इस विषय को मैं दो आर्मी कर्नल, कर्नल राठौड़ और कर्नल शर्मा की कहानी से शुरू करता हूं। ये दोनों एनडीए के दिनों से बैच मेट थे। जैसा कि सेना में पदोन्नति के लिए पिरामिड बहुत संकीर्ण है, दोनों की ही लगभग 23 वर्षों की उत्कृष्ट सेवा के बावजूद ब्रिगेडियर रैंक तक पदोन्नति नहीं हो पाई। इसलिए उन्होंने ‘प्री-मेच्योर रिटायरमेंट’ का विकल्प चुना और सिविल जगत में अपने कौशल को आजमाना चाहा।
दोनों को निजी क्षेत्र में नौकरी मिली। लेकिन कर्नल राठौड़ को प्रबंधन के साथ कुछ अनबन के कारण लगभग छह महीनों बाद ही अपनी नौकरी छोडऩी पड़ी। उन्होंने 3 या 4 महीने के बाद दूसरी नौकरी की, लेकिन वह भी सिर्फ डेढ़ साल के लिए ही कर पाए। इसके बाद, वह ज्यादातर समय घर पर ही बैठे रहते थे और कभी-कभी कुछ अस्थायी कार्य कर लेते थे।
दूसरी ओर, कर्नल शर्मा ने जो नौकरी प्राप्त की उस कंपनी में एक साल बाद ही वीपी के रूप में अपनी पहली पदोन्नति प्राप्त की और उन्हें कंपनी के अध्यक्ष द्वारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया। चौथे वर्ष में, कर्नल शर्मा ने कंपनी के सीईओ के रूप में पदभार संभाला जिसके साथ उनके स्तर में लगभग तीन गुना वृद्धि हुई, जिस स्तर पर उन्होंने चार साल पहले शुरुआत की थी।
कर्नल राठौड़ अपनी पेंशन से ही गुजारा कर रहे थे और इसलिए एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे कहा, ”आप अपने दोस्त के पास क्यों नहीं जाते? उनसे किसी तरह के कार्य के लिए कुछ संदर्भ और सलाह ले लीजिए।’’ इस बात पर कर्नल राठौड़ कर्नल शर्मा से मिले और उन्होंने उन दिनों के बारे में बात करना शुरू कर दिया जो उन्होंने एनडीए में कारगिल और नॉर्थ ईस्ट में विभिन्न पोस्टिंग पर एक साथ बिताये थे। पुराने दिनों को याद करने से मन भर आता है।
तब कर्नल राठौड़ विषय पर आए। उन्होंने कहा ”हम दोनों एक ही समय में सेना में शामिल हुए और हमने अपने कामों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया और हमने सेना को भी लगभग एक साथ छोड़ दिया था।’’
राठौड़ ने जारी रखा ”लेकिन सेना छोडऩे के बाद, मुझे तुमको बधाई देनी चाहिए कि तुमने बहुत अच्छा काम किया है। लेकिन किसी तरह मेरी दूसरी पारी फ्लॉप रही। मुझे यह बात समझ नहीं आई।’’
कर्नल शर्मा पूरे ध्यान से सुन रहे थे। वह कुछ कहना चाहते थे, वह पहले हिचकिचाये और फिर उन्होंने कहा ”मेरे प्यारे दोस्त, क्या तुम्हें याद होगा कि एनडीए में तुम्हारी रैंकिंग मेरी तुलना में बेहतर थी। तुम हमेशा अपने सैनिकों के लिए एक महान नेता साबित हुए। तुमने कारगिल ऑपरेशन में भी अपनी पलटन का नेतृत्व बखूबी किया। तुमने हमेशा अपने सीनियर्स द्वारा जो भी करने के लिए कहा गया था, उसे खूबसूरती से निभाया और हमेशा उसके लिए सम्मानित हुए। लेकिन मेरे अनुसार, एक चीज तुम में हमेशा गायब थी।’’
राठौड़ ने पूछा, ”वह क्या है?’’
”स्वामित्व मानसिकता’’ शर्मा ने जवाब दिया.
”तुम्हारा मतलब क्या है? स्वामित्व मानसिकता सेना में?’’ कर्नल राठौड़ समझ नहीं पाए।
”हां मेरे दोस्त। स्वामित्व मानसिकता। और तुम्हारे पास यह कभी नहीं थी।’’
”क्या तुमको याद है जब हम तेजपुर में तैनात थे? एक दिन शाम को, मेस में खाना खाते समय, हमने महसूस किया कि हमने ऑफिस में सभी लाइट्स ‘ऑन’ छोड़ दी थीं, जैसा कि जब हम ऑफिस से बाहर निकले थे, बिजली चली गई थी। फिर, रात के खाने के समय, लाइट आई और मैंने तुमको बताया कि चलो हम चलते हैं और लाईट बंद करके आते हैं।’’
”उस पर तुम्हारी प्रतिक्रिया थी कि छोड़ो ना यार’’ कर्नल शर्मा ने कहा।
”और फिर मैं बिजली की बर्बादी को बचाने के लिए कार्यालय की लाईट बंद करने के लिए लगभग एक किलोमीटर दूर घनघोर अंधेरे में पहाड़ी रास्ते से अपने हाथ में एक टार्च लेकर कार्यालय के लिए अकेला चला गया था।’’
”मेरे पास हमेशा स्वामित्व की मानसिकता थी। जिस दिन मैं इस निजी कंपनी में शामिल हुआ, मैंने काम किया जैसे कि यह मेरी खुद की कंपनी है। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। जितना मुझे भुगतान किया जा रहा था उससे अधिक मैंने कार्य किया। ‘‘
”लोग सरकारी संगठनों में इस विशेषता के बिना प्रबंधन करने में सक्षम हो जाते हैं। लेकिन याद रखें, वे सिर्फ प्रबंधन करते हैं। निजी क्षेत्र में, आपको स्वामित्व मानसिकता प्रदर्शित करने का मौका मिलता है और उसे करके दिखाना भी पड़ता है।’’
यह सच है कि अधिकतर लोगों में इस स्वामित्व वाली मानसिकता का अभाव है। संगठन में अपनी भूमिका के बारे में बात करते हुए वे हमेशा ‘हम’ और ‘वे’ महसूस करते हैं। यह भी एक तथ्य है कि यह संगठन के वास्तविक मालिकों की जिम्मेदारी है कि वे अपने शीर्ष प्रबंधन, मध्य प्रबंधन और कंपनी के कर्मचारियों के मन में इस प्रकार की भावना पैदा करने के लिए सभी प्रयास करें कि वह कंपनी को अपना समझ कर काम करें।
यहां भी, केवल कह देने से काम नहीं चलेगा। मालिकों और शीर्ष प्रबंधन को वास्तव में अपने कार्यों के माध्यम से प्रदर्शित करना होगा कि वे अपने कर्मचारियों की अच्छी तरह से देखभाल करते हैं। वे उनकी बात सुनते हैं और उनसे नियमित प्रतिक्रिया लेते हैं। और वे अपने कर्मचारियों को भागीदार मानते हैं और कंपनी के विकास के लिए उनकी राय और आकांक्षाओं को उचित भार देते हैं। यहां, मैं प्रबंधकों, जूनियर्स और साथ ही वरिष्ठों और कर्मचारियों को भी सावधान करना चाहूंगा कि वे अपने सीनियर्स के बारे में बिना सोचे समझे कोई निर्णय न लें। उन्हें अन्य सहयोगियों और वरिष्ठों की परवाह किए बिना ‘स्वामित्व मानसिकता’ के साथ अपने स्वयं के प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
आप यह भी देख सकते हैं कि जिन लोगों के दिल में यह स्वामित्व मानसिकता है और वे अपने कार्यों के माध्यम से इसे प्रदर्षित भी करते हैं, वे अपने संगठनों में महान ऊंचाइयों तक पहुंच जाते हैं। टीम के नेताओं को अपनी टीम के सदस्यों को उनके संचालन या परियोजना के क्षेत्र में जवाबदेह और जिम्मेदार बनाकर उन्हें सशक्त बनाना चाहिए। लेकिन आपको उन्हें उचित अधिकार भी देना होगा ताकि वे अपनी भूमिका और जिम्मेदारी के संचालन की सीमाओं के भीतर निर्णय ले सकें।
प्रबंधन को व्यक्तिगत जवाबदेही की संस्कृति बनाने का प्रयास करना चाहिए और अपने कर्मचारियों को अपने संचालन के क्षेत्रों में स्वामित्व लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। यह एक सफल संगठन की सबसे महत्वपूर्ण, शक्तिशाली और वांछित विशेषता है। ‘टाउन हॉल मीटिंग्स’ जैसे औपचारिक मंचों के माध्यम से या यहां तक कि अनौपचारिक मौकों पर जन्मदिन के जश्न या दोपहर के भोजन के दौरान चैट के माध्यम से कर्मचारियों की बात सुनकर और फिर उन इनपुट्स पर काम करने से कर्मचारियों के मन में ‘स्वामित्व मानसिकता’ पैदा करने में मदद मिल सकती है।
तो अब आगे से, आप जहां भी हों, व्यवसाय के मालिक की तरह सोचना शुरू करें और संभावना है कि एक दिन आप वास्तव में सही अर्थों में व्यवसाय के मालिक बन जाएं। अपने प्रदर्शन और सुपुर्दगी को बेहतर बनाने के लिए अपना समय और प्रयास निवेश करना शुरू करें जैसे कि आप व्यवसाय के मालिक हैं। आप जो करते हैं उसके बारे में अधिक से अधिक सीखना शुरू करें। अपने दृष्टिकोण में अभिनव रहें और बैठकों में सक्रिय रहें ताकि आप सुझाव दे सकें कि कंपनी अपने मुनाफे को कैसे बढ़ा सकती है। यदि आपको कहीं भी कंपनी में अपव्यय या कुछ गलत दिखाई देता है, तो शीर्ष प्रबंधन को बताएं और उपाय सुझाएं। इस दृष्टिकोण के साथ, आप शीर्ष प्रबंधन द्वारा नोटिस किए जाएंगे और यह आपके व्यक्तिगत व व्यावसायिक विकास और पदोन्नति के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा और नेतृत्व की सीढ़ी का अनुसरण करेगा।
(लेखक एक कॉरपोरेट ट्रेनर व मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं तथा उनकी मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में काफी ख्याति है। उन्हें jaitly.iit@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)