अहिंसा की एक बड़ी प्रयोग भूमि भारत में आज साम्प्रदायिकता, अनैतिकता, हिंसा के घने अंधकार में एक संत-चेतना चरैवेति-चरैवेति के आदर्श को चरितार्थ करते हुए पांव-पांव चलकर रोशनी बांट रही है। जब-जब धर्म की शिथिलता और अधर्म की प्रबलता होती है, तब-तब भगवान महावीर हो या गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद हो या महात्मा गांधी, गुरुदेव तुलसी हो या आचार्य महाप्रज्ञ-ऐसे अनेक महापुरुषों ने अपने क्रांत चिंतन के द्वारा समाज का समुचित पथदर्शन किया है। अब इस जटिल दौर में सबकी निगाहें उन प्रयत्नों की ओर लगी हुई हैं, जिनसे इंसानी जिस्मों पर सवार हिंसा, अनैतिकता, नफरत, द्वेष का ज्वर उतारा जा सके। ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य श्री महाश्रमण और उनकी अहिंसा यात्रा इन घने अंधेरों में इंसान से इंसान को जोड़ने का उपक्रम बनकर प्रस्तुत हो रही है, उनका सम्पूर्ण उपक्रम प्रेम, भाईचारा, नैतिकता, सांप्रदायिक सौहार्द एवं अहिंसक समाज का आधार प्रस्तुत करने को तत्पर है। वे मिट्टी से मानुष गढ़ने वाली महान् संत-चेतना हैं। वे व्यक्ति-प्रबन्धन कैसे करते हैं, मनुष्य को कैसे पहचानते हैं और अपने वृहत्तर आन्दोलनों के लिये कैसे उनके योगदान को प्राप्त करते हैं, नये मूल्य मानक कैसे गढ़ते हैं, हर दिन लम्बी-लम्बी पदयात्राएं करते हुए भी शांति एवं अहिंसा स्थापना के उपक्रमों को कैसे आकार देते हैं, वह अपने आप में विस्मय एवं अनुकरण का विषय है।
आज देश में गहरे हुए घावों को सहलाने के लिए, निस्तेज हुई मानवता को पुनर्जीवित करने एवं इंसानियत की बयार को प्रवहमान करने के लिए ऐसे महापुरुष/अवतार की अपेक्षा है जो मनुष्य जीवन के बेमानी होते अर्थों में नए जीवन का संचार कर सकें। आचार्य श्री महाश्रमण ऐसे ही एक महापुरुष हैं, जिनके प्रयत्नों से सांप्रदायिकता की आग को शांत किया जा सकता है।
आचार्य श्री महाश्रमण अहिंसा यात्रा के विशेष उपक्रम को लेकर सुदूर प्रान्तों सहित पडोसी राष्ट्र भूटान-नेपाल की पदयात्रा करते हुए इनदिनों कर्नाटक प्रांत में यात्रायित हैं। उनकी यह पदयात्रा जब राष्ट्रीय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय होकर सम्पूर्ण मानवता को अहिंसा से अभिप्रेरित करने वाली है तब देश ही नहीं, दुनिया की नजरें घटित होने वाली इस अभिनव क्रांति की ओर टकटकी लगाये हंै। यह पहला अवसर बना है जब किसी जैन आचार्य ने पदयात्रा करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्रों का स्पर्श किया हैं। आचार्य महाश्रमण स्वकल्याण और परकल्याण के संकल्प के साथ 30,000 से अधिक किलोमीटर की पदयात्रा से जनमानस को उत्प्रेरित कर मानवता के समुत्थान का पथ प्रशस्त कर रहे हैं। अहिंसा यात्रा हृदय परिवर्तन के द्वारा अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, हिंसा से अहिंसा की ओर प्रस्थान का अभियान है। यह यात्रा कुरूढ़ियों में जकड़ी ग्रामीण जनता और तनावग्रस्त शहरी लोगों के लिए भी वरदान है। जाति, सम्प्रदाय, वर्ग और राष्ट्र की सीमाओं से परे यह यात्रा बच्चों, युवाओं और वृद्धों के जीवन में सद्गुणों की सुवास भरने के लिये तत्पर है। आचार्य श्री महाश्रमण ने इस अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्य निर्धारित हैं-सद्भावना का संप्रसार, नैतिकता का प्रचार-प्रसार एवं नशामुक्ति का अभियान। इंसानियत की ज्योति को प्रज्ज्वलित करने वाली इस अहिंसा यात्रा के दौरान हजारों ढाणियों, गांवों, कस्बों, नगरों और महानगरों के लाखों-लाखों लोग न केवल आपके दर्शन और पावन पथदर्शन से लाभान्वित हुए, अपितु आपसे विविध संकल्पों को स्वीकार कर वे अमन-चैन की राह पर प्रस्थित भी हुए हैं।
अपने स्वास्थ्य की चिन्ता न करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने अपने अहिंसा यात्रा के संकल्प को दृढ़ता से दोहराया है। उनके दृढ़ संकल्प, मानवीय उत्थान के लिए अहिंसक प्रयत्न एवं निडरता को नमन! महात्मा गांधी ने लिखा है-मेरी अहिंसा का सिद्धांत एक अत्यधिक सक्रिय शक्ति है, इसमें कायरता तो दूर, दुर्बलता तक के लिए स्थान नहीं है। गांधीजी ने अहिंसा को एक महाशक्ति के रूप में देखा और उसके बल पर उन्होंने भारत को आजादी भी दिलवाई। आचार्य श्री महाश्रमण भी अहिंसा यात्रा के माध्यम से देश और दुनिया में शांति, सद्भावना, नैतिकता एवं अमन-चैन को लौटाना चाहते हैं। निश्चित ही यह शुभ संकल्प है और आचार्य महाश्रमण जैसे महापुरुष ही ऐसे संकल्प लेने की सामथ्र्य रखते हैं। जिन प्रान्तों एवं देशों में अहिंसा यात्रा का विचरण हुआ वहां की जनता को आचार्य श्री महाश्रमण का आध्यात्मिक संबल एवं मानवीयता का सिंचन मिला, अहिंसा का वातावरण बना, इंसान को इंसान बनाने की सकारात्मक फिजाएं निर्मित हुई है। हिंसा, नफरत एवं द्वेष से आक्रांत जन-जन में एक नया विश्वास जगा कि आचार्य महाश्रमण के प्रयत्नों से उनकी धरती पुनः अहिंसा, नैतिकता, सांप्रदायिक सौहार्द एवं इंसानियत की लहलहाती हरीतिमा के रूप में अपनी आभा को प्राप्त करने की ओर अग्रसर हुई हैं।
मैंने आचार्य महाश्रमण को बहुत निकटता से देखा, बचपन से ही उनकी सन्निधि में जीवन को संवारने का अवसर प्राप्त हुआ। जनकल्याण एवं जनजागरण को वे अपनी साधना का ही एक अंग मानते थे। इसीलिए उनकी साधना गिरिकंदराओं में कैद न होकर मानवजाति के कल्याण एवं योगक्षेम के साथ जुड़ी हुई थी। उनकी साधना के स्वरों में कृत्रिमता नहीं, अपितु हृदय की वेदना एवं अनुभूति बोलती हैं अतः सीधी हृदय पर चोट करती हैं। यही कारण है कि उन्होंने आध्यात्मिक विकास के नए-नए प्रयोग किए। अणुव्रत आंदोलन, प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान जैसे उपक्रमों के साथ-साथ अनेक संस्थाएं एवं रचनात्मक उपक्रमों का उनके नेतृत्व में संचालन हो रहे हैं, जिनमें जैन विश्वभारती, अणुव्रत विश्वभारती, अणुव्रत महासमिति, जय तुलसी फाउंडेशन आदि सार्वजनकि संस्थान है। आचार्य महाश्रमण की साधना का ही प्रतिफल है कि न केवल शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, साधना एवं योग के क्षेत्र में बल्कि राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अनेक नये-नये कीर्तिमान स्थापित हुए। धर्म को प्रायोगिक बनाने के लिए वे आगम-संपादन, साहित्य-सृजन, नैतिक उन्नयन एवं साधना के गहन प्रयोगों में संलग्न हैं। उनके हर प्रयोग से समाज एवं देश को नई दिशा और नया प्रकाश मिल रहा है।
आचार्य महाश्रमण आध्यात्मिक जगत के विश्रुत धर्मनेता हैं। उनके प्रवचनों में धर्म और अध्यात्म की चर्चा होना बहुत स्वाभाविक है। पर उन्होंने जिस पैनेपन के साथ धर्म को वर्तमान युग के समक्ष रखा है, वह सचमुच मननीय है। जीवन की अनेक समस्याओं को उन्होंने धर्म के साथ जोड़कर उसे समाहित करने का प्रयत्न किया है। संस्कृति के संदर्भ में संकीर्णता की मनोवृत्ति उन्हें कभी मान्य नहीं रही है। वे हिन्दू संस्कृति को बहुत व्यापक परिवेश में देखते हैं। हिन्दू शब्द की जो नवीन व्याख्या उन्होंने दी है, वह देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में पर्याप्त है। वे नारी जाति के उन्नायक हैं। वे मानते हैं कि महिला वह धुरी है, जिसके आधार पर परिवार की गाड़ी सम्यक् प्रकार से चल सकती है। उनकी प्रेरणा से युगों से आत्मविस्मृत नारी को अपनी अस्मिता और कर्तृत्वशक्ति का तो अहसास हुआ ही है, साथ ही उसकी चेतना में क्रांति का ऐसा ज्वालामुखी फूटा है, जिससे अंधविश्वास, रूढ़संस्कार, मानसिक कुंठा और अशिक्षा जैसी बुराइयों के अस्तित्व पर प्रहार हुआ है।
शांति, प्रेम एवं सद्भावना के लिए मानवता तरस रही है। यह प्यास कौन बुझाएगा? अभयी आचार्य श्री महाश्रमणजी! आप अहिंसा के प्रति वचनबद्ध हैं। इसलिए प्रेम का जल देने, नैतिकता की स्थापना करने एवं स्वस्थ जीवनशैली को जन-जीवनशैली बनाने के लिये आपको नया पृष्ठ लिखना ही होगा, यही वर्तमान की जरूरत है। आचार्य श्री महाश्रमण जैसे महान आध्यात्मिक संतपुरुष का उस धरती को स्पर्श मिलना निश्चित ही शुभ और श्रेयस्कर है। आज देश और दुनिया को अहिंसा की जरूरत है, शांति की जरूरत है, नैतिकता की जरूरत है, अमन-चैन की जरूरत है, सांप्रदायिक सौहार्द की जरूरत है-ये स्थितियाँ किसी राजनीतिक नेतृत्व से संभव नहीं हैं। इसके लिए आचार्य श्री महाश्रमण जैसे संतपुरुषों का नेतृत्व ही कारगर हो सकता है। आचार्य श्री महाश्रमण ही ऐसी आवाज उठा सकते हैं कि यह मौका तोड़ने का नहीं जोड़ने का है, टूटने का नहीं जुड़ने का है और इसका मतलब अपने अहं के अंधेरों से उभरने का है।
मेरा अभिमत है कि आचार्य श्री महाश्रमण के आह्वान पर भ्रष्टाचार एवं आपराधिक राजनीति से आकंठ पस्त एवं सांप्रदायिकता की विनाशलीला से थके-हारे, डरे-सहमे लोग अहिंसा और नैतिकता की शरण स्वीकार करेंगे, सांप्रदायिक सौहार्द एवं सद्भावना की घोषणा करेंगे। हिंसा से हिंसा, नफरत से नफरत एवं घृणा से घृणा बढ़ती है। इस दृष्टि से आचार्य महाश्रमण एक उजाला है, जिससे पुनः अमन एवं शांति कायम हो सकती है। इतिहास साक्षी है कि समाज की धरती पर जितने घृणा के बीज बोए गए, उतने प्रेम के बीज नहीं बोए गए। आचार्य श्री महाश्रमण इस ऐतिहासिक यथार्थ को बदलने की दिशा में प्रयत्न है। मेरा विश्वास है कि आचार्य श्री महाश्रमणजी की अहिंसा में इतनी शक्ति है कि सांप्रदायिक हिंसा में जकड़े हिंसक लोग भी उनकी अहिंसक आभा के पास पहुँच जाएँ तो उनका हृदय परिवर्तन निश्चित रूप से हो जाएगा, पर इस शक्ति का प्रयोग करने हेतु बलिदान की भावना एवं अभय की साधना जरूरी है। अहिंसा में सांप्रदायिकता नहीं, ईष्र्या नहीं, द्वेष नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक व्यापकता है, जो संकुचितता और संकीर्णता को दूर कर एक विशाल सार्वजनिन भावना को लिए हुए है।
अहिंसा और नैतिकता की शक्ति असीमित है, पर अब तक उस शक्ति के लिए सही प्रयोक्ता नहीं मिले। आज जब आचार्य श्री महाश्रमणजी जैसे प्रयोक्ता हैं तो हमें भयभीत होने की जरूरत नहीं है। यों तो अहिंसा और नैतिकता सभी महापुरुषों के जीवन का आभूषण है, किंतु आचार्य महाश्रमण जैसे कालजयी व्यक्तित्व न केवल अहिंसक जीवन जीते हैं वरन समाज को भी उसका सक्रिय एवं प्रयोगात्मक प्रशिक्षण देते हैं। आज ऐसे ही सक्रिय एवं प्रयोगात्मक प्रशिक्षण की जरूरत है। 13 मई, 2019 को आचार्य महाश्रमण को शत-शत नमन।
(ललित गर्ग)