By अनुज अग्रवाल व अतुल मोहन सिंह
बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पार्टी की मुखिया मायावती के भाई आनंद कुमार पर्दे के पीछे भी राजनीति में बड़े सक्रिय रहे। उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती के भाई आनंद कुमार 2007 से पहले नोएडा अथॉरिटी में लिपिक (क्लर्क) के पद पर कार्यरत थे। बहुजन समाज पार्टी के हर काम में बड़ा दखल रखने वाले आनंद कुमार ने सात वर्ष में इतनी तरक्की कर ली कि अब आयकर विभाग की टीम उनके खिलाफ बड़ी कार्रवाई कर रही है। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के भाई और पार्टी उपाध्यक्ष आनंद कुमार व उनकी पत्नी विचित्रलता के खिलाफ आयकर विभाग ने बड़ी कार्रवाई की है। आयकर विभाग ने आनंद कुमार के दिल्ली से सटे नोएडा में 400 करोड़ रुपये के एक बेनामी प्लॉट को जब्त कर लिया है। आयकर विभाग काफी समय से मायावती के भाई आनंद कुमार की संपत्ति की जांच कर रहा था। इस जांच में आयकर विभाग को पता चला कि उनके पास 28328 स्क्वायर मीटर का एक बेनामी प्लॉट है। सात एकड़ में फैले इस प्लॉट की कीमत करीब 400 करोड़ रुपये है।
आनंद कुमार सूबे में मायावती के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही पार्टी की गतिविधियों में सक्रिय हो जाते थे। एक क्लर्क से लेकर धनकुबेर बनने का इनका सफर बहुत लंबा नहीं है। आनंद कुमार वर्ष 2007 से पहले तक नोएडा अथॉरिटी में क्लर्क थे। मायावती के उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के बाद आनंद कुमार की संपत्ति अचानक तेजी से बढ़ी। 2007 तक आनंद कुमार लगातार अपनी नौकरी करते रहे। अपनी इस नौकरी के दौरान मीडिया ही नहीं राजनीतिक सुर्खियों से भी वो बहुत दूर थे।
आयकर विभाग का आनंद पर आरोप है कि 2007 में जब आनंद कुमार नोएडा अथॉरिटी में नौकरी करते थे तो उन्होंने एक कंपनी बनाई थी। ईडी की एक जांच के दौरान सामने आया कि 2014 तक आनंद ने 45 से अधिक कंपनियां खड़ी कर ली थीं। आयकर विभाग की नजरें उन 12 कंपनियों पर भी है, जिनसे आनंद कुमार बतौर निदेशक जुड़े थे। आयकर विभाग को अपनी जांच में पता चला है कि 2007 से 2012 तक जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं, तब पांच कंपनियों के फैक्टर टेक्नोलॉजीज, होटल लाइब्रेरी, साची प्रॉपर्टीज, दीया रियल्टर्स और ईशा प्रॉपर्टीज के जरिए अधिकतर पैसा इक_ा किया गया। ईडी और इनकम टैक्स के आरोपों के अनुसार जांच में खुलासा हुआ है कि 2007 के दौरान आनंद कुमार के पास करीब 7.1 करोड़ रुपये की संपत्ति थी। सात साल में 2014 तक आनंद कुमार ने अपनी संपत्ति को बढ़ाकर 1316 करोड़ रुपये कर लिया था। इन सात साल के दौरान पांच साल मायावती की सरकार रही थी। जांच के दौरान इस संबंध में आनंद का कहना था कि इस दौरान उनकी कंपनियों के मुनाफे में 18000 प्रतिशत का उछाल आया था।
बसपा में अब नंबर दो की हैसियत रखने वाले आनंद कुमार ने दस वर्ष में अकूत दौलत एकत्र की और क्लर्क से धनकुबेर बन गए। उसके बाद उन्हें बसपा में शामिल किया गया। उन्हें पार्टी उपाध्यक्ष का पद दिया गया है। नसीमुद्दीन पार्टी से बाहर हो चुके हैं। सतीश मिश्रा से पहले और मायावती के बाद पार्टी में अब आनंद का नाम आता है। आयकर विभाग का दावा है कि उसके पास मायावती के भाई आनंद कुमार की कई बेनामी संपत्तियों की जानकारी है। इन संपत्तियों के खिलाफ भी जल्द कार्रवाई की जा सकती है।
बिल्डरों पर प्राधिकरण का 17 हजार करोड़ बकाया, अकेले आम्रपाली समूह पर ही 2200 करोड़ रुपये की है देनदारी
आम्रपाली समूह पर सुप्रीम कोर्ट का शिकंजा कसने के बाद अब नोएडा प्राधिकरण की भी नींद खुली है। जल्द ही बिल्डरों को बकाया वसूली के लिए आवंटन रद्द करने का अंतिम नोटिस भेजा जा सकता है। नोएडा प्राधिकरण का बिल्डरों पर वर्षों से लगभग 17000 करोड़ रुपये का बकाया है। जिसमें अकेले आम्रपाली समूह पर ही 2200 करोड़ रुपये है। जानकारों की मानें तो नोएडा प्राधिकरण अपना पूरा बकाया वसूलकर इसे शहर के विकास में लगाए तो कई परियोजनाएं न केवल समय से पूरी हो जाएंगी। बल्कि आर्थिक संकट से जूझ रहे प्राधिकरण की हालत भी सुधर जाएगी।
नोएडा में 2018 में ब्लैक लिस्टेड हुए थे 50 बिल्डर
नोएडा प्राधिकरण ने जून 2018 में करीब 50 बिल्डरों को बकाया नहीं चुकाने में ब्लैक लिस्ट घोषित किया था, इसमें आम्रपाली, यूनिटेक, थ्री सी जैसे बड़े-बड़े बकायेदारों के नाम शामिल हैं। लेकिन, आज तक अधिकारियों ने बिल्डरों की जमीन का आवंटन रद्द कर अपने कब्जे में लेने की हिम्मत ही नहीं जुटाई। इसका खामियाजा यह हुआ कि अक्टूबर में आर्थिक अपराध शाखा ने पहले आम्रपाली समूह के सीएमडी सहित निदेशकों को उठाया, उसके बाद थ्रीसी के तीन निदेशकों की गिरफ्तारी की। यदि नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी बिल्डरों के आवंटन रद्द कर कानूनी कार्रवाई शुरू कर देते तो बिल्डरों की कमाई पर अंकुश लग जाता और प्राधिकरण का बकाया वसूल करने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती। नोएडा में मौजूदा समय में 70 से अधिक बिल्डर परियोजनाओं पर काम चल रहा है। यह परियोजनाएं अधूरी हैं। निवेशक सड़क से लेकर कोर्ट तक संघर्ष करने में जुटे हैं। बात दें कि थ्री सी की शहर में पांच परियोजनाएं हैं। 30 जून 2019 तक थ्री सी का प्राधिकरण पर 1256.55 करोड़ रुपये बकाया है। इसमें से एक परियोजना के लिए आरसी भी जारी की जा चुकी है। इसी तरह यूनिटेक बिल्डर की शहर में तीन परियोजनाएं हैं। यूनिटेक का प्राधिकरण पर 7043.28 करोड़ रुपये बकाया है।
बसपा शासन काल में हुआ आवंटन
सभी बिल्डरों का आवंटन वर्ष 2007 से 2011 में बसपा शासन काल में हुआ है। इसमें बिल्डरों ने आवंटन के समय कुल लागत का महज 10 फीसद रकम जमा कर जमीन पर कब्जा जमा रखा है। किसी भी बिल्डर ने पट्टा प्रलेख की शर्तों का पालन नहीं किया।
नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में बसपा शासन काल में बिल्डरों ने सरकार और नौकरशाह के साथ मिलकर खूब चांदी काटी। मात्र दस फीसद धनराशि पर भूखंड लेकर फ्लैटों की बुकिंग से करोड़ों रुपये कमा लिए। करीब 50 हजार खरीदार ऐसे हैं, जिनको फ्लैट मिलना मुश्किल है। प्राधिकरण को जमीन की किस्त अदायगी किए बिना बिल्डर खरीदारों की बुकिंग का पैसा लेकर भूमिगत हो गए हैं। इससे खरीदार फ्लैटों से वंचित रह गए। वहीं दूसरी तरफ प्राधिकरण को जमीन का पैसा नहीं मिला।
ग्रेटर नोएडा में कुल 190 बिल्डर प्रोजेक्ट हैं। फ्लैटों का निर्माण पूरा न करने वाले 108 बिल्डर प्रोजेक्टों का प्राधिकरण ने ऑडिट कराया था। इनमें 48 बिल्डर प्रोजेक्ट ऐसे पाए गए, जिनमें निर्माण कार्य शुरू ही नहीं हुआ। जमीन की सिर्फ चारदिवारी कर छोड़ दी गई। कुछ में तो जमीन की चारदिवारी भी नहीं की गई। बिना निर्माण किए हजारों फ्लैटों के बिल्डरों ने बुकिंग के नाम पर खरीदारों से पैसे ले लिए। कुछ ही दिनों में बुकिंग से अरबों रुपये बनाकर अर्थ इंफ्रास्ट्रक्चर, शुभकामना, अर्थटाउनी समेत करीब 15 बिल्डर गायब हो गए। उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। प्राधिकरण सिर्फ नोटिस देने तक सीमित रहा। गायब हुए बिल्डरों ने प्राधिकरण को नोटिस का जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा है।
आरक्षित मूल्य बढ़ा, लेकिन कीमत घटी
2008-09 से पहले बिल्डर योजना के भूखंडों का आरक्षित मूल्य छह से आठ हजार रुपये प्रति वर्ग मीटर रहा। नीलामी के समय भूखंड 13500 रुपये से लेकर 15200 रुपये प्रति वर्ग मीटर तक बिके। 2009 में नियमों में बदलाव करते हुए दस फीसद धनराशि पर भूखंड आवंटित करने का नियम बना। इसके साथ बिल्डर श्रेणी की जमीन का आरक्षित मूल्य बढ़ाकर 10500 रुपये कर दिया गया। आरक्षित मूल्य बढऩे के बाद भूखंडों की नीलामी दर घट गई, जो भूखंड पहले 15200 रुपये प्रति वर्ग मीटर बिकते थे, आरक्षित मूल्य बढऩे पर वे मात्र 11500 रुपये से 12200 रुपये प्रति वर्ग मीटर के बीच बिके। इससे प्राधिकरण का नुकसान हुआ।
बिल्डरों ने लिया दोहरा लाभ
2008-09 से पहले बिल्डर श्रेणी के भूखंडों का फ्लोर एरिया रेशियो (एफएआर) 1.75 था। तीस फीसद धनराशि पर भूखंड आवंटित होते थे। बसपा सरकार ने तीस फीसद को घटाकर 10 फीसद कर दिया। जबकि एफएआर को बढ़ाकर 2.50 कर बिल्डरों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। एफएआर बढऩे से बिल्डरों को अतिरिक्त फ्लैट बनाने का मौका मिल गया।
बिल्डरों को दी भूखंड विभाजित करने की छूट
2008-09 से पहले जिस बिल्डर को भूखंड आवंटित किया जाता था, उसे एफएआर के हिसाब से सारे फ्लैट बनाने होते थे। किसी दूसरे बिल्डर को वह अपने साथ नहीं जोड़ सकता था। 2009 में नियम बदल दिया गया। बड़े बिल्डरों को 100-100 एकड़ जमीन दस फीसद धनराशि पर आवंटित कर अधिकार दिया गया कि वे जमीन का विभाजन कर 5-5 एकड़ के भूखंड बनाकर दूसरे बिल्डरों को बेच सकते हैं। बड़े बिल्डरों ने तीन तरफ से पैसा कमाया। पहले मात्र दस फीसद राशि पर भूखंड लेकर फ्लैटों की बुकिंग के नाम पर करोड़ों-अरबों रुपये कमा लिया। दूसरा प्राधिकरण को उसकी कीमत अदा नहीं की। तीसरा भूखंड को विभाजित कर दूसरे बिल्डरों को छोटे-छोटे भूखंड बेचकर उनसे भारी-भरकम पैसे ले लिए।
आनंद की चौकड़ी करती थी भूखंड आवंटन का फैसला
बसपा शासन काल में नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना प्राधिकरण के अधिकारियों की लगाम किसी बड़े नौकरशाह के हाथ में नहीं थी। प्राधिकरण में निर्माण कार्यों के टेंडर से लेकर भूमि आवंटन तक का फैसला बसपा सुप्रीमो मायावती के छोटे भाई आनंद के दिल्ली दरबार में होता था। आनंद के साथ हर समय एक चौकड़ी रहती थी। इसमें स्वयं आनंद के अलावा तीन अन्य लोग शामिल थे। इनमें एक सरकारी सेवा में था, जबकि दो निजी थे। चौकड़ी की मंजूरी के बाद ही प्राधिकरण अधिकारी कोई फैसला लेते थे। हैरत की बात यह है कि प्राधिकरण के प्रशासनिक कार्यों पर विचार-विमर्श के लिए लखनऊ में शासन स्तर पर बैठक नहीं बुलाई जाती थी। सारे फैसले आनंद के दरबार में होते थे। 2007 से 2010 के बीच प्राधिकरणों में तैनात अधिकारियों ने सरकार के बजाय आनंद के लिए काम किया। नतीजतन बिल्डरों को दस फीसद धनराशि पर जमीन आवंटित की जाने लगी। सबसे पहले यह फैसला 2008-09 में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ पंकज अग्रवाल व नोएडा प्राधिकरण के तत्कालीन सीईओ मोहिंदर सिंह के कार्यकाल में हुआ। बोर्ड से प्रस्ताव पास कर शासन को भेजा गया। शासन ने इस पर एक कमेटी बनाई। कमेटी ने आंख मूंद कर आर्थिक मंदी का हवाला देकर दस फीसद धनराशि पर भूखंड देने की संस्तुति कर दी। इसके बाद प्रदेश सरकार के तत्कालीन प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास व औद्योगिक विकास आयुक्त बीएन गर्ग ने प्राधिकरणों को पत्र भेजकर शासनादेश से अवगत कराया। इसके बाद दस फीसद धनराशि पर भूखंड आवंटित किए जाने लगे। इससे मोहिंदर सिंह का सरकार की नजरों में कद बढ़ गया। पहले उन्हें सिर्फ नोएडा प्राधिकरण का सीईओ बनाया गया था, लेकिन बाद में उन्हें ग्रेटर नोएडा व यमुना प्राधिकरण का भी सीईओ बना दिया गया।
बिल्डरों के नाम तय होने के बाद निकाले जाते थे टेंडर
बिल्डर योजना के भूखंडों का आवंटन नीलामी के आधार पर होता था। भूखंड आवंटन से पहले आनंद के दरबार में यह तय हो जाता था कि किस बिल्डर को जमीन आवंटित की जानी है। नाम तय होने के बाद भूखंड का आरक्षित मूल्य तय किया जाता था। टेंडर के प्रपत्र सिर्फ उसी बिल्डर को दिए जाते थे, जिसके लिए आवंटन होना होता था। औपचारिकता पूरी करने के लिए एक-दो अन्य बिल्डरों से कम दर पर टेंडर डलवाए जाते थे, ताकि कोई टेंडर प्रक्रिया पर सवाल खड़े न करें।
अपने ताबूत में खुद कील ठोकते रहे प्राधिकरण, नहीं की कोई कार्रवाई
बिल्डरों के हाथों बेशकीमती जमीन लुटाकर प्राधिकरण अपने ताबूत में खुद कील ठोकते रहे। अरबों रुपये के बकायेदार बिल्डरों को शून्य काल का लाभ बार-बार पहुंचाकर प्राधिकरणों ने खुद अपनी बर्बादी की इबारत लिखी। राजनीतिक आकाओं के इशारे पर प्राधिकरणों ने अपनी स्वायत्तता का भरपूर फायदा उठाया और मनमानी पॉलिसी बनाई, फैसले किए। अधिकारियों के यही फैसले आज प्राधिकरण का गला घुटने की वजह बन गए हैं।
औद्योगिक विकास के लिए गठित नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना प्राधिकरण कमाई के लालच में अपने मूल मकसद से भटक गए। औद्योगिक विकास की बजाय प्राधिकरण का फोकस बिल्डर परियोजनाएं बन गईं। उद्योग लगाकर प्रदेश की आर्थिक स्थिति मजबूत करने और लाखों लोगों के लिए रोजगार का आधार तैयार करने के लिए किसानों से ली गई जमीन को प्राधिकरणों ने बिल्डरों को लुटाना शुरू कर दिया। जमीन की कीमतें आसमान पर पहुंचते ही नेताओं ने कमाई के लिए तीनों प्राधिकरणों पर अपनी नजरें गढ़ा दीं। नेताओं व अधिकारियों के गठजोड़ से औद्योगिक इकाई के बजाय नोएडा, ग्रेटर नोएडा में आवासीय इमारतों का जाल बिछता गया। नेताओं व अधिकारियों ने अपनी काली कमाई को बिल्डर परियोजनाओं में पीछे के रास्ते से निवेश किया। अपने स्वार्थ व महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए प्राधिकरण में तैनात अधिकारियों ने नेताओं के इशारे में मनमाने तरीके से पॉलिसी में बदलाव किए। ऐसी पॉलिसी तैयार की, जिससे प्राधिकरण तो कंगाल होते गए, लेकिन बिल्डर मालामाल होते रहे। चंद रुपयों में करोड़ों रुपये की जमीनों को प्राधिकरणों ने बिल्डरों के हाथों सौंप दिया। बिल्डरों ने जमीन से अरबों रुपये का साम्राज्य तैयार किया और निवेशकों की रकम को डकार गए।
हजारों करोड़ के कर्जदार बिल्डरों को प्राधिकरण के अधिकारी सिर्फ नोटिस देने की कार्रवाई का दिखावा करते रहे। लेकिन आवंटन निरस्त करने या बकाया रकम वसूली के लिए कड़े कदम उठाने से परहेज किया। बिल्डरों के इशारे पर नाचते हुए अधिकारियों ने निवेशकों की आड़ लेकर उन्हें बार-बार शून्य काल का लाभ देकर करोड़ों रुपये का फायदा पहुंचाया। अधिकारी परियोजना पूरा करने की समय सीमा, एफएआर बढ़ाने का फायदा बिल्डरों को देते गए। हकीकत में परियोजना एक इंच नहीं बढ़ी। बिल्डरों के हौसले अधिकारियों की साठगांठ से इस कदर आसमान पर पहुंच गए कि उन्होंने परियोजनाओं में सैकड़ों अवैध फ्लैट बनाकर उन्हें बेच डाला। इसके बावजूद अधिकारी लालच की चादर ओढ़कर सोये रहे। अधिकारियों का लालच आज प्राधिकरणों को कंगाली के कगार पर ले गया है। प्राधिकरणों के खजाने में इतनी रकम भी नहीं है कि शहर के मौजूदा ढांचे को दुरुस्त रखा जा सके। अपनी कारगुजारी के लिए शहर के लोगों पर प्राधिकरण जिम्मेदारी सौंपते जा रहे हैं। जिसे सरकारी योजनाओं का मुलम्मा चढ़ाकर जायज ठहराया जा रहा है। आम्रपाली बिल्डर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को 3680 करोड़ रुपये की चोट लगी है। इससे ग्रेटर नोएडा में विकास का पहिया पूरी तरह से रुक सकता है।
साभार (कुछ अंश)- दैनिक जागरण
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उत्तर प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार के मामलों में ढिलाई के संदर्भ में
प्रतिष्ठा में,
योगी आदित्यनाथ जी
माननीय मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश सरकार
लखनऊ
विषय : उत्तर प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार के मामलों में ढिलाई के संदर्भ में
माननीय महोदय,
यहां संलग्न वह पत्र है जिसके द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार ने अप्रैल 2017 में भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक को नोएडा प्राधिकरण के खातों की ऑडिट करने के लिए लिखा था व इसके कुछ समय बाद ही ऑडिट की प्रक्रिया शुरू भी हो गयी थी। उल्लेखनीय है कि सन 2013 से 2017 के बीच मौलिक भारत लगातार यह खुलासा करता रहा कि नोएडा प्राधिकरण में सभी ठेकों, नियुक्तियों,आबंटन व भुगतान में बड़ी हेराफेरी, लूट व जालसाजी होती रही है इसलिए मायावती, मुलायम व अखिलेश सरकार के समय के सभी उपरोक्त कार्यों की सीबीआई जांच व खातों का ऑडिट करवाया जाए। स्वयं भाजपा ने सन 2012 में नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना प्राधिकरण के लाखों करोड़ रुपए के घोटालों की दस्तावेजों सहित खुलासा किया था। मौलिक भारत ने भी ऐसे ही दर्जनों घोटालों का समय समय पर पर्दाफाश किया। किंतु भाजपा की सरकार आने के ढाई वर्ष बाद भी इन सभी खुलासों पर कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हुई।
1. लंबे समय बाद आज भी नोएडा प्राधिकरण का सीएजी ऑडिट जारी है। कहने को इसका दायरा बढ़ गया है मगर अभी तक बड़ी हेराफेरी सामने आने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गई? उल्टे पिछले महीने नोएडा प्राधिकरण में आग लगने से हज़ारों फाइलें जलकर खाक हो गईं और न जाने कितने घोटाले राख हो गए। प्रश्न यह है कि क्या सीएजी की जांच टीम दबाव व समझौते का शिकार हो गयी? यह विस्तृत जांच व तीव्रतम कार्यवाही का प्रश्न है।
2. ग्रुप हाउसिंग घोटाले के कारण तीनों प्राधिकरणों में सैकड़ों बिल्डरों द्वारा लाखों लोगो से फ्लैट आवंटन/ खरीद के नाम पर अरबों रुपए की लूट की गई व आज भी अधिकांश आवंटी बिना मकान दर दर की ठोकर खा रहे हैं व प्रदेश सरकार तमाम बड़ी बड़ी बातों के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रही है। बिल्डर, प्राधिकरणों के अधिकारियों, नौकरशाह व नेताओं के गठजोड़ के कारण आम जनता रोज मूर्ख बनाई जा रही है। सब जानते हैं कि अधिकांश प्रोजेक्ट्स नौकरशाह व नेताओं के हैं और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। क्या इस गठजोड़ के खिलाफ आपकी सरकार कोई कड़ी कार्यवाही कर सकती है?
3. प्रदेश में व प्राधिकरणों में जिन नौकरशाहों, नेताओं, ठेकेदारों व अधिकारियों ने लूट मचाई व घोटाले किए उनके नाम व काम सबूतों के साथ सरकार, मीडिया व जनता सबको पता है मगर कुछ पर राजनीतिक या कुछ दिखावी कार्यवाही के अलावा कुछ नहीं हुआ। लगता है अंदरखाने समझौता हो गया है व अनेक घोटालेबाज आज भी सरकार में प्रमुख पदों पर हैं। ऐसा क्यों व किन मजबूरियों के तहत किया जा रहा है?
4. हाल ही में अखिलेश सरकार के समय के खनन घोटाले की जांच के सिलसिले में बुलंदशहर के डीएम के घर व अन्य अधिकारियों के घर पर सीबीआई ने छापा डाला व लाखों रुपए की नकदी बरामद की। यह साधारण बुद्धि वाले को भी समझ आ जायेगा कि छापे में प्राप्त रकम खनन घोटाले की कमाई नहीं है बल्कि जिलाधिकारी को रोजाना होने वाली रिश्वत की कमाई का हिस्सा है। ऐसी कमाई प्रदेश के काफी जिलाधिकारी करते होंगे। आवश्यकता सभी पर छापे मारने की है न कि मात्र एक दो पर कार्यवाही करने की। मगर सरकार मौन है। ऐसा क्यों?
5. जिला गौतम बुद्ध नगर के तीनों प्राधिकरण व उत्तर प्रदेश के सभी प्राधिकरण आज भी घोटाले व अराजकता का शिकार हैं। नोएडा का स्टेडियम तो उजाड़ पड़ा है मगर हर वर्ष इसमें अरबों रुपयों का खर्च पुनर्निर्माण के नाम पर दिखा कर लूट लिया जाता है। उस पर इस शहर में नगर निगम तक नहीं, जिस कारण हर स्तर पर भयंकर गड़बड़ी, लूट व अराजकता है। इसका कोई इलाज क्यों नहीं है आपकी सरकार के पास?
माननीय, आपसे अनुरोध है कि इन मुद्दों के निस्तारण की दिशा में ईमानदारी से कदम उठाएं ताकि प्रदेश की जनता राहत महसूस करे व प्रदेश विकास की मुख्यधारा में आ सके।
धन्यवाद।
भवदीय
अनुज अग्रवाल
महासचिव, मौलिक भारत
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यह कैसा न्याय मीलोर्ड, प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी? – मौलिक भारत
प्रतिष्ठा में,
मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय
प्रधानमंत्री, भारत सरकार
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार
माननीय महोदय,
सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली बिल्डर द्वारा 42000 लोगों को फ्लैट बनाकर देने के नाम पर हज़ारों करोड़ रूपयों की लूट पर जो निर्णय दिया है वह बहुत ही असंतोषजनक व आधा अधूरा है। मौलिक भारत इस संदर्भ में माननीय न्यायालय, भारत सरकार व उत्तर प्रदेश सरकार से यह पूछता है कि-
1) जब फोरेंसिक ऑडिट में नोएडा व ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, बैंकों, राजनेताओं व नौकरशाहो की बिल्डर माफिया से खुली सांठगांठ सामने आ गयी है व पूरी लूट के जिम्मेदार लोग भी चिन्हित हो चुके हैं तो उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही का आदेश क्यों नहीं दिया गया? औद्योगिक उपयोग की भूमि को आवासीय भूमि में बदलने की साजिश के अपराधियों पर न्यायायल क्यों चुप है? जो लाखों करोड़ रुपए यह माफिया लूट चुका है इसकी वसूली के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?
2) बिना पर्याप्त ढांचागत सुविधाओं के ही और 32000 फ्लैट आम्रपाली बिल्डर को आबंटित जमीन पर एनबीसीसी द्वारा बनाकर हुए नुकसान की भरपाई का जो आदेश माननीय न्यायालय ने दिया है उसका क्या आधार है? क्या इस क्षेत्र में प्रदूषण नियंत्रण, सुगम यातायात, सड़क, जल, सीवर, बिजली आदि सुविधाएं पर्याप्त मात्रा में वर्तमान सीमित ढांचे पर बिना अतिरिक्त दबाव डाले दे पाना संभव है? क्या पहले के सभी आबंटन सभी पहलुओं का ध्यान रखकर किए गए? इसकी कोई समीक्षा की गई? क्या एनबीसीसी इस जिम्मेदारी को लेने के लिए सक्षम व तैयार है?
3) माननीय न्यायायल ने इस क्षेत्र के 400 अन्य बिल्डर प्रोजेक्ट्स जिनमें लाखों अन्य खरीदार फंसे हुए हैं, के लिए आम्रपाली मामले जैसी गाइडलाइंस क्यों नहीं जारी की?
4) आम जनता से जुड़ी ग्रुप हाउसिंग योजनाओं में गड़बड़ी करने वाले अपराधियों को मात्र आर्थिक अपराधी न मान देशद्रोही की श्रेणी में क्यों नहीं मान उनके खिलाफ कार्यवाही की जा रही है? इतने वर्षों से लगातार लूट व अपराध करने के बाद भी जिस तरह ये अपराधी खुले आम घूम रहे हैं व विदेश भाग गए हैं और सरकार व न्यायायल खामोश है, यह चिंताजनक है।
5) देशभर के सभी बिल्डर प्रोजेक्ट्स में नेताओं व सरकारी अधिकारियों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी की गहन जांच के लिए उच्चतम न्यायालय की निगरानी में एक विशेष जांच दल बनाया जाना चाहिए व इसके द्वारा चिन्हित लोगों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए।
मौलिक भारत का माननीय न्यायालय, केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार से अनुरोध है कि उपरोक्त बिंदुओं को ध्यान में रखकर विस्तृत दिशानिर्देश जारी करे व अपराधियों के खिलाफ अतिशीघ्र कड़ी कार्यवाही करे।
भवदीय
अनुज अग्रवाल
महासचिव, मौलिक भारत
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शाहबेरी अवैध निर्माण मामले में अधिकारियों पर गाज गिरनी तय,
30 बिल्डरों पर लगेगा रासुका
आम्रपाली मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद उत्तर प्रदेश सरकार हरकत में आ गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि शाहबेरी, यमुना एक्सप्रेस-वे, नोएडा और ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण से जुड़े मामले में जवाबदेही तय की जाएगी और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने शाहबेरी में अवैध रुप से कॉलोनियां विकसित कर हजारों लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले 30 बिल्डरों के खिलाफ केस दर्ज कर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून(रासुका) के तहत जेल भेजने का निर्देश दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि जमीन से जुड़े मामलों में संलिप्त अधिकारियों की सूची तैयार करें, ताकि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सके। योगी ने आम्रपाली समेत अन्य बिल्डिरों के मामले में अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने का निर्देश दिया है।
जिम्मेदार अधिकारियों पर होगी कार्रवाई
योगी ने हालही में लखनऊ के लोकभवन में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और शाहबेरी से जुड़े मामलों को लेकर बैठक की। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि कोर्ट स्टे के बावजूद शाहबेरी में निर्माण कैसे हो गए, इसकी जांच कराएं। साल 2014 के बाद जितने भी अवैध निर्माण हुए हैं, उनके जिम्मेदार अधिकारियों की सूची बनाएं। जिम्मेदार अधिकारियों पर सरकार सख्त कार्रवाई करेगी।
जमीन घोटालों में संलिप्त अधिकारियों की सूची मांगी
2007 से लेकर 2014 तक प्राधिकरण क्षेत्रों में हुए जमीन घोटालों में संलिप्त अधिकारियों की सूची मांगी गई है। इन पर अब गाज गिरनी तय मानी जा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अवैध इमारतें खड़ी करने वाले कालोनाइजरों और बिल्डरों पर रासुका व गैंगस्टर की कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। प्रदेश सरकार की इस कार्रवाई से अवैध इमारतें खड़ी करने वाले कालोनाइजरों व बिल्डरों में हड़कंप मच गया है।
आम्रपाली ग्रुप पर सुप्रीम कोर्ट का शिकंजा कसने के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हरकत में आ गई है। मुख्यमंत्री ने नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण में वर्ष 2007 से 2010 तक तैनात रहे अधिकारियों की जांच के भी आदेश दे दिए हैं। किस अधिकारी का दामन दागदार है और कौन पाक-साफ है यह तो जांच के बाद पता चलेगा, लेकिन फिलहाल सात आइएएस सहित प्राधिकरणों के करीब तीस अधिकारियों की फाइल खुलने जा रही है।
इन अधिकारियों के कार्यकाल के दौरान किन बिल्डर परियोजनाओं के लिए भूखंड आवंटन आवंटित किए गए और किन अधिकारियों ने नियमों से छेड़छाड़ कर बिल्डरों को फायदा पहुंचाया, इसकी जांच होगी। जांच में दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों पर शिकंजा कसेगा।
प्राधिकरण के चेयरमैन
आम्रपाली ग्रुप के निदेशकों से कई बड़े अधिकारियों की नजदीकी का मामला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्राधिकरण के चेयरमैन आलोक टंडन और सीईओ रितु माहेश्वरी सहित जिले के तीनों प्राधिकरणों के अधिकारियों को लखनऊ तलब किया था, तभी से शहर में चर्चा थी कि शासन स्तर पर कुछ बड़ा फैसला होने जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने जब बैठक के बाद सपा-बसपा सरकार के कार्यकाल में तैनात रहे तमाम अधिकारियों की जांच के आदेश दिए तो जिले में हड़कंप मच गया। इस आदेश के बाद घोटालों में शामिल अधिकारियों के कई शुभचिंतकों पर भी शिकंजा कसना तय है।
शाहबेरी में भवनों का होगा ऑडिट
योगी ने कहा कि निर्माणों का सुरक्षा ऑडिट होना चाहिए। जो निर्माण असुरक्षित हैं, प्राधिकरण उन्हें गिराने की प्रक्रिया शुरु करे। जिन मकानों में लोग रह रहे हैं उनकी जांच कराई जाए, ताकि पता चल सके कि ये लोग कौन हैं और उन्होंने बिल्डरों से भवन कैसे खरीदे। योगी ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे शाहबेरी प्रकरण में अदालत में बेहतर तरीके से पैरवी करें।