राजस्थान में लोकसभा चुनाव ज्यों ज्यों नजदीक आते जा रहे हैं उसी प्रकार भाजपा और कांग्रेस के सियासी बयानों में तल्खी भी बढ़ती जा रही है। भाजपा विधानसभा चुनाव हारने का बदला लोकसभा चुनावों में पूरा करना चाहती है। स्थानीय मुद्दे जिन्हें लेकर कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर किया था, वे आज भी यथावत हैं। कांग्रेस शासन के पांच माह बीत जाने के बाद भी उनमें कोई जमीनी परिर्वतन नहीं आया है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के साथ राष्ट्रवाद के मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है। जबकि कांग्रेस भाजपा को रोजगार, मंहगाई, नोटबंदी एवं जीएसटी को मुद्दा बना कर घेरना चाहती है।
राजनैतिक पण्डितों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को मुख्यधारा से अलग करने के बाद भाजपा संगठन बिखरा हुआ सा लग रहा है। विधानसभा चुनाव में हुई भाजपा की हार के पीछे के कुछ कारण अब भी परेशान कर रहे हैं उन कारणों का पार्टी कोई ठोस हल नहीं निकाल पाई है। हालांकि राजस्थान में आम जनता द्वारा की जा रही चुनावी चर्चा में स्थानीय मुद्दों को छोड़कर राष्ट्रवाद और नरेन्द्र मोदी ही सामने आ रहे हैं। कांग्रेस की ओर से भरसक प्रयास हो रहा है कि यह चुनाव रोजगार, नोटबन्दी के आस पास ही रहे। जिस प्रकार से नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में देश की सुरक्षा को लेकर बोलते हैं उसके आगे कांग्रेस के मुद्दे आम जनता के सोशल मीडिया पर हेड लाईन नहीं बन पा रहे हैं।
जातिवाद को लपेटकर आगे बढऩे वाले नेताओं का मानना था कि जोधपुर से उम्मीदवार एवं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेशाध्यक्ष बनाने के प्रयास और बाद में विरोध के स्वर उठने तथा मानवेंद्र सिंह के पाला बदलने के बाद राजपूत समाज में भाजपा को लेकर कई प्रकार की विरोधी धारणाएं थी। उसी प्रकार सांसद कर्नल सोनाराम का टिकट काटने पर पश्चिम राजस्थान में जाटों की नाराजगी होने के कयास लगाये जा रहे थे। वहीं भाजपा के लिये समय समय पर अवरोधक बनते रहे डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की घर वापसी का भी विधानसभा चुनाव में कोई फायदा नहीं मिला तथा लोकसभा चुनाव में भी डॉ. मीणा के नेतृत्व को उन्हीं के समाज से चुनौती मिलने लगी है। क्या इसका लाभ कांग्रेस उठा पायेगी? सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के कयास के चलते गुर्जर समाज ने भी कांग्रेस का विधानसभा चुनाव में पूरा साथ दिया था, लेकिन पायलट को सरकार का नेतृत्व नहीं देने से गुर्जर समाज की नाराजगी का फायदा भी भाजपा को मिल सकता है ऐसा राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है। ऐसे में इन जातीय समीकरणों का लाभ किसको मिलेगा यह तो समय ही बतायेगा।
जोधपुर संसदीय क्षेत्र इस बार सुर्खियों में है। प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव कांग्रेस से और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत भाजपा के प्रत्याशी हैं। कांग्रेस-भाजपा के लिए यह सीट नाक का सवाल बन चुकी है। कांग्रेस की तरफ से गहलोत अपने बेटे के लिए पूरा दमखम लगा रहे हैं। वहीं भाजपा भी जोधपुर का गढ़ जीतने को पूरी मेहनत कर रही है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी सभा के बाद अमित शाह भी रोड शो करेंगे। दोनों नेता अमूमन एक शहर में चुनावी सभाएं नहीं करते है, लेकिन इस बार वे दोनों यहां आ रहे हैं।
2014 लोकसभा चुनाव में देशभर में चली मोदी लहर पर सवार होकर गजेन्द्र सिंह शेखावत ने 4.10 लाख मत से रिकॉर्ड जीत हासिल की थी। चार माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव के पश्चात जिले की राजनीति के समीकरण काफी बदल गए। जोधपुर संसदीय क्षेत्र की आठ विधानसभा सीट में से कांग्रेस ने छह पर जीत हासिल कर ली। जबकि भाजपा के खाते में महज दो सीट ही आ पाई। गत लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड जीत हासिल करने वाली भाजपा का मत प्रतिशत कम होकर 39.88 फीसदी ही रह गया। जबकि कांग्रेस ने 47.96 फीसदी मत हासिल किए।
लोकसभा चुनाव में क्षेत्र की समस्याओं से जुड़े सभी मुद्दे गौण हो चुके हैं। तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने गहलोत चालीस साल के अपने राजनीतिक जीवन के दौरान जोधपुर में कराए गए विकास कार्यों का हवाला देकर मतदाताओं से अपने पुत्र को विजयी बनाने की अपील कर रहे हैं। साथ ही वे अपने व्यक्तिगत संपर्कों के जरिये माइक्रो मैनेजमेंट पर फोकस कर रहे हैं। दूसरी तरफ केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री शेखावत पूरी तरह से प्रधानमंत्री मोदी के भरोसे हैं। वे हर जगह मोदी के हाथ मजबूत करने को वोट मांग रहे हैं। गहलोत को घर में घेरने के लिए नरेन्द्र मोदी की जोधपुर में चुनावी सभा तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह यहां रोड शो करेंगे। जबकि गहलोत अपने पुत्र के पक्ष में प्रचार करने के लिए प्रियंका गांधी को बुलाने की कोशिश में बताये जा रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश नेतृत्व फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के भरोसे ही है। गहलोत ने केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर नोटबंदी की जांच कराने की घोषणा करते हुए भाजपा को रोजगार नहीं देने, मंहगाई बढऩे तथा समाज में वैमनस्य फैलाने के लिये कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है। उन्होंने मतदाताओं को यह भी चेताने का प्रयास किया है कि नरेंद्र मोदी दुबारा प्रधानमंत्री बने तो लोकतंत्र खत्म हो जायेगा तथा आगे चुनाव नहीं होंगे। जबकि देश की सुरक्षा और राष्ट्रवाद को लेकर भाजपा चुनावी सभाओं में ही भीड़ जुटाने में सफल हो रही है। सोशल मीडिया पर भी कांग्रेस से कहीं आगे हैं।
रेगिस्तान का सिंह द्वार कहलाने वाले कांग्रेस के गढ़ जोधपुर में भाजपा सेंधमार कर चुकी है। यहां अब तक हुए चुनावों में आठ बार कांग्रेस और चार-चार बार भाजपा व निर्दलीय ने बाजी मारी। जबकि एक बार जनता पार्टी का प्रत्याशी विजयी रह चुका है। कांग्रेस की आठ बार की जीत में गहलोत की अहम भूमिका रही। वे यहां से पांच बार सांसद रहे। लेकिन इस बार के चुनाव में जीत हासिल करना उनके लिये बहुत बड़ा दाव बताया जा रहा है। कांग्रेस से सम्बन्ध रखने वाले लोगों का कहना है कि यदि गहलोत जोधपुर में अपने पुत्र को जीत हासिल नहीं करा पाते हैं तो सत्ता के लिये लालायित दूसरा गुट उन्हें कभी चैन से नहीं रहने देगा। जिसका अंदेशा गहलोत को भी बताया जा रहा है। इसलिये भाजपा ही नहीं वह भी चाहता है कि गहलोत जोधपुर में ही सिमट कर रह जाये।
यदि राजनीतिक गलियारों की चर्चा और उस पर वैचारिक लाईनों को छोटा बड़ा करते विचारवानों के आंकलन को देखा जाये तो यह लोकसभा चुनाव जितना केन्द्र में सत्ता पाने के लिये भाजपा और कांग्रेस के लिये अहम लगता है उसी प्रकार प्रदेश की सियासत में भी अत्यधिक अहम बना हुआ बताया जा रहा है। इनके अनुसार ये चुनाव मुख्यमंत्री गहलोत का कद भी छोटा बड़ा कर सकता है, जिसके परिणाम दूरगामी होंगे।
रामस्वरूप रावतसरे