हिंदू पर्व दिवाली से कैसे जुड़ी पूरी दुनिया
आर.के. सिन्हा
भारत से हजारों किलोमीटर दूर बसे भारतवंशी और भारत में रहने वाले करोड़ों गैर-हिन्दू भी प्रकाशोत्सव से अपने को जोड़ते हैं। दिवाली हिन्दू पर्व होते हुए अपने आप में व्यापक अर्थ लिए हैं। यह तो अंधकार से प्रकाश की तरफ लेकर जाने वाला त्योहार है। अंधकार व्यापक है, रोशनी की अपेक्षा। क्योंकि अंधेरा अधिक काल तक व्याप्त रहता है, अधिक समय तक रहता है। दिन के पीछे भी अंधेरा है, रात का। दिन के आगे भी अंधेरा है, रात का। भारत से बाहर बसे करीब ढाई करोड़ भारतीय मूल के लोग संसार के अलग-अलग देशों में प्रकाश पर्व को मनाते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन 24 अक्टूबर को व्हाइट हाउस में दीपावली मनाएंगे, जबकि उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप की अपने फ्लोरिडा स्थित मार-ए-लागो रिजॉर्ट में 21 अक्टूबर को यह त्योहार मनाने की योजना है। बाइडन की भारतीय अमेरिकी समुदाय के प्रतिष्ठित सदस्यों और उनके प्रशासन के सदस्यों के साथ दीपावली मनाने की योजना है। प्रथम महिला जिल बाइडन भी 24 अक्टूबर को व्हाइट हाउस में होने वाले इस उत्सव में शामिल होंगी। इस बीच, रिपब्लिकन हिंदू गठबंधन (आरएचसी) ने मंगलवार को घोषणा की कि ट्रंप अपनी पार्टी के सदस्यों और भारतीय-अमेरिकी समुदाय के नेताओं के साथ 21 अक्टूबर को अपने मार-ए-लागो रिजॉर्ट में दीपावली मनाएंगे। हिन्दू मां की बेटी अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने पिछले साल दीपावली मना रहे दुनियाभर के लोगों और सभी अमेरिकियों को दीपों के उत्सव की बधाई दी थी। उन्होंने कहा, ‘‘यह उत्सव हमें अपने देश के सबसे पवित्र मूल्यों, परिवार और दोस्तों के प्यार के लिए हमारे आभार, जरूरतमंद लोगों के प्रति मदद का हाथ बढ़ाने की हमारी जिम्मेदारी और अंधेरे पर रोशनी को चुनने की हमारी ताकत, ज्ञान और बुद्धिमत्ता की तलाश, अच्छाई और अनुग्रह का स्रोत बने रहने की याद दिलाता है। हमारे परिवार की ओर से मैं आप सभी को दिवाली की शुभकामनाएं देती हूं।’’ अभी मैं सिंगापुर गया था I पूरा सिंगापुर इस तरह से सजाया गया है जैसे कि चाइनीज नव वर्ष पर सजाते हैंI पूछने पर पता चला कि दीपावली पर पूरे शहर को सजाने का काम सिंगापुर की सरकार द्वारा किया जाता है I
इस बीच, कैरिबियाई टापू देशों जैसे त्रिनिडाड-टोबेगो तथा गुयाना में भारतवंशी बहुत उत्साह और प्रेम के साथ मनाते हैं दीपोत्सव। इनमें त्योहारों का अंत होता दिवाली मनाकर। इससे पहले गणेश पूजा, पितृपक्ष, नवरात्रि और रामलीला मनाई जाती है। त्रिनिडाड-टोबैगो के राजधानी के वसंत विहार में स्थित हाई कमीशन में हर बार दिवाली परम्परागत और उत्साह से मनाई जाती है। कुछ साल पहले तक यहां त्रिनिडाड- टोबैगो के हाई कमिश्नर पंडित मणिदेव प्रसाद खुद दिवाली पर हाई कमीशन परिसर के बाहर रंगोली बनवाते हुए मिल जाते थे। गयाना, मारीशस, फीजी, सूरीनाम में दिवाली भव्य तरीके से मनाई जाती है। उनके भारत की राजधानी स्थित हाई कमीशन में काम करने वाले भारतवंशी राजनयिक भी दिवाली भारतीय परंपराओं और संस्कारों के अनुसार मनाते हैं। इनके पूर्वज 150 साल से भी पहले सात समंदर पार चले गए थे। त्रिनिडाड- टोबैगो नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक वी.एस. नायपाल ने भी एक दिवाली राजधानी में मनाई थी। वे तब त्रिनिडाड- टोबैगो हाई कमीशन में आयोजिक कार्यक्रम में उपस्थित भी रहे थे। वे वहां उपस्थित अतिथियों को बता रहे थे कि उन्हें अपनी पहली भारत यात्रा के दौरान यहां पर दिवाली की रात का नजारा देखकर आश्चर्य हुआ था। कारण यह था कि मुंबई में लोग घरों के बाहर आलोक सज्जा बिजली के बल्बों से कर रहे थे, जबकि उनके देश में आज के दिन भी दिवाली पर मिट्टी के दीयों में तेल डालकर आलोक सज्जा करने की परम्परा खूब है। वी.एस.नायपाल पहली बार 1961 में मुंबई में आए थे। संयोग से उस दिन दिवाली थी।
मारीशस को लघु भारत कहा जाता है। इसकी दिल्ली में स्थित एंबेसी में दिवाली, दिवाली से एक दिन पहले पूजन और रोशनी की जाएगी। यहां से प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ की तरफ से राजधानी के एक मल्होत्रा परिवार को दिवाली पर मिठाई के डिब्बे और लक्ष्मी पूजा की सामग्री पहुंचाई जाती है। प्रविंद जगन्नाथ की बड़ी बहन शालिनी जगन्नाथ मल्होत्रा का विवाह करोल बाग में रहने वाले एक मल्होत्रा परिवार के सुपुत्र डॉ.कृष्ण मल्होत्रा से 1983 में हुआ था। तब ही से मारीशस एँबेसी का मल्होत्रा परिवार से संबंध बन गया था। एक और लघु भारत सूरीनाम में कुछ साल पहले भारतवंशी और भोजपुरी भाषी चंद्रिका प्रसाद संतोखी राष्ट्रपति चुने गये थे। सूरीनाम के राजधानी दिल्ली स्थित हाई कमीशन की बिल्डिंग में भी दिवाली बड़े ही उत्साहपूर्वक तरीके से मनाया जाता है। नेपाल में दिवाली पर बिल्कुल भारत जैसा ही माहौल बन जाता है। यहां भी घरों को सजाने, एक दूसरे को उपहार देने और देवी लक्ष्मी की पूजा करने की प्रथा है जो कि बिल्कुल भारत जैसी ही है।
अगर हम बात अपने भारत की करें तो दीपोत्सव को ईसाई भी धूम-धाम से मनाते हैं। दीपोत्सव पर राजधानी के ब्रदर्स हाउस में रहने वाले अविवाहित पादरी भी दीये जलाएंगे। यहां पर छह अविवाहित पादरी रहते हैं। इनका कहना है कि दिवाली और क्रिसमस जैसे पर्व अब धर्म की दीवारों को लांघ चुके हैं। इन्हें सब मनाते हैं। दिवाली तो अंधकार पर प्रकाश की विजय दर्शाता है। ब्रदर्स हाउस में विवाहित पादरियों को रहने के लिये स्पेस नहीं मिलता। दरअसल भारत में ब्रदरहुड ऑफ दि एसेंनडेंड क्राइस्ट की स्थापना सन 1877 में हुई थी। इस संस्था का संबंध कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से है। इन्होंने ही राजधानी में सेंट स्टीफंस कॉलेज और सेंट स्टीफंस अस्पताल की स्थापना की। इन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ठोस कार्य किया है। चूंकि ये सब पादरी ब्रदरहुड ऑफ दि एसेंनडेंड क्राइस्ट से संबंध रखते है, इसलिये इन्हें ब्रदर भी कहा जाता है। यहां पर रहने वाले पादरी मानते हैं कि रोशनी के इस पर्व को खुशियों का पर्व भी कहा सकता है। दीपावली के आने से पहले ही सारे माहौल में प्रसन्नता छा जाती है। दीपावली पर्व के दौरान धन की अनावश्यक बर्बादी को रोककर राशि का प्रयोजन पुरुषार्थ और परमार्थ के सद्प्रयोजनों में कर आने वाली पीढ़ी को हम यज्ञमय जीवन की सौगात दे सकते हैं।
यूं तो यहूदी धर्म को इजराईल के साथ जोड़कर देखा जाता है। पर भारत के मुंबई, केरल, दिल्ली वगैरह में बसे हुए यहूदी दिवाली को धूमधाम से मनाते हैं। राजधानी का एकमात्र जूदेह हयम सिनगॉग है। यहां दिवाली से एक दिन पहले दीये जलाने की व्यवस्था होगी। यह सारे उत्तर भारत में यहुदियों की एकमात्र सिनगॉग है। इसके रेब्बी एजिकिल आइजेक मालेकर दिवाली से पहले सिनगॉग के बाहर दीये जलाते हैं। दिवाली पर जब अंधेरा घना होने लगेगा तो वे दीये जलाकर प्रकाश करेंगे। भारत के यहूदी कहते हैं कि वे भारत में रहकर आलोक पर्व से कैसे दूर जा सकते हैं। हम यहूदी हैं,पर हैं तो इसी भारत के।
भारत के लाखों मुसलमान भी दिवाली को अपने तरीके से मनाते हैं। वे दिवाली पर अपने घरों- दफ्तरों की सफाई करने के अलावा चिराग जलाते हैं। राजधानी के इमाम हाउस में चिराग जलाने की परंपरा है। इस मस्जिद के इमाम मौलाना उमेर इलियासी कहते हैं कि दीपावली का पर्व हमें अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की प्रेरणा देता है। दीप प्रज्ज्वलित कर अंधकार को मिटाकर प्रकाशमान वातावरण का निर्माण किया जाता रहा है। दरअसल भारत में रहने वाला कौन इंसान होगा जो दिवाली से दूर रह पाता होगा। यह असंभव है। दिवाली प्रेम-भाईचारे और अपने को अंधकार से प्रकाश की तरफ लेकर जाने का पर्व है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)