उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने कर्मचारियों की व्यक्तिगत और सामूहिक क्षमता का दोहन करने के लिए हर संस्था में नवाचार की संस्कृति विकसित करने और उसका पोषण करने की जरूरत पर बल दिया है।
क्वॉलिटी सर्किल ऑफ इंडिया के 33वें अधिवेशन का हैदराबाद में उद्घाटन करने के बाद उन्होंने कहा कि यह शीर्ष स्तर के प्रबंधन अथवा अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे टीम भावना, नए विचारों को बढ़ावा दें और कर्मचारियों को अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने में सक्षम बनाएं।
उन्होंने कहा कि संस्थाओं को समस्याओं को हल करने की प्रत्येक व्यक्ति की जन्मजात क्षमता को बाहर लाने के लिए एक उदार वातावरण बनाना चाहिए। उन्हें यथास्थिति को स्वीकार नहीं करना चाहिए।
लोगों के जीवन में कार्य संतुलन सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता की ओर इंगित करते हुए कि उपराष्ट्रपति ने इस बात पर चिंता जताई कि तेज, आधुनिक जीवनशैली भारी तनाव का कारण बन रही है और यह लोगों के स्वास्थ्य तथा निजी जीवन को प्रभावित कर रही है।
श्री नायडू ने कहा कि मुनाफा कमाने के साथ-साथ कर्मचारियों के स्वस्थ कार्यकाल पर भी संस्थाओं का ध्यान केंद्रित होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘जब कोई कार्यस्थल पर लापरवाही, अनुशासनहीनता या गैरजिम्मेदारी बर्दाश्त नहीं कर सकता तो यह सुनिश्चित करना भी संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि वातावरण कर्मचारी के निजी जीवन को खतरे में न डाले।’
यह कहते हुए कि खाने की अच्छी आदतों के साथ ही स्वस्थ जीवनशैली एक खुशहाल जिंदगी के लिए जरूरी है, उपराष्ट्रपति ने लोगों को सलाह दी कि वे परिवार के साथ बिताने के लिए पर्याप्त समय निकालें। साथ ही, योग और ध्यान को रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बनाना भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि फिटनेस काम की गुणवत्ता और जीवन को भी सुधारती है।
श्री नायडू ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि हमारे युवा और गतिशील कार्यबल को सामाजिक सेवा की गतिविधियों में जोड़ा जाए।
उन्होंने कहा, ‘यह समझना चाहिए कि देश तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक समाज के प्रत्येक वर्ग को भारत के विकास की कहानी में भागीदार नहीं बनाया जाता।’
उपराष्ट्रपति ने विभिन्न उत्पाद बनाने वाले उत्पादकों का सख्त गुणवत्ता नियंत्रण, गुणवत्ता आश्वासन सुनिश्चित करने के लिए भी आह्वान किया और उत्पादों की उच्चतम गुणवत्ता बनाए रखने के लिए गुणवत्ता प्रबंधन प्रथाओं को अपनाए जाने की बात कही। उन्होंने कहा, ‘कोई उत्पाद प्रतिस्पर्धा का सामना तभी कर सकता है, जब वह अच्छी गुणवत्ता बनाए रखे।’
श्री नायडू ने कहा कि गुणवत्ता को जीवन का रास्ता बनाएं। गुणवत्ता नियंत्रण के पाठ्यक्रमों और इससे जुड़े दूसरे पहलुओं को स्कूल एवं कॉलेजों में शुरू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह इसका सुझाव केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री को भी देंगे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि गुणवत्ता की अवधारणा की शिक्षा दूसरी सोच को बढ़ावा दे सकती है और छात्रों को भविष्य के कार्यस्थलों के लिए तैयार करती है। उन्होंने कहा, दूसरी सोच को विकसित करने से छात्र किसी समस्या का जरूरत के अनुसार समाधान खोजने के लिए अलग हटकर सोचने की क्षमता हासिल कर लेते हैं।
उपराष्ट्रपति ने बेहतर प्रशासन, विधानसभाओं में बहस एवं बातचीत, शासन में निर्णय और सबसे ऊपर राष्ट्र के संपूर्ण विकास के लिए जन प्रतिनिधियों के चयन एवं चुनाव में गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जरूरत पर भी बल दिया।
इस संबंध में उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से पंचायत से संसद तक अपने जन प्रतिनिधियों के लिए आचार संहिता बनाने का आह्वान किया और कहा कि देश में सार्वजनिक बहसों की गुणवत्ता को ऊपर उठाए जाने की जरूरत है।
श्री नायडू ने जोर देकर कहा कि नेताओं के चयन का आधार 4 सी – करेक्टर, कैलिबर, कैपेसिटी और कंडक्ट यानी चरित्र,योग्यता, क्षमता और आचरण होना चाहिए। यह चार दूसरे सी – कैश, कास्ट, कम्युनिटी और क्रिमिनैलिटी यानी नकदी,जाति, समुदाय और अपराध पर आधारित नहीं होना चाहिए।
इस अधिवेशन में 800 से ज्यादा प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया और 200 से ज्यादा सुधार परियोजनाएं पेश की गईं। इस अवसर पर भारत के क्वॉलिटी सर्किल फोरम के अध्यक्ष चौ. बालाकृष्ण राव और श्री पी. एस. राम मोहन राव, पूर्व राज्यपाल और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।