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बिखरा विपक्ष तार-तार

होगा हरियाणा व महाराष्ट्र मेंमहाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभाओं के चुनावों की घोषणा हो गई है। पर अभी से यह स्पष्ट सा प्रतीत हो रहा है कि जब चुनावों के 24 अक्तूबर को नतीजे आएंगे तो जनता का साथ और समर्थन किसको मिलेगा। ये चुनाव उस समय हो रहे हैं जब दोनों ही राज्यों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी अपने राजनीतिक विरोधियों से बहुत आगे है। उसका संगठन और सरकार बेहतर काम कर रहा है। मोटा-मोटी यह तो कह ही सकते हैं कि मामला यह नहीं है कि विजय किसे मिलेगी, सारा देश यह देखेगा कि महाराष्ट्र और हरियाणा की क्रमश: 288 और 90 सदस्यीय विधानसभाओं में सत्तासीन दल गठबंधन को किस तरह का बहुमत मिलेगा। देखा यह जायेगा कि इस बार का बहुमत पहले की अपेक्षा कितना अधिक होगा?

दोनों राज्यों में विपक्ष तो तार-तार हुआ पड़ा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और शरद पवार की सरपरस्ती वाली एनसीपी में बिखराव साफतौर पर दिखाई दे रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में यह उम्मीद थी कि कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन भाजपा-शिवसेना गठबंधन को टक्कर देंगे। पर हुआ इसके विपरीत। भाजपा-शिवसेना ने राज्य की 48 में से 41 सीटों पर कब्जा जमा लिया। हरियाणा में भाजपा ने सारी 10 सीटें जीतकर विपक्ष को खाता भी खोलने नहीं दिया। पिछले पांच सालों तक सत्ता से बाहर रहने के बाद कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन लगातार कमजोर ही हुआ है। इसने किसी भी मुद्दे पर राज्य सरकार के खिलाफ कभी भी कोई बड़ा आंदोलन भी नहीं चलाया। इसके विपरीत महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने शक्तिशाली मराठा समाज को आरक्षण की पेशकश करके एक अहम फैसला लिया। उन्होंने गठबंधन की साथी शिव सेना के साथ भी संबंधों को मधुर बनाकर रखा।

अगर बात अब हरियाणा की करें तो इधर भाजपा अकेले ही चुनाव लड़ेगी और उसका भारी बहुमत से जीतना तय माना जा सकता है। इधर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से जनता इसलिए खास तौर पर प्रसन्न है क्योंकि उन्होंने सरकारी नौकरियों में भाई-भतीजावाज को खत्म करके दिखा दिया है। हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला से लेकर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा तक ने सरकारी नौकरियों में अपनों को तबीयत से मलाई बांटी थी। इसके अलावा भी भारी पैमाने पर घूस देकर नौकरियां बांटी गईं। पर सबसे बड़ी बात जो दोनों राज्यों में भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रही है, वह नरेन्द्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी है। प्रधानमंत्री मोदी ने रोहतक और नासिक में बड़ी रैलियां भी कर ली हैं। उनकी दोनों ही रैलियों में अपार जनसमूह एकत्र हुआ था। उन्होंने इन रैलियों में जनता का आह्वान किया कि वे फिर से मनोहर लाल खट्टर और देवेंद्र फडनवीस को राज्य की सेवा करने का अवसर दें। मोदी इन राज्यों का सघन दौरा भी करेंगे। इसी तरह से अमित शाह भी दोनों राज्यों पर फोकस कर रहे हैं। इस बीच, महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा को केन्द्र सरकार के जम्मू-कश्मीर से 370 और 35 ए को खत्म करने के बड़े फैसले का भी लाभ मिलने जा रहा है। मोदी सरकार के एक फैसले से जम्मू-कश्मीर का शेष भारत से पूरी तरह से एकीकरण हो गया है। केन्द्र सरकार के इस कदम का देश की जनता ने दिल की गहराईयों से स्वागत किया है। उधर, जम्मू-कश्मीर पर लिए फैसले पर सरकार के साथ खड़ा होने के बजाय कांग्रेस ने उसका विरोध ही किया। यह सब देश की जनता ने देखा। महत्वपूर्ण यह भी है कि 370 और 35 ए हटाने के सवाल पर कांग्रेस पूरी तरह बंट गई। उसके हरियाणा और महाराष्ट्र के भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और मिलिंद देवड़ा जैसे नेताओं ने मोदी सरकार के फैसले का स्वागत किया। हुड्डा साहब तो कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में आने की कोशिशें भी कर रहे थे। पर उन्हें भाजपा में जगह नहीं मिली क्योंकि वे कथित रूप से करप्शन के कई मामलों में लिप्त बताए जाते हैं।

दरअसल भाजपा को दोनों राज्यों में मुख्य रूप से कांग्रेस से मुकाबला करना होगा। फिलहाल कांग्रेस हरियाणा और महाराष्ट्र में टूटी-फूटी स्थिति में है। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों की हार से कांग्रेस चार माह गुजरने के बाद भी उबरी नहीं है। महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों के बाद से कांग्रेस और एनसीपी से बड़े स्तर पर नेता अन्य दलों का रुख कर रहे हैं। अभी तक 13 विधायकों और 10 पूर्वमंत्री पार्टी छोड़कर भाजपा या शिवसेना से जुड़ चुके हैं। मतलब साफ है कि इन नेताओं को समझ आ गया है कि जनता किसके साथ है। भाजपा की चाहत है कि पश्चिम महाराष्ट्र में एनसीपी को कमजोर किया जाए। यही शरद पवार के असर वाला मराठवाडा का क्षेत्र है। आगामी विधानसभा चुनाव शरद पवार की साख के लिए खास होगा। वे भी पूरी ताकत झोकेंगे ताकि उनका किला सुरक्षित रहे। उनकी जी तोड़ कोशिश होगी कि वे अपने गढ़ में ही अप्रासंगिक ना हो जाएं। अगर बात हरियाणा की करें तो वहां पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी पूर्व केन्द्रीय मंत्री सैलजा को सौंप दी गई है। वो विगत लोकसभा चुनाव अंबाला से बुरी तरह से हारी थीं। हरियाणा में गुजरे लंबे समय से भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर में छत्तीस का आंकड़ा का चल रहा था। तंवर को राहुल गांधी का करीबी माना जाता था। जब कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी ने संभाली तो उनकी छुट्टी हुई।

आगामी हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में यह भी देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी किस तरह से कैंपेन करते हैं या नहीं करते हैं? पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद को छोड़ दिया था। यह भी देखना होगा कि क्या प्रियंका गांधी चुनावी रणभूमि में उतरेंगी? हालांकि उनकी छवि एक ‘यदा-कदा वाले नेता’ के रूप में ही उभरी है। प्रियंका बार-बार साबित करती रही हैं कि वो नॉन-सीरियस किस्म की नेता हैं। वे किसी मसले पर लड़ाई को लंबा नहीं खींच पाती हैं।

आप देखेंगे कि महाराष्ट्र और हरियाणा में जनता कांग्रेस से जम्मू-कश्मीर के मसले पर अपने स्टैंड को साफ करने के लिए कहती रहेगी। कांग्रेस के लिए जवाब देते नहीं बनेगा कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को खत्म करने का विरोध किस आधार पर किया। यानी कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ती ही नजर आ रही हैं। देखा जाए तो विपक्ष के पास उपर्युक्त दोनों सूबों में भाजपा को घेरने का कोई खास बिन्दु ही नहीं है। फिलहाल लग यह रहा है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में देवेन्द्र फडनवीस और मनोहर लाल खट्टर फिर से सत्तासीन होने जा रहे हैं।

R K Sinha

(लेखक राज्यसभा सदस्य एवं हिन्दुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी के अध्यक्ष हैं)

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