प्रति वर्ष 70 लाख से अधिक लोग तम्बाकू के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं. ज़रा ध्यान से सोचें: हर तम्बाकू जनित रोग से बचा जा सकता है और हर तम्बाकू जनित असामयिक मृत्यु को टाला जा सकता है। तम्बाकू उद्योग ने यह जानते हुए भी कि उनका उत्पाद जानलेवा है, न केवल अपने बाज़ार को बढ़ाया बल्कि विश्वभर में पर्वतनुमा तम्बाकू महामारी को भी अंजाम दिया।
विश्व में 70% मौतें ग़ैर संक्रामक रोगों के कारण होती हैं। और तम्बाकू ग़ैर संक्रामक रोगों- जैसे कि हृदय रोग, पक्षाघात, कैंसर, डायबिटीज या मधुमेह, अस्थमा या दमा, श्वास सम्बंधित दीर्घकालिक रोग, आदि- का ख़तरा अनेक गुणा बढ़ाता है । स्वास्थ्य सुरक्षा का सपना सिर्फ़ तम्बाकू रहित दुनिया में ही पूरा हो सकता है, कहना है वरिष्ठ सर्जन प्रोफ़ेसर डॉ रमा कांत का।
तम्बाकू से सिर्फ़ स्वास्थ्य ही कुप्रभावित नहीं होता
तम्बाकू से सिर्फ़ स्वास्थ्य ही कुप्रभावित नहीं होता बल्कि सतत विकास के अनेक पहलू कुंठित होते हैं। इसीलिए 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने “सतत विकास के किए तम्बाकू एक ख़तरा है” केंद्रित अभियान सक्रिय किया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, तम्बाकू सेवन बंद करने से न केवल जानलेवा रोगों के दर में बड़ी गिरावट आएगी बल्कि ग़रीबी उन्मूलन और पर्यावरण संरक्षण के प्रयास भी अधिक प्रभावकारी होंगे।
डॉ मार्ग्रेट चैन ने, जब वे विश्व स्वास्थ्य संगठन की महानिदेशक थीं, कहा था कि तम्बाकू के कारण ग़रीबी बढ़ती है, आर्थिक विकास और उत्पाद शिथिल होता है, लोग मज़बूर होते हैं हानिकारक और कुपोषित भोजन ग्रहण करने के किए और घर के भीतर वायु प्रदूषण भी बढ़ता है जिसके अनेक ख़तरनाक स्वास्थ्य कुपरिणाम होते हैं।
इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरक्लोसिस एंड लंग डिजीज (द यूनियन) के एशिया पैसिफ़िक सह-निदेशक डॉ तारा सिंह बाम 24 अगस्त 2018 को सीएनएस द्वारा आयोजित वेबिनार में बतौर विशेषज्ञ शामिल हुए। 193 देशों के प्रमुखों के लिए आगामी 27 सितम्बर 2018 को होने वाली ग़ैर संक्रामक रोग के विषय पर संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठक से सम्बंधित समिति के, डॉ तारा सिंह बाम, सदस्य हैं। (वेबिनार रिकॉर्डिंग देखें । पॉडकास्ट सुनें)
सतत विकास और समाज के लिए तम्बाकू मुक्त दुनिया ज़रूरी
इसी माह न्यू यॉर्क में 73वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में 193 देशों के प्रमुख भाग लेंगे। इस महासभा में देश के प्रमुख “सतत विकास और समाज” से जुड़े मुद्दों पर बहस और चर्चा करेंगे। इसी महासभा में 3 उच्च स्तरीय बैठकें भी हो रहीं हैं जो निम्न मुद्दों पर केंद्रित रहेंगी: 1) टीबी उन्मूलन; 2) ग़ैर संक्रामक रोग नियंत्रण; और 3) परमाणु नि:शस्त्रीकरण। ज़ाहिर है तम्बाकू न सिर्फ़ सतत विकास और समाज से जुड़ा मुद्दा है बल्कि टीबी और ग़ैर संक्रामक रोगों का ख़तरा भी अनेक गुणा बढ़ाता है।
डॉ तारा सिंह बाम ने कहा कि हर साल तम्बाकू के कारण 70 लाख से अधिक लोग मृत होते हैं। समाज और सरकार को हर साल 1400 अरब अमरीकी डॉलर का आर्थिक व्यय और नुक़सान झेलना पड़ता है जिसमें तम्बाकू जनित रोगों के इलाज आदि और उत्पादन में गिरावट शामिल हैं।
डॉ तारा सिंह बाम ने बताया कि जन स्वास्थ्य के किए तम्बाकू महामारी एक आपदा है जो अनेक विकास पहलुओं को भी कुंठित करती है। इसीलिए 180 से अधिक देश वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि को पारित कर चुके हैं।
“मुर्ग़ों की रक्षा भेड़िए से न करवाएँ”
तम्बाकू बाज़ार बचाने और बढ़ाने के किए तम्बाकू उद्योग हर मुमकिन प्रयास कर रहा है कि तम्बाकू नियंत्रण संधि लागू न हो, या उसको लागू करने में अड़चने आएँ। तम्बाकू नियंत्रण संधि को लागू करने में सबसे बड़ी बाधा तम्बाकू उद्योग की कूटनीतियां हैं।
2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की महानिदेशक डॉ मार्ग्रेट चैन ने सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) से कहा था कि जन स्वास्थ्य नीति में तम्बाकू उद्योग का हस्तक्षेप सबसे बड़ी बाधा है। तम्बाकू उद्योग हर सम्भव प्रयास कर रहा है कि कैसे वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि को निष्फल करे। डॉ मार्ग्रेट चैन ने सरकारों को चेताने के आशय से कहा था कि मुर्ग़ों की रक्षा भेड़िए से न करवाएँ, और संधि की अंतर-सरकारी बैठक में तम्बाकू उद्योग को हस्तक्षेप न करने दें।
2015 में बीबीसी ने उजागर किया था कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी तम्बाकू कम्पनी ब्रिटिश अमेरिकन टुबैको ने तम्बाकू नियंत्रण पर ध्यान न देने के लिए पूर्वी अफ़्रीकी देशों के अधिकारियों को रिश्वत दी.
डॉ बाम ने बताया कि अक्सर तम्बाकू उद्योग, जन स्वास्थ्य नीतियों में सीधे हस्तक्षेप नहीं करती बल्कि इस उद्योग का पक्ष लेने वाले व्यापार, वैज्ञानिक या अन्य संगठनों की आड़ में हस्तक्षेप करती हैं। उदाहरण के तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी तम्बाकू कम्पनी फ़िलिप मोरिस ने तथाकथित ‘धुआँ रहित दुनिया’ के लिए एक फ़ाउंडेशन बनायी है! क्या विडम्बना है कि दुनिया की सबसे बड़ी तम्बाकू कंपनी “तम्बाकू धुआं रहित दुनिया” के लिए फाउंडेशन बनाये – यदि इस कंपनी को सच में “तम्बाकू धुआं रहित दुनिया” चाहिए, तो यह करने के लिए उसे सिगरेट बनाना व बेचना बंद कर देना चाहिए। “धुआं रहित दुनिया” के लिए फाउंडेशन जैसा झूठी दिलासा देने वाला काम करने के बजाय, अपना घातक तम्बाकू उत्पाद बनाना बंद करे यह कंपनी.
भारत में 6% गिरा है तम्बाकू सेवन
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक द्वारा पुरस्कृत और अखिल भारतीय सर्जन्स संगठन के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर डॉ रमा कांत ने बताया कि भारत में न केवल तम्बाकू सेवन चिंताजनक स्तर पर होता है बल्कि नतीज़तन तम्बाकू जनित जानलेवा और गंभीर स्वास्थ्य पर कुपरिणामों में भी हम दुनिया में सबसे आगे की पंक्ति में हैं. परन्तु ग्लोबल एडल्ट्स तंबाकू सर्वे 2016-2017 के अनुसार, भारत में 2009-2010 और 2016-2017 के दौरान पूरे देश में तम्बाकू सेवन की दर में औसतन 6% की कमी आयी है, सिर्फ 3 प्रदेशों को छोड़ कर. असम, त्रिपुरा और मणिपुर वो 3 राज्य हैं जहाँ तम्बाकू सेवन कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ गया है. बाकि पूरे देश में तम्बाकू सेवन में गिरावट आई है. कुछ प्रदेश, जैसे कि, नागालैंड में, तम्बाकू सेवन 31.5% से गिर कर सिर्फ 13.2% रह गया है. उसी तरह, सिक्किम में तम्बाकू सेवन 41.6% से गिर कर 17.9% रह गया है.
हृदय रोग और पक्षाघात दुनिया में सबसे बड़े मृत्यु के कारण: प्रोफेसर डॉ ऋषि सेठी
भारत के प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर (डॉ) ऋषि सेठी, जिन्होंने दिल के दौरे के चिकित्सकीय प्रबंधन के लिए देश की सर्वप्रथम मार्गनिर्देशिका बनाने वाली विशेषज्ञ मंडल की अध्यक्षता की थी, ने कहा कि हृदय रोग विश्व स्तर पर सबसे बड़ा मृत्यु का कारण है और तम्बाकू से हृदय रोग होने का खतरा बढ़ता है. प्रोफेसर (डॉ) ऋषि सेठी की अध्यक्षता में किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में हुए शोध से यह ज्ञात हुआ कि न केवल धूम्रपान बल्कि चबाने वाले तम्बाकू उत्पाद से भी हृदय रोग होने की सम्भावना अत्यधिक बढ़ जाती है. प्रोफेसर (डॉ) ऋषि सेठी ने अमरीका का उदाहरण देते हुए कहा कि 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, अमरीका में पिछले 50 सालों में तम्बाकू धूम्रपान में बड़ी गिरावट आई है: 50% से गिर कर धूम्रपान सिर्फ 20.5% पुरुषों में और 15.3% महिलाओं में रह गया है – जिसके चलते अमरीका में हृदय रोग और पक्षाघात में भी गिरावट आई है.
एशिया पसिफ़िक में तम्बाकू और सतत विकास पर बड़ा अधिवेशन #APACT12th
12-15 सितम्बर 2018 के दौरान इंडोनेशिया में 12वां एशिया पसिफ़िक तम्बाकू नियंत्रण अधिवेशन (#APACT12th) संपन्न होगा. इस पूरे अधिवेशन का केंद्रीय विचार है: सतत विकास के लिए तम्बाकू नियंत्रण आवश्यक है. एशिया पसिफ़िक क्षेत्र के सभी देशों ने दुनिया के अन्य देशों के साथ 2030 तक सभी 17 सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने का वादा किया है जिनमें से एक है: वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि को लागू करना.
APACT12th की आयोजक सचिव डॉ नुरुल लूँतुनगान ने बताया कि इंडोनेशिया में तम्बाकू उद्योग के हस्तक्षेप के कारण तम्बाकू नियंत्रण के प्रयासों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इंडोनेशिया ने वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि को अभी तक पारित नहीं किया है परन्तु चुनौतियों के बावजूद ज़मीनी स्तर पर वहां तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम आगे बढ़ रहा है. सिगरेट की कीमत में बढ़ोतरी हुई है, सार्वजनिक स्थानों पर तम्बाकू धूम्रपान प्रतिबंधित हुआ है, अनेक जिलों में तम्बाकू विज्ञापन प्रचार पर प्रतिबन्ध लग गया है, और पिछले 5 सालों से तम्बाकू उत्पाद पर चित्रमय स्वास्थ्य चेतावनी लगी हुई है. डॉ नुरुल ने कहा कि इंडोनेशिया ने वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि को पारित तो नहीं किया है परन्तु संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को पूरा करने का वचन दिया है – जिसके लक्ष्य 3 के अनुसार, अन्य सतत विकास लक्ष्य पूरे करने के लिए, वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि की नीतियों को लागू करना ज़रूरी है.
सतत विकास और समाज के लिए यह ज़रूरी है कि तम्बाकू नशा उन्मूलन का सपना जल्द-से-जल्द साकार हो जिससे कि हर तम्बाकू जनित रोग से बचा जा सके और तम्बाकू जनित असामयिक मृत्यु को टाला जा सके. तम्बाकू उन्मूलन से ही पर्यावरण संरक्षण, गरीबी मिटाने, एवं अन्य सतत विकास लक्ष्यों पर भी प्रगति को बल मिलेगा.
शोभा शुक्ला