विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की नयी वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2019 के अनुसार, टीबी नियंत्रण में जो सफलता मिली है, वह सराहनीय तो है पर रोग-उन्मूलन के लिए पर्याप्त नहीं है. जब टीबी की पक्की जांच और पक्का इलाज मुमकिन है तो 2018 में क्यों 15 लाख लोग टीबी से मृत हुए और 1 करोड़ को टीबी रोग झेलना पड़ा?
2030 तक टीबी उन्मूलन के लिए ज़रूरी है कि 2020 तक टीबी के नए रोगी दर में सालाना 20% गिरावट आये और टीबी मृत्यु दर में 35% गिरावट. विश्व में सिर्फ एक छेत्र है जो 2020 टीबी नियंत्रण लक्ष्य पूरे करने की ओर अग्रसर है: यूरोप. 7 ऐसे देश हैं जहाँ टीबी का दर अत्याधिक है पर सतत प्रयास से वह भी 2020 लक्ष्य पूरे करने की ओर प्रगति कर रहे हैं: कीन्या, लिसोथो, म्यांमर, रूस, दक्षिण अफ्रीका, तंज़ानिया और ज़िम्बाब्वे. बाकि पूरी दुनिया 2020 लक्ष्य से फ़िलहाल बहुत पिछड़ी हुई है.
2017 की तुलना में, 2018 में 1 लाख अधिक बच्चे टीबी से मृत
संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठक में सरकारों ने यह तय किया था कि 2018 से 2022 तक 4 करोड़ लोगों को टीबी उपचार सेवा दी जाएगी – 2018 में 70 लाख, और 2019-2022 में 80 लाख हर साल. 2018 में, विश्व में 70 लाख नए टीबी रोगी चिन्हित हुए और उन्हें इलाज सेवा प्राप्त हुई. भारत में 2018 में 20 लाख नये टीबी रोगी चिन्हित हुए और उन्हें जाँच-इलाज सेवा प्राप्त हुई.
परन्तु 2018 में 1 करोड़ नए टीबी रोगी अनुमानित थे जिनमें से 70 लाख को इलाज मुहैया हुआ – यानि कि 30 लाख नए रोगी जांच-इलाज से वंचित रह गए. यदि टीबी उन्मूलन का स्वप्न साकार करना है तो यह ज़रूरी है कि हर टीबी रोगी चिन्हित हो, उसे मानक के अनुसार जांच-इलाज मिले. 30 लाख नए रोगी जिनतक स्वास्थ्य सेवा नहीं पहुँच पायी, उनमें से 25% भारत में हैं.
2018 टीबी मृत्यु दर में 1 लाख की गिरावट
2017 की तुलना में, 2018 में 1 लाख कम लोग टीबी से मृत हुए. 2018 में 15 लाख लोग टीबी से मृत हुए जिनमें से 2.5 लाख लोग एचआईवी से भी संक्रमित थे (2017 में 16 लाख लोग टीबी से मृत हुए जिनमें से 3 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित थे).
दवा-प्रतिरोधक टीबी दर अत्यंत चिंताजनक
2017 और 2018 में दवा-प्रतिरोधक टीबी दर अत्यंत चिंताजनक रहा: सालाना 5 लाख लोग दवा प्रतिरोधक टीबी से जूझते अनुमानित हैं. 2018 में इन 5 लाख में से 78% को मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) थी (2017 में 82% को एमडीआर-टीबी थी). जब टीबी बैक्टीरिया, 2 सबसे प्रभावकारी दवाओं से प्रतिरोधक हो जाता है (आइसोनियाजिड और रिफेम्पिसिन) तब उसे एमडीआर-टीबी कहते हैं. 2018 में इन 5 लाख अनुमानित दवा-प्रतिरोधक टीबी रोगियों में से, 1.86 लाख को ही जांच मिली और 1.56 लाख को इलाज (2017 में 1.6 लाख को जांच और 1.39 लाख लोगों को इलाज मिल पाया था). यानि कि, मात्र, हर 3 में से 1 एमडीआर-टीबी रोगी को ही जांच-इलाज मिल पाया.
2018 में, वैश्विक दवा-प्रतिरोधक टीबी का 27% भार भारत में है (14% चीन और 9% रूस में). 2017 में वैश्विक दवा-प्रतिरोधक टीबी का 24% भार भारत, 13% चीन और 10% रूस में रहा था.
2018 में 3.4% नए टीबी रोगियों और 18% पुन: टीबी हुए चिन्हित लोगों को दवा प्रतिरोधक टीबी रही (2017 में 3.5% नए टीबी रोगी और 18% पुन: टीबी हुए लोगों को दवा प्रतिरोधक टीबी हुई). सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की शोभा शुक्ला ने कहा कि पूर्व रूस क्षेत्र (USSR) में पुन: टीबी हुए लोगों में 50% से अधिक को दवा प्रतिरोधक टीबी रही.
जिन लोगों को दवा प्रतिरोधक टीबी सम्बंधित स्वास्थ्य सेवाएँ नहीं मिली उनमें से 43% भारत में है.
वैश्विक दवा प्रतिरोधक टीबी इलाज सफलता दर 56% रहा. परन्तु अनेक ऐसे देश हैं जहाँ पर दवा प्रतिरोधक टीबी इलाज सफलता दर काफ़ी अधिक रहा जैसे कि बांग्लादेश, इथियोपिया, कजाखस्तान, और म्यानमर.
टीबी की पक्की जांच होनी अनिवार्य है. परन्तु 2018 में, सिर्फ 55% फेफड़े के टीबी रोगियों को ही पक्की जांच मिली (2017 में 56% को पक्की जांच मिली थी).
2018 में जिन लोगों को टीबी की पक्की जांच मिली, उनमें से 51% को दवा प्रतिरोधकता की भी जांच मिली (2017 में 41% को दवा प्रतिरोधकता जांच मिली थी). नए टीबी रोगी में से 46% को दवा प्रतिरोधक टीबी जांच मिली, और पुन: टीबी हुए लोगों में से 83% को दवा प्रतिरोधक टीबी जांच मिली.
लेटेन्ट टीबी और टीबी रोग दोनों का उन्मूलन ज़रूरी
हर नया टीबी रोगी, पूर्व में लेटेंट टीबी से संक्रमित हुआ होता है। और हर नया लेटेंट टीबी से संक्रमित रोगी इस बात की पुष्टि करता है कि संक्रमण नियंत्रण निष्फल था जिसके कारणवश एक टीबी रोगी से टीबी बैक्टीरिया एक असंक्रमित व्यक्ति तक फैला।
लेटेंट टीबी, यानि कि, व्यक्ति में टीबी बैकटीरिया तो है पर रोग नहीं उत्पन्न कर रहा है। इन लेटेंट टीबी से संक्रमित लोगों में से कुछ को टीबी रोग होने का ख़तरा रहता है। जिन लोगों को लेटेंट टीबी के साथ-साथ एचआईवी, मधुमेह, तम्बाकू धूम्रपान का नशा, या अन्य ख़तरा बढ़ाने वाले कारण भी होते हैं, उन लोगों में लेटेंट टीबी के टीबी रोग में परिवर्तित होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
दुनिया की एक-चौथाई आबादी को लेटेंट टीबी है। पिछले 60 साल से अधिक समय से लेटेंट टीबी के सफ़ल उपचार हमें ज्ञात है पर यह सभी संक्रमित लोगों को मुहैया नहीं करवाया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2018 मार्गनिर्देशिका के अनुसार, लेटेन्ट टीबी उपचार हर एचआईवी संक्रमित व्यक्ति को मिले, फेफड़े के टीबी रोगी, जिसकी पक्की जांच हुई है, उनके हर परिवार सदस्य को मिले, और डायलिसिस आदि करवा रहे लोगों को भी दिया जाए.
संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय बैठक में सरकारों द्वारा पारित लेटेन्ट टीबी लक्ष्य इस प्रकार हैं: 2018-2022 तक 3 करोड़ को लेटेन्ट टीबी इलाज मिले (इनमें 60 लाख एचआईवी संक्रमित लोग हैं, और 2.4 करोड़ फेफड़े के टीबी रोगी – जिनकी पक्की जांच हुई है – के परिवार सदस्य (40 लाख 5 साल से कम उम्र के बच्चे और 2 करोड़ अन्य परिवार जन).
2018 में 65 देशों में लेटेन्ट टीबी इलाज 18 लाख एचआईवी से संक्रमित लोगों को प्रदान किया गया (2017 में 10 लाख एचआईवी से संक्रमित लोगों को लेटेन्ट टीबी इलाज मिला था). परन्तु वैश्विक लेटेन्ट टीबी इलाज का 61% तो सिर्फ एक ही देश – दक्षिण अफ्रीका – में प्रदान किया गया.
भारत में 2018 में, नए एचआईवी संक्रमित चिन्हित हुए लोगों (1.75 लाख) में से, सिर्फ 17% को लेटेन्ट टीबी इलाज मिल पाया (29,214).
भारत में स्वास्थ्य कर्मियों में टीबी रोग दर दुगना पाया गया जो अत्यंत चिंताजनक है.
भारत सरकार का वादा है कि टीबी उन्मूलन 2025 तक हो जायेगा और विश्व में 193 सरकारों ने सतत विकास लक्ष्य पारित करके यह वादा किया है कि दुनिया से 2030 तक टीबी उन्मूलन हो जायेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, जो टीबी नियंत्रण की ओर प्रयास हो रहे हैं, वह उन्मूलन के लिए पर्याप्त नहीं हैं. यदि टीबी मुक्त दुनिया का सपना साकार करना है तो अनिवार्य है कि टीबी दर में गिरावट अनेक गुणा तेज़ी से आये और नए संक्रमण दर, दवा प्रतिरोधक टीबी दर, टीबी मृत्यु दर, लेटेन्ट टीबी दर, आदि सब शून्य हों.