जुम्मे की नमाज़ पढ़ी जा रही थी और न्यूज़ीलैंड में एक ईसाई आतंकवादी ने मस्जिदों को निशाना बनाया। बात लगभग एक महीने पहले की है। उसके बाद इंग्लैंड के बर्मिंघम इलाके की कुछ मस्जिदों पर कुछ लोगों ने हथौड़े चला दिए। बयान आया कि मुसलमान जनता डर कर जी रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2016-17 में कुल 80,393 हेट क्राइम, यानी घृणाजन्य अपराध के मामले सामने आए जो कि 2015-16 में 62,518 थे।
न्यूज़ीलैंड के ईसाई आतंकी ने साफ शब्दों में लिखा था, ”मुस्लिम शरणार्थी हमारी भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं। यह भूमि श्वेतों की है।’’ उसने यह चिंता जताई थी कि बाहर से आए मुस्लिम अधिक प्रजनन करके पश्चिमी देशों की धार्मिक जनसांख्यिकी को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं और पश्चिमी देशों की संस्कृति व शांति भंग कर रहे हैं। उसने इस्लामी आतंक द्वारा यूरोप में मची तबाही का भी जि़क्र किया था।
जब मार्च में यह हमला हुआ और 50 लोग मरे, तब से यह एक शुरुआत की तरह देखा जाने लगा। हमें पॉलिटिकली करेक्ट होकर स्वीकारने में भले ही अनंत काल लग जाए, लेकिन सत्य यही है कि बड़े आतंकी हमलों के केन्द्र में इस्लामी विचारधारा और आईसिस का झंडा है। विचारधारा से मतलब यह नहीं है कि पूरा मज़हब और हर मुसलमान ही आतंकवादी हो गया, बल्कि यह कि जितनी भी ऐसी आतंकी घटनाएं होती हैं, उसका सूत्रधार एक ही मजहब का होता है। मैं मजहबी आतंक की बात कर रहा हूं, न कि आतंक की परिभाषा में जाकर नक्सली और स्थानीय हिंसक झड़पों को इसमें शामिल कर रहा हूं।
क्राइस्टचर्च की घटना के तुरंत बाद बर्मिंघम की मस्जिदों पर हमला और अब श्री लंका के चर्चों को निशाना बनाकर लगभग 300 जानें ले लेना, यह बताता है कि साम्राज्यवादी मज़हब अब खुल कर सामने आ गए हैं। भले ही तमाम मीडिया हाउस और अतंरराष्ट्रीय संस्थाएं श्री लंका की घटना को कवर करते हुए अंत में ‘लिट्टे’ आतंकी संगठन की बात कर देते हैं, लेकिन जाहरान हाशिम और अबु मुहम्मद नाम के आत्मघाती हमलावर, इसे मजहबी बात ही बनाते दिखते हैं। बाकी हमलावरों के नाम भी धीरे-धीरे सामने आएंगे, लेकिन अभी तक की सूचना के हिसाब से ये मसला इस्लाम बनाम ईसाई का ही लग रहा है।
दो मज़हब, जिनका इतिहास आक्रमण, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, हिंसा, युद्धों और आतंकी वारदातों से सना हुआ है, अब एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े दिखते हैं। आज भी इनका केन्द्रीय उद्देश्य लोगों को ईसाई और मुसलमान बनाना ही है। भारत जैसा देश इन दोनों मज़हबों के लिए फ़ाइनल फ्रंटियर रहा है जहां सैकड़ों सालों के शासन और अत्याचार के बाद भी इन दोनों मज़हबों के शासकों को यहां की हिन्दू आबादी को कन्वर्ट करा कर पूरी तरह से ईसाई या इस्लामी बनाने में बहुत ज़्यादा सफलता नहीं मिली।
लेकिन, कोशिशें जारी हैं। आतंकी वारदातों के आलोक में, आज आलम यह है कि यूरोप जैसे महादेश के लगभग हर बड़े शहर में इस्लामी आतंक की छाप पड़ चुकी है, और पोलिटिकली करेक्ट होने के चक्कर में ये देश न सिर्फ इस्लामी आतंक को इस्लामी कहने में शर्माते रहे बल्कि सीरिया जैसे मुल्कों के शरणार्थियों को अमेरिकी स्टेट-स्पॉन्सर्ड आतंक के बाद अपने देश में जगह देते रहे।
हालात ऐसे बिगड़े कि जर्मनी में नए साल पर इन शरणार्थियों ने महिलाओं के साथ रेप किया, छेड़छाड़ की और स्वीडन को विश्व का रेप कैपिटल बना दिया। स्वीडन दुनिया के शांत जगहों में से एक था, फिर उन्होंने मानवतावश शरणार्थियों को जगह दी, और आज की तारीख़ में हर एक लाख की आबादी पर बलात्कार के प्रतिशत में यह दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हो चुका है।
पैटर्न वही रहा, पहले शरण मांगी, फिर अपने इलाके बनाए, फिर इलाकों में दूसरों को आने से मना किया, फिर अपने अधिकारों की बात करने लगे, और फिर अपराध अचानक से बढ़ गए। फि़लहाल, स्वीडन ने अब इन्हें स्किल ट्रेनिंग देकर कहीं और भेजने की नीति अपनाई है ताकि वो कहीं और जाकर रोजगार कर सकें, उन्हें स्वीडन की नागरिकता या रेजिड़ेंसी नहीं दी जाती।
ज़ाहिर है कि यूरोप अपने खूनी इतिहास के दौर से बाहर आने के बाद, पूरी दुनिया को लूटने और गुलाम बनाने के बाद, आज स्वयं कऱीब-कऱीब निगेटिव ग्रोथ का शिकार है, जहां हर देश अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रहा है। लूट का माल ब्रिटेन और स्पेन जैसों को पचास साल से ज्यादा मदद नहीं कर पाया। ग्रीस, इटली, स्पेन और बाकी कई देशों में बेरोजग़ारी चरम पर है, लोग सरकारों से नाराज हैं।
और इन्हीं मौक़ों पर बेल्जियम से लेकर फ्रांस तक, मैड्रिड, बार्सीलोना, मैन्चेस्टर, लंदन, ग्लासगो, मिलान, स्टॉकहोम, फ्रैंकफ़र्ट एयरपोर्ट, दिजों, कोपेनहेगन, बर्लिन, मरसाई, हनोवर, सेंट पीटर्सबर्ग, हैमबर्ग, तुर्कु, कारकासोन, लीज, एम्सटर्डम, अतातुर्क एयरपोर्ट, ब्रूसेल्स, नीस, पेरिस में या तो बम धमाके हुए या लोन वूल्फ अटैक्स के ज़रिए ट्रकों और कारों से लोगों को रौंद दिया गया। हर बार आईसिस या कोई इस्लामी संगठन इसकी जि़म्मेदारी लेता रहा और यूरोप का हर राष्ट्र अपनी निंदा में ‘इस्लामोफोबिक’ कहलाने से बचने के लिए इसे सिर्फ आतंकी वारदात कहता रहा।
पिछले पांच सालों में यूरोप में 20 से ज़्यादा बड़े आतंकी हमले हुए हैं, जिसमें महज़ 18 महीने में 8 हमले सिर्फ फ्रान्स में हुए। इस्तांबुल में तीन बार बम विस्फोट और शूटिंग्स हुईं। बेल्जियम, जर्मनी, रूस और स्पेन इनके निशाने पर रहे। यूरोपोल द्वारा 2017 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार आईसिस ने यूरोप में आतंकी हमलों के लिए वहां शरण पाने वाले मुसलमानों की मदद ली। स्वीडन की न्यूज एजेंसी टिडनिन्गारनास टेलिग्रामबायरा के अनुसार पश्चिमी यूरोप में हुए 37 हमलों में दो तिहाई हमलावर (68 में से 44) घृणा फैलाने वाले लोगों के प्रभाव में आकर हमला करने को तैयार हुए। उनका रेडिकलाइजेशन ऑनलाइन नहीं था, बल्कि उन्हें निजी तौर पर मिलने के बाद ऐसा करने को कहा गया, और वो तैयार हुए।
ज़ाहिर है कि जो लोग सताए गए हैं, वो एक समय पर इन सबसे पक जाएंगे। शायद बड़ी संस्थाएं भी पक जाएंगी क्योंकि दोनों में होड़ लगी है कि किसके मज़हब को सबसे ज़्यादा लोग अपनाएं। ऐसे में पीडि़त आबादी का एक व्यक्ति व्हाइट सुप्रीमेसिज्म या ‘श्वेतों की धरती’ के लिए हथियार उठा कर, अगर न्यूज़ीलैंड की मस्जिदों पर हमला कर देता है, तो ज़ाहिर है कि वैसे लोगों को बल मिलेगा जो ऐसा करना चाहते थे।
कल को यह पता चले कि जैसे आईसिस एक आतंकी समूह की तरह दुनियाभर में हर गैरमुस्लिम आबादी को निशाना बना रहा है, वैसे ही ईसाई भी इस्लामी मुल्कों की आबादी को अपना निशाना बनाने लगें। ऐसी स्थिति कोई नहीं चाहता लेकिन बर्मिंघम में पांच मस्जिदों पर लोगों ने क्यों हमला किया? आखिर एक साल में हेट क्राइम में लगभग 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी क्यों हो गई?
आज श्री लंका में चर्चों को निशाना बनाया गया। यहां तो उद्देश्य स्पष्ट है कि ईसाई निशाने पर थे। कुछ बड़े होटलों को भी निशाना बनाया गया जहां ईस्टर की प्रार्थनाएं हो रही थीं, और कुछ विदेशी मौजूद थे। श्री लंका के लोग तो बाहर जा कर किसी दूसरे देश में आतंक नहीं मचाते, फिर इनके यहां के ईसाईयों को क्यों निशाना बनाया गया?
ज़ाहिर है कि यहां देश तो पिक्चर में है ही नहीं, यहां दूसरे मज़हब को टार्गेट करना था, वो जहां मिला इन्होंने कर दिया। श्री लंका जैसा छोटा देश ऐसी वारदातों के लिए उपयुक्त लगा होगा क्योंकि उन्हें लिट्टे की समाप्ति के बाद कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं झेलना पड़ा था और उन्हें इसकी भनक भी न लगी हो।
इसी समय, एक और बात कहनी ज़रूरी है। वो यह कि हमें हर ऐसी आतंकी घटना के बाद अपने देश की सुरक्षा एजेंसियों को धन्यवाद देना चाहिए कि हमारे यहां वैसा हमला नहीं हुआ। ऐसे हमले हर दिन होते हैं और कहीं न कहीं दसियों लोग मारे जाते हैं। चूंकि हमारी सुरक्षा में हमारे देश का सूचना तंत्र और एजेंसियां लगी होती हैं, तो हम ऐसे ख़तरों से बच जाते हैं। दो सालों में एक चूक होती है और पुलवामा घटित हो जाता है। आतंकियों को एक दिन चाहिए आरडीएक्स की कार लेकर भिड़ जाने में, सरकारों को हर दिन मुस्तैद होना पड़ता है क्योंकि हमले की योजनाएं प्रतिदिन बनती
हैं।
ऋतंम
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श्रीलंका ब्लास्ट केस में 5 बड़े खुलासे
2 सुसाइड अटैकर निकले अरबपति बिजनेसमैन और वामपंथी पार्टी नेता के बेटे, तीसरा बेटा फरार, धमाके में शेख हसीना के पोते की भी मौत
श्रीलंका सुसाइड बम धमाकों की जांच में अब कुछ खुलासे हो रहे हैं, जोकि बेहद चौंकाने वाले हैं। सुसाइड बॉम्बर्स की जांच में कई ऐसी जानकारी सामने आयी हैं, जिससे साबित होता है कि श्रीलंका में इस्लामिक आतंकवाद न सिर्फ देश में बल्कि राजनीति में भी बहुत अंदर तक घुस चुका है और भारत द्वारा लगातार चेताने के बावजूद भी श्रीलंका सरकार उस पर काबू पाने में नाकाम रही है।
जांच में पता चला है कि दो होटल सिनैमन ग्रांड और शांग्री-ला में धमाके करने वाले दोनों बॉम्बर भाई थे। उससे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि ये दोनों देश के अरबपति बिजनेसमैन मुहम्मद युसूफ इब्राहिम के बेटे थे। इनकी पहचान 33 साल का इस्मत अहमद इब्राहिम और 31 साल का इल्हाम अहमद इब्राहिम के तौर पर हुई है। ये दोनों विस्फोटक से भरा बैग लेकर होटलों में ब्रेकफास्ट बुफे में शामिल होने के बहाने गये और दोनों के पास एक जैसे विस्फोटक से भरे बैग थे और दोनों ने खुद को लगभग एक ही समय धमाके में उड़ा दिया। हाल ही में इस्लामिक स्टेट ने 7 बॉम्बर्स के फोटो और वीडियो जारी कर इस हमले की जिम्मेदारी ली थी। जांच एजेंसियों ने इन्हीं में दोनों अरबपति बॉम्बर्स की पहचान भी कर ली है।
आतंकियों के पिता मुहम्मद युसूफ इब्राहिम श्रीलंका की बिजनेस कम्यूनिटी और राजनीति में जाना माना नाम हैं, वो देश के जाने माने मसाला व्यापारी हैं। जोकि वामपंथी जनथा विमुक्ति पेरामुना पार्टी के बेहद करीबी माने जाते हैं। युसूफ इब्राहिम के खास दोस्तों में इंडस्ट्री एंड कॉमर्स मिनिस्टर रिसथ बथीउद्दीन भी शामिल हैं। इब्राहिम पूर्व राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे के भी बेहद खास माने जाते हैं।
श्रीलंका के डिफेंस मिनिस्टर ने प्रेस कांफ्रेंस में खुलासा किया कि 2 सुसाइड बॉम्बर्स ने यूके और ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई की थी।
श्रीलंका की जांच एजेंसियों ने इन अरबपति आतंकियों के घर पर छापा मारा, तो तीसरी मंजिल पर विस्फोटक के साथ परिवार ने पहले से ही धमाके की तैयारी कर रखी थी। जैसे ही अधिकारी पास पहुंचे तो इस्मत अहमद इब्राहिम की बीवी फातिमा ने अपने बच्चों समेत खुद को धमाके में उड़ा दिया। जिसमें श्रीलंकाई 3 पुलिस अधिकारी मारे गये।
इसकी जांच एजेंसियों ने बिजनेसमैन इब्राहिम और 30 साल के तीसरे बेटे इजास एहमद इब्राहिम को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। जबकि चौथा सबसे छोटा इस्माइल अहमद इब्राहिम फिलहाल फरार है। एजेंसियों को पता चला है कि इस्माइल भी इस साजिश में शामिल था। यानि पूरे अरबपति बिजनेसमैन परिवार का इन धमाकों में शामिल होने की आशंका है।
जांच में पता चला है कि श्रीलंका के नेशनल तौहीद जमात लोकल स्तर पर आतंकी गतिविधियों को चला रहे थे। फंड और आइडियोलॉजी के लेवल पर इनको इस्लामिक स्टेट से मदद मिल रही थी। श्रीलंका के वनाथाविल्लुवा शहर में इन आतंकियों का अड्डा था। यहीं पर पिछले साल इस्माइल इब्राहिम और बाकी आतंकियों ने ट्रेनिंग पायी थी। इसी साल की शुरूआत में इन्होंने प्राचीन नगरी अनुराधापुरा की ऐतिहासिक बुद्धिस्ट धरोहर इमारतों को उड़ाने का प्लान बनाया था। जिसके कंपाउंड में भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद किया गया था। यानी इन इस्लामिक आतंकियों का ये प्लान फेल हो गया। लेकिन इसके बाद मार्च में तौहीद जमात के आतंकियों ने हाइवे मिनिस्टर के सेक्रेटरी मोहम्मद रज्जाक तस्लीम की हत्या कर दी थी, जोकि इस्लामिक कट्टरपंथ का जोरदार विरोधी था। हर बार ये आतंकी जांच एजेंसियों से बचते रहे और नतीजा ये हुआ कि आखिरकार ईस्टर के दिन इन आतंकियों ने सबसे बड़े हमले को अंजाम दिया।
श्रीलंका के 7 बम धमाकों में कुल 45 बच्चों के मारे जाने की खबर है। इनमें बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के चचेरे भाई का पोता भी शामिल था। 8 साल का जायन चौधरी धमाके के वक्त होटल में अपने पिता के साथ ब्रेकफास्ट कर रहा था, जब सुसाइड बॉम्बर ने खुद को उड़ा दिया।
इसके अलावा मारे गये लोगों में डेनमार्क के सबसे अमीर बिजनेसमैन एंडर्स हॉलच पोवलसेन, जोकि स्कॉटलैंड के सबसे बड़े जमीन के मालिक भी हैं, के तीन बच्चे शामिल हैं। एंडर्स जाने माने फैशन ब्रांड एसोस के भी मालिक हैं, जोकि छुट्टियां बिताने के लिए श्रीलंका अपने बच्चों के साथ आये हुए थे। होटल में हुए धमाके में एंडर्स के तीन बच्चे मारे गये।
धमाकों के बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे समेत कईं जांच अधिकारियों ने माना कि भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने श्रीलंका के साथ इस्लामिक आतंकियों द्वारा बम धमाकों की साजिश की जानकारी शेयर की थी। जिसमें साफतौर पर कहा गया था कि तौहीद जमात के आतंकी कैथोलिक चर्च औऱ इंडियन एंबेसी पर हमले की योजना बना रहे हैं। लेकिन श्रीलंका ने इस पर कार्रवाई नहीं की। ताजा जानकारी के मुताबिक ईस्टर के दिन धमाकों से ठीक कुछ घंटों पहले भी रॉ ने श्रीलंका को सीरियल ब्लास्ट के लिए चेताया था। लेकिन श्रीलंकन एजेंसियां इनको रोकने में बुरी तरह नाकाम रहीं।
दरअसल तमिलनाडु पुलिस ने तमिलनाडु तौहीद जमात के लीडर जाहरान हाशमी को हिरासत में लिया था, जिसका छोटा भाई रिलवान हाशमी और श्रीलंका आर्मी का पूर्व जवान बदरूद्दीन मोहम्मद मोइयूद्दीन श्रीलंका में इस्लामिक स्टेट के संपर्क में था, और आतंकियों गतिविधियों को चला रहा था।
तमिलनाडू में भी इन्होंने अच्छा खासा सोशल सर्विस ग्रुप तैयार कर लिया था, जोकि आमतौर पर राजनीतिक गतिविधियों, रोहिग्यां मामले में धरने-प्रदर्शन जैसी गतिविधियों को अंजाम दे रहा था। इसके कईं लीडर देश की जानी मानी राजनीतिक हस्तियों के साथ भी देखे गये हैं।
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तौहीद जमात का मुख्यालय तमिलनाडु में
श्रीलंका के बम धमाकों में 6 भारतीयों सहित 290 निरपराध लोगों को मारने में जिस तौहीद जमात का नाम आ रहा है उसका मुख्यालय तमिलनाडु में है। एएफपी के मुताबिक श्रीलंका में जिन 13 लोगों की शुरुआती गिरफ्तारी की गयी है वो सभी इसी तौहीद जमात के सदस्य हैं।
तमिलनाडु में तौहीद जमात की स्थापना एक तमिल मुस्लिम अरिंगर कुझु ने की थी जिसका मकसद है पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सच्चे इस्लाम को फैलाया जाए। दारुल उलूम देवबंद की तरह यह भी एक कट्टरपंथी सुन्नी इस्लामी समूह है जो वहाबी विचारधारा से प्रभावित है। यह इस्लामिक समूह वैसे तो सभी गैर मुस्लिमों को अल्लाह का दुश्मन मानती है लेकिन इसका जोर ईसाई समूहों पर अधिक है।
तौहीद जमात भटके हुए इसाइयों को अल्लाह के रास्ते पर लाने के लिए एक वेबसाइट भी चलाती है जो कि तमिल भाषा में है। तौहीद जमात जिसका मतलब होता है सिर्फ अल्लाह में विश्वास रखनेवाला समूह, वह इस समय भारत के अलावा प्रमुख रूप से श्रीलंका में सक्रिय है। श्रीलंका में बम धमाकों के पहले भारत में कुछ साल पहले बाबा रामदेव के पतंजलि उत्पादों के खिलाफ फतवा देकर यह संगठन चर्चा में आया था।
सवाल ये है कि भारत सरकार क्या कार्रवाई करेगी? क्या भारत की भूमि इस तरह आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल होगी और सरकारें चुपचाप बैठी रहेंगी? अगर ढाका में हुए आतंकवादी हमले में नाम आने के बाद जाकिर नाईक को भारत में बैन कर दिया गया तो क्या तौहीद जमात को बैन नहीं किया जा सकता?
– संजय तिवारी