भारतीय संस्कृति पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आघात शतकों से होता आ रहा है। विदेशी धर्मान्ध आक्रांताओं द्वारा सत्य सनातन वैदिक हिन्दू धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के कुप्रयासों का अत्याचारी इतिहास भुलाया नहीं जा सकता। सत्य,अहिंसा,सहिष्णुता,उदारता व क्षमा के मार्गों पर चलने की प्रेरणा देने वाली भारतीय संस्कृति विश्व को एक परिवार का रूप मानती रहीं है। लेकिन कोई जब इन सद्गुणों का अनुचित लाभ उठा कर अत्याचारी व अन्यायी हो जाये तो उसका प्रतिकार करना भी भारतीय संस्कृति के अनुसार अनुचित नहीं बल्कि धर्म सम्मत एवं सार्थक है। हमारे शास्त्रों में आचार्यों के स्पष्ट संकेत हैं कि जब आत्मरक्षा , स्वाभिमान व अस्तित्व पर संकट हो तो उस स्थिति में साम, दाम, दंड व भेद की नीतियों का सहारा लेना भी धर्म होता है।
अतः जैसे को तैसा का आचरण अपना कर “दुर्जन के आगे कैसी सज्जनता व हिंसक के सामने कैसी अहिंसा” ही सर्वोत्तम मार्ग है। हिन्दू धर्मानुयायियों में शूरवीरता व तेजस्विता को ओझल नही किया जा सकता। कुशल व समर्पित नेतृत्व के अभाव को दूर करके धर्माभिमानी व आक्रामक नेतृत्व आज आवश्यक हो गया है। आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक बल से अर्जित शक्ति में ही शांति बनाये रखना सम्भव होगा।
इसीलिए भगवान श्री राम का मर्यादापूर्ण जीवन हमको निरंतर प्रेरित करता है। धर्म रक्षार्थ व धर्म स्थापना के लिए सदा संघर्षरत रहने वाले योगिराज भगवान श्री कृष्ण द्वारा करुक्षेत्र में दिये गए उपदेशों को हम भूलने की त्रुटि करते जा रहें है? जबकि आज प्रतिकूल वातावरण में धर्मांधों के आघातों पर प्रभावशाली प्रहार करके अपने धर्म को सुरक्षित रखना सर्वोपरि कार्य है। इसके लिए भारतीय शासन व्यवस्था पर धर्मनिरपेक्षता के आवरण को हटाना और धर्म आधारित अल्पसंख्यवाद को मिटाना परम् आवश्यक है। प्रायः धर्मनिरपेक्षता व अल्पसंख्यकवाद के कारण ही हमारे सांस्कृतिक, सामाजिक , नैतिक, मौलिक व चारित्रिक मूल्यों का पतन हो रहा है। विभिन्न समाजों की विचारधाराओं व संस्कृति में अंतर होना स्वाभाविक है। परंतु जब अपनी विचारधारा को किसी दूसरे पर थोंपने के लिए अत्याचारों का सहारा लिया जाय तो संघर्ष तो होगा ही। ऐसी विचारधाराओं पर आधारित कट्टरपन से उपजा संघर्ष किसी भी सीमा के बन्धन से मुक्त होता है। विभिन्न सांस्कृतिक विचारों वाले कट्टरपंथियों के संघर्षों पर अंकुश लगाने के लिए किये जाने वाले युद्धों से कोई समाधान नही निकल सका। क्योंकि मुगलकालीन शिक्षाओं व दर्शन पर आधारित बढ़ता वर्तमान कट्टरपंथ और साम्प्रदायिकता को हथियारों से नष्ट नही किया जा सकता। हथियारों के भंडारों के नष्ट होने पर भी किसी भी आतंकवादी संगठन के मूल स्वरूप को नष्ट नही किया जा सका। निःसंदेह इस्लामिक संस्कृति आज विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा रोड़ा बन चुकी है।
जबकि प्राचीन काल से भारतीय मनीषियों व आचार्यों का सदविचार व प्रयास रहा है कि भारत सहित सम्पूर्ण धरती को आध्यात्मिक आधार पर ऊर्जावान बना कर मानवीय मूल्यों के उच्च आदर्शों की स्थापना होनी चाहिये। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतुनिरामयाः’ व ‘वसुधैवकुटुम्बक’ आदि प्रेरणादायी वाक्यों और शब्दों के भंडार से सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के शास्त्र वैश्विक समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने में सार्थक भूमिका निभाते है।
उपरोक्त का मुख्य तात्पर्य यह है कि भारत के अथाह ज्ञान के सदुपयोग से सम्पूर्ण प्राणीमात्र का कल्याण सुनिश्चित हो सकता है। इसके लिए भारतीय संस्कृति को सुरक्षित रखना होगा और वह तभी सम्भव होगा जब भारत को “हिन्दू राष्ट्र” घोषित किया जायेगा। निःसंदेह भारतीय संस्कृति के प्रचार व प्रसार से विश्व का कल्याण सम्भव होगा।
अतः जैसे को तैसा का आचरण अपना कर “दुर्जन के आगे कैसी सज्जनता व हिंसक के सामने कैसी अहिंसा” ही सर्वोत्तम मार्ग है। हिन्दू धर्मानुयायियों में शूरवीरता व तेजस्विता को ओझल नही किया जा सकता। कुशल व समर्पित नेतृत्व के अभाव को दूर करके धर्माभिमानी व आक्रामक नेतृत्व आज आवश्यक हो गया है। आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक बल से अर्जित शक्ति में ही शांति बनाये रखना सम्भव होगा।
इसीलिए भगवान श्री राम का मर्यादापूर्ण जीवन हमको निरंतर प्रेरित करता है। धर्म रक्षार्थ व धर्म स्थापना के लिए सदा संघर्षरत रहने वाले योगिराज भगवान श्री कृष्ण द्वारा करुक्षेत्र में दिये गए उपदेशों को हम भूलने की त्रुटि करते जा रहें है? जबकि आज प्रतिकूल वातावरण में धर्मांधों के आघातों पर प्रभावशाली प्रहार करके अपने धर्म को सुरक्षित रखना सर्वोपरि कार्य है। इसके लिए भारतीय शासन व्यवस्था पर धर्मनिरपेक्षता के आवरण को हटाना और धर्म आधारित अल्पसंख्यवाद को मिटाना परम् आवश्यक है। प्रायः धर्मनिरपेक्षता व अल्पसंख्यकवाद के कारण ही हमारे सांस्कृतिक, सामाजिक , नैतिक, मौलिक व चारित्रिक मूल्यों का पतन हो रहा है। विभिन्न समाजों की विचारधाराओं व संस्कृति में अंतर होना स्वाभाविक है। परंतु जब अपनी विचारधारा को किसी दूसरे पर थोंपने के लिए अत्याचारों का सहारा लिया जाय तो संघर्ष तो होगा ही। ऐसी विचारधाराओं पर आधारित कट्टरपन से उपजा संघर्ष किसी भी सीमा के बन्धन से मुक्त होता है। विभिन्न सांस्कृतिक विचारों वाले कट्टरपंथियों के संघर्षों पर अंकुश लगाने के लिए किये जाने वाले युद्धों से कोई समाधान नही निकल सका। क्योंकि मुगलकालीन शिक्षाओं व दर्शन पर आधारित बढ़ता वर्तमान कट्टरपंथ और साम्प्रदायिकता को हथियारों से नष्ट नही किया जा सकता। हथियारों के भंडारों के नष्ट होने पर भी किसी भी आतंकवादी संगठन के मूल स्वरूप को नष्ट नही किया जा सका। निःसंदेह इस्लामिक संस्कृति आज विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा रोड़ा बन चुकी है।
जबकि प्राचीन काल से भारतीय मनीषियों व आचार्यों का सदविचार व प्रयास रहा है कि भारत सहित सम्पूर्ण धरती को आध्यात्मिक आधार पर ऊर्जावान बना कर मानवीय मूल्यों के उच्च आदर्शों की स्थापना होनी चाहिये। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतुनिरामयाः’ व ‘वसुधैवकुटुम्बक’ आदि प्रेरणादायी वाक्यों और शब्दों के भंडार से सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के शास्त्र वैश्विक समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने में सार्थक भूमिका निभाते है।
उपरोक्त का मुख्य तात्पर्य यह है कि भारत के अथाह ज्ञान के सदुपयोग से सम्पूर्ण प्राणीमात्र का कल्याण सुनिश्चित हो सकता है। इसके लिए भारतीय संस्कृति को सुरक्षित रखना होगा और वह तभी सम्भव होगा जब भारत को “हिन्दू राष्ट्र” घोषित किया जायेगा। निःसंदेह भारतीय संस्कृति के प्रचार व प्रसार से विश्व का कल्याण सम्भव होगा।
विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक)
गाज़ियाबाद