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निर्दोष कानूनी प्रक्रिया से साबित होते हैं प्रेस कांफ्रेंस से नहीं

गैरों में कहां दम था हमें तो अपनों ने लूटा, हमारी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था। आज कांग्रेस के दिग्गज नेता और देश के पूर्व वित्तमंत्री चिदंबरम सीबीआई की हिरासत में कुछ ऐसा ही सोच रहे होंगे। क्योंकि 2007 के एक मामले में जब वे 2019 में गिरफ्तार होते हैं तो उसी के बयान के आधार पर जिसकी मदद करने का उनपर आरोप है। जी हां वो ‘इंद्राणी मुखर्जी’ जो आज अपनी ही बेटी की हत्या के आरोप में जेल में है। अगर इंद्राणी मुखर्जी आज जेल में नहीं होती तो भी क्या वो सरकारी गवाह बनती? जवाब हम सभी जानते हैं और शायद यह खेल जो खुल तो 2007 में ही गया था बोफ़ोर्स घोटाले, 2जी घोटाले, यूटीआई घोटाले, ताज कॉरिडोर घोटाले, यूरिया घोटाले, एयरबस घोटाले, स्टैम्प पेपर घोटाले जैसे अनेक घोटालों की ही तरह सबूतों और गवाहों के अभाव में कागजों में ही दफन हो जाता। चिदंबरम दोषी हैं या नहीं ये फैसला तो न्यायालय करेगा लेकिन खुद एक वकील होने के बावजूद उनका खुद को बचाने के लिए कानून से भागने की कोशिश करना, सीबीआई के लिए अपने घर का दरवाजा नहीं खोलना, उन्हें गिरफ्तार करने के लिए सीबीआई के अफसरों का उनके घर की दीवार फांद कर अंदर जाना समझ से परे है।

लेकिन अब जब आखिर लगभग 19 महीनों की जद्दोजहद के बाद सीबीआई चिदंबरम के लिए कोर्ट से पांच दिन की रिमांड लेने में कामयाब हो गई है, इस बात का उल्लेख महत्वपूर्ण है कि भ्रष्टाचार के लगभग छह अलग अलग मामलों में चिदंबरम, उनकी पत्नी, पुत्र और बहू जांच के दायरे में हैं। खुद चिदंबरम को इन मामलों में लगभग 27 बार कोर्ट से अग्रिम जमानत मिल चुकी थी लेकिन इस बार उन्हें कोर्ट से झटका मिला। वक्त का सितम तो देखिए, कि कांग्रेस के जो वकील कल तक आधी रात को भी सुप्रीम कोर्ट के ताले खुलवा लेते थे, आज दिन भर की मशक्कत के बावजूद शाम साढ़े चार बजे तक दिग्गज वकीलों की यह फौज अपने नेता की जमानत याचिका पर सुनवाई भी नहीं करवा पाई। अंतत: रात दस बजे के आसपास लगभग 26 घंटे तक ‘लापता’ देश के पूर्व वित्त एवं गृह मंत्री को सीबीआई द्वारा बेहद नाटकीय घटनाक्रम में गिरफ्तार कर लिया जाता है। कांग्रेस ने भले ही इस ‘नाटकीय घटनाक्रम’ को चिदंबरम के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पूरे प्रकरण को ‘विक्टिम कार्ड’ खेलते हुए ‘राजनैतिक दुर्भावना से प्रेरित’ कदम बनाने की भरपूर कोशिश की हो, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के नाते उसकी यह प्रेस कॉन्फ्रेंस प्रश्नों के उत्तर देने के बजाए अनेक सवाल खड़े कर गई। चिदंबरम ने भले ही संविधान के अनुच्छेद 21 का सहारा लेकर इस देश के एक नागरिक के नाते अपनी स्वन्त्रता के अधिकार की दुहाई देते हुए इसे अपने ‘लापता’ होने को जायज ठहराने का आधार बनाया हो, लेकिन इस देश के पूर्व वित्तमंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर काबिज होने के नाते उनका यह आचरण अनेक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गया। आखिर सार्वजनिक जीवन जीने वाला एक नेता जिस पर पूरे देश की नजऱ है वो देश को अपने इस आचरण से क्या संदेश दे रहा है? आज जिस संविधान की वो बात कर रहे हैं, उसमें विधि के समक्ष देश के सभी नागरिक समान हैं तो क्या किसी आम आदमी को भी किसी अपराधिक मामले में 27 बार अग्रिम जमानत मिलती? शायद इसीलिए कोर्ट ने सरकार से कहा है कि अब समय आ गया है कि प्री अरेस्ट कानून में बदलाव लाकर आर्थिक अपराध के हाई प्रोफाइल मामलों में इसे निष्प्रभावी कर दिया जाए ताकि इसका दुरुपयोग बंद हो। चिदंबरम के वित्तमंत्री रहते हुए उनके द्वारा अपने पद का दुरुपयोग तो जांच का विषय है लेकिन उनका जांच में ही सहयोग नहीं करना अनेक शंकाओं को जन्म दे गया।

दरअसल सवाल तो अनेक हैं

  1. जब कांग्रेस का कहना है कि चिदंबरम का चार्जशीट में नाम ही नहीं है तो सीबीआई गिरफ्तार क्यों करना चाहती है तो सवाल उठता है कि जब चार्जशीट में नाम ही नहीं है तो कांग्रेस चिदंबरम के लिए अग्रिम जमानत क्यों लेना चाहती है?
  2. आखिर क्यों उन्हें 27 बार अग्रिम जमानत लेनी पड़ी?
  3. चिदंबरम का कहना है कि उन्हें झूठा फसाया जा रहा है तो यह इल्जाम वो सरकार पर लगा रहे हैं या न्यायालय पर? क्योंकि अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई ना करके गिरफ्तारी का रास्ता न्यायालय ने साफ किया है सरकार ने नहीं। न्यायालय का कहना है कि अपराध की गंभीरता और चिदंबरम द्वारा सीबीआई द्वारा पूछताछ में दिए गए कपटपूर्ण उत्तर उन्हें जमानत देने से रोकते हैं।
  4. अगर चिदंबरम के पास छुपाने के लिए कुछ नहीं था तो वे गायब क्यों हुए थे?
  5. कांग्रेस जब भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अपने नेता के साथ खड़ी होती है तो क्या बताना चाहती है, यह कि वो भ्रष्टाचार का समर्थन करती है या उसे देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है?

कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि अपने नेता के साथ खड़ा होना और उसे क्लीन चिट देकर उसके ‘निर्दोष’ होने का एकतरफा फैसला सुनाना दो अलग अलग बातें हैं। बेहतर होता कि कांग्रेस देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा जताती और अपने नेता के निर्दोष होने या ना होने का फैसला न्यायालय पर छोड़ती। एक आर्थिक अपराध के मामले को सरकार द्वारा राजनैतिक विद्वेष का मामला बनाकर कांग्रेस खुद मामले का राजनीतिकरण कर रही है यह किसी से छुपा नहीं है। दरअसल देश ने सालों से यही राजनीति देखी है और सालों तक यह राजनीति चली भी है। छोटी मोटी मछलियां तो जाल में फंस जाती थीं लेकिन मगरमच्छ के लिए जाल छोटा पड़ ही जाता था। इसी राजनीति को बनाए रखने के लिए ही 2019 के चुनावों में सभी विपक्षी दल महागठबंधन बनाकर केंद्र में गठबंधन सरकार की आस लगाए बैठे थे। लेकिन अब आस देश के आम आदमी की जागी है कि वो दिन पास ही है जब कानून की नजर में सब बराबर होंगे। देश को उम्मीद जगी है कि जो भ्रष्टाचार देश की जड़ें खोद रहा था आज खुद उसकी जड़ें खोदी जा रही है। ऐसे समय में कानूनी प्रक्रिया का विरोध कहीं कांग्रेस को भारी न पड़ जाए।

डॉ नीलम महेंद्र

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जैसी करनी, वैसी भरनी

भारतीय राजनीति में बवाल इतने होते हैं कि आम आदमी की याददाश्त हल्की पड़ जाती है। चिदंबरम के साथ जो हुआ है, वे जमानत नहीं मिलने पर जैसे लापता हुए और सीबीआई ने उनके घर पर लुकऑउट नोटिस लगाया तो इस सबके साथ याद किया जाना चाहिए कि जब चिदंबरम गृहमंत्री थे तो उन्होंने तब कैसे गुजरात के गृह राज्य मंत्री और आज देश के गृहमंत्री अमित शाह को किस तरह के मामलों में फंसाया था। अदालती व्यवस्था से ही अमित शाह के गुजरात में प्रवेश पर रोक लगवा दी थी।

चिदंबरम के मामले में आरोप भारत के मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह या नरेंद्र मोदी ने नहीं लगाए हैं। चिदंबरम पर शक की सुई उनके मंत्री रहते हुए उन्हीं की सरकार के दौरान सीबीआई और ईडी की जांच पड़ताल के वक्त बनी थी। इसलिए राजनीतिक तौर पर कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी का यह आरोप हास्यास्पद है कि चिदंबरम को राजनीतिक विद्वेष के कारण परेशान किया जा रहा है। सारा देश यह जानने को आतुर है कि मनमोहन सिंह सरकार में किस किस मंत्री ने क्या धांधली की और उस का हिस्सा कहां-कहां पहुंचता रहा है। चिदंबरम के साथ कमलनाथ का भांजा रतुल पुरी तो अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में गिरफ्तार कर लिया गया है।

असल में पी. चिदंबरम के खिलाफ आईएनएक्स मीडिया घोटाले का मामला 2007 में सामने आया था। तब वह वित्त मंत्री थे। हुआ यह कि आईएनएक्स मीडिया ने 13 मार्च 2007 को 4.62 करोड़ विदेशी निवेश और अन्य स्रोतों से 350 करोड़ डाऊन स्ट्रीम इन्वेस्टमेंट लाने के लिए इन्वेस्टमेंट प्रोमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) आवेदन किया था। यह इन्वेस्टमेंट मॉरीशस की तीन कम्पनियों से आनी थी। एफआईपीबी की मंजूरी के लिए आईएनएक्स मीडिया के मालिक पीटर मुखर्जी और उनकी पत्नी इंद्राणी मुखर्जी ने पी.चिदंबरम से मुलाकात की ताकि उनके आवेदन में किसी तरह की देरी नहीं हो।

एफ़आईपीबी ने 30 मई 2007 को 4.62 करोड़ के विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी, लेकिन डाऊन स्ट्रीम इन्वेस्टमेंट का प्रस्ताव नामंजूर हुआ क्योंकि क़ानून उसकी इजाजत नहीं देता था। इसके बावजूद पी.चिदंबरम के आशीर्वाद से आईएनएक्स ने 4.62 करोड़ की मंजूरी के बदले 305 करोड़ का विदेशी निवेश लिया जिसमें 26 करोड़ रुपए डाऊन स्ट्रीम इन्वेस्टमेंट भी लिया।

जब आयकर विभाग ने 26 मई 2008 को नोटिस जारी किया तो इंद्राणी मुखर्जी ने फिर पी. चिदंबरम से मुलाक़ात की, तब उनके बेटे कार्ति चिदंबरम ने आयकर अधिकारियों से मुलाक़ात कर मामला रफा दफा करवाने का दबाव डाला। डेढ़ महीने बाद 15 जुलाई 2008 को आईएनएक्स ने कार्ति चिदंबरम की कम्पनी एडवांटेज स्ट्रेटजिक कंसलटिंग को 10 लाख रूपए अदा किए। अब सरकारी गवाह बन चुकी इंद्राणी मुखर्जी ने कहा है कि पी. चिदंबरम ने 10 लाख रूपए की मांग की थी। सीबीआई इस मामले में उनके बेटे कार्ति चिदंबरम को भी गिरफ्तार कर चुकी है जो कथित तौर पर दलाल की भूमिका में था। वह फिलहाल जमानत पर है और कांग्रेस का ही लोकसभा सदस्य है।

चिदंबरम अग्रिम जमानत याचिका से बार-बार एजेंसियों के घेरे से बचे हुए थे। आखिरकार दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीमकोर्ट भी राहत देता दिखाई नहीं देता। सिब्बल की यह दलील  बेकार गई कि चिदंबरम कहीं भाग नहीं रहे  जो सीबीआई ने उनके घर पर नोटिस चिपका दिया है।

खबर तो यहां तक है कि चिदंबरम के खिलाफ कई केस खुलने वाले हैं। जिनमें से एक तो पनामा पेपर लीक का भी है, जिसमें खुलासा हुआ था कि चिदंबरम किस तरह बड़ी कम्पनियों से अपने पारिवारिक ट्रस्ट प्लानिप्पा चेरिटेबल ट्रस्ट में बड़ी बड़ी रकमें लेते थे। ऐसे आरोपों के अलावा यों भी चिदंबरम और उनके बेटे की सपंत्ति की सूची कई दिनों से सोशल मीडिया में घूम रही है।

– अजय सेतिया

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चिदंबरम की ईमानदारी के सबूत

बात है सन 2006 की जब पीटर मुखर्जी और उनकी पत्नी इंद्राणी मुखर्जी एक चैनल प्रसारित करने वाले थे आईएनएक्स मीडिया। पीटर मुखर्जी एवं इंद्राणी मुखर्जी वही हैं जो अपनी ही बेटी शीना बोरा हत्याकांड की सजा में जेल काट रहे हैं।

जब इन्होंने ये कम्पनी बनाई तो इन्हें निवेश की जरूरत थी अत: विदेशी निवेश उचित माध्यम था। विदेशी कम्पनियों से प्रत्यक्ष पूंजी निवेश। अब चूंकि एफडीआई के नियम हैं, कानून हैं जिसमें ऑटोमेटिक रूट और एप्रूव्ड रूट काम करता है। मीडिया कम्पनी सुरक्षा क्षेत्र में आती है इसलिए यहां एप्रूव्ड रूट लगता है अत: एफआईपीबी से इजाजत लेना आवश्यक होता है।

आईएनएक्स मीडिया कम्पनी के लिये एफआईपीबी संगठन कुल 4.62 करोड़ विदेशी निवेश की अनुमति देती है एवं साथ में यह शर्त रखी की इन पैसों का किसी अन्य कम्पनी में प्रयोग कानून के खिलाफ होगा।

सन् 2007-8 में इंद्राणी और पीटर मुखर्जी ने विदेशी निवेश के रूप में अकूत सम्पत्ति एकत्र की जो कुल 305 करोड़ की धनराशि थी। अब यह धन कहां से आया किसी को पता नहीं।

सन् 2008 के मध्य तक अकूत सम्पत्ति की बात एफआईपीबी को पता लगी जिसमें उन्होंने इन दोनों द्वारा दोनों कानून का उल्लंघन पाया गया। अकूत सम्पत्ति एवं सम्पत्ति का दुरुपयोग।

इंद्राणी एवं पीटर मुखर्जी को जब यह बात पता लगी की अब कानून से बचना मुश्किल है तो उन्होंने युक्ति लगाई। जिसमें उनकी चाल यह थी की यदि किसी प्रकार कोई राजनेता हम से जुड़ जाता तो हम बच सकते हैं। ठीक उसी समय तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के पुत्र कार्ति चिदंबरम अपनी नयी कम्पनी जिसका नाम चेस मैनेजमेंट सर्विस लिमिटेड था, में लिप्त थे। अत: इंद्राणी व पीटर के लिये वे सुरक्षित मार्ग थे। पीटर और इंद्राणी ने कार्ति चिदंबरम की कम्पनी को अपनी कम्पनी आईएनएक्स मीडिया में एक कंसेलटेंसी कम्पनी के तौर पर शामिल किया जिसके तहत उन्हें करीबन 3.5 करोड़ दिये गये। कार्ति चिदंबरम ने अपने ऊपर दाग से बचने हेतु एक फर्जी कम्पनी का सहारा लिया। जैसे ही कार्ति और पीटर, इंद्राणी में सांठ-गांठ हुई, कार्ति की कम्पनी की आय आसमान छूने लगी। देखा जाये तो पीटर और इंद्राणी पर उसी समय असीमित सम्पत्ति एवं उसका दुरुपयोग करने के लिये तुरन्त मुक़दमा चलना चाहिए था किन्तु कुछ नहीं हुआ। इसके विपरीत वित्त मंत्रालय ने इन्हें पुन: निवेश अधिकार आवेदन के लिये कहा जिसमें इन्हें सरकार से अधिकार मिल जाता और ये तीनों इसी प्रकार अग्रसर रहते। ऐसा हुआ भी। किन्तु दोबारा अधिकार मिल जाने से पूर्व का उलंघन नहीं समाप्त होता अत: एफआईपीबी ने शिकंजा बनाये रखा लेकिन बात वही है जब एफआईपीबी स्वयं वित्त मंत्रालय के अधीन होती है तो आखिर क्या होता? जबकि जिस कम्पनी में स्वयं वित्त मंत्री का पुत्र ही शामिल है।

एक वित्त मंत्री तमाम कानूनी उल्लंघनों को अनदेखा करता गया और ये तीनों उसकी सहायता में आगे बढ़े।

मई 2017 में मोदी सरकार के दौरान कार्ति चिदंबरम और पीटर-इंद्राणी की कम्पनी पर सीबीआई द्वारा शिकंजा कसा गया, उन पर गहन जांच के आदेश हुए। इन तीनों के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी हुआ एवं पासपोर्ट जब्त कर लिया गया। अत: ये अब देश छोड़कर कहीं नही जा सकते थे। सीबीआई द्वारा तीनों आरोपियों पर लगायी गयीं धाराएं हैं- आईपीसी 120बी, 420 एवं सेक्शन 8, 13(1), 13(2) ऑफ करप्शन 1988।

फरवरी 2018 में कार्ति चिदंबरम को न्यायिक हिरासत में लिया गया। अपने ऊपर लगे तमाम संगीन आरोपों के लिये वे एक महीने तक जेल में रहे और छूट गये। अक्टूबर 2018 में प्रवर्तन निदेशालय ने इनके पास असीम सम्पत्ति की जांच की जिसमें लगभग 54 करोड़ रुपये की सिर्फ अचल सम्पत्ति पकड़ी गयी जो दिल्ली, चेन्नई, ऊंटी, लंदन तथा पेरिस में हैं। इन सम्पत्तियों का सीधा तार आईएनएक्स मीडिया से जुड़ा था अत: सब कब्जे में ली गयीं।

आज अगस्त 2019 चल रहा है। इंद्राणी मुखर्जी जो जेल में है अब सरकारी गवाह है और उसने यह कबूल किया कि, ”हां मैंने तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम एवं उनके पुत्र कार्ति चिदंबरम को एक बड़ी रकम की रिश्वत दी थी।’’ पिछले एक वर्ष से अन्तरिम जमानत जैसी सुविधा का उपयोग कर अब तक पी. चिदंबरम पच्चीस दफा जेल जाने से बचते रहे। और भारतीय नियम देखें कि दोनों पिता-पुत्र दोषी रहते हुए एक लोकसभा सांसद है दूसरा राज्यसभा! ऐसा भारत में ही हो सकता है। लेकिन अदालत ने माना है कि इनका जुर्म बहुत बड़ा है अत: इनका सांसद होना इन्हें जेल जाने से कतई नहीं रोक सकेगा अन्तत: न्यायिक हिरासत जारी हुआ और चिदंबरम भागते रहे।     पिछले पांच वर्षों में ‘द्वारपाल’, ‘स्पीकिंग ट्रूथ टू पॉवर’, ‘फियरलेस इन अपोजिशन’ तथा ‘अन डॉन्टिड’ जैसी पुस्तकें लिखने वाले पी. चिदंबरम जी कितने सत्यवादी हैं भेद खुल चुका है।

कांग्रेस का नारा है ‘अब होगा न्याय’, मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है अब होगा न्याय!

-विवेक त्रिपाठी

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