विपक्ष के किसी नेता को इतनी बुरी हार का अंदाजा नहीं था। सभी को लगता था कि मोदी आर्थिक मोर्चे पर और रोजगार के मामले में जिस तरह जन आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरे, तो आम जनता में अंदर ही अंदर एक आक्रोश पनप रहा है, जो विपक्ष के फायदे में जाएगा। मोदी के आलोचक राजनैतिक विश्लेषक मानते थे कि मोदी की 170 से ज्यादा सीटें नहीं आएंगी। हालांकि वे ये भी कहते थे कि मोदी लहर, जो ऊपर से दिखाई दे रही है, अगर वह वास्तविक है, तो मोदी 300 से ज्यादा सीटें ले जाएंगे।
उनके मन में प्रश्न है कि मोदी क्यों जीते? कुछ नेताओं ने ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। जबकि ज्यादातर लोग ऐसा मानते हैं कि इस आरोप में कोई दम नहीं है। दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं। पर यह भी सही है कि दुनिया के ज्यादतर देश ईवीएम से चुनाव नहीं करवाते। इसलिए विपक्षी दलों की मांग है कि पुरानी व्यवस्था के अनुरूप मत पत्रों से ही मतदान होना चाहिए।
पर जो सबसे महत्वपूर्ण बात विपक्ष नहीं समझा, वो ये कि मोदी ने चुनाव को एक महाभारत की तरह लड़ा और हर वो हथियार प्रयोग किया, जिससे इतनी भारी विजय मिली। सबसे पहले तो इस बार का चुनाव सांसदों का चुनाव नहीं था। अमेरिका की तरह राष्ट्रपति चुनने जैसा था। देशभर में लोगों ने अपने संसदीय प्रत्याशी को न देखकर मोदी को वोट दिया। ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ का नारा चरितार्थ हुआ। हर मतदाता के दिलों दिमाग पर केवल मोदी का चेहरा था। यह अमित शाह और मोदी की रणनीति का सबसे अहम पक्ष था। दूसरी तरफ मोदी को टक्कर देने वाला एक भी नेता, उनके कद का नहीं था। जिससे पूरा देश नेतृत्व करने की अपेक्षा रखता।
यूं तो उ.प्र. में गठबंधन कोई विशेष सफलता हासिल नहीं कर पाया। पर सभी राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सारे विपक्षी दल एक झंडे और एक नेता के पीछे लामबंद हो जाते, तो उन्हें आज इतनी अपमानजनक पराजय का मुंह न देखना पड़ता। पर ऐसा नहीं हुआ। इससे मतदाता में यह साफ संदेश गया कि जो विपक्ष अपना नेता तक नहीं चुन सकता, जो विपक्ष एक साथ एक मंच पर नहीं आ सकता, वो देश को क्या नेतृत्व देगा। इसलिए जो लोग मोदी की नीतियों से अप्रसन्न भी थे, उनका भी यह कहना था कि ‘विकल्प ही कहां है’। इसलिए उन्होंने भी मोदी को वोट दिया।
मोदी की सफलता का एक अन्य कारण यह भी था कि मोदी ने विकास के मुद्दों को छोड़कर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को चुनाव अभियान का मुख्य लक्ष्य बनाया। जब देश की सीमाओं की सुरक्षा की बात आती है, तब हर भारतीय भावुक हो जाता है। ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ का उद्घोष हर घर में होने लगता है। इसलिए मतदाता मंहगाई, रोजगार, सामाजिक लाभ की न सोचकर, केवल देश की सुरक्षा पर सोचने लगा और उसे लगा कि इन हालातों में मोदी ही उनकी रक्षा कर सकते हैं।
हिंदू-मुस्लिम का कार्ड भी बेखटक खेला गया। जिससे हिंदुओं का मोदी के पक्ष में क्रमश: झुकाव बढ़ता चला गया और पाकिस्तान को अपनी दुश्मनी का लक्ष्य बनाकर, मतदाताओं के बीच देशभक्ति का जज्बा पैदा किया गया। ऐसा कोई एजेंडा विपक्ष नहीं दे पाया, जिस पर समाज का इतना बड़ा झुकाव उनकी तरफ हो पाता। विपक्ष ने भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों को उठाया, उस पर वह मतदाताओं को आंदोलित नहीं कर पाया। क्योंकि एक तो वे उनसे सीधे जुड़े नहीं थे, दूसरा मुद्दा उठाने वाला विपक्ष ही हमेशा से भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा रहा है।
जहां एक तरफ नीरव मोदी, विजय माल्या, अनिल व मुकेश अंबानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों पर मोदी राज में देश लूटने का आरोप लगाया गया, वहीं विपक्ष यह भूल गया कि मोदी ने बड़ी होशियारी से गांवों में अपनी पैठ बनाकर, कुछ ऐसे सीधे लाभ ग्रामवासियों को दिलवा दिए, जिससे उनकी लोकप्रियता गरीबों के बीच बहुत तेजी से बढ़ गई। मसलन गांवों में बिजली और सड़क पहुंचाना, निर्धन लोगों के घर बनवाना और लगभग घर-घर में शौचालय बनवाना। जिन्हें ये मदद मिली, उनका मोदी से खुश होना लाजमी है। पर जिन्हें यह लाभ नहीं मिल पाए, वे इसलिए मोदी का गुणगान करने लगे जिससे कि जल्द ही उनकी बारी भी आ जाए। ऐसा एक भी आश्वासन विपक्ष इन गरीब मतदाताओं को नहीं दे पाया।
मोदी या भाजपा की जीत का एक सबसे बड़ा कारण इनकी संगठन क्षमता है। आज भाजपा जैसा संगठन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसा समर्पित कार्यकर्ता किसी भी राजनैतिक दल के पास नहीं है, जो मतदाताओं को बूथ स्तर तक प्रभावित कर सके। जहां तक संसाधनों की बात है, आज भाजपा के पास अकूत दौलत है। जिससे उसने इन चुनावों को एक महाभारत की तरह लड़ा और जीता।
ये पहला मौका है, जहां संघ प्रेरित भाजपा, अपने आप पूर्ण बहुमत में है। निश्चय ही हर हिंदू को मोदी से अपेक्षा है कि वे अविलंब राम मंदिर का निर्माण करवाएंगे, धारा 370 और 35 ए समाप्त करेंगे, कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में बसाएंगे, बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालेंगे और देश के करोड़ों नौजवानों को रोजगार देंगे, जिसका वे जोरदारी से दावा करते आए हैं। भारी बहुमत से मोदी को जिताने वाली जनता इनमें से कुछ लक्ष्यों की प्राप्ति अगले 6 महीनों में पूरी होती देखना चाहती है। अब यह बात निर्भर करेगी परिस्थतियों पर और मोदी जी की इच्छा शक्ति पर, कि वे कितनी जल्दी इन लक्ष्यों की पूर्ति कर पाते हैं।