आर्सेनिक से प्रदूषित जल का उपयोग स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन में पता चला है कि उत्तर प्रदेश की करीब 2.34 करोड़ ग्रामीण आबादी भूमिगत जल में मौजूद आर्सेनिक के उच्च स्तर से प्रभावित है। विभिन्न जिलों से प्राप्त भूमिगत जल के 1680 नमूनों का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
इस अध्ययन में उत्तर प्रदेश के 40 जिलों के भूजल में आर्सेनिक का उच्च स्तर पाया गया है। राज्य के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित जिलों में आर्सेनिक का उच्च स्तर पाया गया है। इनमें से अधिकांश जिले गंगा, राप्ती और घाघरा नदियों के मैदानी भागों में स्थित हैं। बलिया, गोरखपुर, गाजीपुर, बाराबंकी, गोंडा, फैजाबाद और लखीमपुर खीरी आर्सेनिक से सबसे अधिक प्रभावित जिले हैं।
शाहजहांपुर, उन्नाव, चंदौली, वाराणसी, प्रतापगढ़, कुशीनगर, मऊ, बलरामपुर, देवरिया और सिद्धार्थनगर के भूजल में आर्सेनिक का मध्यम स्तर पाया गया है। उत्तर प्रदेश की करीब 78 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है जो सिंचाई, पीने, भोजन पकाने और अन्य घरेलू कामों के लिए भूजल पर निर्भर है। ग्रामीण क्षेत्रों में आर्सेनिक से प्रभावित होने का खतरा अधिक है क्योंकि शहरों की तुलना में वहां पाइप के जरिये जल आपूर्ति का विकल्प उपलब्ध नहीं है।
शोधकर्ताओं में शामिल नई दिल्ली स्थित टेरी स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज से जुड़े डॉ चंदर कुमार सिंह ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “बलिया, गोरखपुर, गाजीपुर, फैजाबाद और देवरिया जैसे जिलों में आर्सेनिक के अधिक स्तर के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट गंभीर हो सकता है। आर्सेनिक के दुष्प्रभाव से लोगों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर हैंडपंप या कुओं के पानी का परीक्षण करने की जरूरत है।”
अध्ययनकर्ताओं ने भूमिगत जल के नमूनों का परीक्षण एक खास किट की मदद से किया है और इस किट से प्राप्त आंकड़ों की वैधता की पुष्टि प्रयोगशाला में की गई है। आर्सेनिक के स्तर को प्रभावित करने वाले 20 प्रमुख मापदंडों को केंद्र में रखकर यह अध्ययन किया गया है। इन मापदंडों में भौगोलिक स्थिति, जलकूपों की गहराई, मिट्टी की रासायनिक एवं जैविक संरचना, वाष्पन, भूमि की ढलान, नदी से दूरी, बहाव क्षेत्र और स्थलाकृति शामिल है। इन आंकड़ों के आधार पर कंप्यूटर मॉडलिंग सॉफ्टवेयर की मदद से आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों का मानचित्र तैयार किया गया है।
पीने के पानी के लिए हैंडपंप या ट्यूबवेल पर निर्भर इलाकों में भूजल में आर्सेनिक प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए एक प्रमुख खतरा है। आर्सेनिक के संपर्क में आने से त्वचा पर घाव, त्वचा का कैंसर, मूत्राशय, फेफड़े एवं हृदय संबंधी रोग, गर्भपात, शिशु मृत्यु और बच्चों के बौद्धिक विकास जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
डॉ. सिंह का कहना है कि पूर्वानुमानों पर आधारित इस तरह के अध्ययनों की मदद से आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में ध्यान केंद्रित करने में नीति निर्माताओं को मदद मिल सकती है। शोधकर्ताओं में डॉ चंदर कुमार सिंह के अलावा उनकी शोध छात्र सोनल बिंदल शामिल थीं। यह अध्ययन शोध पत्रिका वाटर रिसर्च में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)