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हिन्दू शौर्य दिवस

11 अगस्त 1757, यह मुगलो की अंतिम सुबह थी इसके बाद सल्तनत ने ना सूर्योदय देखा न ही सूर्यास्त। लाल किले में भयंकर चिंता पसरी हुई थी मुगलो का वजीर ईमाद उल मुल्क पेशवा की शरण मे पुणे जा चुका था और पेशवा ने 30 हजार मराठो की फौज अपने भाई राघोबा के नेतृत्व में दिल्ली भेज दी।
राघोबा ने लाल किले को घेरकर आग के गोले बरसाने शुरू कर दिए और लाहौर दरवाजे को ध्वस्त कर दिया। दूसरी ओर मल्हार राव होल्कर ने भी लाल किले की मजबूती को खत्म कर दिया और देखते ही देखते मराठा सेना दिल्ली में प्रवेश कर गयी।
राघोबा ने सभी मराठो में जोश भरते समय छत्रपति संभाजी महाराज के साथ की गयी ज्यादती याद दिला दी थी। जिसके कारण मराठा सैनिक बहुत गुस्से में थे और क्रूर हो चुके थे, दिल्ली में प्रवेश करते ही लूट का एक भयंकर बवंडर मच गया। दिल्ली बाहर से खूबसूरत थी मगर अंदर से पांडवों की नगरी नही बल्कि अफगानिस्तान का इलाका जान पड़ती थी।
राघोबा दादा जैसे ही दीवान ए खास में पहुँचे बादशाह ने अपना ताज उतार दिया पर राघोबा ने उसे दोबारा तख्त पर बैठने का इशारा किया। राघोबा ने अंताजी मानकेश्वर को दिल्ली का गवर्नर नियुक्त किया मुगलो से सभी राजशक्तियाँ लेकर अंताजी मानकेश्वर को दे दी, इस तरह दिल्ली को इस्लामिक शासन से मुक्ति मिल गयी।
सभी मुगल सूबेदारों की जागीरे जब्त की गई तथा उनका धन आगे के मराठा अभियानों के लिये छीन लिया गया। 1761 में पानीपत का युद्ध हुआ और अंताजी मानकेश्वर वीरगति को प्राप्त हुए इसलिए तत्कालीन पेशवा माधवराव ने दिल्ली की बागडोर अपने सूबेदार और ग्वालियर के महाराज महादजी सिंधिया को दे दी।
महादजी ने दिल्ली में पेशवा माधवराव के नाम से सिक्के चलवाये तथा उनके काल मे कई मंदिरो, गुरुद्वारो और गुरुकुलों का निर्माण हुआ। सिंधिया ने लाल किले की सभी बहुमूल्य वस्तुएं अपने अधिकार में लेकर उन्हें प्रजा के लिए खर्च किया तथा बादशाह का मुकुट भी बेच दिया। मुगल बादशाह अब सिंधिया का गुलाम था और लाल किला उस गुलाम का एक बड़ा सा मकान।
पानीपत में भारत के मुसलमानो ने अफगानों का साथ दिया था इसलिए मराठो ने उन्हें दौड़ा दौड़ा कर मारा, सिखों को भी संदेश भेज दिया कि कोई मुसलमानो को शरण ना दे। मराठो ने दिल्ली की पूरी जनसांख्यिकी बदल दी, महादजी सिंधिया ने दिल्ली में हिन्दुओ और सिखों को नौकरी तथा व्यापार के लिये प्रेरित किया। इस तरह अब दिल्ली स्वतंत्र थी, सिंधिया तथा पेशवा के नियंत्रण में थी और मुगल बादशाह मात्र पेंशन भोगी था।
1803 में द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध हुआ जिसमे मराठे पराजित हुए और दिल्ली ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में चली गयी। 1757 से 1857 तक जितने भी बादशाह रहे उनका आदेश मात्र चार नौकरों पर ही चलता था दिल्ली पर नही। 1857 की क्रांति में सैनिको ने बहादुर शाह जफर को नेता चुना था मगर कंपनी बहादुर ने जफर को गिरफ्तार करके रंगून भेज दिया। उनके मात्र दो पुत्र जीवित थे और बंगाल में थे।
मराठो के बाद जब दिल्ली अंग्रेजो के हाथ आयी तो अंग्रेजो ने व्यापक परिवर्तन किए जैसे लाल किले के बेगम बाग को क्वीन्स गार्डन कर दिया, हरम को सैनिको के कमरे में बदल दिया और अंदर की मस्जिदों और कई इमारतों को तोड़कर क्रिकेट खेलने की जगह बना ली।
1947 में देश आजाद हो गया, मुगल वंशजो ने दोबारा दिल्ली आकर अपना अधिकार मांगने का प्रयास किया लेकिन अब ये महंगी दिल्ली थी, इतनी महंगी कि जब मुगल दोबारा लौटे तो उन्हें फुटपाथ पर सोना पड़ा। जो लाल किला कभी उनका मकान था उसके बाहर उन्होंने तांगे चलाये।
कहा जाता है 1971 में एक मुगल वंशज ने श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री आवास पर दस्तख दी थी। श्रीमती गांधी के चौकीदार ने उसे मारकर भगा दिया था और आज वे एक झोपड़ी में अपना गुजारा कर रहे है। पहले उन्हें पेंशन मिलती थी पर बंगाल में कम्युनिस्ट शासन आते ही रोक दी गयी और आज वे कबाड़ी का काम करके जीवनयापन करते है।
कुल मिलाकर 11 अगस्त 1757 एक ऐसा दिन था जिसने भारतीय इतिहास में मुगलो को ठीक वैसे डूबा दिया जैसे जहाज समुंदर में डूब जाता है।
आगरा किले में औरंगजेब के सामने छत्रपति शिवाजी महाराज ने प्रतिज्ञा ली थी कि वे मुगलो को जड़ से उखाड़ देंगे और हिन्दू स्वराज्य की पुनः स्थापना करेंगे उनकी मृत्यु के 77 वर्ष बाद उनका यह सपना पेशवा बालाजीराव और रघुनाथ राव ने साकार किया।
*हिन्दू शौर्य दिवस की शुभकामनाएं।*
साभार

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