आज देश को समझना होगा कि राजनैतिक अदूरदर्शिता के कारण सैन्य रणनीति अपने शौर्य प्रदर्शन से वंचित हो रही थी। उदारता, सहिष्णुता, अहिंसा व क्षमा आदि मानवीय गुणों की महत्ता बनाये रखने के कारण हमारी वीरता व रणनीतिज्ञ कौशल प्रभावित होता रहा। जिससे हम अत्याचार सहने को विवश होते रहे। ध्यान रहे कि हिंदुत्व सहिष्णुता का प्रतीक है परंतु इसकी भी एक सीमा होती है। सहिष्णुता अंतहीन नही होती। स्मरण रहना चाहिए कि भगवान श्री कृष्ण ने भी शिशुपाल के निर्धारित सीमा लांघते ही उसका वध कर दिया था। हमारे देवी देवताओं का स्वरूप जहां रुद्र के समान रौद्र है, वहीं सरस्वती व लक्ष्मी के रूप में शान्त और सौम्य भी है।यदि देवता अमृत की वर्षा कर सकते है तो काली के रूप में नरमुंड धारण कर खप्पर से शत्रुओं का रक्तपान भी कर सकते है।
अतः सत्य सनातन हिन्दू धर्म व संस्कृति की रक्षार्थ राष्ट्र में सक्षम, प्रेरणादायक व आक्रामक नेतृत्व आवश्यक हो गया है। आज देश के स्वर्णिम काल व परतंत्रता काल के इतिहास की सत्यता देश के युवाओं को स्पष्ट होनी चाहिये। उनका ऐसा उत्साहवर्धन हो कि उनकी बाहें अत्याचारियों व धर्मांधों को कुचलने के लिए अधीर हो कर फड़कने लगें। विचार करना होगा कि समझदार व सभ्य बुद्धिजीवी युद्ध का विकल्प ढूंढते है परंतु यदि ‘युद्ध पिपासु’ जिहादी आक्रमणकारी ही बना रहें तो उनकी हत्या ही एकमात्र विकल्प होता है। हमें “जैसे को तैसा” व “भय बिन होत न प्रीत” की रीत को पुनः स्थापित करना होगा।
यह ऐतिहासिक सत्य है कि मुस्लिम आक्रांताओं की सेनाओं को हिन्दू राजाओं ने अनेक बार पराजित किया था। किन्तु हमारे हिन्दू राजाओं ने न तो “विजय का लाभ” लिया और न ही इन “जिहादियों के आक्रमणों ” को समाप्त कर पाए। महापराक्रमी माने जाने वाले राजा पृथ्वीराज चौहान ने निरंतर 16 बार आक्रांता मोहम्मद गौरी को पराजित किया था। परंतु वे भी इन इस्लामी आक्रांताओं की बार-बार आक्रमण करने की जिहादी मनोवृत्ति को न समझने के कारण समाप्त नही कर पाये। आक्रामक नेतृत्व के अभाव
में सैकड़ों वर्षों की पराजय से हिन्दू संघर्षहीन होकर आत्मसमर्पण को विवश होते रहे। इसलिये उस काल में भी शांति स्थापित न हो सकी। हमने इस ऐतिहासिक सत्य को भुला दिया और अपने अस्तित्व व स्वाभिमान की रक्षार्थ सजग ही नहीं हुए। जिसके दुष्परिणाम से मुगलकालीन मानसिकता का भयावह रूप अभी भी नियंत्रित नही हो पाया। क्या यह सत्य नही है कि इस्लामिक शिक्षाएं व विद्याएं अत्याचार और आतंकवाद को उकसाती है ? जिससे बढ़ते हुए जिहाद के कारण विश्व में इस्लाम का झंडा लहरा कर “दारुल-इस्लाम” की स्थापना हो सकें।
लेकिन वर्तमान विकट परिस्थितियों का एक कारण अगर स्व.मोहनदास करमचंद गांधी के तीन बंदरों वाले दर्शन व विशेष मुस्लिम प्रेम को माना जाय तो अनुचित नही होगा। आज स्व. नेहरू जी , स्व.वाजपेयी जी व डॉ मनमोहन सिंह जैसे उदार नेतृत्व को भूलना होगा। इन्हीं के ढुलमुल नेतृत्व के कारण स्वतंत्रता के पश्चात मुगलकालीन जिहाद पुनः भयावह व घिनौने रूप में उभर रहा है। मुस्लिम जगत की अन्य सभ्यताओं व संस्कृतियों वाले समाज को इस्लाम बनाने की अनियंत्रित व अनुचित इच्छाओं के कारण संकट बढ़ रहा है। लेकिन अगर गैर मुस्लिम समाज इस इस्लामिक संकट को समझ लें और मुसलमान अपनी इस जिहादी सोच को नियंत्रित कर लें तो संघर्ष से बचा जा सकता है। परंतु जब कोई सद्भाव व सौहार्द की भाषा न समझे तो उन्हें उन्ही की भाषा में समझाना होगा, नहीं तो एक मरता रहेगा और दूसरा मारता रहेगा। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नही कि आज धर्मनिर्पेक्षता, मानवाधिकारवाद, अल्पसंख्यकवाद व मुस्लिम सशक्तिकरण “इस्लामिक आतंकवाद” (जिहाद) का सबसे बड़ा पोषक बन चुका है ? जिससे जिहादियों की दूषित मानसिकता “इस्लामिक कानून” (शरिया) से चलें दुनिया बलवती हो रही है।
आज राष्ट्रीय, सामाजिक व व्यक्तिगत जीवन दाँव पर लगा हुआ है। बहुत क्षोभ की बात है कि हम अपनी संस्कृति, आस्था स्थलों, सरकारी संस्थानों, निर्दोष हिन्दू भाई-बहनों के इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित होने पर भी मौन रहते है, क्यों ? क्या हम केवल मार खाने और घाव सहलाने के लिए बने है ? इस जिहादी सोच को समझना और समझाना होगा आखिर हिन्दू मन-मस्तिष्क कब तक सत्य के आचरण से बचेगा ? “फुंफकारते रहो किन्तु काटो मत” एक चर्चित सर्प कथा के अर्थ को समझ कर हिन्दुओं को महात्माओं व नेताओं के उपदेशों के चक्रव्यूह से बाहर निकल कर आक्रामक बनना होगा। जब अत्याचारियों व आतंकवादियों के प्रति उभरा आक्रोश असहनीय हो जाये तो उसका अंत करने के लिए आक्रमण आवश्यक है। यह सत्य है कि सज्जनता में भी आक्रामक बनने की प्रचुर सामर्थ्य होती है। हमारे महान आचार्य चाणक्य का मत सर्वथा उत्साहवर्धक है कि “संसार में कोई किसी को जीने नही देता, प्रत्येक व्यक्ति/राष्ट्र अपने ही बल व पराक्रम से जीता है।
अतः जब तक जिहादी मनोवृत्ति पर प्रभावी प्रहार नही होगा वैश्विक जिहाद बना रहेगा। जिहाद एक अनसुलझी पहेली है, इसके अनेक रूप है जो अभी तक अस्पष्ट हैं। ऐसे में शांति के लिए प्रयासरत वैश्विक नेतृत्व भी असमर्थ हो गया है। इसलिये इस्लामिक दर्शन में संशोधन व परिवर्तन आवश्यक है। जिहादियों को यह समझना होगा कि मानवीय गुणों का पालन करने से ही स्वर्ग (जन्नत) मिलता है, हूरों की चाहत में मासूमों और निर्दोषों का रक्त बहाने से केवल मानवता ही कलंकित होती है। इसलिए देर-सवेर विश्व के शीर्ष नेतृत्व को यह विचार करना होगा कि बगदादी के अतिरिक्त मौलाना मसूद अजहर व हाफिज सईद जैसे खूंखार आतंकी भी जिहादियों की सेना तैयार करके वैश्विक शांति को अशांत चुनौती दे रहे है।
मौलाना मसूद अजहर जैसे दुर्दांत आतंकी सरगना को (दिसम्बर 1999) प्लेन हाईजेक कांड (जनवरी 2000) में कंधार सकुशल पहुंचा कर हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री से अवश्य भयंकर भूल हुई थी। लगभग 189 लोगों की मौत के बदले मसूद सहित 3 खूंखार आतंकियों को छोड़ना उस समय यात्रियों के परिजन व कुछ नेताओं के असहयोग के कारण तत्कालीन शासन विवश था। जिहाद के सामने कुछ नागरिकों की सुरक्षा के लिए आत्मसमर्पण किया गया। इसी मौलाना मसूद ने इन 18-19 वर्षों में जिहाद के लिए भारत के सैकड़ों-हज़ारों निर्दोषों का रक्त बहाया व अरबों रुपयों की भारतीय संपत्ति को नष्ट किया है। 14 फरवरी पुलवामा (कश्मीर) में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए कारबम द्वारा हुआ आत्मघाती हमले का उत्तरदायी मसूद अजहर व उसके संगठन जैश-ए-मोहम्मद को अब भारत सरकार चैन नही लेने देंगी।
वर्षो से जिहादियों के अत्याचारों से पीड़ित राष्ट्रवादी समाज की पीड़ा पुलवामा कांड से ज्वलंत हो उठी है। इससे उपजे जनमानस के विराट आक्रोश ने देश के शासन-प्रशासन को झकझोर दिया। इस असहनीय संकट में जब 40 से अधिक हमारे सैनिक हताहत हुए तो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पाकिस्तान के विरुद्ध कुछ बहुप्रतीक्षित आवश्यक निर्णय निसंकोच लिए गए। तत्पश्चात सेनाओं को भी स्वतंत्र रूप से शत्रु के प्रति आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश देकर श्री नरेंद्र मोदी ने अपने आक्रामक तेवर दर्शा दिये। परिणामस्वरूप समाचारों के अनुसार 26 फरवरी की भोर में हमारी वायुसेना ने वीरता का अद्वभूत परिचय देते हुए जैश-ए-मोहम्मद के कई ठिकानों को विंध्वस करके उनके 200-300 आतंकियों को भी ढेर करने में सफल हुए।
आज दशकों बात भारत की जनता इस सफल प्रतिशोध पर अपने प्रधानमंत्री के साहसिक निर्णय के प्रति कृतज्ञ हो रही है। देशवासी मोदी जी के विचार व कथन को किर्यान्वित करने की कुशलता, दृढ़ता व सफलता पर अभिभूत है। ऐसे आक्रामक नेतृत्व के कारण आज भारतीय जनमानस में राष्ट्रभक्ति का प्रवाह चरम पर है। सम्भवतः राष्ट्रभक्ति का ऐसा स्वरूप स्वतंत्रता के बाद अब देखा जा रहा है। नगर हो या गाँव सभी देशभक्त सड़कों पर तिरंगा लेकर आंदोलित हो रहे है। निःसंदेह आक्रामक नेतृत्व ही युवाओं व देशभक्तों को प्रभावित करता है। आज देश-विदेश में रहने वाले समस्त भारत भक्तों का ह्रदय गौरवान्वित हो रहा है। यह सत्य है कि निस्वार्थ व आक्रामक नेतृत्व की ही जय जयकार होती है।
इस आक्रोश व प्रतिशोध भरें घटनाक्रम ने भारतीय राजनीतिज्ञों को एक संदेश भी दिया है कि “शत्रुओं के विनाश में ही सफलता की कुंजी है।” देश के सत्तालोभी नेताओं को अब “आतंकवाद बढ़ता है तो बढ़ने दो परंतु वोट किसी भी स्थिति में न छूटने दो” की सोच से बाहर आना होगा। भारत में पलने वाले सपोलों को भी सावधान हो जाना चाहिये नही तो देश के साथ द्रोह करने वालों को अब जेलों में ठुसां जाएगा। देश में सत्ताहीनता की पीड़ा से जूझ रहें नेताओं को पाकिस्तान के आगे गिड़गिड़ाना बंद करना होगा। ऐसे समस्त देशवासी जो पाक के सहयोगी बनें हुए हैं, सतर्क हो जाएं अन्यथा उनपर भी राष्ट्रहित में आवश्यक कार्यवाही होने से अब कोई रोकेगा नही।
यह सुखद व उत्साहजनक है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में जिहाद से उपजा जनसमूह के आक्रोश का अंत करने के लिए किया गया यह आक्रमण देशवासियों में राष्ट्रभक्ति का नया बीजारोपण कर रहा है। अश्वमेघ यज्ञ की भारतीय संस्कृति को समझाना और उसको प्रोत्साहित करके अपने स्वाभिमान को पुनः स्थापित करने का समय अब आ रहा है।
✍🏻विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक)