गंगा की अविरलता की मांग को पूरा कराने के लिए स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने अपने प्राण तक दांव पर लगा दिए। इसी मांग की पूर्ति के लिए युवा साधु गोपालदास आगे आये और अब इस लेख को लिखे जाने के वक्त तक मातृ सदन, हरिद्वार के सन्यासी आत्मबोधानन्द और पुण्यानंद उपवास पर डटे हैं। आखिर क्यों? गंगा के संबंध में आखिर ऐसा क्या लक्ष्य है कि जो अविरलता के बगैर हासिल नहीं किया जा सकता? किसी भी नदी की अविरलता के मायने क्या है? नदी के अविरल होने का लाभ क्या हैं, ख़ासकर गंगा के संदर्भ में?
अविरलता का मायने
अथर्ववेद के तृतीय काण्ड के सूक्त-13 के प्रथम मंत्रानुसार, सदैव भली प्रकार से गतिशील रहने तथा बादलों के ताडि़त होने व बरसने के बाद प्रवाह द्वारा उत्पन्न कल-कल ध्वनि नाद के कारण ही सरिताओं को नदी कहा जाता है- ‘एदद: संप्रयती रहावनदता हते। तस्मादा नद्यो3नाम स्थ ता वो नामानि सिन्धव:।।’’
स्पष्ट है कि यदि प्रवाह गतिशील न हो और उसके बहाव से नाद स्वर उत्पन्न न होता हो तो उसे नदी तो नहीं ही कहा जा सकता। किसी प्रवाह को नदी का नाम देने के लिए अन्य लक्षणों के अलावा, उक्त दो लक्षणों का होना अनिवार्य है। यूं देखें तो गतिशीलता में सातत्य ही अविरलता है। नदी से उसकी अविरलता को छीन लेना, उसे नदी नाम से महरूम कर देना है।
भूलने की बात नहीं कि स्वामी सानंद, हवा और पानी की इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भारत के सर्वाधिक जानकार प्रोफेसरों में से एक थे। वस्तुत: वह तकनीकी और औपचारिक तौर पर प्रशिक्षित पहले भारतीय पर्यावरण इंजीनियर थे। अत: वह जानते थे कि नदी की गतिशीलता, त्रिआयामी होती है। बकौल स्वामी सानंद, ”अविरलता सही मायने में तब मानी जाती है कि जब प्रवाहित जल का संपर्क न लंबाई में टूटे, न चौड़ाई में और न ही गहराई में। अविरलता की यही वैज्ञानिक परिभाषा है। लॉगीट्युडनल, लेटरल और वर्टिकल…तीनों तरह से लो की कन्टीन्युटी बनी रहनी चाहिए। लेटरल में कटाव पक्का नहीं होना चाहिए। तटबंध में पक्की निर्माण सामग्री का प्रयोग नहीं होना चाहिए। टनल में प्रवाह का मिट्टी से संपर्क टूट जाता है। गेट से पानी छोड़ रहे हैं। इससे अविरलता बाधित होती है। अब घाट बनेंगे तो कुछ दूरी तक के लिए लेटरल कन्टीन्युटी टूटेगी। बांध बनेंगे तो भी कन्टीन्युटी टूटेगी।’’
क्यों ज़रूरी अविरल गंगा ?
चूंकि नदी सिर्फ बहता हुआ एच2ओ नहीं होती, नदी की अपनी एक पारिस्थितिकी होती है, जिसका निर्माण करने में कई प्राकृतिक तत्व व गतिविधियां सहभागी होते हैं। नदी और नाले में एक बुनियादी फर्क यह भी होता है। अनोखा बैक्टिरियोफॉज, अप्रतिम जैव विविधता बेहद खास बारीक गाद, कंकर-कंकर में शंकर की उपमा प्राप्त पत्थर, प्रवाह को संजोये रेत, नदी का कटावयुक्त तल और सूरज की रोशनी व हिमालयी हवा – ये आठ ही हैं, जो गंगाजल को ऐसे गुणों से समृद्ध कर देते हैं, जिनके कारण गंगाजल कभी मृत नहीं होता, अमृत रहता है, जिनके कारण गंगाजल को जैविक ऑक्सीजन की मांग नहीं करनी पड़ती, 18 बीमारियों के रोगाणु, गंगाजल के संपर्क में आते ही मर जाते है। ये ही गुण, गंगा को दुनिया की शेष नदियों से भिन्न बनाते हैं। इन्ही गुणों के कारण ही स्वामी सानंद, गंगा को नदियों के लिए तय ‘ए’ श्रेणी से भी ऊपर की नदी मानते थे।
इन्हीं गुणों की रक्षा के लिए कभी गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक हिंदू संतों को बैठाया गया था। उनके जप, तप, संस्कार और सतर्कता के कारण ही गंगा, भौतिक के साथ-साथ आध्यात्मिक महत्व ही पवित्र नदी मानी गई। किंतु आज? आज गंगा मूल में बने बांधों तथा आगे बिजनौर तक बने बैराजों के कारण, गंगा मूल की एक भी बूंद गंगासागर तो क्या, संगम-इलाहाबाद तक भी नहीं पहुंचती। यदि संगम, इलाहाबाद में गंगा का गंगत्व ही नहीं तो फिर काहें का कुंभ और काहें का प्रयागराज!
अविरलता में निहित निर्मलता की शक्ति
गौर करने की बात यह भी है कि यह अविरलता ही है कि जो किसी भी नदी में स्वयं को स्वच्छ कर लेने की क्षमता प्रदान करती है। विज्ञान पर्यावरण केन्द्र के अनुसार, यदि गंगा का प्रवाह बनाये रखा जाता है तो वह कार्बनिक प्रदूषण संबंधी 60 से 80 प्रतिशत समस्या का समाधान तो गंगा खुद ही कर लेगी। विचारणीय प्रश्न है कि यदि इस क्षमता का लोप हो जाये तो कोई मल अथवा अवजल शोधन संयंत्र नदी को साफ बने रहने में कितने प्रतिशत सहयोग कर सकते हैं, ख़ासकर तब, जब गंगा में मिलने वाले अपशिष्ट के शासकीय आंकड़ों की तुलना में वास्तविक अपशिष्ट 123 प्रतिशत अधिक हो? प्रमाण सामने हैं।
क्यों और प्रदूषित होगी गंगा ?
1986 में गंगा कार्य योजना शुरु होने से लेकर अब तक हज़ारों करोड़ खर्च हो चुके हैं, बावजूद इसके वैज्ञानिक आंकलन यह है कि गंगा स्वच्छ होने की बजाय, पहले की तुलना में और अधिक प्रदूषित होने की ओर अग्रसर है। विज्ञान पर्यावरण केन्द्र, नई दिल्ली द्वारा 30 अक्तूबर, 2018 को मीडिया में जारी आंकलन रिपोर्ट के इस निष्कर्ष का आधार, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े हैं। इन आंकड़ों के अनुसार, गंगा हेतु स्थापित 70 निगरानी केन्द्रों में से मात्र पांच स्थानों पर पानी पीने योग्य तथा सात स्थानों पर स्नान योग्य पाया है। 100 मिलीलीटर में 2500 फेकल कॉलीफॉर्म के मानक की तुलना में गंगा जल में फेकल कॉलीफॉर्म का स्तर 24,000 फेकल कॉलीफॉर्म प्रति 100 मिलीलीटर के स्तर तक पहुंच गया है।
आंकलन है कि अब तक गंगा किनारे के 99.33 प्रतिशत यानी 4000 गांवों मे 27 लाख शौचालय बनाये जा चुके हैं। गंगा किनारे के सभी राज्यों के खुले में शौच मुक्त होने के बाद प्रतिदिन 1800 लाख लीटर मल कचरा गंगा में जायेगा। रिपोर्ट में पेश यह तथ्य किसी के लिए बहस का विषय हो सकता है कि सीवेज की तुलना में इस तरह आया मल-कचरा 100 गुना अधिक जैव-ऑक्सीजन की मांग करता है, लेकिन यह निष्कर्ष गारंटीशुदा है कि खुले में शौच मुक्ति से गंगा और अधिक प्रदूषित होगी।
मैंने अपने कई लेखों के माध्यम से बार-बार चेताया कि नगरों और नगरीकृत गांवों को छोड़कर अन्यत्र घर-घर शौचालय की जि़द्द, एक दिन हमारे भूजल और सतही जल प्रवाहों को प्रदूषित करने वाली साबित होगी। नीरी, हैदराबाद के अध्ययन के बाद अब विज्ञान पर्यावरण केन्द्र के आंकलन ने इसे प्रमाणित कर दिया है।
अविरलता बगैर असंभव 2020 का निर्मलता लक्ष्य
नमामि गंगे परियोजनाओं की स्थिति यह है कि अगस्त, 2018 तक कुल मंज़ूर परियोजनाओं में एक चौथाई से मामूली अधिक परियोजनायें ही अभी पूरी हुई हैं। नमामि गंगे का लक्ष्य, 2,000 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) सीवेज शोधन क्षमता हासिल करने का है। अभी वह मात्र 328 एमएलडी सीवेज शोधन क्षमता ही हासिल कर सकी है। विरोधाभासी चित्र यह है कि इस ज़मीनी हक़ीकत के बावजू़द हमारे नेता झूठ बोलने से बाज नहीं आ रहे। वे गंगा निर्मलता हासिल करने की लक्ष्य तिथि वर्ष-2020 बता रहे हैं। जबकि सत्य यही है कि अविरलता प्रदान किए बगैऱ, सौ फीसदी निर्मलता सुनिश्चित करना कभी भी संभव नहीं होगा। गंगा की हालत यह है कि गंगा का मौलिक प्रवाह वर्ष 1970 की तुलना में 2016 में 44 फीसदी घट गया है। उत्तराखण्ड में चारधाम तक बड़ी गाडिय़ां दौड़ाने के लिए बनाया जा रहा ऑल वेदर रोड गंगा और उसे समृद्ध करने वाले झरनों तथा दर तों को घटायेगा।
स्वामी सानंद की अविरल सीढिय़ां
इन वैज्ञानिक और व्यावहारिक तथ्यों को जानते हुए ही स्वामी सानंद ने निर्मलता संबंधी अन्य उपायों को लेकर कोई मांग करने की बजाय, गंगा की अविरलता सुनिश्चित करने की मांग की थी। इस मांग की पूर्ति के लिए, उन्होंने रणनीतिक तौर पर छोटे-छोटे लक्ष्य बनाये।
गौर करने की बात है कि भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, नंदाकिनी, पिंडर नामक पांच प्रमुख नदियों के संगम के पश्चात् जो प्रवाह बनता है, उसे गंगा नाम दिया गया है। स्वामी सानंद से सर्वप्रथम भागीरथी के गोमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथी प्रवाह मार्ग के दोनों ओर एक-एक किलोमीटर तक नदी विरोधी गतिविधियों पर रोक हेतु इसे पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील घोषित करने की मांग की। मनमोहन सिंह सरकार ने वह मांग पूरी की। किंतु सरकार द्वारा मांग से अधिक यानी गोमुख से उत्तरकाशी तक की पूरी भागीरथी घाटी को ही पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित कर दिया। बकौल स्वामी सानंद, इसलिए स्थानीय समुदाय द्वारा इसका विरोध हुआ।
खैर, इस मांग की पूर्ति होने पर उन्होंने अलकनंदा और मंदाकिनी को लक्ष्य बनाया और उनके संरक्षण हेतु पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित कराने को लक्ष्य बनाया। स्वामी यदि लंबे समय तक जि़ंदा रहते तो वह निश्चित ही गोमुख से आये समस्त जल को बदायूं से पहले ही निकालकर ले जाने वाली नहर परियोजनाओं में सुधार को भी अपना लक्ष्य बनाते। वह ‘रिवर फ्रंट डेवलपमेंट’ के नाम पर चल रहे खेल का भी विरोध करते।
बांध-बैराजों के डिज़ाइन में बदलाव का विकल्प
स्वामी सानंद की मांग को अव्यावहारिक बताने वालों के लिए गौर करने की बात यह है कि उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि वह बांध विरोधी हैं। उन्होंने कभी नहीं कहा कि कार्यरत बांधों को ढहा दो। उन्होंने सदैव कहा कि इंजीनियरिंग में हमेशा विकल्प होते हैं। स्वामी सानंद ने बांधों के डिज़ाइन में बदलाव का विकल्प दिया था। हां, वह गंगा मूल की धाराओं में अब और नये बांध नहीं चाहते थे।
सरकार के लिए क्या मुश्किल थी? यदि निजी परियोजना मालिक आर्थिक वजह से इसके लिए तैयार नहीं होते तो सरकार सर्वदलीय सहमति बनाकर नमामि गंगे के अंतर्गत बहाए जा रहे 20,000 करोड़ रुपए में से कुछ हज़ार करोड़ डिज़ाइनों के बदलाव के काम में लगा देती। निर्मलता के नाम पर हो रहे भ्रष्टाचार की तुलना में क्या यह बेहतर नहीं होता? किंतु सरकार ने यह नहीं किया।
ई-अधिसूचना और क़ानून के प्रारूप से क्यों असहमत थे सानंद ?
गंगा मंत्री श्री नितिन गडकरी ने अक्तूबर, 2018 में जारी अधिसूचना और गंगा क़ानून के प्रस्तावित प्रारूप को सामने रखकर कहा कि हमने स्वामी सानंद की 80 प्रतिशत मांगें मान ली हैं। बकौल जलपुरुष राजेन्द्र सिंह, ”गंगा क़ानून का प्रस्तावित प्रारूप, व्यक्तिगत स्तर पर किए गए प्रदूषण पर स ती और उद्योग एवम् अन्य संस्थागत स्तर पर किए जाने वाले ख़तरनाक प्रदूषण को ‘प्रदूषण नियंत्रण में है’ का प्रमाणपत्र लेकर प्रदूषण करते रहने का वैधानिक रास्ता खोलता है। गंगा बेसिन के सभी 11 राज्यों पर लागू होकर यह क़ानून, मल-शोधन के नाम पर चल रहे धंधे का भी मार्ग प्रशस्त करेगा।’’ स्वामी सानंद ने भी इस प्रारूप को अस्वीकार और गंगा महासभा द्वारा वर्ष 2012 में प्रस्तावित प्रारूप के आधार पर गंगा क़ानून बनाने की मांग की थी।
पर्यावरणीय प्रवाह संबंधी अधिसूचना की बात करें तो जारी अधिसूचना, बारिश के उन महीनों में जब गंगा में खुद ही पर्याप्त पानी होता है, उस वक्त बांधों-बैराजों द्वारा उनमें आने वाले कुल प्रवाह का 30 प्रतिशत, मध्य काल में 25 प्रतिशत और गर्मी के उन महीनों में जब नदी में सबसे कम जल रहता है, उस अवधि में सबसे कम यानी 20 प्रतिशत पानी छोडऩे की बात करती है। इस अधिसूचना से बारिश के मौसम में गंगा में बाढ़ का वेग और उससे तबाही ज़्यादा होगी अथवा निर्मलता? कोई साधारण इंसान भी यह समझ सकता है कि यह नदी की ज़रूरत के उलट अधिसूचना है। स्वामी सानंद इस अधिसूचना से पूरी तरह असहमत थे।
सरकारों के इस उलट रवैये को देखते हुए ही स्वामी सानंद ने अपनी मृत्यु से कुछ मिनट पूर्व रिकॉर्ड किए गए अपने अंतिम वीडियो वक्तव्य में कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा पूर्व में गठित आठ आई.आई.टी. समुदाय द्वारा 10 स्थानों हेतु की गणनानुसार 50 प्रतिशत न्यूनतम प्रवाह क्रियान्वित हो। उन्होंने यह भी कहा, ”इसके क्रियान्वयन की जि़ मेदारी भी गंगा भक्त और जि़ मेदार लोगों को सौंपी जाए, न कि सरकारी टुकडख़ोरों पर।’’
वक्त की मांग
वक्त की मांग यह है कि हम दुनिया की एक बड़ी आबादी की उदरपूर्ति करने वाले गंगा के मैदान को निर्मित, स्वस्थ और समृद्ध करने में गंगा की भूमिका के साथ-साथ गंगा के अध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व की अनदेखी न करें। मैं तो कहूंगा कि गंगा पर निर्माणाधीन तथा मंजूर नये बांध ही नहीं, नमामि गंगे की भी सभी परियोजनाएं स्थगित कर दी जायें। पहले अविरलता सुनिश्चित करें; तत्पश्चात् शेष आवश्यकतानुसार परियोजनायें तय, मंजूर और क्रियान्वित हों।
क्या स्वयं को गंगा मां के आमत्रंण पर वाराणसी आया उ मीदवार बताकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे माननीय मोदी जी यह करेंगे? यदि नहीं, तो गंगा भक्त यह कैसे सुनिश्चित करेंगे, वे तय करें।
अरुण तिवारी