राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद केस के सर्वमान्य समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के जरिए मामला मध्यस्थता पैनल को सौंप दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के बाद से ये मामला सुप्रीमकोर्ट में लंबित था जिसमें 14 याचिकाएं दायर हैं। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने ये फैसला मार्च के पहले सप्ताह में दिया और तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल का गठन भी कर दिया।
विश्व हिन्दू परिषद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर बहुत खुश दिखायी नहीं देती। परिषद के महासचिव डा. सुरेन्द्र जैन कहते हैं ”निर्णय चूंकि न्यायपालिका का है इसलिए स्वागत या विरोध का प्रश्न ही नहीं है। सर्वोच्च कोर्ट का आदेश है इसलिए हम वार्ता में हिस्सा लेंगे। लेकिन परिणाम को लेकर बहुत आशावादी नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से दोनों पक्षों को किसी ठोस निर्णय की आशा थी। लेकिन जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्लाह की अध्यक्षता में दो अन्य मध्यस्थों धर्मगुरू श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू को सदस्य बनाकर फैजाबाद में सुनवाई करने और आठ सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को पेश करने को कहा।’’
डा. जैन कहते हैं ”मध्यस्थता कितनी सफल होगी इस पर प्रश्न चिन्ह है। पहले भी चार प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में मध्यस्थता के प्रयास हो चुके हैं और चारों विफल रहे हैं। विफल होने का मुख्य कारण ये है कि मुस्लिम पक्ष के पास न तथ्य हैं और न ही सत्य। जब निर्णयात्मक समय आता है तो वो वार्ता से भाग खड़े होते हैं।’’
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने मध्यस्थता में सहयोग करने की बात तो कही लेकिन इस मामले में टिप्पणी करने के बजाय मौन साधना बेहतर समझा। उन्होंने कहा, ”हमें जो कहना है मध्यस्थता पैनल के सामने ही कहेंगे बाहर नहीं।’’
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की विशेषपूर्ण पीठ ने अपने फैसले में ये स्वीकार किया था कि अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ और विवादित स्थल पर भगवान राम की जन्म भूमि थी। उनके निर्णय का आधार मुस्लिम धर्म ग्रंथ, मुस्लिम वक्फ एक्ट, हिंदू धर्म ग्रंथ, स्कंद पुराण, मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखी गयी पुस्तकें, फ्रांसीसी पादरी की डायरी, अंगे्रज अधिकारियों, इतिहासकारों द्वारा लिखे गये गजेटियर और ग्रंथ, एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका, ढंाचे से प्राप्त नक्काशीदार पत्थर तथा शिलालेख, राडार तरंगों द्वारा कराया गया जियोलोजिकल सर्वेक्षण और फोटोग्राफी रिपोर्ट और रिपोर्ट के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट और गवाहों के बयान थे। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने तो ये भी कहा कि, ”प्रश्नगत ढांचा जिसे मस्जिद कहा जाता है वह मस्जिद नहीं थी और उसे बाबर ने नहीं अपितु उसके जनरल मीर बाकी ने बनवाया था। उत्खनन रिपोर्ट के आधार पर ये कहा जाएगा कि हिंदू मंदिर को तोड़ कर उसी स्थान पर एक ढांचा बनाया गया। ये भवन कभी अल्लाह को समर्पित नहीं किया गया और ना ही इसमें अनादिकाल से नमाज पढ़ी गयी।’’
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह कार्यवाह मनमोहन वैद्य कहते हैं ”जब इतिहास, आर्कियोलोजी और हिंदू धार्मिक ग्रंथ के अनुसार ये भगवान राम की जन्म भूमि है तो फिर मध्यस्थता किस बात की? इस पूरे मामले में सत्य और तथ्य यही है कि ये रामलला की जन्म भूमि है। भगवान राम भारत के है न कि बाबर भारत का था। और मस्जिद उसके जनरल मीर बाकी ने बनवायी तो मध्यस्थता क्यों और किसलिए?’’
डा. सुरेन्द्र जैन कहते हैं ”इलाहाबाद हाई कोर्ट बड़ी मुश्किल से निर्णय दे पाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह इस केस को लेकर घटनाक्रम रहा वो साबित करता है कि राम मंदिर अदालत की प्राथमिकता नहीं है। शायद वो भी सेकुलरिज्म की छवि से पीडि़त हैं।
भगवान श्री राम भारतीय सनातन परंपरा के ऐसे पूजनीय वंदनीय भगवान हैं जो करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र हैं। जन-जन के मन में बसे राम को उनके भव्य मंदिर में देखने की चाह में लाखों हिंदू अपने जीते जी ये साकार होते नहीं देख पाए और करोड़ों हिंदू कानूनी दाव पेंच में फंसे इस मामले में जल्द से जल्द फैसला चाहते हैं। लेकिन धार्मिक आस्था मालिकाना हक के इस मामले को सियासी रंग दिया जा चुका है। अब ये मामला तुष्टिकरण का ज्यादा लगने लगा है। तमाम ऐतिहासिक पुरातत्व प्रमाणों के बावजूद आखिर न्यायपालिका किसी ठोस निर्णय पर क्यों नहीं पहुंच पा रही है? इलाहाबाद की तीन सदस्यीय विशेष पीठ में न्यायमूर्ति एस.यू खान भी थे। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि, ”मुस्लिम, हिंदू और निर्मोही अखाड़ा तीनों ही विवादित संपत्ति के संयुक्त स्वामी घोषित किए जाते हैं और तीनों को ही इस परिसर का एक तिहाई हिस्सा समान रूप से दिया जाए।’’ उन्होंने साथ ही ये भी स्पष्ट किया कि ”जिन वाद बिन्दुओं पर मैंने अपने निष्कर्ष नहीं लिखे हैं उन सभी वाद बिन्दुओं पर मेरी सहमति सहयोगी न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के निष्कर्षों से हैं।’’
मध्यस्थता को लेकर इससे जुड़े पक्ष बहुत आशावान नहीं हैं। निर्मोही अखाड़े ने तो फैजाबाद को मध्यस्थता का स्थान चुने जाने पर ही आपत्ति जताई है। अखाड़े ने 25 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की कि मध्यस्थता का स्थान बदला जाये और पैनल में दो अन्य जज भी शामिल किए जाएं। निर्मोही अखाड़े ने ये भी कहा कि केवल निर्मोही अखाड़े और वक्फ बोर्ड को ही सुनवाई के लिए बुलाया जाए। 25 पार्टियों को बुलाने की कतई आवश्यकता नहीं है।
लगभग सात दशक होने को आए, कानूनी तरीके से सर्वमान्य फैसला नहीं आ पाया है। तीन मध्यस्थों में से एक आर्ट ऑफ लिविंग के धर्मगुरू श्री श्री रविशंकर का मानना है कि ”मध्यस्थता का सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश और संबंधित पार्टियों के हित में है। इस मामले को परस्पर प्रेम से सुलझाने में हमें कोई कसर नहीं छोडऩी चाहिए। अपने मतभेदों और इगो को दर किनार करके हमें सभी समुदायों की भावनाओं को यथा स्थान देना चाहिए।’’
स्टोरी लिखे जाने तक सुप्रीम कोर्ट की तय समय-सीमा के दो हफ्ते बीत चुके हैं। निर्मोही अखाड़े के अदालत जाने के बाद क्या और कोई पक्ष अदालत जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट हांलाकि पैनल को बढ़ाए जाने की छूट पहले ही मध्यस्थों को दे चुका है। स्थान परिवर्तन होगा या नहीं समय बताएगा।
सर्जना शर्मा