गोवा और पंजाब दो ऐसे राज्य हैं जहां आम आदमी पार्टी न सिर्फ राजनैतिक परिदृश्य में दिखाई दे रही है बल्कि अपना एक खासा प्रभाव भी रख रही है। एक ओर पंजाब में भाजपा-अकाली दल की सरकार है तो दूसरी ओर गोवा में भी भाजपा की सरकार है। इन दोनों प्रदेशों में नशा और उससे जुड़े कारोबार एक अहम चुनावी मुद्दा है। चूंकि नशे के बड़े दुष्प्रभाव होते हैं इसलिए इसका विरोध करने वाली पार्टी जनभावना की प्रतीक बन जाती है। दोनों जगह वर्तमान सरकार के विरोध स्वरूप आम आदमी पार्टी स्वयं को एक विकल्प दिखाने में सफल रही है। हालांकि, दोनों प्रदेशों में आप बहुमत से दूर दिख रही है फिर भी सत्तासीन दलों को नाको चने चबवाने का काम तो कर ही रही है। गोवा और पंजाब को विश्लेषित करता विशेष संवाददाता अमित त्यागी का एक आलेख।
पंजाब की एक बड़ी आबादी विदेशों में निवास करती है। यह अप्रवासी भारतीय विदेश में रहकर अपने पंजाब पर निगाहें लगाये रहते हैं। जब भी पंजाब में चुनाव होते हैं यह अप्रवासी पंजाब में आकर चुनाव प्रचार करते रहे हैं पर इस बार जितनी ज़्यादा सक्रियता पंजाब में दिख रही है वह या तो लोकतन्त्र की मजबूती का संकेत है या कोई सोची समझी रणनीतिक साजिश। अभी इस पर कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी क्योंकि अभी पंजाब चुनाव में प्रचार में लगे सभी महानुभावों का कहना है कि पंजाब को नशामुक्त करना है एवं व्यवस्था में सुधार करना है।
अब थोड़ा पंजाब के माहौल को देखते हैं। हर कार्यक्रम को जोश और त्यौहार की तरह मनाने वाला सिख समाज पंजाब चुनाव में भी पूरी तरह उत्साह में हैं। राजनैतिक दलों के पास पैसों की कमी नहीं है क्योंकि इनको चंदा देने वाले ज़्यादातर एनआरआई हैं। चुनाव आयोग की सख्ती के चलते इस बार पंजाब में भोपू, पोस्टर, झंडे कुछ कम ज़रूर दिखाई दे रहे हैं किन्तु डोर टू डोर प्रचार में कहीं भी कमी नहीं दिख रही है। ज़्यादातर राजनैतिक दल पंजाब में छोटी रैलियां ज़्यादा कर रहे हैं। पंजाब चुनाव में जोश का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस बार 32 साल बाद इतने ज़्यादा उम्मीदवार मैदान में हैं। राज्य की 117 सीटों के लिए 1941 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इस बार पंजाब में लगभग आधे से ज़्यादा वोटर चालीस साल से कम उम्र के युवा वोटर हैं। एक करोड़ 90 लाख वोटों में से एक करोड़ से ज़्यादा वोटर युवा वोटर हैं। इनमें 3.67 लाख वोटर पहली बार चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने वाले हैं। अब पहली बार वोट देने वाले वोटर किस ओर रुझान करते हैं यह पंजाब चुनाव का डीसाइडिंग फैक्टर होने जा रहा है।
इसके साथ एक दिलचस्प बात यह है कि पंजाब का वोटर जितना युवा है वहां के नेता उतने ही बुजुर्ग हैं। वर्तमान में सत्तारूढ़ अकाली-भाजपा गठबंधन के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल 89 साल के हैं तो उनके विकल्प बनने की राह देख रहे कै. अमरिंदर सिंह 74 साल के हो चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने मुख्यमंत्री का कोई नाम ही नहीं पेश किया है। इसलिए उनका प्रत्याशी युवा है या बुजुर्ग, इस पर चर्चा कैसे की जा सकती है? मुख्यमंत्री के नाम पर एक बार पंजाब में एक रैली में मनीष सिसौदिया ने अरविंद केजरीवाल का नाम उछाल दिया। उसके बाद खुद अरविंद केजरीवाल को आकर सफाई देनी पड़ी। उन्होंने कहा कि वह दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और वहां ही रहेंगे। पंजाब का मुख्यमंत्री पंजाब से ही होगा। पर जो भी वादे आप के द्वारा किए जा रहे हैं उसको पूरा करने की जि़म्मेदारी भी उनकी ही है। अब यह बात सुनने में ही विरोधाभासी लगती है। केजरीवाल का व्यक्तित्व अभी इतना व्यापक नहीं हुआ है कि वह दिल्ली से पंजाब को संभाल लें। चूंकि, अब अरविंद केजरीवाल पूरी तरह सियासत वाले हो चुके हैं इसलिए उनकी बातों में एक छंटे हुये सियासतदान की बू आने लगी है।
अब ऐसा भी नहीं है कि अरविंद केजरीवाल को पंजाब में समर्थन नहीं मिल रहा है। अप्रवासी भारतीयों के बीच में अरविंद केजरीवाल एक लोकप्रिय चेहरा हैं। विदेशों से पंजाबी पूरी तरह उनके समर्थन में आकर प्रचार कर रहे हैं। उनको मिलने वाले चंदे में भी कमी नहीं आई है। आप को चंदे में मिलने वाली राशि का 20 प्रतिशत अप्रवासी लोगों से मिला है। उन्होंने एक ‘चलो पंजाब’ नाम से मुहिम चला रखी है जिसके द्वारा आप को अप्रवासी भारतीयों से ज़्यादा बेहतर जुडऩे का मौका भी मिला है।
मुकाबला है त्रिकोणिय, कई पेशेवर भी कूदे हैं चुनावी ज़ंग में।
पंजाब चुनाव में इस बार सबसे अहम पहलू है कि प्रोफेशनल्स चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार पंजाब में भाजपा-अकाली गठबंधन, कांग्रेस और आप में त्रिकोणिय मुकाबला देखा जा रहा है। अकालियों का इस बार काफी विरोध है और भाजपा का उनका साथ आखिर तक न छोडऩा उनको भी नुकसान दे रहा है। अभी तक आम आदमी पार्टी सत्ताधारी दल का विकल्प दिखाई दे रही थी और कांग्रेस काफी पीछे थी। किन्तु नवजोत सिद्धू के द्वारा कांग्रेस का दामन थामना कांग्रेस को मजबूत कर गया है। कांग्रेस के मजबूत होने से आम आदमी पार्टी कमजोर हो रही है। अभी तक ऐसी स्थिति बन रही थी जिसमें आप सरकार बनाती दिख रही थी किन्तु सिद्धू का उनके हाथ से निकलना और कांग्रेस के पाले में गिरना एक बड़ा अंतर पैदा कर गया। सिद्धू का कांग्रेस में जाना भी कभी कभी एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा लगता है ताकि आम आदमी पार्टी को परिदृश्य में उभरने से पहले ही संतुलित कर दिया जाये।
आम आदमी पार्टी ज़्यादातर पेशेवर लोगों को टिकट देकर राजनीति में सफाई की दुहाई देती है। आप ने 25 से ज़्यादा पेशेवर लोगों को टिकट दिये हैं। इनमें बड़े पैमाने पर डॉक्टर, वकील, प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी एवं पूर्व अध्यापक शामिल हैं। आप के ही पुराने कार्यकर्ता रहे और आप से बागी हुये सुच्चा सिंह ने आपणा पंजाब पार्टी नाम से एक अलग पार्टी तो पहले ही बना ली थी, अब आप की तजऱ् पर ही पेशेवरों को टिकट देकर इस परिपाटी को चलन में ला दिया है। आपणा पंजाब पार्टी ने लगभग 10 पेशेवर को टिकट दिये हैं। कांग्रेस, भाजपा और अकालियों ने ज़्यादातर अपने पुराने सिपाहियों पर ही भरोसा दिखाया है। पेशेवर को टिकट देने से अप्रवासी पंजाबी आप का रुझान किए हुये हैं और विदेशों से आकर आप के पक्ष में दिन रात एक किए हुये हैं। इन लोगों का कहना है कि इस बार वह पंजाब को सुधार कर ही वापस जाएंगे।
यह अप्रवासी सोशल मीडिया पर जमकर प्रचार में लगे हैं। यह लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को आप के पक्ष में वोट के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अब यह शिगूफ़ा कुछ हद तक तो सफल होता दिखा रहा है किन्तु एक आंकड़ा इस पूरी मुहिम की हवा निकालता भी दिख रहा है। पंजाब में लाखों अप्रवासी होने के बावजूद अप्रवासियों के मत केवल 194 हैं। यह मैं किसी एक जि़ले की बात नहीं कर रहा हूं बल्कि यह पूरे पंजाब का आंकड़ा है। 2014 में हुये लोकसभा चुनाव में अप्रवासी वोटों की संख्या 138 थी। इतने कम वोटों के बावजूद कोई भी अप्रवासी पंजाबियों को हल्के में नहीं ले रहा है। कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुखबीर बादल भी केजरीवाल की तजऱ् पर विदेश दौरे कर के आये हैं। चुनाव में कोई भी खतरा उठाने को कोई बड़ा नेता न तैयार है और न ही ऐसी स्थिति में है।
दलित वोट बैंक है बेहद अहम
सिख बहुल आबादी वाले पंजाब में जाट सिखों का एक बड़ा वोट बैंक है। पंजाब में दलितों की हिस्सेदारी 34 प्रतिशत है जो भारत के किसी भी अन्य राज्य से ज़्यादा है। पंजाब के दलित सभी धर्मों में विभाजित दलित हैं। कुल दलितों में से 57 प्रतिशत दलित सिख हैं। 38 प्रतिशत हिन्दू हैं। 2 प्रतिशत मुस्लिम हैं और 1 प्रतिशत ईसाई समुदाय से आते हैं। यहां दलितों में अंतरजातियां भी कम नहीं हैं। कुल मिलाकर 37 उपजातियां दलित समुदाय में आती हैं। पंजाब में 117 विधानसभा सीटों में से 30 प्रतिशत सीट सुरक्षित सीट हैं जहां पर दलित वोट एक बड़ा अंतर पैदा करता है।
किसी भी दल को बहुमत मिलना कठिन
पंजाब में वर्तमान में जैसी स्थिति बनती दिखाई दे रही है उसके अनुसार किसी भी एक दल का बहुमत मुश्किल नजऱ आ रहा है। पंजाब में बदलाव तो होगा यह तय है लेकिन विकल्प कौन बनेगा यह अभी तय नहीं है। यहां का युवा मोदी को पसंद तो कर रहा है किन्तु विधानसभा चुनावों में वह मोदी के स्थान पर स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओं को तरजीह देता दिखाई दे रहा है। यदि आम आदमी पार्टी को सिद्धू का साथ मिल जाता तो वह युवाओं में लोकप्रिय होने के कारण पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब होते दिख रहे थे किन्तु सिद्धू का कांग्रेस में जाना कांग्रेस को पुनर्जीवित कर गया है। अब मुकाबला रोचक है। त्रिकोणिय है और पंजाब के युवा पंजाबियों के जुनून का इम्तेहान भी।