून 2015 में एक सर्वे कराया था। भारतीय गुणवत्ता परिषद अभी ऐसा ही एक सर्वेक्षण कर रहा है जिसमें 1 लाख घरों को शामिल किया गया है। इसके अलावा मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्तर पर निरीक्षक गठित किये हैं जो गंगा तट पर बसे गांवों पर खास ध्यान देते हुए खुले में शौच से मुक्त घोषित सभी जिलों को सत्यापित करते हैं। इन सभी उपायों के अलावा विश्व बैंक से कर्ज के हिस्से के रूप में एक स्वतंत्र जांच एजेंसी नियुक्त की गयी है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि विश्व बैंक का कर्ज समझौता स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) को उपलब्ध कुल बजट का एक छोटा सा हिस्सा है। यह सरकार के प्रायोजित कुल बजट का 10 प्रतिशत से भी कम है। यह भी साफ होना चाहिए कि विश्व बैंक का कर्ज कुल बजट में शामिल है। यह कोई अतिरिक्त राशि नहीं है। इसलिए स्वच्छ भारत मिशन की प्रगति पर इसका कोई प्रतिकूल वित्तीय प्रभाव नहीं है।
विश्व बैंक से कर्ज समझौते पर हस्ताक्षर 30 मार्च 2016 को हुआ था न कि 2015 में जैसा कि कुछ रिपोर्ट में दावे किये गये हैं।
दावा: बड़ी संख्या में स्व-घोषित खुले में शौच से मुक्त गावों को अबतक प्रमाणित नहीं किया गया है।
तथ्य: जिला और राज्य स्तर पर जांच की एक बहु-स्तरीय व्यवस्था है। स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के दिशानिर्देशों के अनुसार खुले में शौच से मुक्त घोषित होने के 3 महीने के भीतर गांवों को इस बारे में प्रमाणित करने की व्यवस्था है। खुले में शौच से मुक्त 2 लाख गांवों में से लगभग डेढ़ लाख गांवों को पिछले ही साल खुले में शौच से मुक्त गांव के रूप में प्रमाणित किया गया है। 1 लाख से अधिक गांवों को प्रमाणित किया जा चुका है। मंत्रालय बाकी गांवों को जल्द से जल्द प्रमाणित करने के लिए राज्यों पर विशेष जोर दे रही है। 3 महीने से अधिक दिनों तक खुले में शौच से मुक्त घोषित गांवों को प्रमाणित करने का काम पूरा करना राज्यों को 2017-18 के बाद दूसरी किश्त जारी करने की अब पूर्व शर्त है।
दावा: स्वच्छ भारत मिशन के तहत सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) को नजर अंदाज किया गया है क्योंकि इसका बजट काफी कम है।
तथ्य: आईईसी के जरिए व्यवहार में बदलाव स्वच्छ भारत मिशन की आधारशिला है। राष्ट्र, राज्य और जिला स्तरों पर आईईसी पर खास जोर है। केन्द्र स्वच्छ भारत मिशन के केन्द्रीय बजट का 3 प्रतिशत हिस्सा आईईसी पर खर्च करता है जबकि राज्यों को राज्य और केन्द्र के बजट के 5 प्रतिशत हिस्से को आईईसी पर करना है। मंत्रालय द्वारा जारी हाल के आदेश के अनुसार आईईसी पर तय राशि खर्च करना राज्यों को 2017-18 के बाद दूसरी किश्त जारी करने की अब पूर्व शर्त है।
यह जानना महत्वपूर्ण है कि आईईसी पर राज्यों द्वारा खर्च राशि के अलावा मंत्रालय और राज्य विकास से जुड़े संगठनों को स्वच्छ भारत मिशन से जोड़ते हुए उनके जरिए आईईसी गतिविधियां चलाते हैं जो आईईसी पर सरकारी खर्च के रूप में नहीं दिखता है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पुरानी आदतों में बदलाव आईईसी पर राशि खर्च करने का ही मामला नहीं है बल्कि यह पूरे व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश है।
वीके/एके/एमएम–2056