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हम पढ़े लिखे ढक्कन – #AnujAgarwal

जी, यह सच है। शायद हमें अंदाज़ ही नही की हम अपनी कमाई का 30 से 50% तक अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा और रोजगार के चक्कर मे हर माह खर्च करते जा रहे हैं। लुटेरी नोकरशाही और लंपट नेताओ के गठजोड़ ने हम लोगों को रोज लूटने ओर लूटते रहने के खेल जो खेल रखे हैं। क्या आप जानते हैं कि देश के प्रत्येक राज्य में दो तिहाई से लेकर अस्सी प्रतिशत तक बच्चों की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा ऐसे विद्यालयों में होती है जो गैर मान्यता प्राप्त हैं। देश के हर जिले में बेसिक शिक्षा अधिकारी से जिला विद्यालय निरीक्षक तक सारा शिक्षा विभाग जानबूझकर अधिकांश निजी विद्यालयों को मान्यता नहीं देता। पहले उन्हें अपराधी ठहराया जाता है और उसके बाद उनसे अवैध वसूली तो होती ही है साथ ही उनके विद्यालयों में प्रवेश लिए बच्चों का प्रवेश पंजीकरण सरकारी विद्यालयों ओर मान्यता प्राप्त निजी विद्यालयों में दिखाया जाता है। यद्धपि वे बच्चे कभी भी इन विद्यालयों में पढ़ने नहीं आते। अब शुरू होता है लूट का बड़ा सिलसिला। सरकारी आंकड़ों में विद्यालय में वास्तविक प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों से कई गुनी संख्या दिखने लगती है। अब स्कूल विद्यालय के भवन, ढांचागत सुविधाओ, विद्यार्थियों के लिए ड्रेस, छात्रवृति, दोपहर के भोजन, अध्यापको ओर कर्मचारियों की भर्ती झूठे आंकड़ो के अनुरूप होने लगती है और राज्य सरकार का शिक्षा का बजट कई गुना तक बढ़ जाता है। जिसकी पूर्ति के लिए वो टैक्स की दरें बढ़ाती जाती है और प्रदेश की जनता लुटती रहती है। यानि हम और आप बाज़ारू स्कूलों में अपने बच्चे को पढ़ाने की ऊंची कीमत तो दे ही रहे हैं, साथ ही शिक्षा माफिया जिसमें सभी राज्य सरकारें शामिल हैं कि लूट का शिकार भी हो रहें हैं। डायलॉग इंडिया ने जब सभी राज्य सरकारों के बजट का विश्लेषण किया तो यह लूट दस लाख करोड़ सालाना से भी ज्यादा की है। इस कारण देश का आम मध्यम वर्गीय परिवार और गरीब जनता बैल ओर गधे की तरह जुतती रहती है और हरामखोर लूटेरों का सिंडिकेट अय्याशी करता रहता है हमारी आपकी गाढ़ी कमाई पर।

जरा गौर कीजिए अपने आस पास, हमारे आपके परिवार का या फिर रिश्तेदार या पड़ोसी शिक्षा के व्यवसाय से जुड़ा है किंतु इस घपले पर मौन है। कोई आवाज ही नहीं सुनाई देती विरोध की। यह ढक्कन,कायर ओर नपुंसक बनाने वाली शिक्षा हम क्यों ले रहे हैं? एक बार जरूर सोचें। सच्चाई यह भी है कि देश में स्कूली शिक्षा की इसी दशा के कारण 90% स्नातक किसी काम के नहीं। उनकी डिग्री रद्दी के समान है। और देश मे अधिकांश भर्तियों यानि नोकरी पाने के लिए हम ओर आप लाखो रुपयों की रिश्वत देते हैं। व्यापार और उद्योग करते हैं तो हर कदम पर सरकारी अमला हमें लुटता है।

कारण स्पष्ट है। हम दबते ओर समझौता करते जाते हैं। हम विरोध नहीं करते। आवाज नही उठाते। अगर प्राथमिक ओर माध्यमिक शिक्षा सही प्रकार से हमारे बच्चों को मिले तो देश मे क्रांतिकारी बदलाब आ जाएंगे। मुगलों ओर अंग्रेजो ने हमारी हज़ारों साल पुरानी गुरुकुल शिक्षा पद्धति को नष्ट कर हमें बाज़ारू शिक्षा की ओर धकेल दिया और परिणामस्वरूप हम एक दब्बू,पिछलग्गू और कायर देश मे बदलते गए। पहले गुरुकुल पद्धति में शिक्षा समाज की जिम्मेदारी होती थी और शिष्य शिक्षा पूरी होने के बाद गुरु को गुरुदक्षिणा देता था और अब गुरु गुरुघंटाल बन चुका है।

मौलिक भारत की ओर से मैंने अभी कुछ समय पूर्व नोयडा के सांसद डॉ महेश शर्माजी द्वारा आयोजित जनसुनवाई में इस बीमारी को ठीक करने की मांग की थी। सुखद है दैनिक जागरण अखबार ने इसे मुहिम बना लिया है। राज्य सरकार ने भी मुफ्त की तनख्वाह ले रहे हज़ारों अध्यापकों को अन्य कार्यो में समायोजित करना शुरू किया है। किंतु एक बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक ओर दोषियों को दंड की प्रक्रिया के शुरू होने का इंतज़ार है। सस्ती या निशुल्क शिक्षा हमारा संवैधानिक अधिकार है। हमारा जीवन सरल और तनाव मुक्त हो यह कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की नींव है। मौलिक भारत के निर्माण के लिए हमें शिक्षा को व्यापार से मुक्त करने के लिए दृढ़ संकल्प लेना ही होगा।

अनुज अग्रवाल

संपादक, डायलॉग इंडिया

महासचिव, मौलिक भारत

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