कांग्रेस अध्यक्ष की बेसिक इनकम गारंटी प्रस्ताव के सम्बन्ध में।
इसके बारे में तात्विक चर्चा का बहुत विस्तार है। संकेत भर के लिए कुछ तात्विक प्रश्न इस प्रकार हैं-
- गरीबी, भुखमरी, लाचारी, बेरोजगारी क्या ये समानार्थक हैं या इनमें कोई भेद है? इस दृष्टि से कोई विचार प्रकट नहीं किया गया।
- विगत वर्षों में बीपीएल की सीमा और बीपीएल की पहचान करके उनको कार्ड देना जमीनी स्तर पर बहुत विवाद का मुद्दा रहा है। इसकी ओर कोई संकेत नहीं।
- बीपीएल क्या एक व्यक्ति इकाई है या परिवार इकाई है या समाज इकाई है? ये मुद्दा विशेष उभर कर आया है बीपीएल की पहचान करने के नए एसेट्स बेस्ड मेथोडोलॉजी से।
- क्या टार्गेटेड सब्सिडी कार्यक्रम चलाना एक अच्छी नीति है? क्या इससे अपेक्षित परिणाम निकल पाते हैं? क्या इस प्रकार की बहुविध स्कीम्स का कोई निश्चित लाभ लाभार्थियों को पहुंचा है? क्या वे गरीबी रेखा से बाहर आ पाए हैं?
- क्या इन कार्यक्रमों का उद्देश्य राहत पहुंचाना है या गरीबी रेखा से इन परिवारों को बाहर लाकर गरीबी उन्मूलन है?
- क्या मनरेगा से ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि व्यवस्था में श्रम की उपलब्धता पर कोई नेगेटिव प्रभाव पड़ा है? इत्यादि
इन मूल बातों पर कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने कोई विचार प्रकट नहीं किये हैं। उन्होंने अत्यंत फूहड़ भाषा का प्रयोग करते हुए ये घोषणा की कि ‘मैं एक धमाका करने जा रहा हूं और एक झटके में देश से गरीबी का खात्मा।’
उनके कथन में विरोधाभास स्पष्ट है। वे कहते हैं कि सभी को बेसिक मिनिमम आय की गारंटी दी जायगी। फिर कहते हैं कि जिनके परिवार की मासिक आय 12000 रू. प्रति माह से कम हैं वे गरीब हैं और इनको 6000 प्रति माह खाते में डाला जाएगा। फिर कहते हैं कि 20 प्रतिशत आबादी अथवा 5 करोड़ परिवार को ये गारंटी दी जाएगी। क्योंकि वर्तमान में बीपीएल कार्ड बीपीएल लिस्ट को स्थायी रूप से दे दिया गया है, इसके बावजूद इसकी तरफ कोई रिफरेन्स नहीं किया गया है।
आखिर में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या देश के राजनैतिक दल वास्तव में गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी से लडऩे की सच्ची निष्ठा रखते हैं और मन वचन कर्म से इसको दूर करना चाहते हैं? इसमें बहुत सन्देह है। सच्चाई यही है कि इस प्रकार की ‘खैरात’ बांटने के कार्यक्रमों को चुनावी नारे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और इसमें आगे नकलने के लिए परस्पर होड़ मची है।
ये स्वाभाविक है कि बीपीएल की अवधारणा को लेकर सरकारी और जन पक्ष दोनों तरफ से अत्यंत मतिभ्रम हैं। लेकिन इस मतिभ्रम को दूर किये बिना यदि इस योजना को लागू किया गया तो असंतोष का दबा हुआ लावा फूट निकलेगा और गांव गांव में गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो जायेगी। ऐसे निरंकुश और क्रूर राजनेताओं और उनके भ्रामक वायदों से हमको पूरी तरह से सावधान रहना है।