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क्या गंगा को सिर्फ चुनावी वाहन मानने वालों को अपना प्रतिनिधि चुनें?

2014 के लोकसभा चुनाव को याद कीजिए। ’’मैं आया नहीं हूं। मां गंगा ने बुलाया है।’’ मोदी जी का यह वाक्य याद कीजिए। कहना न होगा कि गंगा के सहारे चुनावी नौका पार करना, 2014 के प्रधानमंत्री पद के दावेदार श्री मोदी का एजेण्डा था। 2019 में अब यह राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की अपील करने वाली प्रियंका गांधी का एजेण्डा है। प्रियंका ने लोगों को लिखे खुले खत में कहा है, ’’गंगाजी उत्तर प्रदेश का सहारा है और मैं भी गंगा जी के सहारे हूं।’’
मोदी जी ने पांच साल तक गंगा के हितों की जमकर अनदेखी की। गंगा की अविरलता-निर्मलता के अनशन करते हुए स्वामी सानंद की मौत हो गई। कुछ पता नहीं कि संत गोपालदास कहां और कैसे लापता हो गए ? स्वामी आत्मबोधानन्द, आज भी संघर्ष कर रहे हैं। मातृ सदन के स्वामी शिवानंद सरस्वती जी अपेक्षा कर रहे हैं कि गंगा संबंधी मांगों पर निर्णस करे। निर्णय करना तो दूर, मोदी जी ने इनसे बात करना भी ज़रूरी नहीं समझा और आज भी नहीं समझ रहे। पर्यावरणीय प्रवाह से लेकर गंगा क़ानून संबंधी उनके कदम, गंगा को धोखा देने से ज्यादा और कुछ साबित नहीं हुए।
प्रियंका गांधी, गंगा पर सवार होकर मंदिर-मंदिर जा रही हैं। गंगा जी बीमार हैं। गंगाजी के गले में बांधों के बंधन बढ़ते जा रहे हैं। प्रियंका गांधी के लिए यह एजेण्डा नहीं है।
प्रियंका गांधी ने अपने पत्र में लिखा है, ’’ गंगा सच्चाई और समानता की प्रतीक है और हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक भी। गंगा किसी से भेदभाव नहीं करती।’’ किंतु क्या स्वयं प्रियंका स्वयं भेदभाव नहीं कर रही ? प्रियंका गांधी को भीम आर्मी के चन्द्रशेखर के संघर्ष से संवेदना है, लेकिन गंगा के लिए प्राणों को दांव पर लगाने वाले साधुओं के मातृ सदन से कोई संवेदना नहीं है ! राहुल गांधी, मातृ सदन में अनशनरत् स्वर्गीय सन्यासी स्वामी सानंद से मिलना, एक बार तय करने के बाद मुकर गए थे। क्यों ? क्योंकि मोदी की तरह, राहुल गांधी-प्रियंका गांधी के लिए भी गंगा का हित एजेण्डा नहीं है।
नर्मदा को चुनावी वाहन बनाने वाले श्री शिवराज सिंह चैहान के मुख्यमंत्रित्व को मध्य प्रदेश की जनता ने हाल ही के चुनाव में नकार दिया था। क्या गंगा को सिर्फ चुनावी वाहन मानने वालों को गंगावासी अपना प्रतिनिधि चुनें ?

 

अरुण तिवारी

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